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28 अक्टूबर का पवित्र वचन

 

28 अक्टूबर 2020, बुधवार

सन्त सिमोन और यूदा थदेयुस, प्रेरित : पर्व

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📒 पहला पाठ एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 2:19-22

19) आप लोग अब परेदशी या प्रवासी नहीं रहे, बल्कि सन्तों के सहनागरिक तथा ईश्वर के घराने के सदस्य बन गये हैं।

20) आप लोगों का निर्माण भवन के रूप में हुआ है, जो प्रेरितों तथा नबियों की नींव पर खड़ा है और जिसका कोने का पत्थर स्वयं ईसा मसीह हैं।

21) उन्हीं के द्वारा समस्त भवन संघटित हो कर प्रभु के लिए पवित्र मन्दिर का रूप धारण कर रहा है।

22) उन्हीं के द्वारा आप लोग भी इस भवन में जोड़े जाते हैं, जिससे आप ईश्वर के लिए एक आध्यात्मिक निवास बनें।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 6:12-19

12) उन दिनों ईसा प्रार्थना करने एक पहाड़ी पर चढ़े और वे रात भर ईश्वर की प्रार्थना में लीन रहे।

13) दिन होने पर उन्होंने अपने शिष्यों को पास बुलाया और उन में से बारह को चुन कर उनका नाम ’प्रेरित’ रखा-

14) सिमोन जिसे उन्होंने पेत्रुस नाम दिया और उसके भाई अन्द्रेयस को; याकूब और योहन को; फि़लिप और बरथोलोमी को,

15) मत्ती और थोमस को; अलफाई के पुत्र याकूब और सिमोन को, जो ’उत्साही’ कहलाता है;

16) याकूब के पुत्र यूदस और यूदस इसकारियोती को, जो विश्वासघाती निकला।

17) ईसा उनके साथ उतर कर एक मैदान में खड़े हो गये। वहाँ उनके बहुत-से शिष्य थे और समस्त यहूदिया तथा येरुसालेम का और समुद्र के किनारे तीरूस तथा सिदोन का एक विशाल जनसमूह भी था, जो उनका उपदेश सुनने और अपने रोगों से मुक्त होने के लिए आया था।

18) ईसा ने अपदूतग्रस्त लोगों को चंगा किया।

19) सभी लोग ईसा को स्पर्श करने का प्रयत्न कर रहे थे, क्योंकि उन से शक्ति निकलती थी और सब को चंगा करती थी।

📚 मनन-चिंतन

आज हम दो प्रेरित संतों का त्यौहार मनाते हैं - संत साइमन और संत यूदस। साइमन को उत्साही कहा जाता है, और यूदस को याकूब का पुत्र।

इफिसियों के नाम संत पौलुस का पत्र हमें याद दिलाता है कि कलीसिया प्रेरितों और नबियों की नींव पर बनाया गया है। उनका महत्व इस तथ्य में है कि वे कलीसिया का मुख्य आधारशिला, येसु मसीह, से जुड़े हुए हैं। प्रेरित वे हैं जिन्हें स्वयं येसु ने अपने साथ रहने केलिए चुने थे, जिन्होंने यीशु के साथ समय बिताया, जिन्हें येसु ने सुसमाचार प्रचार करने और शैतान की शक्ति से लोगों को मुक्त करने और उन्हें चंगाई प्रदान करने के लिए भेजा। प्रेरित शब्द का अर्थ है "जो भेजा जाता है"; एक विशेष मिशन के लिए ईश्वर के द्वारा भेजे जाने वाले है प्रेरित लोग। प्रेरितों के सुसमाचार कार्य पर आधारित है अलग अलग कलीसियायें।

हम उन दो संतों के जीवन के बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं जिनका पर्व आज हम मनाते हैं। संत यूदस दुनिया के कई हिस्सों में असंभव और कठिन अनुग्रहों की प्राप्ति के लिए पुकारे जाने वाला लोकप्रिय संत है और हमारे लोगों के बीच उनके प्रति बहुत बड़ी भक्ति है। आज का सुसमाचार हमें याद दिलाता है कि प्रेरित लोग इसलिए शक्तिशाली हैं क्योंकि वे येसु के सुसमाचार और सेवा में भागीदारी हैं।

आइए हम प्रेरितों द्वारा प्राप्त विश्वास के महा दान के लिए प्रभु का धन्यवाद करें। येसु के आज्ञा के अनुसार कलीसिया द्वारा जारी सुसमाचार प्रचार कार्य, चंगाई और स्वास्थ्य सेवायें और लोगों के उद्धार के लिए किये जाने वाले विभिन्न सेवाओं केलिए भी हम ईश्वर को धन्यवाद दें। प्रार्थना करें कि हम भी अपने स्तर पर प्रेरितों के कार्यों से जुड़े रहें। प्रेरित संत साइमन और यूदस हमारे लिए प्रार्थना कर।


📚 REFLECTION

Today we celebrate the feast of two apostles about whom not much is known – Saints Simon and Jude. Simon is called the zealot , and Jude the son of James. The first reading from St. Paul’s letter to the Ephesians reminds us that the Church is built on the foundation of the prophets and apostles. Their importance is in the fact they are connected to the main cornerstone, that is Jesus Christ himself.

Apostles are those who spent time with Jesus, whom Jesus wanted to be with him, whom he sent out to preach the gospel and to heal and deliver people from the power of devil. The word apostle means “ one who is sent”, especially on a mission.

We do not know much about the life of the two saints whose feast we celebrate today. St. Jude is popular in many parts of the world as the patron of impossible things and there is a great devotion to him among our people. Today’s gospel passage reminds us that the apostles are powerful they participate in the very ministry of Jesus. They are sent by Jesus to be his messengers.

Let us thank the Lord for the gift of faith that we have received from the apostles. Let us also be grateful for the ministry of preaching, healing and deliverance that are exercised in the Church according to the command of Jesus.

 -Br.Biniush Topno 


www.atprsentofficial.blogspot.com
Praise the Lord!

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