About Me

My photo
Duliajan, Assam, India
Catholic Bibile Ministry में आप सबों को जय येसु ओर प्यार भरा आप सबों का स्वागत है। Catholic Bibile Ministry offers Daily Mass Readings, Prayers, Quotes, Bible Online, Yearly plan to read bible, Saint of the day and much more. Kindly note that this site is maintained by a small group of enthusiastic Catholics and this is not from any Church or any Religious Organization. For any queries contact us through the e-mail address given below. 👉 E-mail catholicbibleministry21@gmail.com

अप्रैल 23, 2023, इतवार पास्का का तीसरा इतवार

 *✞ CATHOLIC BIBLE MINISTRY ✞*


*अप्रैल 23, 2023, इतवार*

*पास्का का तीसरा इतवार*





*पहला पाठ*

प्रेरित-चरित 2:14,22-33


14) पेत्रुस ने ग्यारहो के साथ खड़े हो कर लोगों को सम्बोधित करते हुए ऊँचे स्वर से कहा, "यहूदी भाइयो और येरूसालेम के सब निवासियो! आप मेरी बात ध्यान से सुनें और यह जान लें कि

22) इस्राएली भाइयो! मेरी बातें ध्यान से सुनें! आप लोग स्वयं जानते हैं कि ईश्वर ने ईसा नाज़री के द्वारा आप लोगों के बीच कितने महान् कार्य, चमत्कार एवं चिन्ह दिखाये हैं। इस से यह प्रमाणित हुआ कि ईसा ईश्वर की ओर से आप लोगों के पास भेजे गये थे।

23) वह ईश्वर के विधान तथा पूर्वज्ञान के अनुसार पकड़वाये गये और आप लोगों ने विधर्मियों के हाथों उन्हें क्रूस पर चढ़वाया और मरवा डाला है।

24) किन्तु ईश्वर ने मृत्यु के बन्धन खोल कर उन्हें पुनर्जीवित किया। यह असम्भव था कि वह मृत्यु के वश में रह जायें,

25) क्योंकि उनके विषय में दाऊद यह कहते हैं - प्रभु सदा मेरी आँखों के सामने रहता है। वह मेरे दाहिने विराजमान है, इसलिए मैं दृढ़ बना रहता हूँ।

26) मेरा हृदय आनन्दित है, मेरी आत्मा प्रफुल्लित है और मेरा शरीर भी सुरक्षित रहेगा;

27) क्योंकि तू मेरी आत्मा को अधोलोक में नहीं छोड़ेगा, तू अपने भक्त को क़ब्र में गलने नहीं देगा।

28) तूने मुझे जीवन का मार्ग दिखाया है। तेरे पास रह कर मुझे परिपूर्ण आनन्द प्राप्त होगा।

29) भाइयो! मैं कुलपति दाऊद के विषय में। आप लोगों से निस्संकोच यह कह सकता हूँ कि वह मर गये और कब्र में रखे गये। उनकी कब्र आज तक हमारे बीच विद्यमान है।

30) दाऊद जानते थे कि ईश्वर ने शपथ खा कर उन से यह कहा था कि मैं तुम्हारे वंशजों में एक व्यक्ति को तुम्हारे सिंहासन पर बैठाऊँगा;

31) इसलिये नबी होने के नाते भविष्य में होने वाला मसीह का पुनरुत्थान देखा और इनके विषय में कहा कि वह अधोलोक में नहीं छोड़े गये और उनका शरीर गलने नहीं दिया गया।

32) ईश्वर ने इन्हीं ईसा नामक मनुष्य को पुनर्जीवित किया है-हम इस बात के साक्षी हैं।

33) अब वह ईश्वर के दाहिने विराजमान हैं। उन्हें प्रतिज्ञात आत्मा पिता से प्राप्त हुआ और उन्होंने उसे हम लोगों को प्रदान किया, जैसा कि आप देख और सुन रहे हैं।

_______________________________

 *दूसरा पाठ* 

1 पेत्रुस 1:17-21


17) यदि आप उसे ’पिता’ कह कर पुकारते हैं, जो पक्षपात किये बिना प्रत्येक मनुष्य का उसके कर्मों के अनुसार न्याय करता है, तो जब तक आप यहाँ परदेश में रहते हैं, तब तक उस पर श्रद्धा रखते हुए जीवन बितायें।

18) आप लोग जानते हैं कि आपके पूर्वजों से चली आयी हुई निरर्थक जीवन-चर्या से आपका उद्धार सोने-चांदी जैसी नश्वर चीजों की कीमत पर नहीं हुआ है,

19) बल्कि एक निर्दोष तथा निष्कलंक मेमने अर्थात् मसीह के मूल्यवान् रक्त की कीमत पर।

20) वह संसार की सृष्टि से पहले ही नियुक्त किये गये थे, किन्तु समय के अन्त में आपके लिए प्रकट हुए।

21) आप लोग अब उन्हीं के द्वारा ईश्वर में विश्वास करते हैं। ईश्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया और महिमान्वित किया; इसलिए आपका विश्वास और आपका भरोसा ईश्वर पर आधारित है।

_______________________________

 *सुसमाचार* 

लूकस 24:13-35


13) उसी दिन दो शिष्य इन सब घटनाओं पर बातें करते हुए एम्माउस नामक गाँव जा रहे थे। वह येरूसालेम से कोई चार कोस दूर है।

14) वे आपस में बातचीत और विचार-विमर्श कर ही रहे थे

15) कि ईसा स्वयं आ कर उनके साथ हो लिये,

16) परन्त शिष्यों की आँखें उन्हें पहचानने में असमर्थ रहीं।

17) ईसा ने उन से कहा, "आप लोग राह चलते किस विषय पर बातचीत कर रहे हैं?" वे रूक गये। उनके मुख मलिन थे।

18) उन में एक क्लेओपस-ने उत्तर दिया, "येरूसालेम में रहने वालों में आप ही एक ऐसे हैं, जो यह नहीं जानते कि वहाँ इन दिनों क्या-क्या हुआ है’।

19) ईसा ने उन से कहा, "क्या हुआ है?" उन्होंने उत्तर दिया, "बात ईसा नाज़री की है वे ईश्वर और समस्त जनता की दृष्टि में कर्म और वचन के शक्तिशाली नबी थे।

20) हमारे महायाजकों और शासकों ने उन्हें प्राणदण्ड दिलाया और क्रूस पर चढ़वाया।

21) हम तो आशा करते थे कि वही इस्राएल का उद्धार करने वाले थे। यह आज से तीन दिन पहले की बात है।

22) यह सच है कि हम में से कुछ स्त्रियों ने हमें बड़े अचम्भे में डाल दिया है। वे बड़े सबेरे क़ब्र के पास गयीं

23) और उन्हें ईसा का शव नहीं मिला। उन्होंने लौट कर कहा कि उन्हें स्वर्गदूत दिखाई दिये, जिन्होंने यह बताया कि ईसा जीवित हैं।

24) इस पर हमारे कुछ साथी क़ब्र के पास गये और उन्होंने सब कुछ वैसा ही पाया, जैसा स्त्रियों ने कहा था; परन्तु उन्होंने ईसा को नहीं देखा।"

25) तब ईसा ने उन से कहा, "निर्बुद्धियों! नबियों ने जो कुछ कहा है, तुम उस पर विश्वास करने में कितने मन्दमति हो !

26) क्या यह आवश्यक नहीं था कि मसीह वह सब सहें और इस प्रकार अपनी महिमा में प्रवेश करें?"

27) तब ईसा ने मूसा से ले कर अन्य सब नबियों का हवाला देते हुए, अपने विषय में जो कुछ धर्मग्रन्थ में लिखा है, वह सब उन्हें समझाया।

28) इतने में वे उस गाँव के पास पहुँच गये, जहाँ वे जा रहे थे। लग रहा था, जैसे ईसा आगे बढ़ना चाहते हैं।

29) शिष्यों ने यह कह कर उन से आग्रह किया, "हमारे साथ रह जाइए। साँझ हो रही है और अब दिन ढल चुका है" और वह उनके साथ रहने भीतर गये।

30) ईसा ने उनके साथ भोजन पर बैठ कर रोटी ली, आशिष की प्रार्थना पढ़ी और उसे तोड़ कर उन्हें दे दिया।

31) इस पर शिष्यों की आँखे खुल गयीं और उन्होंने ईसा को पहचान लिया ... किन्तु ईसा उनकी दृष्टि से ओझल हो गये।

32) तब शिष्यों ने एक दूसरे से कहा, हमारे हृदय कितने उद्दीप्त हो रहे थे, जब वे रास्ते में हम से बातें कर रहे थे और हमारे लिए धर्मग्रन्थ की व्याख्या कर रहे थे!"

33) वे उसी घड़ी उठ कर येरूसालेम लौट गये। वहाँ उन्होंने ग्यारहों और उनके साथियों को एकत्र पाया,

34) जो यह कह रहे थे, "प्रभु सचमुच जी उठे हैं और सिमोन को दिखाई दिये हैं"।

35) तब उन्होंने भी बताया कि रास्ते में क्या-क्या हुआ और उन्होंने ईसा को रोटी तोड़ते समय कैसे पहचान लिया।

_______________________________

 *मनन-चिंतन* 

प्रभु येसु की मृत्यु के बाद सब सहमे एवं ड़रे हुए थे। सब कोई यहां-वहां तितर-बितर हो गये। धिरे-धिरे वे अपने दैनिक जीवन की दिनचर्या में शामिल होने लगे। लेकिन मां मरियम ने उन्हें फिर से नयी उमींद दी। पेंतेकोस्त के दिन पवित्र आत्मा का उतरना उनके लिए एक नये मिशन की शुरूवात थी। पवित्र आत्मा से परिपूण होकर साहस के साथ पुनजीवित प्रभु का प्रचार करना उनका मिशन बन गया। पेत्रुस अन्य शिष्यों के साथ सुसमाचार का प्रचार करने लगे। पेत्रुस अपने पत्र में कहते हैं, “ईश्वर ने mUgsa मृतकों में से जिलाया और महिमान्वित किया इसलिए vkidk विश्वास और vkidk भरोसा ईश्वर पर आधारित हैं।” हमारा भरोसा एवं विश्वास प्रभु येसु पर हो जो हमें हमारे पापों से बचाने मे सक्षम हैं। एम्माउस जाने वाले शिष्य तो येरूसालेम में हुई घटना को लेकर बात करते हुए आगे बढ़ते हैं। येसु का उनके साथ चलना उनके लिए एक अद्भुत अनुभव था। प्रभु उनके साथ चलते हैं लेकिन वे उन्हें पहचान नहीं पाते हैं। जब वे उनके साथ समय बिताते है तो भोजन के समय वे येसु को पहचान जाते हैं। क्या हम प्रभु के साथ चलते हैं? आइये, हम प्रभु के साथ चलें एवं उन्हें पहचानें।

 -Br. BiniushTopno



Copyright © www.catholicbibleministry1.blogspot.com.

Praise the Lord!


अप्रैल 09, 2023, इतवार पास्का इतवार

 अप्रैल 09, 2023, इतवार


पास्का इतवार


जागरण का मिस्सा बलिदान

पाठ 1 – उत्पत्ति 1:1-2:2

1) प्रारंभ में ईश्वर ने स्वर्ग और पृथ्वी की सृष्टि की।

2) पृथ्वी उजाड़ और सुनसान थी। अर्थाह गर्त पर अन्धकार छाया हुआ था और ईश्वर का आत्मा सागर पर विचरता था।

3) ईश्वर ने कहा, ''प्रकाश हो जाये'', और प्रकाश हो गया।

4) ईश्वर को प्रकाश अच्छा लगा और उसने प्रकाश और अन्धकार को अलग कर दिया।

5) ईश्वर ने प्रकाश का नाम 'दिन' रखा और अन्धकार का नाम 'रात'। सन्ध्या हुई और फिर भोर हुआ यह पहला दिन था।

6) ईश्वर ने कहा, ''पानी के बीच एक छत बन जाये, जो पानी को पानी से अलग कर दे'', और ऐसा ही हुआ।

7) ईश्वर ने एक छत बनायी और नीचे का पानी और ऊपर का पानी अलग कर दिया।

8) ईश्वर ने छत का नाम 'आकाश' रखा। सन्ध्या हुई और फिर भोर हुआ यह दूसरा दिन था।

9) ईश्वर ने कहा, ''आकाश के नीचे का पानी एक ही जगह इक्कट्ठा हो जाये और थल दिखाई पड़े'', और ऐसा ही हुआ।

10) ईश्वर ने थल का नाम 'पृथ्वी' रखा और जलसमूह का नाम 'समुद्र'। और वह ईश्वर को अच्छा लगा।

11) ईश्वर ने कहा ''पृथ्वी पर हरियाली लहलहाये, बीजदार पौधे और फलदार पेड़ उत्पन्न हो जायें, जो अपनीअपनी जाति के अनुसार बीजदार फल लाये'', और ऐसा ही हुआ।

12) पृथ्वी पर हरियाली उगने लगी : अपनीअपनी जाति के अनुसार बीज पैदा करने वाले पौधे और बीजदार फल देने वाले पेड़। और यह ईश्वर को अच्छा लगाा।

13) सन्ध्या हुई और फिर भोर हुआ यह तीसरा दिन था।

14) ईश्वर ने कहा, ''दिन और रात को अलग कर देने के लिए आकाश में नक्षत्र हों। उनके सहारे पर्व निर्धारित किये जायें और दिनों तथा वर्षों की गिनती हो।

15) वे पृथ्वी को प्रकाश देने के लिए आकाश में जगमगाते रहें'' और ऐसा ही हुआ।

16) ईश्वर ने दो प्रधान नक्षत्र बनाये, दिन के लिए एक बड़ा और रात के लिए एक छोटा; साथसाथ तारे भी।

17) ईश्वर ने उन को आकाश में रख दिया, जिससे वे पृथ्वी को प्रकाश दें,

18) दिन और रात का नियंत्रण करें और प्रकाश तथा अन्धकार को अलग कर दें और यह ईश्वर को अच्छा लगा।

19) सन्ध्या हुई और फिर भोर हुआ यह चौथा दिन था।

20) ईश्वर ने कहा, ''पानी जीवजन्तुओं से भर जाये और आकाश के नीचे पृथ्वी के पक्षी उड़ने लगें''।

21) ईश्वर ने मकर और नाना प्रकार के जीवजन्तुओं की सृष्टि की, जो पानी में भरे हुए हैं और उसने नाना प्रकार के पक्षियों की भी सृष्टि की, और यह ईश्वर को अच्छा लगा।

22) ईश्वर ने उन्हें यह आशीर्वाद दिया, ''फलोफूलो। समुद्र के पानी में भर जाओ और पृथ्वी पर पक्षियों की संख्या बढ़ती जाये''।

23) सन्ध्या हुई और फिर भोर हुआ यह पाँचवा दिन था।

24) ईश्वर ने कहा, ''पृथ्वी नाना प्रकार के घरेलू और जमीन पर रेंगने वाले जीवजन्तुओं को पैदा करें'', और ऐसा ही हुआ।

25) ईश्वर ने नाना प्रकार के जंगली, घरेलू और जमीन पर रेंगने वाले जीवजन्तुओं को बनाया और यह ईश्वर को अच्छा लगा।

26) ईश्वर ने कहा, ''हम मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनायें, यह हमारे सदृश हो। वह समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों घरेलू और जंगली जानवरों और जमीन पर रेंगने वाले सब जीवजन्तुओं पर शासन करें।''

27) ईश्वर ने मनुष्य को अपना प्रतिरूप बनाया; उसने उसे ईश्वर का प्रतिरूप बनाया; उसने नर और नारी के रूप में उनकी सृष्टि की।

28) ईश्वर ने यह कह कर उन्हें आशीर्वाद दिया, ''फलोफूलो। पृथ्वी पर फैल जाओ और उसे अपने अधीन कर लो। समुद्र की मछलियों, आकाश के पक्षियों और पृथ्वी पर विचरने वाले सब जीवजन्तुओं पर शासन करो।''

29) ईश्वर ने कहा, मैं तुम को पृथ्वी भर के बीज पैदा करने वाले सब पौधे और बीजदार फल देने वाले सब पेड़ देता हूँ। वह तुम्हारा भोजन होगा। मैं सब जंगली जानवरों को, आकाश के सब पक्षियों को,

30) पृथ्वी पर विचरने वाले जीवजन्तुओं को उनके भोजन के लिए पौधों की हरियाली देता हूँ'' और ऐसा ही हुआ।

31) ईश्वर ने अपने द्वारा बनाया हुआ सब कुछ देखा और यह उसको अच्छा लगा। सन्ध्या हुई और फिर भोर हुआ यह छठा दिन था।

2:1) इस प्रकार आकाश तथा पृथ्वी और, जो कुछ उन में है, सब की सृष्टि पूरी हुई।

2) सातवें दिन ईश्वर का किया हुआ कार्य समाप्त हुआ। उसने अपना समस्त कार्य समाप्त कर, सातवें दिन विश्राम किया।

पाठ 2 – उत्पत्ति 22:1-18

1) ईश्वर ने इब्राहीम की परीक्षा ली। उसने उस से कहा, ''इब्राहीम! इब्राहीम!'' इब्राहीम ने उत्तर दिया, ''प्रस्तुत हूँ।''

2) ईश्वर ने कहा, ''अपने पुत्र को, अपने एकलौते को परमप्रिय इसहाक को साथ ले जा कर मोरिया देश जाओ। वहाँ, जिस पहाड़ पर मैं तुम्हें बताऊँगा, उसे बलि चढ़ा देना।''

3) इब्राहीम बड़े सबेरे उठा। उसने अपने गधे पर जीन बाँध कर दो नौकरों और अपने पुत्र इसहाक को बुला भेजा। उसने होम-बली के लिए लकड़ी तैयार कर ली और उस जगह के लिए प्रस्थान किया, जिसे ईश्वर ने बताया था।

4) तीसरे दिन, इब्राहीम ने आँखें ऊपर उठायीं और उस जगह को दूर से देखा।

5) इब्राहीम ने अपने नौकरों से कहा, ''तुम लोग गधे के साथ यहाँ ठहरो। मैं लड़के के साथ वहाँ जाऊँगा। आराधना करने के बाद हम तुम्हारे पास लौट आयेंगे।

6) इब्राहीम ने होम-बली की लकड़ी अपने पुत्र इसहाक पर लाद दी। उसने स्वयं आग और छुरा हाथ में ले लिया और दोनों साथ-साथ चल दिये।

7) इसहाक ने अपने पिता इब्राहीम से कहा, ''पिताजी!'' उसने उत्तर दिया, ''बेटा! क्या बात है?'' उसने उत्तर दिया, ''देखिए, आग और लकड़ी तो हमारे पास है; किन्तु होम को मेमना कहाँ है?''

8) इब्राहीम ने उत्तर दिया, ''बेटा! ईश्वर होम के मेमने का प्रबन्ध कर देगा'', और वे दोनों साथ-साथ आगे बढ़े।

9) जब वे उस जगह पहुँच गये, जिसे ईश्वर ने बताया था, तो इब्राहीम ने वहाँ एक वेदी बना ली और उस पर लकड़ी सजायी। इसके बाद उसने अपने पुत्र इसहाक को बाँधा और उसे वेदी के ऊपर रख दिया।

10) तब इब्राहीम ने अपने पुत्र को बलि चढ़ाने के लिए हाथ बढ़ा कर छुरा उठा लिया।

11) किन्तु प्रभु का दूत स्वर्ग से उसे पुकार कर बोला, ''इब्राहीम! ''इब्राहीम! उसने उत्तर दिया, ''प्रस्तुत हूँ।''

12) दूत ने कहा, ''बालक पर हाथ नहीं उठाना; उसे कोई हानि नहीं पहुँचाना। अब मैं जान गया कि तुम ईश्वर पर श्रद्धा रखते हो - तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया।

13) इब्राहीम ने आँखें ऊपर उठायीं और सींगों से झाड़ी में फँसे हुए एक मेढ़े को देखा। इब्राहीम ने जाकर मेढ़े को पकड़ लिया और उसे अपने पुत्र के बदले बलि चढ़ा दिया।

14) इब्राहीम ने उस जगह का नाम ''प्रभु का प्रबन्ध'' रखा; इसलिए लोग आजकल कहते हैं, ''प्रभु पर्वत पर प्रबन्ध करता है।''

15) ईश्वर का दूत इब्राहीम को दूसरी बार पुकार कर

16) बोला, ''यह प्रभु की वाणी है। मैं शपथ खा कर कहता हूँ - तुमने यह काम किया : तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया;

17) इसलिए मैं तुम पर आशिष बरसाता रहूँगा। मैं आकाश के तारों और समुद्र के बालू की तरह तुम्हारे वंशजों को असंख्य बना दूँगा और वे अपने शत्रुओं के नगरों पर अधिकार कर लेंगे।

18) तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है; इसलिए तुम्हारे वंश के द्वारा पृथ्वी के सभी राष्ट्रों का कल्याण होगा।''

पाठ 3 – निर्गमन 14:15-15, 1.

15) प्रभु ने मूसा से कहा, ''तुम मेरी दुहाई क्यों दे रहे हो? इस्राएलियों को आगे बढ़ने का आदेश दो।

16) तुम अपना डण्डा उठा कर अपना हाथ सागर के ऊपर बढ़ाओ और उसे दो भागों में बाँट दो, जिससे इस्राएली सूखे पाँव समुद्र की तह पर चल सकें।

17) मैं मिस्रियों का हृदय कठोर बनाऊँगा और वे इस्राएलियों का पीछा करेंगे। तब मैं फिराउन, उसकी सेना, उसके रथ और घुड़सवार, सब को हरा कर अपना सामर्थ्य प्रदर्शित करूँगा

18) और जब मैं फिराउन, उसकी सेना, उसके रथ और उसके घुड़सवार सब को हरा कर अपना सामर्थ्य प्रदर्शित कर चुका होऊँगा, तब मिस्री जान जायेंगे कि मैं प्रभु हूँ।''

19) प्रभु का दूत, जो इस्राएली सेना के आगे-आगे चल रहा था, अपना स्थान बदल कर सेना के पीछे-पीछे चलने लगा। बादल का खम्भा, जो सामने था, लोगों के पीछे आ गया

20) और मिस्रियों तथा इस्राएलियों, दोनों सेनाओं के बीच खड़ा रहा। बादल एक तरफ अँधेरा था और दूसरी तरफ रात में प्रकाश दे रहा था। इसलिए उस रात को दोनों सेनाएँ एक दूसरे के पास नहीं आ सकी।

21) तब मूसा ने सागर के ऊपर हाथ बढ़ाया और प्रभु ने रात भर पूर्व की ओर जोरों की हवा भेज कर सागर को पीछे हटा दिया। सागर दो भागों में बँट कर बीच में सूख गया।

22) इस्राएली सागर के बीच में सूखी भूमि पर आगे बढ़ने लगे। पानी उनके दायें और बायें दीवार बन कर ठहर गया। मिस्री उसका पीछा करते थे।

23) फिराउन के सब घोड़े, उसके रथ और उसके घुड़सवार, सागर की तह पर उनके पीछे चलते थे।

24) रात के पिछले पहर, प्रभु ने आग और बादल के खम्भे में से मिस्रियों की सेना की ओर देखा और उसे तितर-बितर कर दिया।

25) रथों के पहिये निकल कर अलग हो जाते थे और वे कठिनाई से आगे बढ़ पाते थे। तब मिस्री कहने लगे, ''प्रभु उनकी ओर से मिस्रियों के विरुद्ध लड़ता है।''

26) उस समय प्रभु ने मूसा से कहा, ''सागर के ऊपर अपना हाथ बढ़ाओं, जिससे पानी लौट कर मिस्रियों, उनके रथों और उनके घुड़सवारों पर लहराये।''

27) मूसा ने सागर के ऊपर हाथ बढ़ा दिया और भोर होते ही सागर फिर भर गया। मिस्री भागते हुए पानी में जा घुसे और प्रभु ने उन्हें सागर के बीच में ढकेल दिया।

28) समुद्र की तह पर इस्राएलियों का पीछा करने वाली फिराउन की सारी सेना के रथ और घुड़सवार लौटने वाले पानी में डूब गये। उन में एक भी नहीं बचा।

29) इस्राएली तो समुद्र की सूखी तह पार कर गये। पानी उनके दायें और बायें दीवार बन कर ठहर गया था।

30) उस दिन प्रभु ने इस्राएलियों को मिस्रियों के हाथ से छुड़ा दिया। इस्राएलियों ने समुद्र के किनारे पर पड़े हुए मरे मिस्रियों को देखा।

31) इस्राएली मिस्रियों के विरुद्ध किया हुआ प्रभु का यह महान् कार्य देख कर प्रभु से डरने लगे। उन्होंने प्रभु में और उसके सेवक मूसा में विश्वास किया।

15: 1) तब मूसा और इस्राएली प्रभु के आदर में यह भजन गाने लगे : मैं प्रभु का गुणगान करना चाहता हूँ। उसने अपनी महिमा प्रकट की है उसने घोड़े के साथ घुड़सवार को समुद्र में फेंक दिया है।

पाठ 4 – इसायाह 54:5-14.

5) “तेरा सृष्टिकर्ता ही तेरा पति है। उसका नाम है- विश्वमण्डल का प्रभु। इस्राएल का परमपावन ईश्वर तेरा उद्धार करता है। वह समस्त पृथ्वी का ईश्वर कहलाता है।

6) “परित्यक्ता स्त्री की तरह दुःख की मारी! प्रभु तुझे वापस बुलाता है। क्या कोई अपनी तरुणाई की पत्नी को भुला सकता है?“ यह तेरे ईश्वर का कथन है।

7) “मैंने थोड़ी ही देर के लिए तुझे छोड़ा था। अब मैं तरस खा कर, तुझे अपने यहाँ ले जाऊँगा।

8) मैंने क्रेाध के आवेश में क्षण भर तुझ से मुँह फेर लिया था। अब मैं अनन्त प्रेम से तुझ पर दया करता रहूँगा।“ यह तेरे उद्धारकर्ता ईश्वर का कथन है।

9) “नूह के समय मैंने शपथ खा कर कहा था कि प्रलय की बाढ़ फिर पृथ्वी पर नहीं आयेगी। उसी तरह मैं शपथ खा कर कहता हूँ कि मैं फिर तुझ पर क्रोध नहीं करूँगा और फिर तुझे धमकी नहीं दूँगा।

10) “चाहे पहाड़ टल जायें और पहाड़ियाँ डाँवाडोल हो जायें, किन्तु तेरे प्रति मेरा प्रेम नहीं टलेगा और तेरे लिए मेरा शान्ति-विधान नहीं डाँवाडोल होगा।“ यह तुझ पर तरस खाने वाले प्रभु का कथन है।

11) “दुर्भाग्यशालिनी! आँधी और दुःख की मारी! मैं तेरे पत्थर चुन-चुन कर लगवा दूँगा और तेरी नींव नीलमणियों पर डालूँगा।

12) मैं तेरे कंगूरे लालमणियों से, तेरे फाटक स्फटिक से और तेरे परकोटे रत्नों से बनाऊँगा।

13) तेरी प्रजा प्रभु से शिक्षा ग्रहण करेगी और उसकी सुख-शान्ति की सीमा नहीं रहेगी।

14) तेरी नींव न्याय पर डाली जायेगी। तुझे कोई नहीं सतायेगा, तू कभी भयभीत नहीं होगी। आतंक तुझ से कोसों दूर रहेगा।

पाठ 5 – इसायाह 55:1-11.

1) “तुम सब, जो प्यासे हो, पानी के पास चले आओ। यदि तुम्हारे पास रुपया नहीं हो, तो भी आओ। मुफ़्त में अन्न ख़रीद कर खाओ, दाम चुकाये बिना अंगूरी और दूध ख़रीद लो।

2) जो भोजन नहीं है, उसके लिए तुम लोग अपना रुपया क्यों ख़र्च करते हो? जो तृप्ति नहीं दे सकता है, उसके लिए परिश्रम क्यों करते हो? मेरी बात मानो। तब खाने के लिए तुम्हें अच्छी चीज़ें मिलेंगी और तुम लोग पकवान खा कर प्रसन्न रहोगे।

3) कान लगा कर सुनो और मेरे पास आओ। मेरी बात पर ध्यान दो और तुम्हारी आत्मा को जीवन प्राप्त होगा। मैंने दाऊद से दया करते रहने की प्रतिज्ञा की थी। उसके अनुसार मैं तुम लोगों के लिए, एक चिरस्थायी विधान ठहराऊँगा।

4) मैंने राष्ट्रों के साक्य देने के लिए दाऊद को चुना और उसे राष्ट्रों का पथप्रदर्शक तथा अधिपति बना दिया है।

5) “तू उन राष्ट्रों को बुलायेगी, जिन्हें तू नहीं जानती थी और जो तुझे नहीं जानते थे, वे दौड़ते हुए तेरे पास जायेंगे। यह इसलिए होगा कि प्रभु, तेरा ईश्वर, इस्राएल का परमपावन ईश्वर, तुझे महिमान्वित करेगा।

6) “जब तक प्रभु मिल सकता है, तब तक उसके पास चली जा। जब तक वह निकट है, तब तक उसकी दुहाई देती रह।

7) पापी अपना मार्ग छोड़ दे और दुष्ट अपने बुरे विचार त्याग दे। वह प्रभु के पास लौट आये और वह उस पर दया करेगा; क्योंकि हमारा ईश्वर दयासागर है।

8) प्रभु यह कहता है- तुम लोगों के विचार मेरे विचार नहीं हैं और मेरे मार्ग तुम लोगों के मार्ग नहीं हैं।

9) जिस तरह आकश पृथ्वी के ऊपर बहुत ऊँचा है, उसी तरह मेरे मार्ग तुम्हारे मार्गों से और मेरे विचार तुम्हारे विचारों से ऊँचे हैं।

10) जिस तरह पानी और बर्फ़ आकाश से उतर कर भूमि सींचे बिना, उसे उपजाऊ बनाये और हरियाली से ढके बिना वहाँ नहीं लौटते, जिससे भूमि बीज बोने वाले को बीज और खाने वाले को अनाज दे सके,

11) उसी तरह मेरी वाणी मेरे मुख से निकल कर व्यर्थ ही मेरे पास नहीं लौटती। मैं जो चाहता था, वह उसे कर देती है और मेरा उद्देश्य पूरा करने के बाद ही वह मेरे पास लौट आती है।

पाठ 6 - बारूक Bar 3:9-15, 32-4,4.

15) कौन प्रज्ञा के निवासस्थान तक पहुँचा है? किसने उसके खजाने में प्रवेश किया है?

32) सर्वज्ञ ही उसका मार्ग जानता है, उसने अपनी बुद्धि से उसका पता लगाया है। उसने सदा के लिए पृथ्वी की नींव डाली है और उसे जीव-जन्तुओं से भर दिया है।

33) वह प्रकाश भेज देता है और वह फैल जाता है। वह उसे वापस बुलाता है और वह काँपते हुए उसकी आज्ञा मानता है।

34) तारे अपने-अपने स्थान पर आनन्दपूर्वक जगमगाते रहते हैं;

35) जब वह उन्हें बुलाता है, तो वे उत्तर देते, “हम प्रस्तुत हैं“; और वे अपने निर्माता के लिए आनन्द पूर्वक चमकते हैं।

36) वही हमारा ईश्वर है। उसकी बराबरी कोई नहीं कर सकता।

37) उसने ज्ञान के सभी मार्गों का पता लगाया है और उसे अपने सेवक याकूब को, अपने परमप्रिय इस्राएल को बता दिया है।

38) इस पर प्रज्ञा पृथ्वी पर प्रकट हुई और उसने मनुष्यों के बीच निवास किया।

1) प्रज्ञा यह है- ईश्वर की आज्ञाओं का ग्रन्थ, वह संहिता, जो सदा बनी रहेगी। जो उसका पालन करेगा, वह जीता रहेगा; जो उसे छोड़ देगा, वह मर जायेगा।

2) याकूब! लौट कर उसे ग्रहण करो, उसके प्रकाश में महिमा की ओर आगे बढ़ो।

3) न तो दूसरों को अपना गौरव दो और न विदेशियों को अपना विशेष अधिकार।

4) इस्राएल! हम कितने सौभाग्यशाली है! ईश्वर की इच्छा हम पर प्रकट की गयी है।

पाठ 7 - एज़ेकिएल 36:16-17अ, 18-28.

16) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई पड़ी,

17) "मानवपुत्र! इस्राएल के लोगों ने, अपनी निजी देश में रहते समय, उसे अपने आचरण और व्यवहार से अशुद्ध कर दिया।

18) उन्होंने देश में रक्त बहा कर और देवमूर्तियों को स्थापित कर उसे अपवित्र कर दिया, इसलिए मैंने उन पर अपना क्रोध प्रदार्शित किया।

19) मैंने उन्हें राष्ट्रों में तितर-बितर कर दिया और वे विदेशों में बिखर गये। मैंने उनके आचरण और व्यवहार के अनुसार उनका न्याय किया है।

20) उन्होंने दूसरे राष्ट्रों में पहुँच कर मेरे पवित्र नाम का अनादर कराया। लोग उनके विषय में कहते थे, ’यह प्रभु की प्रजा है, फिर भी इन्हें अपना देश छोड़ना पड़ा।’

21) परंतु मुझे अपने पवित्र नाम का ध्यान है, जिसका अनादर इस्राएलियों ने देश-विदेश में, जहाँ वे गये थे, कराया है।

22) "इसलिए इस्राएल की प्रजा से कहना- प्रभु-ईश्वर यह कहता हैः इस्राएल की प्रजा! मैं जो करने जा रहा हूँ वह तुम्हारे कारण नहीं करूँगा, बल्कि अपने पवित्र नाम के कारण, जिसका अनादर तुम लोगों ने देश-विदेश में कराया।

23) मैं अपने महान् नाम की पवित्रता प्रमाणित करूँगा, जिस पर देश-विदेश में कलंक लग गया है और जिसका अनादर तुम लोगों ने वहाँ जा कर कराया है। जब मैं तुम लोगों के द्वारा राष्ट्रों के सामने अपने पवित्र नाम की महिमा प्रदर्शित करूँगा, तब वे जान जायेंगे कि मैं ही प्रभु हूँ।

24) "मैं तुम लोगों को राष्ट्रों में से निकाल कर और देश-विदेश से एकत्र कर तुम्हारे अपने देश वापस ले जाऊँगा।

25) मैं तुम लोगों पर पवित्र जल छिडकूँगा और तुम पवित्र हो जाओगे। मैं तुम लोगों को तुम्हारी सारी अपवित्रता से और तुम्हारी सब देवमूर्तियों के दूषण से शुद्ध कर दूँगा।

26) मैं तुम लोगों को एक नया हृदय दूँगा और तुम में एक नया आत्मा रख दूँगा। मैं तुम्हारे शरीर से पत्थर का हृदय निाकल कर तुम लोगों को रक्त-मांस का हृदय प्रदान करूँगा।

27) मैं तुम लोगों में अपना आत्मा रख दूँगा, जिससे तुम मेरी संहिता पर चलोगे और ईमानदारी से मेरी आज्ञाओं का पालन करोग।

28) तुम लोग उस देश में निवास करोगे, जिसे मैंने तुम्हारे पूर्वजों को दिया है। तुम मेरी प्रजा होगे और मैं तुम्हारा ईश्वर होऊँगा।

पाठ 8 – रोमियों 6:3-11.

3) क्या आप लोग यह नहीं जानते कि ईसा मसीह का तो बपतिस्मा हम सबों को मिला है, वह उनकी मृत्यु का बपतिस्मा हैं?

4) हम उनकी मृत्यु का बपतिस्मा ग्रहण कर उनके साथ इसलिए दफनाये गये हैं कि जिस तरह मसीह पिता के सामर्थ्य से मृतकों में से जी उठे हैं, उसी तरह हम भी एक नया जीवन जीयें।

5) यदि हम इस प्रकार उनके साथ मर कर उनके साथ एक हो गये हैं, तो हमें भी उन्हीं की तरह जी उठना चाहिए।

6) हमें कभी नहीं भूलना चाहिए कि हमारा पुराना स्वभाव उन्हीं के साथ क्रूस पर चढ़ाया जा चुका हैं, जिससे पाप का शरीर मर जाये और हम फिर पाप के दास न बने;

7) क्योंकि जो मर चुका है, वह पाप की गुलामी से मुक्त हो गया हैं।

8) हमें विश्वास है कि यदि हम मसीह के साथ मर गये हैं, तो हम उन्ही के जीवन के भी भागी होंगे;

9) क्योंकि हम जानते हैं कि मसीह मृतको में से जी उठने के बाद फिर कभी नहीं मरेंगे। अब मृत्यु का उन पर कोई वश नहीं।

10) वह पाप का हिसाब चुकाने के लिए एक बार मर गये और अब वह ईश्वर के लिए ही जीते हैं।

11) आप लोग भी अपने को ऐसा ही समझें-पाप के लिए मरा हुआ और ईसा मसीह में ईश्वर के लिए जीवित।

पाठ 9 - मत्ती 28:1-10.

पाठ 9 - मत्ती 28:1-10.

1) विश्राम-दिवस के बाद, सप्ताह के प्रथम दिन, पौ फटते ही, मरियम मगदलेना और दूसरी मरियम कब्र देखने आयीं।

2) एकाएक भारी भुकम्प हुआ। प्रभु का एक दूत स्वर्ग से उतरा, कब्र के पास आया और पत्थर अलग लुढ़का कर उस पर बैठ गया।

3) उसका मुखमण्डल बिजली की तरह चमक रहा था और उसके वस्त्र हिम के सामान उज्ज्वल थे।

4) दूत को देख कर पहरेदार थर-थर काँपने लगे और मृतक -जैसे हो गये।

5) स्वर्गदूत ने स्त्रियों से कहा, "डरिए नहीं। मैं जानता हूँ कि आप लोग ईसा को ढूँढ़ रही हैं, जो कू्रस पर चढ़ाये गये थे।

6) वे यहाँ नहीं हैं। वे जी उठे हैं, जैसा कि उन्होंने कहा था। आइए और वह जगह देख लीजिए, जहाँ वे रखे गये थे।

7) अब सीधे उनके शिष्यों के पास जा कर कहिए, ’वे मृतकों में से जी उठे हैं। वह आप लोगों से पहले गलीलिया जायेंगे, वहाँ आप लोग उनके दर्शन करेंगे’। यही आप लोगों के लिए मेरा सन्देश है।"

8) स्त्रियाँ शीघ्र ही कब्र के पास से चली गयीं और विस्मय तथा आनन्द के साथ उनके शिष्यों को यह समाचार सुनाने दौड़ीं।

9) ईसा एकाएक मार्ग में स्त्रियों के सामने आ कर खड़े हो गये और उन्हें नमस्कार किया। वे आगे बढ़ आयीं और उन्हें दण्डवत् कर उनके चरणों से लिपट़ गयीं।

10) ईसा ने उनसे कहा, "डरो नहीं। जाओ और मेरे भाइयों को यह सन्देश दो कि वे गलीलिया जायें। वहाँ वे मेरे दर्शन करेंगे।"

📚 मनन-चिंतन

प्रभु येसु का पुनर्जीवित होना सबों के लिए एक अविश्वनीय घटना थी। शिष्यों एवं अन्य लोगों को विश्वास करना असंभव था। जब तक प्रभु येसु ने उन्हें प्रर्याप्त प्रमाण नहीं दिये, तब तक वे उन्हें पहचान नहीं पा रहे थे। प्रभ येसु का जी उठना धर्मग्रन्थ की भविष्यवाणी के अनुसार अनिवार्य था। प्रभुयेसु को जीवित देखकर शिष्यों का विश्वास और भी अधिक गहरा हुआ, और वे इस घटना के साक्षी बने।

शिष्य लोग दृढ़ता के साथ कहते हैं कि इस घटना को जिसकों हमने हमारी आखों से देखा है, उसके साक्षी हम हैं। उन्हें लोगों ने क्रुस पर चढ़ा कर मार डाला, परन्तु ईश्वर ने उन्हें तीसरे दिन जिलाया और प्रकट होने दिया, उनके सामने जिन्हें ईश्वर ने चुन लिया था।

संत पौलूस हमसे कहते हैं, “मसीह ही आपका जीवन हैं”।मसीह ही जीवन हैं, जैसे कि उन्होंने कहा, “मार्ग, सत्य और जीवन में ही हूँ”।हमें जीवन देने हेतु वे क्रूस धारण कर मर गये, पुर्नजीवित होकर हमें नव जीवन दिया है। हम भी प्रभु के दुःखभोग, मरण एवं पुनरूथान की इस घटना के साक्षी बनें। शिष्यों की भांति हम इस संदेश को सारी मानव जाति के साथ बाटें।

क्या हम पुर्नजीवित प्रभु के साक्षी बनते हैं? आइये, हम अपने जीवन के द्वारा पुनर्जीवित प्रभु के साक्षी बनें।



📚 REFLECTION

The resurrection of the Lord Jesus was an unbelievable event for all. It was impossible for the disciples and others to believe. They were not able to recognize Him until the Lord Jesus gave them sufficient proofs. The resurrection of the Lord Jesus was certain according to the prophecies of the scriptures. Seeing the Lord Jesus alive, the faith of the disciples deepened even more, and they became witnesses of this event.

The disciples assert that we are the witnesses of the event which we have seen with our own eyes. He was killed by the people by crucifixion, but God resurrected him on the third day and allowed him to appear before those whom God had chosen.

Saint Paul tells us, "Christ is your life". Christ is the life, as he said, "I am the way, the truth and the life". He died on the cross to give us life, being resurrected has given us new life. Let us also be witnesses to this event of the Lord's suffering, death and resurrection. Like disciples, let us share this message with all mankind.

Do we become witnesses of the risen Lord? Let us bear witness to the risen Lord through our lives.

📚 मनन-चिंतन -2

येसु सचमुच जी उठे। अल्लेलूया!

प्रिय दोस्तों, आज वही मध्य रात्रि है जब मृत्यु परास्त हो गयी, जब शैतान हार गया और आज वही मध्य रात्रि है जब ज्योति ने अंधकार को हरा कर हमें मुक्ति का रास्ता दिखाया।

येसु मसीह का पुनरुत्थान मुक्ति इतिहास का वो अद्भुत घटना है जो 2000 वर्ष पूर्व घटी और जिसे हम आज पास्का जागरण के रूप में मना रहें हैं। पुनरुत्थान और उसके बाद की घटनों ने पूरे संसार को बदल कर रख दिया। प्रभु येसु का पुनरुत्थान का क्या महत्व है? यह इसलिए महत्व है क्योकि अगर पुनरुत्थान नहीं हुआ होता तो येसु मसीह के अनुयायी आज तक की तारीख में इतना कभी भी नहीं फैल पाते। यहॉं पर अनुयायियों को मतलब केवल ख्रीस्तीय ही नहीं परन्तु वे लोग भी हैं जिन्होंने बपतिस्मा तो नहीं लिया परन्तु येसु के पक्के विश्वासी और पक्के अनुयायी है। पुनरुत्थान के बिना यह नया रास्ता येसु के मृत्यु समय ही समाप्त हो जाता।

पुनरुत्थान वह घटना है जो येसु के कू्रस मरण के तीन दिन बाद घटित हुई। किसी ने भी येसु को पुनर्जिवित होते हुए नहीं देखा, यहॉं तक कि उनके शिष्यों ने भी नहीं। कोई भी पुनरुत्थान प्रक्रिया का साक्षी नहीं है। परंतु बहुतों ने पुनरुत्थान के दो महत्वपूर्ण प्रमाण को देखा और बताया हैं, जिसे हम आज के सुसमाचार में भी पढ़ते हैं; वह है येसु की खाली कब्र और पुनर्जिवित प्रभु।

उस खाली कब्र और पुनर्जीवित प्रभु की सबसे प्रथम साक्षी मरियम मगदलेना है। संत मत्ती के सुसमाचार में हम पढ़ते है कि मरियम मगदलेना और दूसरी मरियम कब्र के नजदीक गये और एक दूत ने उन्हे यह संदेश दिया कि येसु जी उठे हैं, आओ और वह जगह देखों जहॉं उन्हें रखा गया था। वह यहॉं नहीं है। इसके बाद जब वे यह बात शिष्यों को बताने जा रहें थे, पुनर्जीवित प्रभु उनके सामने प्रकट हुए।

येसु का खाली कब्र यह बताता है कि येसु शरीर के साथ पुनर्जीवित हो गये क्योंकि उनका पार्थिव शरीर वहॉं पर नहीं था। आज तक किसी ने भी येसु के शरीर को खोज निकालने या उसको पाने का दावा नहीं कर पाया हैं। बस महायाजको एवं नेताओं द्वारा झूठी कहानी फैलायी गयी कि येसु के शिष्योें ने येसु का शरीर चुरा लिया। अगर ऐसा होता तो रोमी सैनिकों ने बाद में इसका पता लगा के उसे अपने गिरफ्त में कर लिया होता। इससे परे येसु का शरीर ले जाने का कोई मतलब भी नहीं था। येसु का शरीर ले जाकर भी कोई क्या करता। शिष्यगण उस समय स्वयं इतने भयभीत थे कि उन्होनें येसु के कब्र के नजदीक जाने की भी नहीं सोची होगी।

प्रभु येसु का दर्शन बताता है कि येसु पुनर्जीवित शरीर के साथ प्रकट हुए, सबसे पहले मरियम मगदलेना के सामने और बाद में शिषयों के सामने।

प्रभु येसु का पुनरुत्थान हमें कई चीज़ बताता हैः

1. प्रभु येसु ने मृत्यु पर विजय पायी है; अभी तक येसु के सिवाय किसी ने मृत्यु को नहीं हराया।

2. येसु जीवित है। वे पवित्र त्रित्व के दूसरे व्यक्ति है और वे एक जिंदा ईश्वर है।

3. पुनरुत्थान सभी विश्वासियों की आशा है कि अगर हम मसीह के साथ मर जाएंगे, तो हम उन्हीं के जीवन के भी भागी होंगे। (रोम. 6ः8)

येसु मसीह एक जिंदा ईश्वर है, वह ईश्वर जिसने मृत्यु को हराकर हमारे लिए अनंत जीवन का द्वार खोल दिया हैं।

आज के पाठों द्वारा हमें मालूम होता है कि किस प्रकार ईश्वर ने सबकुछ को सृष्ट किया और मनुष्य को अपने ही प्रति रूप बनाया तथा समय समय पर अपने लोगों को विभिन्न प्रकार की विपत्तियों से बचाया और अंत में येसु के पुनरुत्थान द्वारा सारी मानवजाति की आत्माओं को जो जीवित है और जो मर चुके हैं दोनो को बचाने की एक योजना बनाई।

येसु का पुनरुत्थान ने मृत्यु के बाद के जीवन का उत्तर दे दिया। अभी तक किसी को अच्छी तरह से मालूम नहीं था कि मृत्यु के बाद क्या होता है, परन्तु येसु के पुनरुत्थान के बाद हमें अनंत जीवन की वास्तविकता पता चली। येसु ने हमारे लिए द्वार खोल दिये है अब हमें प्रभु येसु द्वारा प्रतिज्ञा की गई उस अनंत जीवन में प्रवेश करने के लिए अपने आप को तैयार करना होगा। सारी मानव जाति के लिए येसु ही वह रास्ता जो हमें अनंत जीवन तक ले जाती हैं। उन पर विश्वास ही हमें उनके पद्चिन्हों पर चलने के लिए मदद देगा। पुनरुत्थान का सामार्थ हमें पुनर्जीवित प्रभु में विश्वास करने में सहायता करें तथा पुनर्जीवित प्रभु उनके द्वारा की गई प्रतिज्ञा को पाने में हमारी मदद करें। आमेन


📚 REFLECTION

Jesus is risen indeed. Alleluia!

Dear friends, tonight is that night when the death has been conquered, when Satan has been defeated and tonight is the time where light has overcome the darkness and showed us the way for salvation.

Resurrection of Jesus Christ is the remarkable event in the Salvation History which happened 2000 years back and tonight we are celebrating that day as Easter vigil. Resurrection and post resurrection experience has changed the whole world. Why resurrection of Jesus is very important? Because if there would have been no resurrection the followers of Jesus Christ would have never increased till date. Followers what I mean here is not only Christians but also those who might have not taken baptism but are strong believer and follower of Jesus. Without Resurrection this way of living would have diminished then and there itself with the death of Jesus.

Resurrection was the event which took place three days after the death of Jesus on the cross. No one has witnessed Resurrection of Jesus in itself, not even the disciples. It means to say that nobody saw how Jesus was raised. But many have seen and given the two important proofs of Resurrection, which we read in today’s gospel also; i.e. the empty tomb and the Risen Lord.

Mary Magdalene was the first person who witnessed empty tomb and the Risen Lord. In the Gospel of St. Matthew we read Mary Magdalene with other Mary came to the tomb and then an angel gave them the message that Jesus is risen, come and see where he has been laid. He is not here. After this when they were going to tell the disciples, the Risen Lord appeared to them.

Jesus empty tomb tells that Jesus was risen with the body as the body of Jesus was not there. Till date nobody can say that anybody has found the body of Jesus. Only the false allegation was put by the chief priest and elders to say that the disciples have stolen the body. But it would have been so the Roman soldier would have caught the body later too. All the more there was no reason to take Jesus’ body. What anyone would have done by taking Jesus body. Disciples they themselves were very frighten at that moment that they might have not even thought to go near to Jesus’ tomb.

The appearances of the Risen Lord tell that Jesus appeared in the resurrected body, first and foremost to Mary Magdalene and later to the disciples.

Resurrection of Jesus tells us many things:

1. Jesus has conquered the death: Till now no one has conquered death except Jesus.

2. Jesus is alive. He is the second person of the Holy Trinity and He is a living God.

3. Resurrection is the hope for all the believers that if we die with Christ we will also live with Christ. (Rom. 6:8)

Jesus Christ is living God, a God who has conquered death and has opened the door of life for us, that is eternal life.

From today’s readings we can find how God created everything and He created Human being in his own image and time to time God saved his people from various adversaries and at last He has the plan to save the soul of whole humanity who are dead and who are alive by the Resurrection of Jesus.

The Resurrection of Jesus gave the answer for life after death. Till now many did not know what will happen after death but after the Resurrection of Jesus we are sure of the eternal life. Jesus has opened the door to us and now we have to prepare ourselves to enter that eternal life promised by Jesus. Jesus is the way for the whole humanity which leads to eternal life. Believing in him will help us to follow his footsteps. May the power of Resurrection help us to believe in the Risen Lord and may the Risen Lord help us to strive for the promise which he has promise us. Amen


प्रभात का मिस्सा बलिदान
पहला पाठ : प्रेरित-चरित 10:34a. 37-43

34) पेत्रुस ने कहा, "मैं अब अच्छी तरह समझ गया हूँ कि ईश्वर किसी के साथ पक्ष-पात नहीं करता।

37) नाज़रेत के ईसा के विषय में यहूदिया भर में जो हुआ हैं, उसे आप लोग जानते हैं। वह सब गलीलिया में प्रारंभ हुआ-उस बपतिस्मा के बाद, जिसका प्रचार योहन किया था।

38) ईश्वर ने ईसा को पवित्र आत्मा और सामर्थ्य से विभूषित किया और वह चारों ओर घूम-घूम कर भलाई करते रहें और शैतान के वश में आये हुए लोगों को चंगा करते रहें, क्योंकि ईश्वर उनके साथ था

39) उन्होंने जो कुछ यहूदिया देश और येरुसालेम में किया, उसके साक्षी हम हैं। उन को लोगों ने क्रूस के काठ पर चढ़ा कर मार डाला;

40) परंतु ईश्वर ने उन्हें तीसरे दिन जिलाया और प्रकट होने दिया-

41) सारी जनता के सामने नहीं, बल्कि उन साक्षियों के सामने, जिन्हें ईश्वर ने पहले ही से चुन लिया था। वे साक्षी हम हैं। मृतकों में से उनके जी उठने के बाद हम लोगों ने उनके साथ खाया-पिया

42) और उन्होंने हमें आदेश दिया कि हम जनता को उपदेश दे कर घोषित करें कि ईश्वर ने उन्हें जीवितों और मृतकों का न्यायकर्ता नियुक्त किया हैं।

43) उन्हीं के विषय में सब नबी घोषित करते है कि जो उन में विश्वास करेगा, उसे उनके नाम द्वारा पापों की क्षमा मिलेगी।"

📙 दूसरा पाठ : कलोसियों 3:1-4

1) यदि आप लोग मसीह के साथ ही जी उठे हैं- जो ईश्वर के दाहिने विराजमान हैं- तो ऊपर की चीजें खोजते रहें।

2) आप पृथ्वी पर की नहीं, ऊपर की चीजों की चिन्ता किया करें।

3) आप तो मर चुके हैं, आपका जीवन मसीह के साथ ईश्वर में छिपा हुआ है।

4) मसीह ही आपका जीवन हैं। जब मसीह प्रकट होंगे, तब आप भी उनके साथ महिमान्वित हो कर प्रकट हो जायेंगे।

अथवा दूसरा पाठ : 1 कुरिन्थियों 5: 6b-8.

6) आप लोगों का आत्मसन्तोष आप को शोभा नहीं देता। क्या आप यह नहीं जानते कि थोड़ा-सा ख़मीर सारे सने हुए आटे को ख़मीर बना देता है?

7) आप पुराना ख़मीर निकाल कर शुद्ध हो जायें, जिससे आप नया सना हुआ आटा बन जायें। आप को बेख़मीर रोटी-जैसा बनना चाहिए क्योंकि हमारा पास्का का मेमना अर्थात् मसीह बलि चढ़ाये जा चुके हैं।

8) इसलिए हमें न तो पुराने खमीर से और न बुराई और दुष्टता के खमीर से बल्कि शुद्धता और सच्चाई की बेख़मीर रोटी से पर्व मनाना चाहिए।

📚 सुसमाचार योहन 20:1-9

1) मरियम मगदलेना सप्ताह के प्रथम दिन, तडके मुँह अँधेरे ही कब्र के पास पहुँची। उसने देखा कि कब्र पर से पत्थर हटा दिया गया है।

2) उसने सिमोन पेत्रुस तथा उस दूसरे शिष्य के पास, जिसे ईसा प्यार करते थे, दौडती हुई आकर कहा, "वे प्रभु को कब्र में से उठा ले गये हैं और हमें पता नहीं कि उन्होंने उन को कहाँ रखा है।"

3) पेत्रुस और वह दूसरा शिष्य कब्र की ओर चल पडे।

4) वे दोनों साथ-साथ दौडे। दूसरा शिष्य पेत्रुस को पिछेल कर पहले कब्र पर पहुँचा।

5) उसने झुककर यह देखा कि छालटी की पट्टियाँ पडी हुई हैं, किन्तु वह भीतर नहीं गया।

6) सिमोन पेत्रुस उसके पीछे-पीछे चलकर आया और कब्र के अन्दर गया। उसने देखा कि पट्टियाँ पडी हुई हैं।

7) और ईसा के सिर पर जो अँगोछा बँधा था वह पट्टियों के साथ नहीं बल्कि दूसरी जगह तह किया हुआ अलग पडा हुआ है।

8) तब वह दूसरा शिष्य भी जो कब्र के पास पहले आया था भीतर गया। उसने देखा और विश्वास किया,

9) क्योंकि वे अब तक धर्मग्रन्थ का वह लेख नहीं समझ पाये थे कि जिसके अनुसार उनका जी उठना अनिवार्य था।

अथवा - सुसमाचार लूकस 24:1-12

1) सप्ताह के प्रथम दिन, पौ फटते ही, वे तैयार किये हुए सुगन्धित द्रव्य ले कर क़ब्र के पास गयीं।

2) उन्होंने पत्थर को क़ब्र से अलग लुढ़काया हुआ पाया,

3) किन्तु भीतर जाने पर उन्हें प्रभु ईसा का शव नहीं मिला।

4) वे इस पर आश्चर्य कर ही रही थीं कि उजले वस्त्र पहने दो पुरुष उनके पास आ कर खड़े हो गये।

5) स्त्रियों ने भयभीत हो कर धरती की ओर सिर झुका लिया। उन पुरुषों ने उन से कहा, "आप लोग जीवित को मृतकों में क्यों ढूँढ़ती हैं?

6) वे यहाँ नहीं हैं- वे जी उठे हैं। गलीलिया में रहते समय उन्होंने आप लोगों से जो कहा था, वह याद कीजिए।

7) उन्होंने यह कहा था कि मानव पुत्र को पापियों के हवाले कर दिया जाना होगा, क्रूस पर चढ़ाया जाना और तीसरे दिन जी उठना होगा।"

8) तब स्त्रियों को ईसा का यह कथन याद आया।

9) कब्र से लौट कर मरियम मगदलेना, योहन्ना, और याकूब की माता मरियम ने यह सब ग्यारहों और दूसरे शिष्यों को भी बताया।

10) जो अन्य नारियाँ उनके साथ थीं, उन्होंने भी प्रेरितों से यही कहा;

11) परन्तु उन्होंने इन सब बातों को प्रलाप ही समझा और स्त्रियों पर विश्वास नहीं किया।

12) फिर भी पेत्रुस उठ क़र दौड़ते हुए क़ब्र के पास पहुँचा। उसने झुक कर देखा कि पट्टियों के अतिरिक्त वहाँ कुछ भी नहीं है और वह इस पर आश्चर्यचकित हो कर चला गया।

📚 मनन-चिंतन

बिल विलसन एक अमेरिकन सैनिक था जिसने यूरोप में अपनी नियुक्ति के दौरान शराब पीने की आदत डाल ली थी। अमेरिका वापस आने पर भी उसकी शराब की लत बनी रही। वह लगभग 2 दशकों तक वह निरंतर शराब पीता रहा। इस दौरान इस वजह से उसकी आर्थिक स्थिति बर्बाद हो गयी। उसका पारिवारिक जीवन तथा स्वास्थ्य भी टूटने की कगार पर था। इस बीच उसकी मुलाकात उसके पुराने पियक्कड दोस्त से होती है जो उसे बताता की येसु ने उसे चंगा कर दिया है तथा उसने शराब पीना छोड दिया है। बिल का उसकी बात हास्यास्पद लगी। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि कोई शराब पीना छोड सकता है। इस घटना के कुछ ही महीने बाद दिसंबर 1934 में बिल को एक दिव्य अनुभव हुआ। वह मेनहटन के पुर्नवास क्रेन्द में अपना इलाज करवा रहा था। वह अत्यत पीडा में था। ’’वह कई दिनों तक अपने होशोहवास में नहीं था। शराब न मिलने के कारण उसे ऐसा लग रहा था मानो कीडे उसके खून में दौड रहे हो। दर्द के कारण वह अपने हाथ-पैर भी नहीं चला पा रहा था। अपनी इस पीडा में वह कहता है, ’’अगर ईश्वर है तो वह आये। मैं सबकुछ करने को तैयार हूं।’’ उसी समय उसका कमरा एक सफेद रोशनी से भर गया, उसका दर्द खत्म हो गया। उसे ऐसा महसूस हो रहा था मानो वह किसी पहाड की उचाई पर हो जहॉ आत्मा हवा में बह रहा हो। वह एकदम से मुक्त हो गया।

इसके बाद बिल विलसन ने कभी शराब नहीं पी। अगले छत्तीस साल बिल लोगों की शराब-मुक्ति के पुर्नावास के कार्यों में लगा रहा। उसने अल्कोहल अनोनिमस की स्थापना की जिससे लगभग एक करोड लोगों की शराब मुक्ति में सहायता की।

येसु से एक भेंट या उनके इस अनुभव ने एक शराबी को शराब के विरूद्ध चलाने वाला आंदोलनकारी बना दिया। यह उस परिवर्तन का अद्वितीय उदाहरण है जो पुनरूत्थित येसु के बाद होता है। येसु का पुनरूत्थान हमारे विश्वास की धूरी है। संत पौलुस कुरिंथियों के नाम अपने पहले पत्र में इस सत्य के बारे में लिखते हैं, ’’यदि मसीह नहीं जी उठे, तो हमारा धर्मप्रचार व्यर्थ है और आप लोगों का विश्वास भी व्यर्थ है। (1 कुरि.15:14) पुनरूत्थान सारी मानवजाति के लिये एक मोड है। यह मोड है क्योंकि हमारा विश्वास मात्र मृत्यु उपरांत जीवन में नहीं बल्कि उस जीवन में हैं जो हमें मसीह में विश्वास, उनकी मृत्यु तथा पुन जी उठने से प्राप्त होता है। पुनरूत्थान के बारे में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है जो मनुष्य इसमें विश्वास एवं अनुभव करता है उसका जीवन मूल रूप से बदल जाता है।

संत पौलुस के लिये पुनर्जीवित येसु से भेंट एक परिवर्तनकारी घटना थी। वे कलीसिया तथा ख्राीस्तीयों पर अत्याचार करते थे। किन्तु जब वे दमिश्क जा रहे थे तो रास्ते में उन्हें, येसु नाजरी, जिन पर वे अब तक अत्याचार कर रहे थे, के दर्शन होते हैं। इस घटना के बाद पौलुस का जीवन तथा उसका लक्ष्य एकदम से बदल गया। अब वह जिस येसु पर अत्याचार किया करता था का सबसे निष्ठावान अनुयायी बन गया था। वह उसके जीवन की सभी उपलब्धियों को तुच्छ तथा मसीह के ज्ञान को ही श्रेष्ठ समझने लगा। ’’इतना ही नहीं, मैं प्रभु ईसा मसीह को जानना सर्वश्रेष्ठ लाभ मानता हूँ और इस ज्ञान की तुलना में हर वस्तु को हानि ही मानता हूँ। उन्हीं के लिए मैंने सब कुछ छोड़ दिया है और उसे कूड़ा समझता हूँ,....मैं यह चाहता हूँ कि मसीह को जान लूँ, उनके पुनरूत्थान के सामर्थ्य का अनुभव करूँ और मृत्यु में उनके सदृश बन कर उनके दुःखभोग का सहभागी बन जाऊँ, जिससे मैं किसी तरह मृतकों के पुनरूत्थान तक पहुँच सकूँ।’’ (फिल्लिपियों 3:8,10-11)

शिष्यों के जीवन में भी पुनरूत्थान के बाद आमूलचूल परिवर्तन आये। वे अनपढ मछुआरे थे। उन्हें येसु के दुखभोग, मृत्यु तथा पुनरूत्थान को समझने के लिये साहस तथा व्यापक समझ की कमी थी। येसु के गिरफ्तार होते ही वे उन्हें छोडकर तितर-बितर हो गये। पेत्रुस ने तो उन्हें पहचानने से भी इंकार कर दिया था। वे इतने डर गये थे कि उन्हें कुछ पर भी विश्वास करना मुश्किल लग रहा था। लेकिन येसु ने पुनरूत्थान का साक्ष्य कई बार अपने दर्शनों के द्वारा दिये। जिससे शिष्यों का येसु के पुनरूत्थान में विश्वास पक्का हो गया था। अब वे साहस के साथ उसका साक्ष्य दे रहे थे। उनका विश्वास एवं साहस देखकर सभी विस्मित हो गये थे, ’’पेत्रुस और योहन का आत्मविश्वास देखकर और इन्हें अशिक्षित तथा अज्ञानी जान कर, महासभा के सदस्य अचम्भे में पड़ गये। फिर, वे पहचान गये कि ये ईसा के साथ रह चुके हैं,’’ (प्रेरित चरित 4:13) अब वे येसु के नाम के कारण दुख भोगने को भी तैयार थे, ’’इस पर पेत्रुस और अन्य प्रेरितों ने यह उत्तर दिया, ष्मनुष्यों की अपेक्षा ईश्वर की आज्ञा का पालन करना कहीं अधिक उचित है। इन बातों के साक्षी हम हैं और पवित्र आत्मा भी, जिसे ईश्वर ने उन लोगों को प्रदान किया है, जो उसकी आज्ञा का पालन करते हैं। प्रेरित इसलिए आनन्दित हो कर महासभा के भवन से निकले कि वे {ईसा के} नाम के कारण अपमानित होने योग्य समझे गये।’’ (प्रेरित चरित 5:29-32,41)

प्रेरितगण प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद भी हर जगह बडे साहस और निडरता के साथ सुसमाचार का प्रचार करने लगे थे। इनमें से कईयों ने तो मरने से पूर्व घोर यातनायें सही किन्तु हार नहीं मानी। उनका विश्वास तथा आस्था बहुत गहरा था। यह सब उनका प्रभु के जीवित होने में विश्वास के कारण था। हम भी प्रभु के पुनरूत्थान में विश्वास करते हैं किन्तु शायद उसका रूपांतरित करने वाला अनुभव हम से दूर है। हम प्रार्थना करे कि प्रभु की दया से हम भी उनके पुनरूत्थान का अनुभव कर सकें।

📚 REFLECTION

Bill Wilson was an American soldier who picked up drinking habit during his days on duty to Europe. After returning from the military, he continued drinking and with the passage of time became completely observed in it. His drinking continued for almost two decades. During this period, he was financially completely ruined. His family life tattered and health on the cusp collapse. He was told by his alcoholic friend that God had healed him and consequently completely given up drinking. Bill Wilson laughed at the thought of being sobriety. But a few months later, in December 1934, Wilson had a revelatory experience while in a Manhattan rehab centre. The only thing, he found, that would relieve his pain from the detox drug was prayer.

“For days he hallucinated. The withdrawal pains made it feel as if insects were crawling across his skin. He was so nauseous he could hardly move, but the pain was too intense to stay still. “If there is a God, let Him show Himself!” I am ready to do anything. Anything!” At that moment a white light filled his room, the pain ceased and he felt as if he were on a mountaintop and that a wind not of air but of spirit was blowing. I was free man.

Bill Wilson would never have another drink. For next thirty-six years he would devote himself to founding, building and spreading Alcoholics Anonymous until it became the largest, most well-known and successful habit changing organization in the world. Since then, Alcoholics Anonymous has helped an estimated 10 million people get sober.

An encounter with Jesus turned an alcoholic into in to a crusader against the alcohol. It is just an example of the transformation one has when encounter the risen Lord. The resurrection of Jesus has been the axis of our faith. St. Paul’s points out, “In vain is our faith if Christ has not been risen.” (1 Cor.15:14)

Resurrection has been the turning point for the whole humanity. Our faith not merely in life after death but a life with God which we gain through the death and resurrection of the Christ. A life in risen-Christ is eternal which we gain through our faith in Christ and his death and resurrection.

One of the most significant things about resurrection is the transformation it brings about in the life of people who accept this truth and live in their life.

For St. Paul encountering the Lord Jesus was a transforming reality. He was a persecutor of the Church and he could go on to any extend to persecute the Christians. However, on the way to Damascus he encountered Jesus of Nazareth whom he was persecuting. This encounter completely turned about the life and its purposes for him. Now Paul becomes one of the staunchest supporters of Jesus. He would count everything as a thrash in comparing with the knowing the Christ, “I regard everything as loss because of the surpassing value of knowing Christ Jesus my Lord… I want to know Christ and the power of his resurrection and the sharing of his sufferings by becoming like him in his death, if somehow I may attain the resurrection from the dead.” (Philippians 3:8,10-11) So far the only ambition of Paul was to persecute any attempt of proclaiming Jesus as risen but now is the champion of this cause.

The change in the life of the apostles too had been exceptionally great. They were illiterate fishermen. They lacked courage and understanding of the Jesus’ passion, death and resurrection. They run away as soon as Jesus was arrested. Peter even refused to recognise him. they were freight to the point of disbelieve. However, after meeting the risen Jesus they became bold and irresistible. They were no longer in hiding but rather in open preaching and performing miracles. Their new found courage and wisdom baffled the authorities, “Now when they saw the boldness of Peter and John and realized that they were uneducated and ordinary men, they were amazed and recognized them as companions of Jesus. (Acts 3:13) They were willing to suffer and to die. They responded, “We must obey God rather than any human authority. The God of our ancestors raised up Jesus, whom you had killed by hanging him on a tree… And we are witnesses to these things, and so is the Holy Spirit whom God has given to those who obey him.’…As they left the council, they rejoiced that they were considered worthy to suffer dishonour for the sake of the name. (Acts 5:29-32,41)

The Apostles went about everywhere daring the inclement and hostile conditions preaching the risen Lord. Most of them before being martyred suffered a great pain and torture. Their conviction and faith were of astronomical heights. It was due to the experience of the risen Lord. We too perhaps believe in the resurrection but lack the transforming experience of risen Lord. Let us Pray and earnestly seek the risen Lord for God would not hold back anything good from us.

मनन-चिंतन -2

अगर आप मुझ से पूछते हैं कि येसु के बारह शिष्यों में से किस शिष्य का पास्का-अनुभव सबसे अनोखा था, मैं निसन्देह यह कहूँगा कि प्रेरित योहन का पास्का अनुभव ही सब से अनोखा था।

योहन अपने को ’येसु का प्यारा’ शिष्य कहते हैं। बारहों में से तीन शिष्यों का एक विशेष स्थान था। वे थे पेत्रुस, योहन और याकूब। वे येसु के जीवन के कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के समय उनके साथ थे और वे उन घटनाओं के साक्षी थे। इन में येसु का रूपान्तरण, सभागृह के अधिकारी की बेटी को जीवनदान और बारी में प्राणपीड़ा आदि शामिल हैं। इन शिष्यों को दूसरे शिष्यों की अपेक्षा ज़्यादा अनुभव और शिक्षा मिलती थी। फ़िर भी इस में से सिर्फ़ योहन कलवारी पहाड़ी की ओर येसु की यात्रा में शामिल होते हैं और येसु के क्रूसमरण के साक्षी बनते हैं। क्रूस के नीचे योहन इस दुनिया के इतिहास की सबसे दुखद घटना के साक्षी थे। येसु के साथ होने तथा येसु का समर्थन करने का आरोप लगने की संभावना और उसके फलस्वरूप आने वाली कठिनाईयों को नज़रअंदाज करते हुए वे येसु के क्रूस-रास्ते के समय भी उनका अनुसरण करते हैं।

गलीलिया के समुद्र के किनारे से हो कर जाते हुए येसु ने उन्हें बुलाते हुए कहा था: “मेरे पीछे चले आओ”। शायद उन्हें लगातार वह आवाज सुनायी दे रही थी। उन्हें मालूम था कि मुझे हमेशा येसु के पीछे चलना है – न केवल ताबोर पर्वत चढ़ते समय या येरूसालेम में प्रवेश करते समय, बल्कि कलवारी पहाड़ी की चोटी तक येसु का अनुसरण करना है। उन्हीं के सामने येसु को पकडा गया, कोडों से मारा गया, काँटों का मुकुट पहनाया गया उनके कंधे पर एक भारी क्रूस रखा गया, उनके कपडे उतारे गये और उनके हाथों में कीले ठोंके गये। जीवन और मृत्यु के बीच के येसु के संघर्ष को उन्होंने अपनी आँखों से देखा। टूटे दिल और टूटी आशा के साथ क्रूस के नीचे खडे उस शिष्य को दिलासा देने के लिए कोई नहीं था। पीड़ा की तीव्रता में उन्हें लग रहा था कि मेरा कलेजा टूट रहा है। अचानक क्रूस पर टंगे येसु के मुँह से एक आवाज निकल आती है। येसु आँसु और रक्त के सम्मिश्रण से भरी आँखें खोल कर अपनी माँ से कहते हैं, “भद्रे, यह तेरा पुत्र है”। योहन को आश्चर्य हुआ कि गुरुजी अपने अकथनीय और असीम दुख को भी भूल कर मेरे प्रति सहानुभूति दिखा रहे हैं। योहन दंग रह गये। येसु की आवाज़ मेघों को चीर कर फिर आती है। अब योहन ने देखा कि येसु मुझ से कुछ कह रहे हैं, “यह तुम्हारी माता है”।

जिन्होंने उन से कहा था “मेरा अनुसरण करो”, अब वह उन से उसी आवाज में मरियम को अपनी माँ बनाने को कहते हैं। मरियम का दिल भी टूट गया था, पर उनकी आशा नहीं टूटी थी। वह नहीं टूटेगी क्योंकि ईश्वर उन्हें आशाहीनों का आसरा बना चुका था। मरियम की संगति में योहन की आशा टूटते-टूटते बच गयी।

मरियम और योहन येसु की मृत्यु के साक्षी बनते हैं। अरिमथिया के यूसुफ़ और निकोदेमुस की सहायता से वे येसु की लाश को कब्र में रख कर दोनों शोकाकुल हो घर जाते हैं। समय बीत नहीं रहा था। आँखें सूख गयी थी। क्रूस-रास्ते की दर्दनाक घटनाएं अब भी उन्हें दिखायी दे रही थी। घंटें बीत गये। जो शिष्य भाग गये थे, वे एक-एक कर के वापस आने लगे। उनमें सामने के दरवाजे से अंदर घुसने का मनोबल नहीं था। पीछे के दरवाजे से अन्दर घुसते समय वे माता मरियम और योहन की ओर देखने में संकोच महसूस करते थे। वे शर्मिन्दा थे। पेत्रुस तो फूट-फूट कर रो रहे थे। परन्तु माता-मरियम ने स्वयं के दर्द को अपने विशाल हृदय में छिपाकर उन्हें सान्त्वना दी होगी। विनाश के पुत्र को छोड, पूरे ग्यारह शिष्य आ गये। माता मरियम और योहन के साथ सब घटनाओं के साक्षी बन कर पहले से ही कुछ महिलाएं सम्मिलित थी। योहन ने अन्य प्रेरितों को सब कुछ बताया; वे सब अपने व्यवहार के लिए शर्मिन्दा थे। लेकिन माता मरियम ने सबों को ढ़ाढ़स बँधाया और आशा दिलायी।

रविवार की सुबह की रोशनी ने वातावरण को पूरी तरह बदल दिया। ईश्वर के पुत्र के मनुष्य बन कर इस दुनिया में आने का अनुभव सब से पहले माता मरियम को ही प्राप्त हुआ था। पुनर्जीवित प्रभु का अनुभव भी, मैं समझता हूँ, उन्हें हीं प्राप्त हुआ होगा। परन्तु मरियम पहले से ही सब कुछ अपने हृदय में संचित रखती थी और हृदय भर जाने पर शब्द नहीं निकल पाते। खबर मिलते ही योहन पेत्रुस के साथ कब्र की ओर दौड़ लगाते हैं। योहन पेत्रुस को पीछे धकेल कर पहले कब्र पहुँचते हैं। वास्तविकता ने उनकी आशाओं को भी पार किया था। उन्हें विश्वास हुआ कि येसु जीवित हैं और येसु मृत्यु को भी पराजित कर चुके थे। “मृत्यु कहाँ है तेरी विजय? मृत्यु, कहाँ है तेरा दंश?” (1 कुरिन्थियों 15:55) कई सालों के बाद योहन ने अपने अनुभव को संक्षेप में लिखा, “जो तुम में हैं, वह उस से भी महान हैं, जो संसार में हैं” (1 योहन 4:4)।

हमारे जीवन को भी पास्का त्योहार एक नई दिशा और नई चेतना प्रदान कर सकता है। हो सकता है कि हम भी दस प्रेरितों के समान देर से आने वाले होंगे। परन्तु कभी नहीं से देर भली।

 -Br. BiniushTopno



Copyright © www.catholicbibleministry1.blogspot.com.

Praise the Lord!





अप्रैल 07, 2023, शुक्रवार पुण्य शुक्रवार


अप्रैल 07, 2023, 

पुण्य शुक्रवार




📒 पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 52:13-53:12

13) देखो! मेरा सेवक फलेगा-फूलेगा। वह महिमान्वित किया जायेगा और अत्यन्त महान् होगा।

14) उसकी आकृति इतनी विरूपित की गयी थी कि वह मनुय नही जान पड़ता था; लोग देख कर दंग रह गये थे।

15) उसकी ओर बहुत-से राष्ट्र आश्चर्यचकित हो कर देखेंगे और उसके सामने राजा मौन रहेंगे; क्योंकि उनके सामने एक अपूर्व दृश्य प्रकट होगा और जो बात कभी सुनने में नहीं आयी, वे उसे अपनी आँखों से देखेंगे।

1) किसने हमारे सन्देश पर विश्वास किया? प्रभु का सामर्थ्य किस पर प्रकट हुआ है?

2) वह हमारे सामने एक छोटे-से पौधे की तरह, सूखी भूमि की जड़ की तरह बढ़ा। हमने उसे देखा था; उसमें न तो सुन्दरता थी, न तेज और न कोई आकर्षण ही।

3) वह मनुयों द्वारा निन्दित और तिरस्कृत था, शोक का मारा और अत्यन्त दुःखी था। लोग जिन्हें देख कर मुँह फेर लेते हैं, उनकी तरह ही वह तिरस्कृत और तुच्छ समझा जाता था।

4) परन्तु वह हमारे ही रोगों का अपने ऊपर लेता था और हमारे ही दुःखों से लदा हुआ था और हम उसे दण्डित, ईश्वर का मारा हुआ और तिरस्कृत समझते थे।

5) हमारे पापों के कारण वह छेदित किया गया है। हमारे कूकर्मों के कारण वह कुचल दिया गया है। जो दण्ड वह भोगता था, उसके द्वारा हमें शान्ति मिली है और उसके घावों द्वारा हम भले-चंगे हो गये हैं।

6) हम सब अपना-अपना रास्ता पकड़ कर भेड़ों की तरह भटक रहे थे। उसी पर प्रभु ने हम सब के पापों का भार डाला है।

7) वह अपने पर किया हुआ अत्याचार धैर्य से सहता गया और चुप रहा। वध के लिए ले जाये जाने वाले मेमने की तरह और ऊन कतरने वाले के सामने चुप रहने वाली भेड़ की तरह उसने अपना मुँह नहीं खोला।

8) वे उसे बन्दीगृह और अदालत ले गये; कोई उसकी परवाह नहीं करता था। वह जीवितों के बीच में से उठा लिया गया है और वह अपने लोगों के पापों के कारण मारा गया है।

9) यद्यपि उसने कोई अन्याय नहीं किया था और उसके मुँह से कभी छल-कपट की बात नहीं निकली थी, फिर भी उसकी कब्र विधर्मियों के बीच बनायी गयी और वह धनियों के साथ दफ़नाया गया है।

10) प्रभु ने चाहा कि वह दुःख से रौंदा जाये। उसने प्रायश्चित के रूप में अपना जीवन अर्पित किया; इसलिए उसका वंश बहुत दिनों तक बना रहेगा और उसके द्वारा प्रभु की इच्छा पूरी होगी।

11) उसे दुःखभोग के कारण ज्योति और पूर्ण ज्ञान प्राप्त होगा। उसने दुःख सह कर जिन लोगों का अधर्म अपने ऊपर लिया था, वह उन्हें उनके पापों से मुक्त करेगा।

12) इसलिए मैं उसका भाग महान् लोगों के बीच बाँटूँगा और वह शक्तिशाली राजाओं के साथ लूट का माल बाँटेगा; क्योंकि उसने बहुतों के अपराध अपने ऊपर लेते हुए और पापियों के लिए प्रार्थना करते हुए अपने को बलि चढ़ा दिया और उसकी गिनती कुकर्मियों में हुई।

📙 दूसरा पाठ : इब्रानियों के नाम पत्र 4:14-16;5:7-9

14) हमारे अपने एक महान् प्रधानयाजक हैं, अर्थात् ईश्वर के पुत्र ईसा, जो आकाश पार कर चुके हैं। इसलिए हम अपने विश्वास में सुदृढ़ रहें।

15) हमारे प्रधानयाजक हमारी दुर्बलताओं में हम से सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है।

16) इसलिए हम भरोसे के साथ अनुग्रह के सिंहासन के पास जायें, जिससे हमें दया मिले और हम वह कृपा प्राप्त करें, जो हमारी आवश्यकताओं में हमारी सहायता करेगी।

7) मसीह ने इस पृथ्वी पर रहते समय पुकार-पुकार कर और आँसू बहा कर ईश्वर से, जो उन्हें मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थना और अनुनय-विनय की। श्रद्धालुता के कारण उनकी प्रार्थना सुनी गयी।

8) ईश्वर का पुत्र होने पर भी उन्होंने दुःख सह कर आज्ञापालन सीखा।

9 (9-10) वह पूर्ण रूप से सिद्ध बन कर और ईश्वर से मेलखि़सेदेक की तरह प्रधानयाजक की उपाधि प्राप्त कर उन सबों के लिए मुक्ति के स्रोत बन गये, जो उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।

📚 सुसमाचार : सन्त योहन का सुसमाचार 18:1-19:42

1) यह सब कहने के बाद ईसा अपने शिष्यों के साथ केद्रेान नाले के उस पार गये। वहाँ एक बारी थी। उन्होंने अपने शिष्यों के साथ उस में प्रवेश किया।

2) उनके विश्वासघाती यूदस को भी वह जगह मालूम थी, क्योंकि ईसा अक्सर अपने शिष्यों के साथ वहाँ गये थे।

3) इसलिये यूदस पलटन और महायाजकों तथा फ़रीसियों के भेजे हुये प्यादों के साथ वहाँ आ पहुँचा। वे लोग लालटेनें मशालें और हथियार लिये थे।

4) ईसा, यह जान कर कि मुझ पर क्या-क्या बीतेगी आगे बढे और उन से बोले, ’’किसे ढूढतें हो?’’

5) उन्होंने उत्तर दिया, ’’ईसा नाज़री को’’। ईसा ने उन से कहा, ’’मैं वही हूँ’’। वहाँ उनका विश्वासघाती यूदस भी उन लोगों के साथ खडा था।

6) जब ईसा ने उन से कहा, ’मैं वही हूँ’ तो वे पीछे हटकर भूमि पर गिर पडे।

7) ईसा ने उन से फि़र पूछा, ’’किसे ढूढते हो?’’ वे बोले, ’’ईसा नाजरी को’’।

8) इस पर ईसा ने कहा, ’’मैं तुम लोगों से कह चुका हूँ कि मैं वही हूँ। यदि तुम मुझे ढूँढ़ते हो तो इन्हें जाने दो।’’

9) यह इसलिये हुआ कि उनका यह कथन पूरा हो जाये- तूने मुझ को जिन्हें सौंपा, मैंने उन में से एक का भी सर्वनाश नहीं होने दिया।

10) उस समय सिमोन पेत्रुस ने अपनी तलवार खींच ली और प्रधानयाजक के नौकर पर चलाकर उसका दाहिना कान उडा दिया। उस नौकर का नाम मलखुस था।

11) ईसा ने पेत्रुस से कहा, ’’तलवार म्यान में कर लो। जो प्याला पिता ने मुझे दिया है क्या मैं उसे नहीं पिऊँ?’’

12) तब पलटन, कप्तान और यहूदियों के प्यादों ने ईसा को पकड कर बाँध लिया।

13) वे उन्हें पहले अन्नस के यहाँ ले गये; क्योंकि वह उस वर्ष के प्रधानयाजक कैफस का ससुर था।

14) यह वही कैफस था जिसने यहूदियों को यह परामर्श दिया था- अच्छा यही है कि राष्ट्र के लिये एक ही मनुष्य मरे।

15) सिमोन पेत्रुस और एक दूसरा शिष्य ईसा के पीछे-पीछे चले। यह शिष्य प्रधानयाजक का परिचित था और ईसा के साथ प्रधानयाजक के प्रांगण में गया,

16) किन्तु पेत्रुस फाटक के पास बाहर खडा रहा। इसलिये वह दूसरा शिष्य जो प्रधानयाजक का परिचित था, फि़र बाहर गया और द्वारपाली से कहकर पेत्रुस को भीतर ले आया।

17) द्वारपाली ने पेत्रुस से कहा, ’’कहीं तुम भी तो उस मनुष्य के शिष्य नहीं हो?’’ उसने उत्तर दिया, ’’नहीं हूँ’’।

18) जाड़े के कारण नौकर और प्यादे आग सुलगा कर ताप रहे थे। पेत्रुस भी उनके साथ आग तापता रहा।

19) प्रधानयाजक ने ईसा से उनके शिष्यों और उनकी शिक्षा के विषय में पूछा।

20) ईसा ने उत्तर दिया, ’’मैं संसार के सामने प्रकट रूप से बोला हूँ। मैंने सदा सभागृह और मन्दिर में जहाँ सब यहूदी एकत्र हुआ करते हैं, शिक्षा दी है। मैंने गुप्त रूप से कुछ नहीं कहा।

21) यह आप मुझ से क्यों पूछते हैं? उन से पूछिये जिन्होंने मेरी शिक्षा सुनी है। वे जानते हैं कि मैंने क्या-क्या कहा।’’

22) इस पर पास खडे प्यादों में से एक ने ईसा को थप्पड मार कर कहा, “तुम प्रधानयाजक को इस तरह जवाब देते हो?“

23) ईसा ने उस से कहा, ’’यदि मैंने गलत कहा, तो गलती बता दो और यदि ठीक कहा तो, मुझे क्यों मारते हो?’’

24) इसके बाद अन्नस ने बाँधें हुये ईसा को प्रधानयाजक कैफस के पास भेजा।

25) सिमोन पेत्रुस उस समय आग ताप रहा था। कुछ लोगों ने उस से कहा, ’’कहीं तुम भी तो उसके शिष्य नहीं हो?’’ उसने अस्वीकार करते हुये कहा, ’’नहीं हूँ’’।

26) प्रधानयाजक का एक नौकर उस व्यक्ति का सम्बन्धी था जिसका कान पेत्रुस ने उडा दिया था। उसने कहा, ’’क्या मैंने तुम को उसके साथ बारी में नहीं देखा था?

27) पेत्रुस ने फिर अस्वीकार किया और उसी क्षण मुर्गे ने बाँग दी।

28) तब वे ईसा को कैफस के यहाँ से राज्य पाल के भवन ले गये। अब भोर हो गया था। वे भवन के अन्दर इसलिये नहीं गये कि अशुद्व न हो जायें, बल्कि पास्का का मेमना खा सकें।

29) पिलातुस बाहर आकर उन से मिला और बोला, ’’आप लोग इस मनुष्य पर कौन सा अभियोग लगाते हैं?’’

30) उन्होने उत्तर दिया, ’’यदि यह कुकर्मी नहीं होता, तो हमने इसे आपके हवाले नहीं किया होता’’।

31) पिलातुस ने उन से कहा, ’’आप लोग इसे ले जाइए और अपनी संहिता के अनुसार इसका न्याय कीजिये।’’ यहूदियों ने उत्तर दिया, ’’हमें किसी को प्राणदंण्ड देने का अधिकार नहीं है’’।

32) यह इसलिये हुआ कि ईसा का वह कथन पूरा हो जाये, जिसके द्वारा उन्होने संकेत किया था कि उनकी मृत्यु किस प्रकार की होगी। 33) तब पिलातुस ने फिर भवन में जा कर ईसा को बुला भेजा और उन से कहा, ’’क्या तुम यहूदियों के राजा हो?’’

34) ईसा ने उत्तर दिया, ’’क्या आप यह अपनी ओर से कहते हैं या दूसरों ने आप से मेरे विषय में यह कहा है?’’

35) पिलातुस ने कहा, ’’क्या मैं यहूदी हूँ? तुम्हारे ही लोगों और महायाजकों ने तुम्हें मेरे हवाले किया। तुमने क्या किया है।’’

36) ईसा ने उत्तर दिया, ’’मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता तो मेरे अनुयायी लडते और मैं यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है।’’

37) इस पर पिलातुस ने उन से कहा, ’’तो तुम राजा हो?’’ ईसा ने उत्तर दिया, ’’आप ठीक ही कहते हैं। मैं राजा हूँ। मैं इसलिये जन्मा और इसलिये संसार में आया हूँ कि सत्य के विषय में साक्ष्य पेश कर सकूँ। जो सत्य के पक्ष में है, वह मेरी सुनता है।’’

38) पिलातुस ने उन से कहा, ’’सत्य क्या है?’’ वह यह कहकर फिर बाहर गया और यहूदियों के पास आ कर बोला, ’’मैं तो उस में कोई दोष नहीं पाता हूँ,

39) लेकिन तुम्हारे लिये पास्का के अवसर पर एक बन्दी को रिहा करने का रिवाज है। क्या तुम लोग चाहते हो कि मैं तुम्हारे लिये यहूदियों के राजा को रिहा कर दूँ?’’

40) इस पर वे चिल्ला उठे, ’’इसे नहीं, बराब्बस को’’। बराब्बस डाकू था।

1) तब पिलातुस ने ईसा को ले जा कर कोडे लगाने का आदेश दिया।

2) सैनिकेां ने काँटों का मुकुट गूँथ कर उनके सिर पर रख दिया और उन्हें बैंगनी कपडा पहनाया।

3) फिर वे उनके पास आ-आ कर कहते थे, ’’यहूदियों के राजा प्रणाम!’’ और वे उन्हें थप्पड मारते जाते थे।

4) पिलातुस ने फिर बाहर जा कर लोगों से कहा, ’’देखो मैं उसे तुम लोगों के सामने बाहर ले आता हूँ, जिससे तुम यह जान लो कि मैं उस में कोई दोष नहीं पाता’’।

5) तब ईसा काँटों का मुकुट और बैगनी कपडा पहने बाहर आये। पिलातुस ने लोगों से कहा, ’’यही है वह मनुष्य!’’

6) महायाजक और प्यादे उन्हें देखते ही चिल्ला उठे, ’’इसे क्रूस दीजिये! इसे क्रूस दीजिये!’’ पिलातुस ने उन से कहा, ’’इसे तुम्हीं ले जाओ और क्रूस पर चढाओ। मैं तो इस में कोई दोष नहीं पाता।’’

7) यहूदियों ने उत्तर दिया, ’’हमारी एक संहिता है और उस संहिता के अनुसार यह प्राणदंण्ड के योग्य है, क्योंकि इसने ईश्वर का पुत्र होने का दावा किया है।’’

8) पिलातुस यह सुनकर और भी डर गया।

9) उसने फिर भवन के अन्दर जा कर ईसा से पूछा, ’’तुम कहाँ के हो?’’ किन्तु ईसा ने उसे उत्तर नहीं दिया।

10) इस पर पिलातुस ने उन से कहा, ’’तुम मुझ से क्यों नहीं बोलते? क्या तुम यह नहीं जानते कि मुझे तुम को रिहा करने का भी अधिकार है और तुम को क्रूस पर चढ़वाने का भी?

11) ईसा ने उत्तर दिया, ’’यदि आप को ऊपर से अधिकार न दिया गया होता तो आपका मुझ पर कोई अधिकार नहीं होता। इसलिये जिसने मुझे आपके हवाले किया, वह अधिक दोषी है।’’

12) इसके बाद पिलातुस ईसा को मुक्त करने का उपाय ढूँढ़ता रहा, परन्तु यहूदी यह कहते हुये चिल्लाते रहे, ’’यदि आप इसे रिहा करते हैं, तो आप कैसर के हितेषी नहीं हैं। जो अपने को राजा कहता है वह कैसर का विरोध करता है।’’

13) यह सुनकर पिलातुस ने ईसा को बाहर ले आने का आदेश दिया। वह अपने न्यायासन पर उस जगह, जो लिथोस-त्रोतोस, और इब्रानी में गबूबथा, कहलाती है, बैठ गया।

14) पास्का की तैयारी का दिन था। लगभग दोपहर का समय था। पिलातुस ने यहूदियों से कहा, ’’यही ही तुम्हारा राजा!’’

15) इस पर वे चिल्ला उठे, ’’ले जाइये! ले जाइए! इसे क्रूस दीजिये!’’ पिलातुस ने उन से कहा क्या, ’’मैं तुम्हारे राजा को क्रूस पर चढवा दूँ?’’ महायाजकों ने उत्तर दिया, ’’कैसर के सिवा हमारा कोई राजा नहीं’’।

16) तब पिलातुस ने ईसा को कू्रस पर चढाने के लिये उनके हवाले कर दिया।

17) वे ईसा को ले गये और वह अपना कू्रस ढोते हुये खोपडी की जगह नामक स्थान गये। इब्रानी में उसका नाम गोलगोथा है।

18) वहाँ उन्होंने ईसा को और उनके साथ और दो व्यक्तियों को कू्रस पर चढाया- एक को इस ओर, दूसरे को उस ओर और बीच में ईसा को।

19) पिलातुस ने एक दोषपत्र भी लिखवा कर क्रूस पर लगवा दिया। वह इस प्रकार था- ’’ईसा नाज़री यहूदियों का राजा।’’

20) बहुत-से यहूदियों ने यह दोषपत्र पढा क्योंकि वह स्थान जहाँ ईसा कू्स पर चढाये गय थे, शहर के पास ही था और दोष पत्र इब्रानी, लातीनी और यूनानी भाषा में लिखा हुआ था।

21) इसलिये यहूदियों के महायाजकों ने पिलातुस से कहा, ’’आप यह नहीं लिखिये- यहूदियों का राजा; बल्कि- इसने कहा कि मैं यहूदियों का राजा हूँ’’।

22) पिलातुस ने उत्तर दिया, ’’मैंने जो लिख दिया, सो लिख दिया।’’

23) ईसा को कू्रस पर चढाने के बाद सैनिकों ने उनके कपडे ले लिये और कुरते के सिवा उन कपडों के चार भाग कर दिये- हर सैनिक के लिये एक-एक भाग। उस कुरते में सीवन नहीं था, वह ऊपर से नीचे तक पूरा-का-पूरा बुना हुआ था।

24) उन्होंने आपस में कहा, ’’हम इसे नहीं फाडें। चिट्ठी डालकर देख लें कि यह किसे मिलता है। यह इसलिये हुआ कि धर्मग्रंथ का यह कथन पूरा हो जाये- उन्होंने मेरे कपडे आपस में बाँट लिये और मेरे वस्त्र पर चिट्ठी डाली। सैनिकेां ने ऐसा ही किया।

25) ईसा की माता, उसकी बहिन, क्लोपस की पत्नि मरियम और मरियम मगदलेना उनके कू्रस के पास खडी थीं।

26) ईसा ने अपनी माता को और उनके पास अपने उस शिष्य को, जिसे वह प्यार करते थे देखा। उन्होंने अपनी माता से कहा, ’’भद्रे! यह आपका पुत्र है’’।

27) इसके बाद उन्होंने उस शिष्य से कहा, ’’यह तुम्हारी माता है’’। उस समय से उस शिष्य ने उसे अपने यहाँ आश्रय दिया।

28) तब ईसा ने यह जान कर कि अब सब कुछ पूरा हो चुका है, धर्मग्रन्थ का लेख पूरा करने के उद्देश्य से कहा, ’’मैं प्यासा हूँ’’।

29) वहाँ खट्ठी अंगूरी से भरा एक पात्र रखा हुआ था। लेागों ने उस में एक पनसोख्ता डुबाया और उसे जूफ़े की डण्डी पर रख कर ईसा के मुख से लगा दिया।

30) ईसा ने खट्ठी अंगूरी चखकर कहा, ’’सब पूरा हो चुका है’’। और सिर झुकाकर प्राण त्याग दिये।

31) वह तैयारी का दिन था। यहूदी यह नहीं चाहते थे कि शव विश्राम के दिन कू्रस पर रह जाये क्योंकि उस विश्राम के दिन बड़ा त्यौहार पडता था। उन्होंने पिलातुस से निवेदन किया कि उनकी टाँगें तोड दी जाये और शव हटा दिये जायें।

32) इसलिये सैनिकेां ने आकर ईसा के साथ क्रूस पर चढाये हुये पहले व्यक्ति की टाँगें तोड दी, फिर दूसरे की।

33) जब उन्होंने ईसा के पास आकर देखा कि वह मर चुके हैं तो उन्होंने उनकी टाँगें नहीं तोडी;

34) लेकिन एक सैनिक ने उनकी बगल में भाला मारा और उस में से तुरन्त रक्त और जल बह निकला।

35) जिसने यह देखा है, वही इसका साक्ष्य देता है, और उसका साक्ष्य सच्चा है। वह जानता है कि वह सच बोलता है, जिससे आप लोग भी विश्वास करें।

36) यह इसलिये हुआ कि धर्मग्रंथ का यह कथन पूरा हो जाये- उसकी एक भी हड्डी नहीं तोडी जायेगी;

37) फिर धर्मग्रन्थ का एक दूसरा कथन इस प्रकार है- उन्होंने जिसे छेदा, वे उसी की ओर देखेगें।

38) इसके बाद अरिमथिया के यूसुफ ने जो यहूदियों के भय के कारण ईसा का गुप्त शिष्य था, पिलातुस से ईसा का शब ले जाने की अनुमति माँगी। पिलातुस ने अनुमति दे दी। इसलिये यूसुफ आ कर ईसा का शव ले गया।

39) निकोदेमुस भी पहुँचा, जो पहले रात को ईसा से मिलने आया था। वह लगभग पचास सेर का गंधरस और अगरू का सम्मिश्रण लाया।

40) उन्होंने ईसा का शव लिया और यहूदियों की दफन की प्रथा के अनुसार उसे सुगंधित द्रव्यों के साथ छालटी की पट्टियों में लपेटा।

41) जहाँ ईसा कू्रस पर चढाये गये थे, वहाँ एक बारी थी और उस बारी में एक नयी कब्र, जिस में अब तक कोई नहीं रखा गया था।

42) उन्होंने ईसा को वहीं रख दिया, क्योंकि वह यहूदियों के लिये तेयारी का दिन था और वह कब्र निकट ही थी।


📚 मनन-चिंतन


कई लोगों को लगा कि ईश्वर का ईमानदार एवं नम्र सेवक आज अपने आप को बचाने में असमर्थ हैं। उनकी दशा ऐसी हो चूकी है कि कोई भी अब उसे पहचान नही पा रहा था। वह चुपचाप दुख भोगते हैं। उन्हें अपने ही लोगों ने तिरस्कृत और तुच्छ समझा। नबी इसायाह कहते हैं, “वह हमारे दुखों का भार अपने उपर लेता है, हमारे पापों के कारण वह छेदित किया गया।” उसकी दशा उस मेमने की तरह है जो मुह भी नहीं खोल सकता। इस मेमने की हर बात में परीक्षा ली गयी। उसने चुपचाप दुख सहकर आज्ञापालन सीख लिया।

उन्होंने मानव जाति के पापों के प्रायश्चित के लिए अपने आप को लोगों के हवाले कर दिया। प्रभु येसु का क्रुस पर मरना एक बहुमूल्य बलिदान था। अपने पवित्र शरीर एवं लहू के द्वारा प्रभु येसु हमें बचा लेते हैं। अब न किसी पशु या पंछी के रक्त से बल्कि स्वयं प्रभु अपने पवित्र रक्त से पवित्र कर हमें अपनी विरासत के अधिकारी बना लेते हैं।

क्या हम प्रभु के साथ उनके दुखों में भाग लेते हैं?आइये, हम प्रायश्चित कर हमारे जीवन को प्रभु के हवाले कर दें।


📚 REFLECTION

Many felt that the honest and humble servant of God was unable to save himself. His condition has become such that no one was able to recognize him. He suffers silently. He was despised by his own people. The prophet Isaiah says, "He bears the burden of our sorrows, for our sins he was pierced." His condition is like that of a lamb who cannot even open its mouth. This lamb was tested in everything. He learned obedience by suffering silently.

He offered himself to the people to atone for the sins of mankind. The death of the Lord Jesus on the cross was a precious sacrifice. Lord Jesus saves us through his holy body and blood. Now not with the blood of any animal or bird, but the Lord Himself purifies us with His holy blood and makes us entitled to his inheritance.

Do we share with the Lord in His sufferings? Come, let us repent and surrender our lives to the Lord.



📚 मनन-चिंतन - 2

दुख-तकलीफ मानव जीवन का अभिन्न हिस्सा है। किन्तु फिर भी मनुष्य मुख्यतः यही प्रयास करता है कि वह दुख से बचकर सुख और आराम पाता रहें। ट्रेन, होटलों आदि में यात्रा करने या ठहरने की श्रेणीयॉ या वर्ग होते है। उच्च श्रेणीयों में यात्रा करने से हमें अधिक सुविधा और आराम मिलता है जिसके एवज में हमें ज्यादा पैसा खर्च करना पडता है। हांलाकि साधारण श्रेणी के टिकट से भी हम उसी जगह पहुंचते जहॉ उच्च श्रेणी के लोग लेकिन हम अधिकांशः सुविधाजनक एवं आरामदेह यात्रा को ही प्राथमिकता देते हैं। लेकिन प्रभु येसु दुख से बचने के लिये हमें कोई शिक्षा या मार्ग नहीं दिखाते है। उन्होंने दुखभोग एवं क्रूस-मरण को ही जीवन की प्राथमिकता तथा उददेश्य बताया। उन्होंने अपने दुखःभोग एवं मरण के द्वारा ही मानव-जाति की मुक्ति का द्वार खोला।

गेथसेमनी की बारी में येसु ने पिता से प्रार्थना की वे इस भावी प्राणा पीडा का प्याला उनसे हटा ले किन्तु उन्होंने पिता की इच्छा को पूरी करने में ही अपना सुख समझा फिर चाहे वह भले ही दुखभोग एवं मरण ही क्यों न हो। जीवन में स्थायी बने रहने वाले सुख और शांति तब आती है जब हम सही काम करे। ऐसा करने से भले ही कष्ट क्यों न हो किन्तु भलाई और सत्य के काम ही सच्ची और स्थायी शांति प्रदान करते हैं। जीवन में सांसारिक सुख के लिये हमें कई बार समझौते करने पडते हैं। हम चारों ओर से खतरे तथा असुरक्षा की भावना से घेरे रहते हैं। इसलिये हमारी कोशिश सुख सुनिश्चित करने की होती है तथा इसे हासिल करने के लिये हम अनेक बार नैतिक मूल्यों के साथ समझौता करते हैं। किन्तु अपनी नासमझी में हम यह भूल जाते ही सच्चा एवं स्थायी सुख तो ईश्वर का जीवन जी कर आता है उसके लिये चाहे हमें कष्ट ही क्यों न झेलना पडे।

येसु निर्दोष थे। उन्होंने कोई पाप नहीं किया था। उन्होंने सदैव वहीं किया जो सही था तथा अपने भलाई के कार्यों के द्वारा लोगों के स्वास्थ्य और जीवन को पुनः लौटाया। उन्होंने खुले तौर पर सच्ची शिक्षा दी किन्तु फिर भी उन पर साजिश, ईशनिंदा आदि जैसे मनगणंत आरोप मढे गये। किन्तु येसु जानते थे कि उनका दुखभोग और मरण पिता की योजना का हिस्सा है। कोई भी उनका जीवन उनसे नहीं ले सकता था। जब पिलासुन ने उनसे कहा, ’’तुम मुझ से क्यों नहीं बोलते? क्या तुम यह नहीं जानते कि मुझे तुम को रिहा करने का भी अधिकार है और तुम को क्रूस पर चढ़वाने का भी? ईसा ने उत्तर दिया, ’’यदि आप को ऊपर से अधिकार न दिया गया होता तो आपका मुझ पर कोई अधिकार नहीं होता।’’ (योहन 19:10-11) और यहूदियों को उन्होंने और भी स्पष्ट रूप से कहा, ’’मैं अपना जीवन अर्पित करता हूँ, बाद में मैं उसे फिर ग्रहण करूँगा। कोई मुझ से मेरा जीवन नहीं हर सकता, मैं स्वयं उसे अर्पित करता हूँ। मुझे अपना जीवन अर्पित करने और उसे फिर ग्रहण करने का अधिकार है। मुझे अपने पिता की ओर से यह आदेश मिला है।’’ (योहन 10:17-18)

इस प्रकार येसु के दुखभोग में कुडवाहट एवं खेद की भावना नहीं। उनका दुखभोग कठिन है किन्तु वह उन्हें स्वीकार्य है क्योंकि यह पिता को प्रिय है। पुण्य शुक्रवार जीवन के दुख से भागने या बचने का कोई झूठा एवं छदम् सब्जबाग नहीं दिखाता है। वह जो सही और सच्चा है उसे अपनाकर, सबकुछ पिता की इच्छा पर छोडकर, बहादुरी के साथ आगे बढने का प्रस्ताव रखता है। हम हमारे दुख को किसी पुरस्कार से जोडकर देखते हैं। लोग दुख उठाने को तैयार हो जाते हैं किन्तु किसके एवज में। वह जानना चाहते है कि इससे क्या लाभ होगा। किन्तु धर्मग्रंथ हमें बताता है कि धर्मी के दुखभोग का पुरस्कार स्वयं ईश्वर होता है।

योब के दुख का कारण उसकी धार्मिकता थी। शैतान उसे दुख पहुंचाता है ताकि वह अपनी धार्मिकता त्याग दे। योब ने अत्याधिक दुख और हानि उठायी किन्तु उसने ईश्वर को और उसकी धार्मिकता को नहीं त्यागा। ईश्वर स्वयं उसका पुरस्कार था। कई नबियों ने भी धार्मिकता के कारण दुख उठाये वह पुरस्कार जो स्वयं ईश्वर होगा उस पर अपना ध्यान केन्द्रित किया। इसी प्रकार हमारे जीवन में भी दुखभोग आता है। हमें इससे घबरा कर भागना नहीं चाहिये और झूठी सुरक्षा के पीछे नहीं भागना चाहिये। इसके विपरीत जो भी हम अपनी मानवीय क्षमता के अनुसार कर सकते वही करना चाहिये बाकि जो भी हो उसे ईश्वर की इच्छा मानकर सहना चाहिये। हमें नहीं भूलना चाहिये कि पिता की इच्छा के बिना हमारे सिर का बाल भी नहीं गिरता तो फिर पिता के लिये हमारा जीवन कहीं अधिक मूल्यवान है। हमारे कष्ट और पीडा उससे छिपे हुये नहीं है। वह हमें न सिर्फ सहनशक्ति प्रदान करता है बल्कि जो ख्राीस्तीय साहस के साथ अपने दुःखों को वहन करते हैं उन्हें पुरस्कार भी उन्हें प्रदान करता है।



📚 REFLECTION

Suffering is the integral part of human life. Yet most common attempts of human beings have been to avoid suffering and gain comfort. In the trains, hotels etc. we have classes and categories to be availed while travelling and If we want more comfort then we must pay more. The general class will serve the same purpose and take you to same destination as the first-class but it won’t be comfortable. To avoid any inconvenience, we must take a premium class ticket or reservation. This has been the tendency in all ages. But Jesus does not offer a way out of suffering but a way to go through it. It was Cross that brought the salvation and eternal comfort.

In the Garden of Gethsemane Jesus prayed to have the cup of suffering be taken away yet he found comfort in doing the will of God. Lasting peace and happiness come when we do what is right even if it causes up pain and loss. To gain the worldly comfort and to prolong it we make a lot of compromises in life. We are surrounded by the threat of danger and insecurity. So, we try to ensure our safety and comfort by the worldly means even if they are unethical and corrupt. But when we stand for the right and even suffer for it we experience and gain God’s favour and lasting peace and happiness.

Jesus was innocent. He committed no sin. He did what was right and brought restoration of health and life to the people. He taught them the right things in the open, yet he was unjustly condemned of crimes which were far-fetched and flimsy. But Jesus already knew that no one can take away his life or do any harm to him. In response to Pilot’s exclamation, “Do you not know that I have power to release you, and power to crucify you?’ Jesus answered, “You would have no power over me unless it had been given you from above;” (John 19:10-11) and to the Jews he said even more clearly, “I lay down my life in order to take it up again. No one takes it from me, but I lay it down of my own accord. I have power to lay it down, and I have power to take it up again. I have received this command from my Father.’ (John 10:17-18)

So in Jesus’ suffering there are no grudges and force. It is difficult but it is acceptable because this is what pleases God. Good Friday offers no short cuts and false promises but a stark truth to accept life and its suffering and pain with a brave heart. Often suffering is related with a reward. People are ready to undergo suffering but for what. They would like to know the package. God himself is the reward of the suffering of the righteous. The reason of Job’s suffering was his righteousness. Devil wanted to trouble him so that he may forfeit his righteousness. He underwent extreme suffering but remained righteous. God was his reward. So therefore, in our life too there difficult and painful moments. We do not have get panicked and take all safety measure to avoid pain. But rather do all that in normal human capacity and rest accept it as the will of the father, without his knowledge not even the hair of your heads falls. Our pain and difficulties are not hidden from him. He provides endurance as well the reward to those who bravely take it upon himself.


मनन-चिंतन - 2



एक गैरख्रीस्तीय व्यक्ति अपनी पत्नी को लेकर ख्रीस्तीय मिशनरियों द्वारा संचालित एक अस्पताल गया। उसकी पत्नी गंभीर रूप से बीमार थी। इसलिए वह बहुत चिंतित और बेचैन था। उसने वहाँ एक प्रार्थनालय देखा। उसने सोचा कि मन को शान्त करने के लिए थोडी देर प्रार्थनालय में बैठ जाता हूँ। उसने प्रार्थनालय में प्रवेश किया। उसने क्रूसित प्रभु की मूर्ति की ओर देखा और सोचने लगा कि यह तो मुझ से भी ज़्यादा परेशान दिख रहा है, यह मेरी मदद कैसे कर सकता है? परन्तु, कुछ ही क्षण में उसकी सोच बदल गयी। उसे लगा कि यह मुझ से भी ज़्यादा परेशान है, इसने मुझ से भी ज़्यादा दुख-दर्द का अनुभव किया। इसलिए यह मेरी परेशानी को आसानी से समझेगा, यह मेरे दुख-दर्द को ठीक से जानता है। फिर वह जोर-जोर से चिल्ला-चिल्ला कर अपनी समस्याओं को क्रूसित प्रभु के सामने रखने लगा। उसे एक प्रकार की शांति महसूस हुयी। उसे लगा कि उसका बोझ हलका हो गया।

पवित्र वचन कहता है, “हमारे प्रधानयाजक हमारी दुर्बलताओं में हम से सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है। इसलिए हम भरोसे के साथ अनुग्रह के सिंहासन के पास जायें, जिससे हमें दया मिले और हम वह कृपा प्राप्त करें, जो हमारी आवश्यकताओं में हमारी सहायता करेगी।” (इब्रानियों 4:15-16)

यह सच है कि इतिहास में प्रभु येसु के समान किसी ने इतना दुख-दर्द नहीं सहा। कई धर्मों के देवी-देवताएं शारीरिक रीति से ही बहुत शक्तिशाली दिखते हैं। किसी के कई हाथ होते हैं, किसी के कई सिर और कई देवताओं के हाथों में भाले या तलवार जैसे हथियार भी होते हैं। अगर कोई वर्तमान युग में देवी-देवताओं की कल्पना करता है तो वे शायद ए.के-47 राइफल लेकर खडे होते नजर आयेंगे। यह सच नहीं है कि हमारे प्रभु ईश्वर के पास कोई अस्त्र-शस्त्र नहीं हैं। उनके पास एक अन्य प्रकार के अस्त्र शस्त्र हैं। हमारे प्रभु येसु ख्रीस्त के अस्त्र-शस्त्र आध्यात्मिक जीवन के अस्त्र-शस्त्र होते हैं। वे हमारे पास प्यार, दया और अनुकम्पा लेकर आते हैं। संत पौलुस हमें बताते हैं कि प्रभु येसु के अनुयायियों को किस प्रकार के अस्त्र-शस्त्र धारण करना चाहिए। “आप ईश्वर के अस्त्र-शस्त्र धारण करें, जिससे आप दुर्दिन में शत्रु का सामना करने में समर्थ हों और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें। आप सत्य का कमरबन्द कस कर, धार्मिकता का कवच धारण कर और शान्ति-सुसमाचार के उत्साह के जूते पहन कर खड़े हों। साथ ही विश्वास की ढाल धारण किये रहें। उस से आप दुष्ट के सब अग्निमय बाण बुझा सकेंगे। इसके अतिरिक्त मुक्ति का टोप पहन लें और आत्मा की तलवार - अर्थात् ईश्वर का वचन - ग्रहण करें।” (एफेसियों 6:13-17)

क्रूस पर टंगे प्रभु येसु हमारे लिए केवल एक आदर्श नहीं हैं। वह हमारे ईश्वर है जो हमारे सामने हमारे अपने जीवन के रहस्यों को प्रकट करते हैं। जो जीवन हमने उनसे पाया है, उस जीवन को हमें किस प्रकार निभाना चाहिए – यह भी प्रभु हमें बताते हैं। क्रूस विश्वासियों के दैनिक जीवन का अभिन्न अंग है। इसी कारण प्रभु ने अपने शिष्यों से अपने प्रतिदिन के क्रूस उठा कर उनके पीछे चलने को कहा है (देखिए लूकस 9:23)। क्रूस हमारी मुक्ति का मार्ग है। प्रवक्ता ग्रन्थ, अध्याय 4 इस बात पर प्रकाश डालता है कि ईश्वर की प्रज्ञा की खोज में निकलने वालों के साथ क्या होता है। ईश्वर उन्हें प्यार करते हैं, उन्हें आशीर्वाद और सुरक्षा प्रदान करते हैं। लेकिन यह सब प्रदान करने की प्रक्रिया उतनी सरल नहीं है। पवित्र वचन कहता है, “प्रारम्भ में प्रज्ञा उसे टेढ़े-मेढ़े रास्ते पर ले चलेगी और उसकी परीक्षा लेगी। वह उस में भय तथा आतंक उत्पन्न करेगी। वह अपने अनुशासन से उसे उत्पीड़ित करेगी और तब तक अपने नियमों से उसकी परीक्षा करती रहेगी, जब तक वह उस पूर्णतया विश्वास नहीं करती। इसके बाद वह उसे सीधे मार्ग पर ले जा कर आनन्दित कर देगी और उस पर अपने रहस्य प्रकट करेगी। वह उसे ज्ञान और न्याय का विवेक प्रदान करेगी।” (प्रवक्ता 4:18-21) अगर हम इन वचनों पर ध्यान देंगे तो हमें पता चलेगा कि मुक्ति का मार्ग क्रूस का मार्ग है और क्रूस के बिना हमें मुक्ति नहीं मिल सकती। जो ईश्वर की प्रज्ञा की इस प्रक्रिया में सकारात्मक रवैया नहीं अपनायेगा, वह मुक्ति से वंचित रह जायेगा। इसलिए पवित्र वचन आगे कहता है, “किन्तु यदि वह भटक जायेगा, तो वह उसका त्याग करेगी और उसे विनाश के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए छोड़ देगी” (प्रवक्ता 4:22)। यही प्रभु येसु की शिक्षा का सारांश भी है। प्रभु येसु कहते हैं, “सॅकरे द्वार से प्रवेश करो। चौड़ा है वह फाटक और विस्तृत है वह मार्ग, जो विनाश की ओर ले जाता है। उस पर चलने वालों की संख्या बड़ी है। किन्तु सॅकरा है वह द्वार और संकीर्ण है वह मार्ग, जो जीवन की ओर ले जाता है। जो उसे पाते हैं, उनकी संख्या थोड़ी है।” (मत्ती 7:13-14)

आईए, आज के दिन हम अपने क्रूस के लिए ईश्वर को धन्यवाद दें, क्योंकि वह हमारी मुक्ति का मार्ग है। हम पिता ईश्वर से निवेदन करें कि वे हमें अपने क्रूस को ढोने की शक्ति प्रदान करें।


 -Biniush Topno


Copyright © www.catholicbibleministry1.blogspot.com.com
Praise the Lord!