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फरवरी 23, 2025, वर्ष का सातवां सामान्य सप्ताह, इतवार

 *✞ GOD'S WORD ✞*

CATHOLIC BIBLE MINISTRY 



*फरवरी 23, 2025*


*वर्ष का सातवां सामान्य सप्ताह, इतवार*



*पहला पाठ*

समुएल का पहला ग्रन्थ 26:2.7-9.12-13.22-23


2) साऊल इस्राएल के तीन हज़ार चुने हुए योद्धाओं को ले कर ज़ीफ़ के उजाड़खण्ड की ओर चल दिया, जिससे वह ज़ीफ़ के उजाड़खण्ड में दाऊद का पता लगाये।


7) दाऊद और अबीशय रात को उन लोगों के पास पहुँचे। उन्होंने पड़ाव में साऊल को सोया हुआ पाया। उसका भाला उसके सिरहाने जमीन में गड़ा हुआ था। अबनेर और दूसरे योद्धा उसके चारों ओर लेटे हुए थे।


8) तब अबीशय ने दाऊद से कहा, ‘‘ईश्वर ने आज आपके शत्रु को आपके हाथ दे दिया है। मुझे करने दीजिए- मैं उसे उसके अपने भाले के एक ही बार से ज़मीन में जकड दूँगा। मुझे दूसरी बार वार करने की ज़रूरत नहीं पडे़गी।’’


9) दाऊद ने अबीशय को यह उत्तर दिया, ‘‘उसे मत मारो। कौन प्रभु के अभिषिक्त को मार कर दण्ड से बच सकता है?’’


12) दाऊद ने वह भाला और साऊल के सिरहाने के पास रखी हुई पानी की सुराही ले ली और वे चले गये। न किसी ने यह सब देखा, न किसी को इसका पता चला और न कोई जगा। वे सब-के-सब सोये हुए थे; क्योंकि प्रभु की ओर से भेजी हुई गहरी नींद उन पर छायी हुई थी।


13) दाऊद घाट पार कर दूर की पहाड़ी पर खड़ा हो गया- दोनों के बीच बड़ा अन्तर था।


22) दाऊद ने उत्तर दिया, ‘‘यह राजा का भाला है। नवयुवकों में से कोई आ कर इसे ले जाये।


23 (23-24) प्रभु हर एक को उसकी धार्मिकता तथा ईमानदारी का फल देगा। आज प्रभु ने आप को मेरे हाथ दे दिया था, किन्तु मैंने प्रभु के अभिषिक्त पर हाथ उठाना नहीं चाहा; क्योंकि आज आपका जीवन मेरी दृष्टि में मूल्यवान् था। इसलिए मेरा जीवन भी प्रभु की दृष्टि में मूल्यवान हो और वह मुझे सब संकटों से बचाता रहे।"

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*भजन* 

स्तोत्र 102:1-4,8-10,12-13


*अनुवाक्य : प्रभु दया तथा अनुकम्पा से परिपूर्ण है।*


1 मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे, मेरा सर्वस्व उसके पवित्र नाम की स्तुति करे। मेरी आत्मा प्रभु को धन्य कहे और उसके वरदानों को कभी नहीं भुलाये।


2 वह मेरे सभी अपराध क्षमा करता और मेरी सारी कमजोरी दूर करता है। वह मुझे सर्वनाश से बचाता और प्रेम तथा अनुकम्पा से मुझे सँभालता है।


3 प्रभु दया तथा अनुकम्पा से परिपूर्ण है, वह सहनशील है और अत्यन्त प्रेममय। वह न तो हमारे पापों के अनुसार हमारे साथ व्यवहार करता और न हमारे अपराधों के अनुसार हमें दण्ड देता है।


4 पूर्व पश्चिम से जितना दूर है, प्रभु हमारे पापों को हम से उतना दूर कर देता है। पिता जिस तरह अपने पुत्रों पर दया करता है, प्रभु उसी तरह अपने भक्तों पर दया करता है।

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*दूसरा पाठ*

कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 15:45-49


45) धर्मग्रन्थ में लिखा है कि प्रथम मनुष्य आदम जीवन्त प्राणी बन गया और अन्तिम आदम जीवन्तदायक आत्मा।


46) जो पहला है, वह आध्यात्मिक नहीं, बल्कि प्राकृत है। इसके बाद ही आध्यात्मिक आता है।


47) पहला मनुष्य मिट्टी का बना है और पृथ्वी का है, दूसरा स्वर्ग का है।


48) मिट्टी का बना मनुष्य जैसा था, वैसे ही मिट्टी के बने मनुष्य हैं और स्वर्ग का मनुष्य जैसा है, वैसे ही सभी स्वर्गी होंगे;


49) जिस तरह हमने मिट्टी के बने मनुष्य का रूप धारण किया है, उसी तरह हम स्वर्ग के मनुष्य का भी रूप धारण करेंगे।

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*जयघोष* 

योहन 6:63,68

अल्लेलूया, अल्लेलूया! 

है प्रभु! तेरी शिक्षा आत्मा और जीवन है। तेरे ही शब्दों में अनन्त जीवन का सन्देश है।

अल्लेलूया!

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*सुसमाचार*

सन्त लूकस का सुसमाचार 6:27-38


27) ’’मैं तुम लोगों से, जो मेरी बात सुनते हो, कहता हूँ-अपने शत्रुओं से प्रेम करो। जो तुम से बैर करते हैं, उनकी भलाई करो।


28) जो तुम्हें शाप देते है, उन को आशीर्वाद दो। जो तुम्हारे साथ दुव्र्यवहार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो।


29) जो तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारता है, दूसरा भी उसके सामने कर दो। जो तुम्हारी चादर छीनता है, उसे अपना कुरता भी ले लेने दो।


30) जो तुम से माँगता है, उसे दे दो और जो तुम से तुम्हारा अपना छीनता है, उसे वापस मत माँगो।


31) दूसरों से अपने प्रति जैसा व्यवहार चाहते हो, तुम भी उनके प्रति वैसा ही किया करो।


32) यदि तुम उन्हीं को प्यार करते हो, जो तुम्हें प्यार करते हैं, तो इस में तुम्हारा पुण्य क्या है? पापी भी अपने प्रेम करने वालों से प्रेम करते हैं।


33) यदि तुम उन्हीं की भलाई करते हो, जो तुम्हारी भलाई करते हैं, तो इस में तुम्हारा पुण्य क्या है? पापी भी ऐसा करते हैं।


34) यदि तुम उन्हीं को उधार देते हो, जिन से वापस पाने की आशा करते हो, तो इस में तुम्हारा पुण्य क्या है? पूरा-पूरा वापस पाने की आशा में पापी भी पापियों को उधार देते हैं।


35) परन्तु अपने शत्रुओं से प्रेम करो, उनकी भलाई करो और वापस पाने की आशा न रख कर उधार दो। तभी तुम्हारा पुरस्कार महान् होगा और तुम सर्वोच्च प्रभु के पुत्र बन जाओगे, क्योंकि वह भी कृतघ्नों और दुष्टों पर दया करता है।


36) ’’अपने स्वर्गिक पिता-जैसे दयालु बनो। दोष न लगाओ और तुम पर भी दोष नहीं लगाया जायेगा।


37) किसी के विरुद्ध निर्णय न दो और तुम्हारे विरुद्ध भी निर्णय नहीं दिया जायेगा। क्षमा करो और तुम्हें भी क्षमा मिल जायेगी।


38) दो और तुम्हें भी दिया जायेगा। दबा-दबा कर, हिला-हिला कर भरी हुई, ऊपर उठी हुई, पूरी-की-पूरी नाप तुम्हारी गोद में डाली जायेगी; क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जायेगा।’’

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        *Have a Blessed Day*

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