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वर्ष का उन्नीसवाँ सप्ताह, इतवार - वर्ष C


📕पहला पाठ

यहाँ उस रात की चरचा है, जब यहूदी लोग मूसा के नेतृत्व में मिस्त्र देश की दासता से मुक्त हो गये थे और प्रतिज्ञात देश की ओर आगे बढ़ते गये।

प्रज्ञा-ग्रंथ 18:6-9

"तूने हमारे शत्रुओं को दण्ड दिया और हमें अपने पास बुला कर गौरवान्वित किया है।"

उस रात के विषय में हमारे पूर्वजों को पहले से इसलिए बताया गया था, जिससे वे यह जान कर हिम्मत बाँधें, कि हमने किस प्रकार की शपथों पर विश्वास किया है। तेरी प्रजा धर्मियों की रक्षा तथा अपने शत्रुओं के विनाश की प्रतीक्षा करती थी। और तूने हमारे शत्रुओं को दण्ड दिया और हमें अपने पास बुला कर गौरवान्वित किया है। धर्मियों की भक्त सन्तान ने छिप कर बलि चढ़ायी और एकमत हो कर यह पवित्र प्रतिज्ञा की कि सन्त लोग साथ रह कर भलाई और बुराई, दोनों समान रूप से भोगेंगे। और इसके बाद वे पूर्वजों के भजन गाने लगे।

प्रभु की वाणी।

📖भजन :स्तोत्र 32:1-12,18-20,23

अनुवाक्य: धन्य हैं वे लोग, जिन्हें प्रभु ने अपनी प्रजा बना लिया है।

1. धर्मियो ! प्रभु में आनन्द मनाओ। स्तुतिगान करना भक्तों के लिए उचित है। धन्य हैं वे लोग, जिनका ईश्वर प्रभु है, जिन्हें प्रभु ने अपनी प्रजा बना लिया है।

2. प्रभु की कृपादृष्टि अपने भक्तों पर बनी रहती है, उन पर जो उसके प्रेम से यह आशा करते हैं कि वह उन्हें मृत्यु से बचायेगा और अकाल के समय उनका पोषण करेगा।

3. हम प्रभु की राह देखते रहते हैं, वही हमारा उद्धारक और रक्षक है। हे प्रभु ! तेरा प्रेम हम पर बना रहे। तुझ पर ही हमारा भरोसा है।

📘दूसरा पाठ

दुःख-तकलीफ और विपत्ति के समय हमारा विश्वास डाँवाडोल हो जा सकता है। उस समय हम इब्राहीम जैसे लोगों को याद करें, जो कठिन परिस्थितियों में अपने विश्वास में दृढ़ रहे।

इब्रानियों के नाम पत्र 11:1-2,8-19

[ कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है ]

"इब्राहीम उस नगर की प्रतीक्षा में था, जिसका स्थपति और निर्माता ईश्वर है।"

विश्वास उन बातों की स्थिर प्रतीक्षा है, जिनकी हम आशा करते हैं और उन वस्तुओं के अस्तित्व के विषय में दृढ़ धारणा है, जिन्हें हम नहीं देखते। विश्वास के कारण हमारे पूर्वज ईश्वर के कृपापात्र बन गये। इब्राहीम ने विश्वास के कारण ईश्वर का बुलावा स्वीकार किया और यह न जानते हुए भी कि मैं कहाँ जा रहा हूँ, उसने उस देश के लिए प्रस्थान किया, जिसका वह उत्तराधिकारी बनने वाला था। विश्वास के कारण वह परदेशी की तरह प्रतिज्ञात देश में बस गया और वहाँ इसहाक तथा याकूब के साथ, जो एक ही प्रतिज्ञा के उत्तराधिकारी थे, तम्बुओं में रहने लगा। इब्राहीम ने ऐसा किया, क्योंकि वह उस बसे हुए नगर की प्रतीक्षा में था जिसका वास्तुकार तथा निर्माता ईश्वर है। विश्वास के कारण ही सारा, उमर ढल जाने पर भी, गर्भवती हो सकी, क्योंकि उसका विचार यह था कि जिसने प्रतिज्ञा की है, वह सच्चा है। और इसलिए एक मरणासन्न व्यक्ति से वह सन्तति उत्पन्न हुई, जो आकाश के तारों की तरह असंख्य है और सागर-तट के बालू के कणों की तरह अगणित।

[ प्रतिज्ञा का फल पाये बिना, ये सब विश्वास करते हुए मर गये। उन्होंने उसे दूर से देखा और उसका स्वागत किया। वे अपने को पृथ्वी पर परदेशी तथा प्रवासी मानते थे। जो इस तरह की बातें कहते हैं, वे यह स्पष्ट कर देते हैं कि वे स्वदेश की खोज में लगे रहते हैं। वे उस देश की बात नहीं सोचते थे, जहाँ से वे चले गये थे; क्योंकि वे वहाँ लौट सकते थे। वे तो एक उत्तम स्वदेश अर्थात् स्वर्ग की खोज में लगे हुए थे। उन्नीसवाँ सप्ताह इतवार इसलिए ईश्वर उन लोगों का ईश्वर कहलाने से नहीं लजाता; उसने तो उनके लिए एक नगर का निर्माण किया है। जब ईश्वर इब्राहीम की परीक्षा ले रहा था, तब विश्वास के कारण उसने इसहाक को अर्पित किया। वह अपने एकलौते पुत्र को बलि चढ़ाने तैयार हो गया था, यद्यपि उसे यह प्रतिज्ञा की गयी थी कि इसहाक से तेरा वंश चलेगा। इब्राहीम का विचार यह था कि ईश्वर मृतकों को भी जिला सकता है। यह भविष्य के लिए प्रतीक था।]

प्रभु की वाणी।

📒जयघोष

अल्लेलूया, अल्लेलूया ! प्रभु कहते हैं, "मार्ग, सत्य और जीवन मैं हूँ। मुझ से हो कर गये बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता"। अल्लेलूया !

📙सुसमाचार

किसी भी समय हमारे जीवन का अन्त हो सकता है। हमें अपने सभी कार्यों का लेखा देना पड़ेगा। इसलिए हमें उन लोगों के सदृश बन जाना है, जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं। हम येसु का यह कथन याद रखें - "धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी आने पर जागता हुआ पायेगा?"

लूकस के अनुसार पवित्र सुसमाचार 12:32-48

[ कोष्ठक में रखा अंश छोड़ दिया जा सकता है ]

"तुम लोग तैयार रहो।"

येसु ने अपने शिष्यों से कहा,

["छोटे झुण्ड ! डरो मत, क्योंकि तुम्हारे पिता ने तुम्हें राज्य देने की कृपा की है। "अपनी सम्पत्ति बेच दो और दान कर दो। अपने लिए ऐसी थैलियाँ तैयार करो जो कभी छीजती नहीं। स्वर्ग में एक अक्षय पूँजी जमा करो। वहाँ न तो चोर पहुँचता है और न कीड़े खा जाते हैं; क्योंकि जहाँ तुम्हारा पूँजी है, वहाँ तुम्हारा हृदय भी रहेगा।]

"तुम्हारी कमर कसी रहे और तुम्हारे दीपक जलते रहें। तुम उन लोगों के सदृश बन जाओ जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं कि वह बारात से कब लौटेगा, ताकि जब स्वामी आ कर द्वार खटखटाये तो तुरन्त ही उसके लिए द्वार खोल दें। धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी आने पर जागता हुआ पायेगा ! मैं तुम से सच कहता हूँ: वह अपनी कमर कसेगा, उन्हें भोजन के लिए बैठायेगा और एक-एक को खाना परोसेगा। और धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी रात के दूसरे या तीसरे पहर आने पर इसी प्रकार जागता हुआ पायेगा ! यह अच्छी तरह समझ लो - यदि घर के स्वामी को मालूम होता कि चोर किस घड़ी आयेगा, तो वह अपने घर में सेंध लगने नहीं देता। तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी घड़ी मानव पुत्र आयेगा।"

[ पेत्रुस ने उन से कहा, "प्रभु ! क्या आप यह दृष्टान्त हमारे लिए ही कहते हैं या सबों के लिए?" प्रभु ने कहा, "कौन ऐसा ईमानदार और बुद्धिमान् कारिन्दा है, जिसे उसका स्वामी अपने नौकर-चाकरों पर नियुक्त करेगा ताकि वह समय पर उन्हें रसद बाँटा करे? धन्य है वह सेवक, जिसका स्वामी आने पर उस को ऐसा करता हुआ पायेगा। मैं तुम से कहे देता हूँ, वह उसे अपनी सारी सम्पत्ति पर नियुक्त करेगा। पर यदि वह सेवक अपने मन में कहे, 'मेरा स्वामी आने में देर करता है' और वह दास-दासियों को पीटने, खाने-पीने और नशेबाजी करने लगे, तो उस सेवक का स्वामी ऐसे दिन आयेगा, जब वह उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होगा और ऐसी घड़ी, जिसे वह नहीं जान पायेगा। तो स्वामी उस सेवक को कोड़े लगवायेगा और विश्वासघातियों का दण्ड देगा। "अपने स्वामी की इच्छा जान कर भी जिस सेवक ने कुछ तैयार नहीं किया है और न उसकी इच्छा के अनुसार काम किया है, वह बहुत मार खायेगा। जिसने अनजाने ही मार खाने का काम किया है, वह थोड़ा मार खायेगा। जिसे बहुत दिया गया है, उस से बहुत माँगा जायेगा और जिसे बहुत सौंपा गया है, उस से अधिक माँगा जायेगा।"]

प्रभु का सुसमाचार।



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मई 01 संत योसेफ, श्रमिक

मई 01

संत योसेफ, श्रमिक


संत योसेफ, धन्य कुँवारी मरियम के पती और येसु के पालक-पिता, सम्भवतः बेथलेहेम में जन्में थे और कदाचित नाज़रेत में उनकी मृत्यु हो गई थी। ईश्वर की मुक्ति की योजना में उनका महत्वपूर्ण मिशन ‘‘येसु खीस्त को दाऊद के घराने में वैध रूप से सम्मिलित करना था, जिनसे भविष्यवक्ताओं के अनुसार, खीस्त का जन्म होगा, और उनके पिता और अभिभावक के रूप में कार्य करने के लिए था (लोकप्रिय धर्मपरायणता और धर्मविधि पर निर्देशिका)। ‘‘संत योसेफ के बारे में हमारी अधिकांश जानकारी संत मत्ती के सुसमाचार के शुरुआती दो अध्यायों से मिलती है। उनके कोई भी शब्द सुसमाचार में दर्ज नहीं हैं; वे ‘‘मौन‘‘ व्यक्ति थे। हम प्रारंभिक कलीसिया में संत योसेफ के प्रति कोई भक्ति नहीं पाते हैं। यह ईश्वर की इच्छा थी कि हमारे प्रभु का एक कुँवारी से जन्म सबसे पहले विश्वासियों के मन पर दृढ़ता से अंकित हो। बाद में उन्हें मध्य युग के महान संतों द्वारा सम्मानित किया गया। संत पिता पियुस नौवें (1870) ने उन्हें कलीसिया के सार्वभौमिक परिवार का संरक्षक और पालक घोषित किया।

 

संत योसेफ एक साधारण शारीरिक मजदूर थे, हालांकि वे दाऊद के शाही घराने के वंशज थे। लेकिन ईश्वर की योजना में उन्हें ईश्वर की माता का जीवन-साथी बनना तय था। उनका उच्च विशेषाधिकार एक वाक्यांश, ‘‘येसु के पालक-पिता‘‘ में व्यक्त किया गया है। उनके बारे में पवित्र शास्त्र के पास कहने के लिए इससे ज्यादा कुछ नहीं है कि वे एक न्यायपूर्ण व्यक्ति थे - एक अभिव्यक्ति जो इंगित करती है कि उन्होंने पृथ्वी पर ईश्वर के सबसे बड़े खजाने, येसु और मरियम की रक्षा और सुरक्षा के अपनी जिम्मेदारी को कितनी ईमानदारी से पूरा किया।

 

उनके जीवन में सबसे भयावह समय वह रहा होगा जब उन्हें पहली बार मरियम की गर्भावस्था के बारे में पता चला होगा; परन्तु ठीक इसी परीक्षा के समय में योसेफ ने अपने आप को महान दिखाया। उनकी पीड़ा, जो उसी तरह मुक्ति के कार्य का एक हिस्सा थी, महान दैवकृत अभिप्राय के बिना नहीं थीः योसेफ को, हमेशा के लिए, खीस्त के कुंवारे जन्म का भरोसेमंद गवाह होना था। इसके बाद, वे विनम्रतापूर्वक पवित्र शास्त्र की पृष्ठभूमि में पीछे हट जाते है।

 

संत योसेफ की मृत्यु के बारे में बाइबिल हमें कुछ नहीं बताती है। हालांकि, ऐसे संकेत हैं कि उनकी मृत्यु खीस्त के सार्वजनिक जीवन की शुरुआत से पहले हुई थी। येसु और मरियम की बाहों में उनकी सबसे खूबसूरत मौत थी। नम्रतापूर्वक और अज्ञात, उन्होंने नाज़रेत में अपने वर्षों को बिताया, और वे सदियों से कलीसियाई इतिहास के पृष्ठभूमि में खामोश और लगभग भूलाए गए बने रहे। केवल हाल के दिनों में ही उन्हें अधिक सम्मान दिया गया है। संत योसेफ की धार्मिक उपासना पंद्रहवीं शताब्दी में शुरू हुई, जिन्हें स्वीडन की संत ब्रिगेड और सिएना की बर्नडाइन ने बढ़ावा दिया। संत तेरेसा ने भी उनकी उपासना को आगे बढ़ाने के लिए बहुत कुछ किया।

 

वर्तमान में उनके सम्मान में दो प्रमुख पर्व हैं। 19 मार्च को हमारी पूजा-पध्दति व्यक्तिगत रूप से और मुक्ति के काम में उनकी भुमिका की ओर निर्देशित है, जबकि 1 मई को हम उन्हें दुनिया भर में कामगारों के संरक्षक के रूप में और सामाजिक व्यवस्था में दायित्वों और अधिकारों के संबंध में समान मानदंड स्थापित करने के कठिन मामले में हमारे मार्गदर्शक के रूप में सम्मानित करते हैं।

 



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मई 02, 2025 पास्का का दूसरा सप्ताह – शुक्रवार


मई 02, 2025

पास्का का दूसरा सप्ताह शुक्रवार



पहला पाठ

प्रेरित-चरित 5:34-42

प्रेरित इसलिए आनन्दित हो कर महासभा के भवन से निकले कि वे येसु के नाम के कारण अपमानित होने योग्य समझे गये।"

उस समय गमालिएल नामक फरीसी, जो संहिता का शास्त्री और सारी जनता में सम्मानित था, महासभा में उठ खड़ा हुआ। उसने प्रेरितों को थोड़ी देर के लिए बाहर ले जाने का आदेश दिया और महासभा के सदस्यों से यह कहा, "इस्राएली भाइयो! आप सावधानी से विचार करें कि इन लोगों के साथ क्या करने जा रहे हैं। कुछ समय पहले थेउदस प्रकट हुआ। वह दावा करता था कि मैं भी कुछ हूँ और लगभग चार सौ लोग उसके अनुयायी बन गये। वह मारा गया, उसके सभी अनुयायी बिखर गये और उनका नाम-निशान भी नहीं रहा। उसके बाद, जनगणना के समय, यूदस गलीली प्रकट हुआ। उसने बहुत-से लोगों को बहका कर अपने विद्रोह में सम्मिलित कर लिया। वह भी नष्ट हो गया और उसके सभी अनुयायी बिखर गये। इसलिए इस विषय के संबंध में मैं आप लोगों से यह कहना चाहता हूँ कि आप इनके काम में दखल मत दें और इन्हें अपनी राह चलने दें। यदि यह योजना अथवा आन्दोलन मनुष्यों का है, तो यह अपने आप नष्ट हो जायेगा। परन्तु यदि यह ईश्वर का है, तो आप इन्हें नहीं मिटा सकेंगे और ईश्वर के विरोधी प्रमाणित होंगे।" वे उसकी बात मान गये। उन्होंने प्रेरितों को बुला भेजा, उन्हें कोड़े लगवाये और यह कड़ा आदेश दे कर छोड़ दिया कि तुम लोग येसु का नाम ले कर उपदेश मत दिया करो। प्रेरित इसलिए आनन्दित हो कर महासभा के भवन से निकले कि वे येसु के नाम के कारण अपमानित होने योग्य समझे गये। वे प्रतिदिन मंदिर में और घर-घर जा कर शिक्षा देते रहे और येसु मसीह का सुसमाचार सुनाते रहे।

 

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 26:1,4,13-14

अनुवाक्य : मैं प्रभु से यही प्रार्थना करता रहा कि मैं जीवन भर प्रभु के घर में निवास करूँ। (अथवा : अल्लेलूया!)

 

1. प्रभु मेरी ज्योति और मेरी मुक्ति है, तो मैं किस से डरूँ? प्रभु मेरे जीवन की रक्षा करता है, तो मैं किस से भयभीत होऊँ?

 

2. मैं प्रभु से यही प्रार्थना करता रहा कि मैं जीवन भर प्रभु के घर में निवास करूँ और प्रभु की मधुर छत्र छाया में रह कर उसके मंदिर में मनन करूँ।

 

3. मुझे विश्वास है कि मैं इस जीवन में प्रभु की भलाई को देख पाऊँगा। प्रभु पर भरोसा रखो, दृढ़ रहो और प्रभु पर भरोसा रखो।

 

सुसमाचार

जयघोष

अल्लेलूया! मनुष्य रोटी से ही नहीं जीता है। वह ईश्वर के मुख से निकलने वाले हर एक शब्द से जीता है। अल्लेलूया!

 

सन्त योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 6:1-15

"उन्होंने बैठे हुए लोगों को रोटियाँ उनकी इच्छा भर बँटवायीं।"

येसु गलीलिया अर्थात् तिबेरियस के समुद्र के उस पार चले गये। एक विशाल जन समूह उसके पीछे हो लिया, क्योंकि लोगों ने उन चमत्कारों को देखा था, जिन्हें येसु बीमारों के लिए करते थे। येसु पहाड़ी पर चढ़े और वहाँ अपने शिष्यों के साथ बैठ गये। यहूदियों का पास्का पर्व निकट था। येसु ने अपनी आँखें ऊपर उठायीं और देखा कि एक विशाल जनसमूह उनकी ओर आ रहा है और उन्होंने फिलिप से यह कहा, "हम इन्हें खिलाने के लिए कहाँ से रोटियाँ खरीदें? " उन्होंने फिलिप की परीक्षा लेने के लिए यह कहा। वह जानते ही थे कि वह क्या करेंगे। फिलिप ने उन्हें उत्तर दिया, "दो सौ दीनार की रोटियाँ भी इतनी नहीं होंगी कि हर एक को थोड़ी-थोड़ी मिल सके।" उनके शिष्यों में से एक, सिमोन पेत्रुस के भाई अंद्रेयस ने कहा, "यहाँ एक लड़के के पास जौ की पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं, पर यह इतने लोगों के लिए क्या है? " येसु ने कहा "लोगों को बैठा दो"। उस जगह बहुत घास थी। लोग बैठ गये। पुरुषों की संख्या लगभग पाँच हजार थी। येसु ने रोटियाँ ले लीं, धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और बैठे हुए लोगों में उन्हें उनकी इच्छा भर बँटवायीं। उन्होंने मछलियाँ भी इसी तरह बँटवायीं। जब लोग खा कर तृप्त हो गये, तो येसु ने अपने शिष्यों से कहा, "बचे हुए टुकड़े बटोर लो, जिससे कुछ भी बर्बाद न हो"। इसलिए शिष्यों ने उन्हें बटोर लिया और उन टुकड़ों से बारह टोकरे भरे, जो लोगों के खाने के बाद जौ की पाँच रोटियों से बच गये थे। लोग येसु का यह चमत्कार देख कर बोल उठे, "निश्चय ही यह वह नबी हैं, जो संसार में आने वाले हैं।" येसु समझ गये कि वे आ कर मुझे राजा बनाने के लिए पकड़ ले जायेंगे, इसलिए वह फिर अकेले ही पहाड़ी पर चले गये।

 

प्रभु का सुसमाचार।



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मई 01, 2025 पास्का का दूसरा सप्ताह – बृहस्पतिवार

मई 01, 2025

पास्का का दूसरा सप्ताह बृहस्पतिवार



पहला पाठ

प्रेरित-चरित 5:27-33


"इन बातों के साक्षी हम हैं और पवित्र आत्मा भी।"

प्यादों ने प्रेरितों को ले आ कर महासभा के सामने पेश किया। प्रधानयाजक ने उन से यह कहा, "हमने तुम लोगों को कड़ा आदेश दिया था कि वह नाम ले कर शिक्षा मत दिया करो, परन्तु तुम लोगों ने येरुसालेम के कोने-कोने में अपनी शिक्षा का प्रचार किया और तुम उस मनुष्य की हत्या की जिम्मेवारी हमारे सिर पर मढ़ना चाहते हो।" इस पर पेत्रुस और अन्य प्रेरितों ने यह उत्तर दिया, "मनुष्यों की अपेक्षा ईश्वर की आज्ञा का पालन करना कहीं अधिक उचित है। आप लोगों ने येसु को क्रूस पर लटका कर मार डाला था, किन्तु हमारे पूर्वजों के ईश्वर ने उन्हें पुनर्जीवित किया है। ईश्वर ने उन्हें शासक तथा मुक्तिदाता का उच्च पद दे कर अपने दाहिने बैठा दिया, जिससे वह उनके द्वारा इस्राएल को पश्चात्ताप तथा पापक्षमा प्रदान करे। इन बातों के साक्षी हम हैं और पवित्र आत्मा भी, जिसे ईश्वर ने उन लोगों को प्रदान किया है, जो उनकी आज्ञा पालन करते हैं।" यह सुन कर वे अत्यन्त क्रुद्ध हो उठे और उन्होंने प्रेरितों को मार डालने का निश्चय किया।

 

प्रभु की वाणी।

 

भजन : स्तोत्र 33:2,9,17-20

अनुवाक्य : दीन-हीन ने दुहाई दी और प्रभु ने उसकी सुनी। (अथवा : अल्लेलूया!)

 

1. मैं सदा ही प्रभु को धन्य कहूँगा, मेरा कंठ निरन्तर उसकी स्तुति करता रहेगा। परख कर देखो कि प्रभु कितना भला है। धन्य है वह, जो उसकी शरण में जाता है।

 

2. प्रभु की कृपादृष्टि धर्मियों पर बनी रहती है, वह उनकी पुकार पर कान देता है। धर्मी प्रभु की दुहाई देते हैं। वह उनकी सुनता और हर प्रकार की विपत्ति में उनकी रक्षा करता है।

 

3. प्रभु दुःखियों से दूर नहीं है। जिसका मन टूट गया, वह उन्हें सँभालता है। धर्मी विपत्तियों से घिरा रहता है, किन्तु उन सबों से प्रभु उसे छुड़ाता है।

 

जयघोष

अल्लेलूया! थोमस! क्या तुम इसलिए विश्वास करते हो कि तुमने मुझे देखा है? धन्य हैं वे, जो बिना देखे ही विश्वास करते हैं। अल्लेलूया!

 

सुसमाचार

सन्त योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 3:31-36

"पिता पुत्र को प्यार करता है और उसी के हाथ में उसने सब कुछ दे दिया है।"

"जो ऊपर से आता है वह सर्वोपरि है। जो पृथ्वी से आता है, वह पृथ्वी का है और पृथ्वी की बातें बोलता है। जो स्वर्ग से आता है, वह सर्वोपरि है। उसने जो कुछ देखा और सुना है, वह उसी का साक्ष्य देता है; किन्तु कोई भी उसका साक्ष्य स्वीकार नहीं करता। जो उसका साक्ष्य स्वीकार करता है, वह ईश्वर की सत्यता प्रमाणित करता है। जिसे ईश्वर ने भेजा है, वह ईश्वर के ही शब्द बोलता है, क्योंकि ईश्वर उसे प्रचुर मात्रा में पवित्र आत्मा प्रदान करता है। पिता पुत्र को प्यार करता है और उसी के हाथ उसने सब कुछ दे दिया है। जो पुत्र में विश्वास करता है, उसे अनन्त जीवन प्राप्त है। परन्तु जो पुत्र में विश्वास करने से इनकार करता है, उसे जीवन प्राप्त नहीं होगा। ईश्वर का क्रोध उस पर बना रहेगा।

 

प्रभु का सुसमाचार।


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अप्रैल 30, 2025 पास्का का दूसरा सप्ताह – बुधवार

 

अप्रैल 30, 2025

पास्का का दूसरा सप्ताह बुधवार





पहला पाठ 
 प्रेरित-चरित 5:17-26

"आप लोगों ने जिन व्यक्तियों को बन्दीगृह में डाल दिया था, वे मंदिर में जनता को शिक्षा दे रहे हैं।"

प्रधानयाजक और उसके सब संगी-साथी, अर्थात् सदूकी सम्प्रदाय के सदस्य, ईर्ष्या से जलने लगे। उन्होंने प्रेरितों को गिरफ्तार कर सरकारी बन्दीगृह में डाल दिया। परन्तु ईश्वर के दूत ने रात को बन्दीगृह के द्वार खोल दिये और प्रेरितों को बाहर ले जा कर यह कहा, "जाइए और निडर हो कर मंदिर में जनता को इस नवजीवन की पूरी-पूरी शिक्षा सुनाइए।" उन्होंने यह बात मान ली और भोर होते ही वे मंदिर जा कर शिक्षा देने लगे। जब प्रधानयाजक और उसके संगी-साथी आये, तो उन्होंने महासभा अर्थात् इस्राएली नेताओं की सर्वोच्च परिषद् बुलायी और प्रेरितों को ले आने के लिए प्यादों को बन्दीगृह भेजा। जब प्यादे वहाँ पहुँचे, तो उन्होंने प्रेरितों को बन्दीगृह में नहीं पाया। उन्होंने लौट कर यह समाचार दिया, "हमने देखा कि बन्दीगृह बड़ी सावधानी से बन्द किया हुआ है और पहरेदार फाटकों पर तैनात हैं, किन्तु खोलने पर हमें भीतर कोई भी नहीं मिला।" यह सुन कर मंदिर-आरक्षी के नायक और महायाजक यह नहीं समझ पा रहे थे कि प्रेरितों का क्या हुआ है। इतने में किसी ने आ कर उन्हें यह समाचार दिया, “देखिए, आप लोगों ने जिन व्यक्तियों को बन्दीगृह में डाल दिया था, वे मंदिर में जनता को शिक्षा दे रहे हैं।" इस पर मंदिर का नायक अपने प्यादों के साथ जा कर प्रेरितों को ले आया। वे प्रेरितों को बलपूर्वक नहीं ले आये, क्योंकि वे लोगों से डरते थे कि कहीं हम पर पथराव न करें।

 

प्रभु की वाणी।

भजन : स्तोत्र 33:2-9


अनुवाक्य : दीन-हीन ने दुहाई दी और प्रभु ने उसकी सुनी। (अथवा : अल्लेलूया!)

 

1. मैं सदा ही प्रभु को धन्य कहूँगा, मेरा कंठ निरन्तर उसकी स्तुति करता रहेगा। मेरी आत्मा प्रभु पर गौरव करेगी। विनम्र, सुन कर, आनन्दित हो उठेंगे।

 

2. मेरे साथ प्रभु की महिमा का गीत गाओ, हम मिल कर उसके नाम की स्तुति करें। मैंने प्रभु को पुकारा। उसने मेरी सुनी। और मुझे हर प्रकार के भय से मुक्त कर दिया।

 

3. जो प्रभु की ओर दृष्टि लगाता है, वह आनन्दित होगा उसे कभी लज्जित नहीं होना पड़ेगा। दीन-हीन ने प्रभु की दुहाई दी। प्रभु ने उसकी सुनी और उसे हर प्रकार की विपत्ति से बचा लिया।

 

4. प्रभु का दूत उसके भक्तों के पास डेरा डाल कर उनकी रक्षा करता है। परख कर देखो कि प्रभु कितना भला है। धन्य है वह, जो उसकी शरण में जाता है।

 

सुसमाचार

जयघोष

अल्लेलूया! ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो कोई उस में विश्वास करे, वह अनन्त जीवन प्राप्त करे। अल्लेलूया!

 

सन्त योहन के अनुसार पवित्र सुसमाचार 3:16-21

"ईश्वर ने अपने पुत्र को इसलिए भेजा है कि संसार उसके द्वारा मुक्ति प्राप्त करे।"

"ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो कोई उस में विश्वास करे, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि वह अनन्त जीवन प्राप्त करे। ईश्वर ने अपने पुत्र को संसार में इसलिए नहीं भेजा है कि वह संसार को दोषी ठहराये। उसने उसे इसलिए भेजा है कि संसार उसके द्वारा मुक्ति प्राप्त करे। "जो पुत्र में विश्वास करता है, वह दोषी नहीं ठहराया जाता है। जो विश्वास नहीं करता, वह दोषी ठहराया जा चुका है, क्योंकि वह ईश्वर के एकलौते पुत्र के नाम में विश्वास नहीं करता। दण्डाज्ञा का कारण यह है कि ज्योति संसार में आयी है और मनुष्यों ने ज्योति की अपेक्षा अंधकार को अधिक पसंद किया, क्योंकि उनके कर्म बुरे थे। जो बुराई करता है, वह ज्योति से बैर रखता है और ज्योति के पास इसलिए नहीं आता कि कहीं उसके कर्म प्रकट न हो जायें। किन्तु जो सत्य पर चलता है, वह ज्योति के पास आता है जिससे यह प्रकट हो कि उसके कर्म ईश्वर की प्रेरणा से हुए हैं।"

 

प्रभु का सुसमाचार।


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