20 नवंबर 2022
ख्रीस्तराजा का समारोह
पहला पाठ : 2 समुएल 5:1-3
1) इस्राएल के सभी वंशों ने हेब्रोन में दाऊद के पास आकर कहा, "देखिए, हम आपके रक्त-सम्बन्धी हैं।
2) जब साऊल हम पर राज्य करते थे, तब पहले भी आप ही इस्राएलियों को युद्ध के लिए ले जाते और वापस लाते थे। प्रभु ने आप से कहा है, ‘तुम ही मेरी प्रजा इस्राएल के चरवाहा, इस्राएल के शासक बन जाओगे।"
3) इस्राएल के सभी नेता हेब्रोन में राजा के पास आये और दाऊद ने हेब्रोन में प्रभु के सामने उनके साथ समझौता कर लिया। उन्होंने दाऊद का इस्राएल के राजा के रूप में अभिशेक किया।
दूसरा पाठ : कलोसियों 1:12-20
12) सब कुछ आनन्द के साथ सह सकेंगे और पिता को धन्यवाद देंगे, जिसने आप को इस योग्य बनाया है कि आप ज्योति के राज्य में रहने वाले सन्तों के सहभागी बनें।
13) ईश्वर हमें अन्धकार की अधीनता से निकाल कर अपने प्रिय पुत्र के राज्य में ले आया।
14) उस पुत्र के द्वारा हमारा उद्धार हुआ है, अर्थात् हमें पापों की क्षमा मिली है।
15) ईसा मसीह अदृश्य ईश्वर के प्रतिरूप तथा समस्त सृष्टि के पहलौठे हैं;
16) क्योंकि उन्हीं के द्वारा सब कुछ की सृष्टि हुई है। सब कुछ - चाहे वह स्वर्ग में हो या पृथ्वी पर, चाहे दृश्य हो या अदृश्य, और स्वर्गदूतों की श्रेणियां भी - सब कुछ उनके द्वारा और उनके लिए सृष्ट किया गया है।
17) वह समस्त सृष्टि के पहले से विद्यमान हैं और समस्त सृष्टि उन में ही टिकी हुई है।
18) वही शरीर अर्थात् कलीसिया के शीर्ष हैं। वही मूल कारण हैं और मृतकों में से प्रथम जी उठने वाले भी, इसलिए वह सभी बातों में सर्वश्रेष्ठ हैं।
19) ईश्वर ने चाहा कि उन में सब प्रकार की परिपूर्णता हो।
20) मसीह ने क्रूस पर जो रक्त बहाया, उसके द्वारा ईश्वर ने शान्ति की स्थापना की। इस तरह ईश्वर ने उन्हीं के द्वारा सब कुछ का, चाहे वह पृथ्वी पर हो या स्वर्ग में, अपने से मेल कराया।
सुसमाचार : लूकस 23:35-43
35) जनता खड़ी हो कर यह सब देख ही थी। नेता यह कहते हुए उनका उपहास करते थे, "इसने दूसरों को बचाया। यदि यह ईश्वर का मसीह और परमप्रिय है, तो अपने को बचाये।"
36) सैनिकों ने भी उनका उपहास किया। वे पास आ कर उन्हें खट्ठी अंगूरी देते हुए बोले,
37) "यदि तू यहूदियों का राजा है, तो अपने को बचा"।
38) ईसा के ऊपर लिखा हुआ था, "यह यहूदियों का राजा है"।
39) क्रूस पर चढ़ाये हुए कुकर्मियों में एक इस प्रकार ईसा की निन्दा करता था, "तू मसीह है न? तो अपने को और हमें भी बचा।"
40) पर दूसरे ने उसे डाँट कर कहा, "क्या तुझे ईश्वर का भी डर नहीं? तू भी तो वही दण्ड भोग रहा है।
41) हमारा दण्ड न्यायसंगत है, क्योंकि हम अपनी करनी का फल भोग रहे हैं; पर इन्होंने कोई अपराध नहीं किया है।"
42) तब उसने कहा, "ईसा! जब आप अपने राज्य में आयेंगे, तो मुझे याद कीजिएगा"।
43) उन्होंने उस से कहा, "मैं तुम से यह कहता हूँ कि तुम आज ही परलोक में मेरे साथ होगे"।
📚 मनन-चिंतन
इस संसार ने अपने अपने समय में न जाने कितने महान राजाओं और समाट्र को देखा। कितने बु़िद्धमान कुशल, ईमानदार और वीर राजाओं को देखा, इसके साथ साथ कई कमजोर और अकुशल, बेईमान और धोखेबाज राजाओं को भी देखा होगा। अब तक न जाने कितने राजा आयें और चले गयंे परंतु किसी भी राजा का राज्य ज्यादा समय तक टिक नहीं पाया। आज हम ऐसे राजा का पर्व मना रहें है जो इस संसार से परे है जिसे सर्वोच्च प्रभु के पुत्र से जाना जाता है, जो पूरी कायनात का राजा है और वह है राजा येसु ख्रीस्त, जो प्रभुओं का प्रभु और राजाओं का राजा हैं तथा जिसका राज्य का कभी अंत नहीं होगा। जिसकी व्याख्या स्वर्गदूत गाब्रिएल मरियम को येसु के जन्म का संदेश देते समय करते हैं, ‘‘देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी। वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा, वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।’’ (लूकस 1ः31-33)
प्रभु येसु ख्रीस्त का साधारण से चरनी में जन्म लेना (लूकस 2ः7) और येसु को लोगो द्वारा राजा बनाये जाने का पता चलने पर स्वयं को अलग कर पहाड़ पर चले जाना (योहन 6ः15); ये घटना हमारे मन में प्रश्न करती हैं कि जब प्रभु अपने आप को राजा नहीं बनाना या कहलवाना चाहते थे तो फिर आज के पर्व क्या तात्पर्य है। इसे समझने के लिए हमें ईश्वर की दृष्टि से देखना होगा न की इस संसार की दृष्टि से; क्योकि ईश्वर का राज्य इस संसार का नहीं हैं, जिसे प्रभु येसु ख्रीस्त ने स्वयं योहन 18ः36 में कहा है, ‘‘मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता तो मेरे अनुयायी लडते और मैं यहुदियों के हवाले नहीं किया जाता। परंतु मेरा राज्य यहॉं का नहीं है।’’
प्रभु का राजत्व इस संसार के राजत्व से बिलकुल अलग है। जब येसु इस संसार में थे तब उनके शिष्य, यहुदी जनता और लोग प्रभु येसु को इस संसार के बाकी राजाओं के समान ही एक राजा बनाने के हिसाब से देख रहें थे। विशेषकर वह राजा जो उन्हें रोम के शासन से मुक्त करेगा, जिसकी विशाल सेना होगी, तथा वह अस्त्र और शस्त्र से युद्ध पर विजय प्राप्त करेगा। वे उन्हे एक करिश्माई इंसान के रूप में देख रहे थे जो आगे चल कर उनका राजा बनेगा परंतु शिष्यों को येसु के पुनरुत्थान एवं पेन्तेकोस्त के बाद ही समझ में आया कि येसु साधारण मनुष्य ही नहीं पर वह प्रभु है जो प्रभुओं का प्रभु और राजाओ का राजा है। वे केवल छोटे से राज्य के ही नहीं परंतु समस्त संसार, आकाश और पृथ्वी तथा समस्त सृष्टि के राजा है, स्वामि है।
आज का पर्व हमंे क्या संदेश देता हैं? आज का पर्व हमें यह संदेश देता है कि अगर हम येसु को इस संसार की दृष्टि से देखेंगे तो हम अपने आप को सच्चाई से दूर रखंेगे तथा येसु हमारे लिए बहुत ही सीमित हो जायेंगे परंतु जब हम येसु को ईश्वर की दृष्टि से देखेंगे तो हमें सच्चाई का पता चलेगा कि येसु एक महान और असीमित प्रभु है जो राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु है (1 तिमथी 6ः15), जिसे स्वर्ग और पृथ्वी पर पूरा अधिकार अब पहले और सभी युगों के लिए दिया गया हैं (मत्ती 28ः18)।
आज का पर्व हमें प्रभु येसु को अपने जीवन का राजा बनाने के लिए आमंत्रित करता हैं। प्रभु येसु को अपने जीवन का राजा बनाना अर्थात् उसकी बातें सुनना, उससे प्रेम करना, उसकी सेवा करना और उसका अनुसरण करना है। जब हम उसके साथ चलने की कोशिश करते है, जब हम सम्पूर्ण रूप से अपना जीवन सुसमाचार की आत्मा के अनुसार जीते है और जब वह सुसमाचार की आत्मा हमारे जीवन के हर क्षेत्र पर समा जाता है तभी हम उसके राज्य के रहवासी कहलाते हैं। अगर येसु सच में हमारेे जीवन का राजा है तो वह हमारे जीवन के हर भाग का राजा होना चाहिए, तथा हमे उसे हमारे जीवन के हर क्षेत्र में राज करने देना चाहिए।
ख्रीस्त राजा का पर्व हर साल पूजनविधि के अंतिम रविवार में मनाया जाता है। यह पर्व हमें बताता हैं कि हमें याद रखना चाहिए कि अंत में हमारे साथ क्या होने वाला है। आज के पाठों द्वारा ईश्वर प्रकट करते है कि अंत मंे सबका न्याय होगा। अंत में प्रभु राजा अपनी महिमा के साथ आयेगा और एक चरवाहे की तरह न्याय करेगा। एज़केएिल 34ः17, ‘‘मेरी भेड़ों! तुम्हारे विषय में प्रभु-ईश्वर यह कहता है- मैं एक-एक कर के भेड़ों, मेढ़ों और बकरों का- सब का न्याय करूॅंगा।’’ मत्ती 25ः31-32, ‘‘जब मानव पुत्र सब स्वर्गदूतों के साथ महिमा-सहित आयेगा, तो वह अपने मिहमामय सिंहासन पर विराजमान होगा और सभी राष्ट्र उसके सम्मुख एकत्र किये जायेंगे। जिस तरह चरवाहा भेड़ों को बकरियों से अलग करता है, उसी तरह वह लोगों को एक दूसरे से अलग कर देगा।’’
संत मत्ती के सुसमाचार में येसु भेडो़ को प्रभु के कृपापात्र कहते है। क्योंकि उन्होने अपने को प्रभु की कृपा प्राप्त करने लायक बनाया। ये वो लोग हैं जिन्होने ईश्वर के स्वाभाव को अपने जीवन द्वारा दर्शाया। ईश्वर के स्वाभाव के कुछ अंश एजे़किएल 34ः16 में बताया गया है, ‘‘प्रभु कहता है- जो भेड़ें खो गयी हैं, मैं उन्हें खोज निकालूॅंगा, जो भटक गयी हैं, मैं उन्हे लौटा लाऊॅंगा, जो घायल हो गयी हैं उनके घावों पर पट्टी बॉंधूगाा, जो बीमार हैं, उन्हें चंगा करूॅंगा, जो मोटी और भली चंगी हैं, उनकी देखरेख करूॅंगा।’’ यह वचन हमें बताता है कि किस प्रकार प्रभु अपने लोगों का ख्याल रखता है, रक्षा करता है, पट्टी लगाता है तथा देखरेख करता है। यहीं स्वाभाव को अपना कर जो दूसरों के लिए कार्य करता है जैसे भूखों को खिलाना, प्यासों को पिलाना, परदेशी को अपने यहॉं ठहराना, नंगों को पहनाना, बीमारों को भेंट करना, बंदी को मिलने जाना इत्यादि तो वह प्रभु का कृपापात्र बन जाता हैं, जिससे प्रभु कहते है, ‘तुमने मेरे भाइयों में से किसी एक के लिए, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो, जो कुछ किया, वह तुमने मेरे लिए ही किया। आओ और उस राज्य के अधिकारी बनो, जो संसार के प्रारंभ से तुम लोगों के लिए तैयार किया गया है।’ जो प्रभु को अपना राजा मानते हैं वह ईश्वरीय राज्य के अनुसार तथा उनके वचन के अनुसार कार्य भी करते हैं और इसका फल उन्हे जरूर प्राप्त होगा।
आईये आज के इस पर्व के दिन येसु को हम सच्चे हृदय से अपना राजा माने जो हमारी देखरेख एक सच्चे चरवाहा के समान करता है। तथा हम अपने आप को उसका सच्चा भेड़ कहलाने योग्य जीवन बिताये। आमेन!
📚 REFLECTION
This world has seen so many kings and emperors in its own times; The wise, skilled, honest, and brave kings along with weak, unskilled, dishonest and double-dealer kings. Till now so many kings came and went but none of their kingdom could remain for longer times. Today we are celebrating the feast of that King who is apart from this world, who is the Son of the Most High, who is the King of the Universe and he is the King Jesus Christ who is Lord of lords and King of kings and his Kingdom will never end and this we find in the gospel of Luke 1:31-33 where angel Gabriel gives the message to Mary about the birth of Jesus, “You will conceive in your womb and bear a son, and you will name him Jesus. He will be great, and will be called the Son of the Most High, and the Lord God will give to him the throne of his ancestor David. He will reign over the house of Jacob forever, and of his kingdom there will be no end.”
Jesus taking birth in a manger (Lk 2:7) and Jesus withdrawing himself to the mountain after realizing that people were about to come and take him by force to make him king (Jn 6:1); these events put a question in our minds that when Jesus himself does not want to be called as king then what is the meaning of today’s feast. To understand this we have to see from the view point of God and not from the world’s point of view; because God’s kingdom is not of this world, as Jesus himself says in Jn 18:36, “My kingdom is not from this world. If my kingdom were from this world, my followers would be fighting to keep me from being handed over to the Jews. But as it is, my kingdom is not from here.”
God’s kingship is different from the world’s kingship. When Jesus was in this world in bodily form, his disciples, Jews people, and crowd understood Jesus to be the king like that of the other kings in the world. Especially to be the king who will free them from Romans, who will have large armies and will win the battle through weapons. They were looking him as a charismatic person who will become their king but only after the resurrection and Pentecost events the disciples understood that Jesus in not only a charismatic human person but He is real God who is Lord of lords and King of kings. He is not merely the king of small state but he is the King and owner of whole world, heaven and earth and whole creation.
What message do we get from today’s feast? Today’s feast gives us the message that if we look Jesus from the world’s point of view then we will limit ourselves from knowing the truth and Jesus will remain very limited to us but if we see Jesus from God’s point of view then we will know the reality that Jesus is mighty God without any limit who is King of kings and Lord of lords (1 Tim 6:15), who has been given all authority in heaven and on earth now and the ages to come (Mt 28:18).
Today’s feast invites us to make and acknowledge Lord Jesus the King of our lives. To make Jesus our King means to listen to him, to love him, serve him and follow him. We belong to his Kingdom only when we try to walk with him; try to live our lives fully in the spirit of the Gospel and when that Gospel spirit penetrates every facet of our living. If Jesus is really the King of our lives then he must be King of every part of our lives, and we must let him reign in all parts of our lives.
Christ the King feast is celebrated every year on the last Sunday of the liturgy. This feast tells us that we should remember what is going to happen to us at the end. Through today’s reading God reveals that at the end there will be a judgement for all. At the end God as King will come with his glory and judge as the Shepherd. As we read in Ezekiel 34:17, “As for you, my flock, thus says the Lord God: I shall judge between sheep and sheep, between rams and goats.” And Mt 25:31-32, “When the Son of Man comes in his glory, and all the angels with him, then he will sit on the throne of his glory. All the nations will be gathered before him, and he will separate people one from another as a shepherd separates the sheep from the goats.”
In gospel of Matthew Jesus calls the sheep ‘blessed by my father’ because they have made themselves worthy of receiving blessings from God. These are the people who have shown the glimpse of God’s nature through their lives. Glimpse of God’s nature is shown in Ezekiel 34:16, “I will seek the lost, and I will bring back the strayed, and I will bind up the injured, and I will strengthen the weak, but the fat and the strong I will destroy. I will feed them with justice.” This verse tells us that how God takes care, protects, nurses and look after his people. Imbibing this nature one who serve others like feeding the hungry, giving to drink for the thirsty, welcoming the stranger, clothing the naked, taking care of the sick, visiting the prisoner and so on then he/she becomes worthy of the blessings of the Father, to whom God says, ‘Just as you did it to one of the least of these who are members of my family, you did it to me. Come inherit the kingdom prepared for you from the foundation of the world.’ Those who accept God as their King they live and work according to God’s kingdom and his words and they will receive its fruit for sure.
On the occasion of today’s feast let’s accept Jesus with sincere heart as our King who takes care of us like a true shepherd and at the same time let us make ourselves worthy to be called his true sheep. Amen!
मनन-चिंतन -2
समुएल के पहले ग्रन्थ के अध्याय 8 में हम देखते हैं कि जब इस्राएली लोगों ने समुएल से उनके लिए एक राजा को नियुक्त करने की मांग की, तो वे वास्तव में, ईश्वर को अपने राजा के रूप में अस्वीकार कर रहे थे। प्रभु ने तब समुएल से कहा कि वे उनकी आवाज सुनें और साऊल को उनके राजा के रूप में अभिषिक्त करें, परन्तु उससे पहले वे उन्हें मानव राजाओं के शोषण और उत्पीड़न के तरीकों के बारे में चेतावनी दें। तत्पश्चात् कई राजाओं ने इस्राएल का शासन किया। परन्तु इस्राएल में राजशाही विफल थी। प्रभु येसु ईश्वर के मन के अनुरूप राजा है। जब ज्योतिषी येसु की खोज में पूरब से आए थे, तो उन्होंने हेरोद से कहा, “यहूदियों के नवजात राजा कहाँ हैं? हमने उनका तारा उदित होते देखा। हम उन्हें दण्डवत् करने आये हैं।”(मत्ती 2:2) लेकिन इस राजा का जन्म एक चरनी में हुआ था। उन्हें हेरोद के प्रकोप से बचना था जो उसे मारना चाहते थे। इसलिए यूसुफ और मरियम उन्हें मिस्र ले गए। उन्होंने सादगी का जीवन व्यतीत किया। लगभग तीस वर्षों तक उन्होंने एक प्रकार से गुप्त जीवन जिया। उसके बाद उन्होंने लगभग तीन साल का सार्वजनिक जीवन बिताया। अपने सार्वजनिक कार्य की शुरुआत में नथानिएल ने उन्हें ’इस्राएल के राजा’ माना (देखें योहन 1:49)। रोटियों के चमत्कार के बाद, भीड़ उसे एक सांसारिक राजा बनाना चाहती थी, लेकिन वे बच कर पहाडी पर चले गये (देखें योहन 6:15)। अपने सार्वजनिक जीवन के अंत में, उन्हें बहुत कुछ सहना पड़ा और क्रूस पर मरना पड़ा। जब पिलातुस के द्वारा सवाल किया गया, तो उन्होंने स्वीकार किया कि वे राजा हैं लेकिन उन्होंने कहा कि उनका राज्य इस दुनिया का नहीं है (देखें योहन 18:36)। येसु सांसारिक राजाओं के समान नहीं है। वे राजा है जो प्यार करता है और सेवा करता है। वे दया और करुणा से भरे हैं। वे राजाओं का राजा और प्रभुओं का प्रभु हैं। सन 1925 में संत पापा पीयुस ग्यारहवें ने हर चीज और हर किसी पर प्रभु येसु की संप्रभुता को स्वीकार करने के लिए ख्रीस्त राजा के पर्व की घोषणा की। जब वे सिंहासन पर विराजमान हैं तब हम सभी सेवक होते हैं। वे चाहते हैं कि हम नम्रता से एक-दूसरे की सेवा करें।
REFLECTION
In 1 Sam 8, when the people of Israel demanded Samuel to anoint someone as a king for them, they were, in fact, rejecting God as their king. God then told Samuel to listen to their voice and anoint Saul as their king, after warning them about the exploiting and harassing ways of human kings. Monarchy in Israel was a failure. Jesus is King according to God’s mind. When the wise men came from the east in search of child Jesus, they said to Herod, “Where is the child who has been born king of the Jews? For we observed his star at its rising, and have come to pay him homage.” (Mt 2:2) But this king was born in a manger. He had to also escape the fury of Herod who wanted to kill him. Hence Joseph and Mary carried him to Egypt. He lived a simple life. For almost thirty years he lived an unassuming life. Then he had about three years of public life. At the beginning of his ministry Nathanael acknowledged him as the king of Israel (cf. Jn 1:49). After the multiplication of the bread, the crowd wanted to make him an earthly king, but “he withdrew again to the mountain by himself” (Jn 6:15). At the end of his public ministry, he had to suffer so much and die on the cross. When questioned by Pilate, he acknowledged that he was king but he added that his kingdom was not of this world (cf. Jn 18:36). Jesus is king unlike other earthly kings. He is a king who loves and serves. He is full of mercy and compassion. He is the King of kings and the Lord of lords. In 1925 Pope Pius XI instituted the Feast of Christ the King to acknowledge Jesus’ sovereignty over everything and everyone. When he is on the throne we are all his servants. He wants us to serve one another in humility.
प्रवचन
आज हम राजाधिराज प्रभु येसु का माहोत्सव मना रहे हैं आज के दूसरे पाठ में हमने सुना कि प्रभु येसु “अदृष्य ईश्वर के प्रतिरूप तथा समस्त सृष्टी के पहलौटे हैं, क्योंकि उन्हीं के द्वारा सब कुछ की सृष्टी हुई है... वह समस्त सृष्टी के पहले से विद्यमान है और समस्त सृष्टी उन में ही टीकी हुई है।...इसलिए वह सभी बातों में सर्वश्रेठ है। ईश्वर ने चाहा कि उनमें सब प्रकार की परिपूर्णता है” (कोलो 1:15-18)। इसलिए प्रभु येसु एक सर्वश्रेष्ठ व सर्वोपरी राजा है। पर वे कहते हैं – “मेरा राज्य इस संसार का नहीं है। यदि मेरा राज्य इस संसार का होता तो मेरे अनुयायी लडते और मैं यहूदियों के हवाले नहीं किया जाता। परन्तु मेरा राज्य यहाँ का नहीं है’’ (योहन 18:36)। यह साफ तौर पर ज़ाहिर है कि येसु का राजत्व इस संसार के लिए नहीं है। वे दुनिया के सब राजाओं से भिन्न हैं। उनका राज-मुकुट काँटों का था; जो राजकीय वस्त्र उन्हें पहनाया गया था, वो मज़ाक व बेइज्जती का प्रतीक लाल चौगा था; उनका राजदंड था सरकंडा जिसे दुशमनों ने उनके ही सिर मारा था। ख्रीस्त ने, न तो दुनिया के जाने-माने राजाओं की श्रेणी में खुद को गिने जाने का दावा किया और न ही किसी राजा की बराबरी करना चाहा। उन्होंने हर प्रकार के सांसारिक वैभव व शानो-शौकत को ठुकरा दिया। उनका जन्म एक छोटी सी गौशाला में हुआ क्योंकि उनके लिए सराय में जगह नहीं थी (लुक 2:7), उनके सार्वजनिक जीवन की शुरूआत के पहले जब शैतान उन्हें ‘‘अत्यंत ऊँचे पहाड पर ले गया और संसार के सभी राज्य और वैभव दिखला कर बोला, ‘यदि आप दंडवत कर मेरी आराधना करें, तो मैं आप को यह सब दे दूँगा।’ येसु ने उत्तर दिया, ‘‘हट जा शैतान क्योँकि लिखा है - अपने प्रभु ईश्वर की आराधना करो और केवल उसी की सेवा करो’’ (मत्ती 4:8-10)। आज के सुसमाचार में हमने सुना कि जब सैनिकों ने उनकी हंसी उडाते हुए उनसे कहा है - ‘‘यदि तू यहूदियों का राजा है तो अपने को बचा।’’ पर प्रभु ने वहां पर भी अपने निजी महिमा दिखाने के लिए अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं किया।
जब हमारे प्रभु ने पाँच रोटियों और दो मछलियों से पाँच हज़ार लोगों को भोजन कराया, तो लोग उन्हें राजा बनाना चाहते थे। लेकिन प्रभु येसु राजा बनने से इनकार कर देते हैं क्योंकि वे उन्हें सांसारिक राजा बनाना चाहते थे (योहन 6:15)। उनका राज्य इस दुनिया के राजायों जैसा धन-दौलत, शक्ति, सेना, साम्राज्य, ज़मीन-जायदाद वाला राज्य नहीं है। वे कहते हैं मेरा राज्य इस दुनिया का नहीं है (योहन 18:36)। जिस राज्य की प्रभु येसु बात कर रहे थे उसे न तो पिलातुस, न यहूदी और दुनिया की कोई भी ताकत मिटा सकती है। उनका राज्य विश्वासियों के दिलों में स्थापित किया गया है। सम्राटों पर सम्राट पैदा हुए व प्रभु येसु को लोगों के दिलों के सिहासन से हटाने की नाकामियाब कोशिश की; कई प्रकार की भ्रांत व भटकाने वाली शिक्षायें व सिद्धांत आये, व राजनैतिक शक्तियों व असामाजिक ताकतों ने प्रभु येसु को लोगों के दिलों से दूर करने की लाखों कोशिश की व आज तक कोशिश की जा रही हैं पर सब व्यर्थ है। पिछले कुछ सालों से इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने कई मासूम व निर्दोष ईसाईयों का संहार किया; हमारे देश में ओडिशा के कंधमाल जिले में हजारों ईसाईयों का खून बहाया गया, परन्तु कोई भी लोगों के दिलों से येसु को अलग नहीं कर सके। और कभी कर भी नहीं पायेंगे। क्योंकि प्रभु येसु वह राजा है जिनके पास सर्वोच्च शक्ति है। वे सारे ब्रह्माण्ड के राजा है। संत मत्ती के सुसमाचार 28:18 में प्रभु ने कहा है - ‘‘मुझे स्वर्ग में और पृथ्वी पर पूरा अधिकार मिला है।’’
प्रभु एक ऐसे राज्य के राजा हैं जो इस संसार का नहीं है। उनका राज्य स्वर्ग का राज्य है। ये राज्य हम मनुष्यों की आसान पहुँच से दूर था। इसलिए हमारे राजा स्वयं इसे हमारे करीब लेकर आये हैं। प्रभु के आगमन पर संत योहन बपतिस्ता कहते हैं - ‘‘समय पूरा हो चुका है। ईश्वर का राज्य निकट आ गया है’’ (मारकुस 1:15)। प्रभु येसु के इस धरा पर आगमन के साथ ईश्वर का राज्य हमारे निकट, हमारे बीच आ गया। और इसमें प्रवेश करने के लिए वचन कहता है - ‘‘पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो’’ (मारकुस 1:15)। यदि हमें ख्रीस्त राजा की प्रजा बनना है, शैतान व उसके पाप व अंधकार के राज्य तथा उसकी शक्तियों से छुटकरा पाना है तो हमें हमारे गुनाहों पर पश्चताप करना होगा व सुसमाचार में विश्वास करना होगा, स्वयं को ईश्वर के आत्मा व उसके सामर्थ्य के सम्मुख समर्पित करना होगा। ईश्वर के राज्य की स्थापना करने का आधार है इन्सान का ईश्वर से मेल-मिलाप कराना। उस सदियों पुराने रिश्ते को पुनः जोडना जिसे हमारे आदि माता-पिता के पाप के द्वारा तोड दिया गया था। इस मेल-मिलाप का जिम्मा हमारे प्रभु येसु, हमारे राजा ने अपने ऊपर ले लिया है। उन्होंने अपने दुःखभोग, मरण एवं पुनरूत्थान द्वारा पिता से हमारा मेल कराया है। प्रभु येसु हमारे लिए क्रूस पर इसलिए मरे कि शैतान के राज्य का अंत हो जाये और प्रभु हम सब पर, हमारे दिलों पर हमेशा शासन करते रहें। बपतिस्मा में प्रभु येसु को धारण करके हम ज्योति की संतान बन गये हैं संत पौलुस हमसे कहते हैं ‘‘भाईयों आप लोग अंधकार में नहीं हैं ... आप सब ज्योति की संतान है,...हम रात या अंधकार के नहीं हैं’’ (1 थेस. 5:4)। अतः यदि हम ख्रीस्त राजा की प्रजा बन गये हैं, तो हम सब का ये फर्ज़ बनता है, कि हम उसके राज्य को फैलायें।
आज का यह पर्व ‘ख्रीस्त राजा की जय!‘ ‘प्रभु हमारा राजा है!‘ आदि नारे लगाने व गीत गाने भर तक सीमित नहीं रहना चाहिए। प्रभु आज हमें हमारी आध्यात्मिक निंद से जगाना चाहते हैं। प्रभु हमें अंधकार की शक्तियों से लडने को कहते हैं। प्रभु कहते हैं - ‘‘आप संयम रखें और जागते रहें। आपका शत्रु, शैतान, दहाडते हुवे सिंह की तरह विचरता है और ढूँढता रहता है कि किसे फाड खाये। आप विश्वास में दृढ़ रहकर उसका सामना करें’’ (1 पेत्रुस 5:8)। क्योंकि हम देखते हैं कि आज शैतान विभिन्न रूपों में अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। किसी भी दिन का अखबार उठा कर देख लिजिए 70 से 80 प्रतिषत खबरें शैतान के राज्य से ताल्लुक रखती हैं - कहीं लडाई तो कहीं दंगे, कहीं बलात्कार तो कहीं हत्या, कहीं आतंकी हमला तो कहीं नरसंहार, कहीं चोरी तो कहीं धर्म के नाम पर खून-खराबा, कहीं ठगबाजी तो कहीं राजनैतिक सत्ता के लिए बेईमानी, धोखाधडी व झूठ फरेब। शैतान धीरे-धीरे अपने वर्चस्व, व अपने राज्य का विस्तार करते जा रहा है। उसके लुभावने प्रलोभनों से वह अधिक से अधिक लोगों को अपनी ओर खींच रहा है। इसलिए प्रभु ने हमें अपने राज्य की एक निष्क्रिय प्रजा बनने के लिए नहीं बुलाया है, परन्तु हम सब को एक सक्रिय सैनिक बनकर शैतान के विरूद्ध लडने के लिए बुलाया है। प्रभु का वचन कहता है - ‘‘आप लोग प्रभु से और उसके अपार सामर्थ्य से बल ग्रहण करें, आप ईश्वर के अस्त्र-सस्त्र धारण करें, जिससे आप शैतान की धूर्तता का सामना करने में समर्थ हों . . . और अन्त तक अपना कर्तव्य पूरा कर विजय प्राप्त करें’’ (एफे. 6:10-13) शैतान का सामना करने उसके राज्य पर विजय पाने के लिए हमें लाठी, डंडे, तलवार, बंदुक, व गोला-बारूद आदि की ज़रूरत नहीं। हमें ईश्वर के अस्त्र-सस्त्रों को धारण करने की ज़रूरत है। और ये अस्त्र-सस्त्र क्या हैं? संत पौलुस हमें बतलाते हैं ईश्वर के अस्त्र-सस्त्र हैं - सत्य का कमरबंद, धार्मिकता का कवच, शान्ति व सुसमाचार के जूते, विश्वास की ढाल, मुक्ति का टोप व आत्मा की तलवार अर्थात ईश वचन।
हमारे दिलों के राजा आज हमारे दिलों के द्वार पर आकर खडे होकर कह रहे हैं - ‘‘मैं द्वार के सामने खडा हो कर खटखटातो हूँ। यदि कोई मेरी वाणी सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आ कर उसके साथ भोजन करूंगा और वह मेरे साथ’’ (प्रकाशना 3:20)। प्रभु हमारे दिलों में जबरदस्ती करके नहीं आते, जब तक हम हमारे दिलों को उनके लिए नहीं खोलेंगे वे अंदर नहीं आयेंगे। हमारे दिलों का द्वार खोलने के लिए हमें, सबसे पहले सारी बूरी बातों, बूरे विचारों, व बूरी भावनाओं को हमारे दिलों से दूर करना होगा और उनकी जगह दुसरों के प्रति प्रेम, दया, करूणा, क्षमा व भाईचारी की भावनाओं से हमारे दिलों को सुसज्जित करना होगा। तभी हमारे दिलों के राजा प्रभु येसु ख्रीस्त हमारे भीतर आकर हमारे हृदयों के सिंहासन पर विराजमान होंगे और तब हम सच्चे अर्थों में कह पायेंगे कि ‘‘वह प्रभुओं का प्रभु और राजाओं का राजा है’’ (प्रकाशना 17:14)। आमेन।
✍ -Br. Biniush Topno
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