30 अक्टूबर 2022
वर्ष का इकत्तीसवाँ सामान्य इतवार
पहला पाठ : प्रज्ञा ग्रन्थ 11:22-12:2
22) प्रभु! तेरी दृष्टि में समस्त संसार तराजू के पासंग के बराबर है अथवा प्रातःकाल भूमि पर गिरने वाली ओस की बूँद की तरह।
23) तू सब पर दया करता है, क्योंकि तू सर्वशक्तिमान् है। तू मनुष्य के पापों को इसलिए अनदेखा करता है, कि वह पश्चात्ताप करें।
24) तू सब प्राणियों को प्यार करता है और अपनी बनायी हुई किसी वस्तु से घृणा नहीं करता। यदि तुझे किसी वस्तु से घृणा हुई होती तो तूने उसे नहीं बनाया होता।
25) यदि तू उसे नहीं चाहता, तो कुछ भी अस्तित्व में नहीं बना रहता; यदि तूने उसे नहीं बुलाया होता, तो कुछ भी सुरक्षित नहीं रहता।
26) प्रभु! तू सारी सृष्टि की रक्षा करता है, क्योंकि वह तेरी है। तू सब प्राणियों को प्यार करता है;
12:1) क्योंकि तेरा अविनाशी आत्मा सब में व्याप्त है।
2) प्रभु! तू अपराधियों को थोड़ा-थोड़ा कर के दण्ड देता है। तू उन्हें चेतावनी देता और उन्हें उनके पापों का स्मरण दिलाता है, जिससे वे बुराई से दूर रहे और तुझ पर भरोसा रखें।
3) तूने अपनी पवित्र भूमि के पुराने निवासियों के साथ ऐसा व्यवहार किया,
दूसरा पाठ : 2 थेसलनीकियों 1:11-2:2
11) हम निरन्तर आप लोगों के लिए यह प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर आप को अपने बुलावे के योग्य बनाये और आपकी प्रत्येक सदिच्छा तथा विश्वास से किया हुआ आपका प्रत्येक कार्य अपने सामर्थ्य से पूर्णता तक पहुँचा दे।
12) इस प्रकार हमारे ईश्वर की और प्रभु ईसा मसीह की कृपा के द्वारा हमारे प्रभु ईसा मसीह का नाम आप में गौरवान्वित होगा और आप लोग भी उन में गौरवान्वित होंगे।
2:1) भाइयो! हमारे प्रभु ईसा मसीह के पुनरागमन और उनके सामने हम लोगों के एकत्र होने के विषय में हमारा एक निवेदन, यह है।
2) किसी भविष्यवाणी, वक्तव्य अथवा पत्र से, जो मेरे कहे जाते हैं, आप लोग आसानी से यह समझ कर न उत्तेजित हों या घबरायें कि प्रभु का दिन आ चुका है।
सुसमाचार : लूकस 19:1-10
1) ईसा येरीख़ो में प्रवेश कर आगे बढ़ रहे थे।
2) ज़केयुस नामक एक प्रमुख और धनी नाकेदार
3) यह देखना चाहता था कि ईसा कैसे हैं। परन्तु वह छोटे क़द का था, इसलिए वह भीड़ में उन्हें नहीं देख सका।
4) वह आगे दौड़ कर ईसा को देखने के लिए एक गूलर के पेड़ पर चढ़ गया, क्योंकि वह उसी रास्ते से आने वाले थे।
5) जब ईसा उस जगह पहुँचे, तो उन्होंने आँखें ऊपर उठा कर ज़केयुस से कहा, "ज़केयुस! जल्दी नीचे आओ, क्योंकि आज मुझे तुम्हारे यहाँ ठहरना है"।
6) उसने, तुरन्त उतर कर आनन्द के साथ अपने यहाँ ईसा का स्वागत किया।
7) इस पर सब लोग यह कहते हुए भुनभुनाते रहे, "वे एक पापी के यहाँ ठहरने गये"।
8) ज़केयुस ने दृढ़ता से प्रभु ने कहा, "प्रभु! देखिए, मैं अपनी आधी सम्पत्ति ग़रीबों को दूँगा और मैंने जिन लोगों के साथ किसी बात में बेईमानी की है, उन्हें उसका चैगुना लौटा दूँगा"।
9) ईसा ने उस से कहा, "आज इस घर में मुक्ति का आगमन हुआ है, क्योंकि यह भी इब्राहीम का बेटा है।
10) जो खो गया था, मानव पुत्र उसी को खोजने और बचाने आया है।"
📚 मनन-चिंतन
आज का पहला पाठ हमें ईश्वर की दया और करुणा की याद दिलाता है। ईश्वर पापियों पर दया करता है, ताकि वे अपना मन फिरायें और ईश्वर की ओर लौट आएँ। वह किसी से नफ़रत नहीं करते क्योंकि ईश्वर की नफ़रत के सामने कोई भी नहीं टिक पाएगा। ईश्वर ही सर्वशक्तिमान है, उसके लिए कुछ भी असम्भव नहीं है। दूसरा पाठ हमें याद दिलाता है कि ईश्वर ही हमें बुलाहट प्रदान करता है और उस बुलाहट के योग्य भी बनाता है। वह स्वयं हमसे मिलने आते हैं। प्रभु येसु जो स्वर्ग में अरोहित कर लिए गए हैं, वह फिर आएँगे और सब कुछ नवीन कर देंगे। आज का सुसमाचार जकेयुस के जीवन में ईश्वर की दया और क्षमा का सजीव उदाहरण देता है। वह अपनी सम्पत्ति का आधा हिस्सा ग़रीबों में बाँटने के लिए तैयार हो जाता है। इतना ही नहीं, यदि उसने किसी से बेमानी की है तो वह उसका चौगुना लौटाने के लिए तैयार है।
सामान्यतः जब हम एक पापी व्यक्ति या समाज में जाने-माने बुरे व्यक्ति को देखते हैं तो हम तुरंत ही उस व्यक्ति का तिरस्कार कर देते है। ईश्वर से पहले हम स्वयं उस व्यक्ति दोषी करार दे देते हैं। हम कभी भी यह नहीं सोचते कि उस व्यक्ति के मन में क्या चल रहा है, और उस व्यक्ति के लिए ईश्वर की क्या योजना है। हम जकेयुस को देखते हैं जो नाकेदार था। अक्सर नाकेदारों को समाज में स्वीकार नहीं किया जाता था, क्योंकि लोग उन्हें ग़द्दार के रूप में देखते थे जो दुश्मन के लिए काम करता था और अपने ही समाज के विरुद्ध काम करता था। इसलिए समाज में किसी के भी दिल में ऐसे लोगों के लिए कोई सम्मान नहीं था, भले ही उनके पास धन-दौलत थी, सारे सुख-सुविधाएँ थीं लेकिन लोगों का भरोसा नहीं था।
लोगों का यह मानना था कि नाकेदार अधिक धन कमाने के लिए लोगों से बेमानी करते थे। उसी प्रकार इस नाटे से आदमी जकेयुस के मन में किसी ने भी झांकने की कोशिश नहीं की। केवल प्रभु येसु की हृदय की गहराइयों के रहस्य जानते थे। जकेयुस जानता था कि कोई भी उसे पसंद नहीं करता था, वह जानता था कि लोग उसे मक्कार, पापी और धोखेबाज़ समझते थे। लेकिन उसकी इच्छा ईश्वर के दर्शन करने की थी। मन के पवित्र लोग ही ईश्वर के दर्शन कर सकते थे। प्रभु येसु को देखने की इच्छा ही उसके लिए नए जीवन की तरफ़ पहला कदम था। क्या हमारे मन में प्रभु येसु को देखने की इच्छा है?
प्रभु येसु उसकी इच्छा का सम्मान करते हुए न केवल अपने आप को प्रकट करते हैं, बल्कि उसके घर जाते हैं, और उसके साथ भोजन भी करते हैं। हमसे भी प्रभु येसु कहते हैं - “मैं द्वार के सामने खड़ा होकर खटखटाता हूँ। यदि कोई मेरी वाणी सुनकर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके यहाँ आकर उसके साथ भोजन करूँगा, और वह मेरे साथ। (प्रकाशना ३:२०)। जकेयुस के घर में प्रभु येसु प्रवेश करने के कारण ना केवल उसका हृदय परिवर्तन होता है बल्कि वह एक कदम और आगे बढ़ता है और अपनी सम्पत्ति का आधा हिस्सा ग़रीबों में बाँटने के लिए तैयार हो जाता है। यदि उसने किसी के साथ बेमानी की है तो वह उसका चौगुना लौटा देगा। इस तरह का आत्मविश्वास तभी आ सकता है जब उसने किसी के साथ बेमानी नहीं की हो, नहीं तो वह चौगुना कहाँ से लौटाएगा? ईश्वर की दया कठोर से कठोर हृदय को भी बदल सकती है।
📚 REFLECTION
The first reading of today reminds us of God's mercy. God is merciful to the sinners, so that they repent and return to God. He does not hate anyone, because if He hates, how can that person survive? All power is of God, nothing is impossible for God. Second reading reminds us that it is God who calls us and makes worthy of our calling. He comes to meet us. Jesus, although taken up into heaven will come and receive us and renew all things. Gospel portrays God's mercy and forgiveness in the life of Zacchaeus. He is ready to give to the poor, half of what he owns, even restore four fold if he has defrauded anyone.
Normally when we see a sinner or socially acclaimed bad person, we straightway declare him to be condemned. We give judgment even before God. we hardly try to see what is going on within that person and what God has in store for him. We see Zacchaeus who was a tax collector. Usually the tax collectors were not accepted in society because they were considered like traitors who worked for enemy and worked against their own people. So people in society generally had no respect for them, even though they possessed enough wealth and luxuries but could not gain people's trust.
People believed that the tax collectors cheated people in order to earn more money. Hardly anybody could see beyond into the heart of this short man called Zacchaeus. Only Jesus could penetrate the secrets of the hearts. Zacchaeus knew that people did not welcome him, he knew that he was considered a cheat and a sinner. But he had desire to see God. Only pure of heart can see God. The very desire to see Jesus was the first step towards conversion to new life. Do we have a desire to see God?
Jesus honouring his desire not only shows himself to Zacchaeus but also goes and dines with him. Even to us he says, " Listen! am standing at the door, knocking, if you hear my voice and open the door, I will come in to you and eat with you and you with me" (Rev. 3:20). Jesus' coming into Zacchaeus house not only converts him, but he goes one step further to share his wealth with the poor and is ready to give back four fold if he has defrauded anybody. This confidence can come only when he had not defrauded anybody, otherwise from where will he restore four fold? God's mercy can change even the hardest hearts.
मनन-चिंतन -2
स्तोत्र 14:1-2 में, प्रभु का वचन हमें बताता है कि मूर्ख प्रभु ईश्वर के अस्तित्व को नकारते हैं जबकि बुद्धिमान उनको खोजते रहते हैं। इसी बात को Ps 53:1-2 में भी दोहराया गया है। पवित्र वचन हमें बताता है, "ईश्वर यह जानने के लिए स्वर्ग से मनुष्यों पर दृष्टि दौड़ाता है कि उन में कोई बुद्धिमान हो, जो ईश्वर की खोज में लगा रहता हो" (स्तोत्र 14: 2)। 1इतिहास 22:19 हमें निमन्त्रण देता है, "अब अपने सारे हृदय और सारी आत्मा से प्रभु, अपने ईश्वर की खोज में लगे रहो"। यिरमियाह 29: 13-14 एक बहुत बड़ा वादा करता है- “यदि तुम मुझे सम्पूर्ण हृदय से ढूँढ़ोगे, तो मैं तुम्हे मिल जाऊँगा“- यह प्रभु की वाणी है- “और मैं तुम्हारा भाग्य पलट दूँगा। मैं तुम्हें उन सब राष्ट्रों और उन सब स्थानों से, जहाँ मैंने तुम्हें निर्वासित कर दिया है, यहाँ फिर एकत्रित करूँगा।“ यह प्रभु की वाणी है। “मैं तुम्हें फिर उसी जगह ले आऊँगा, जहाँ से मैंने तुम्हें निर्वासित कर दिया था।'' ज़केयुस और येसु के बीच हुई मुलाकात में प्रभु के ये सभी उदार वचन पूरे हुए। ज़केयुस उत्सुकता से प्रभु की तलाश कर रहा था और प्रभु ने खुद को ढूंढने दिया, न केवल पाये जाने दिया, बल्कि ज़कयुस को उनकी निकटता का अनुभव भी करने दिया। ज़केयुस प्रभु के प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता था। उसने अपनी संपत्ति के प्रति आसक्ति और अपने पिछले सभी लगाव को छोड़ दिया क्योंकि उसने येसु में सबसे बड़ा खजाना पाया। ज़केयुस ने प्रभु को पाने के लिए अपना सब कुछ छोड दिया, तो इसके ठीक विपरीत मारकुस 10:17-31 में हम उस अमीर युवक को पाते हैं जो उदास होकर चला गया था क्योंकि वह अपनी सम्पत्ति का त्याग करना नहीं चाहता था। ज़केयुस ने पवित्र ग्रन्थ के उस आह्वान को समझ लिया जो कहता है, “प्रभु-भक्तों! प्रभु पर श्रद्धा रखो! श्रद्धालु भक्तों को किसी बात की कमी नहीं।" (स्तोत्र 34:10)।
REFLECTION
In Psalm 14: 1-2, the Word of God tells us that the foolish negate the existence of God while the wise seek God. This is repeated in Ps 53 too. The Word tells us, “The Lord looks down from heaven on humankind to see if there are any who are wise, who seek after God” (Ps 14:2). 1Chron 22:19 admonishes us, “Now set your mind and heart to seek the Lord your God”. Jer 29:13-14 makes a huge promise- “When you search for me, you will find me; if you seek me with all your heart, I will let you find me, says the Lord, and I will restore your fortunes and gather you from all the nations and all the places where I have driven you, says the Lord, and I will bring you back to the place from which I sent you into exile.” All these magnanimous words of the Lord are fulfilled in the meeting between Zachaeus and Jesus. Zachaeus was eagerly seeking the Lord and the Lord let himself be found, not only to be found but also to be experienced closely by Zachaeus. Zachaeus could not remain unchanged. He gives up all his previous attachment to properties and possessions as he finds the greatest treasure in Jesus. We can very find the contrast between the Rich Tax Collector Zachaeus gave up everything for the sake of Jesus and the Rich young man who went away sad for he was unwilling to give up what he possessed (cf. Mk 10:17-31) Zachaeus was able to give up everything because he has come to believe the Word that tells, “The young lions suffer want and hunger, but those who seek the Lord lack no good thing” (Ps 34:10).
प्रवचन
आज के तीनों पाठों के जरिये प्रभु एक बार फिर से अपना प्रेम व करूणामय चेहरा हमारे सामने पेश करते हैं। पहले पाठ से प्रज्ञा ग्रंथ 11:23 में लेखक कहता है - ‘‘तू सबों पर दया करता है, क्योंकि तू सर्वशक्तिमान है। तू मनुष्य के पापों को इसलिए अनदेखा करता है कि वह पश्चाताप करे।’’
पश्चाताप, हमारे पूरे मुक्ति-इतिहास के पीछे बस एक यही कारण है और यूँ कहें कि पूरे धर्मग्रंथ के लिखे जाने के पीछे यही उद्देश्य है - पश्चाताप। पिता ईश्वर के द्वारा अपने एकलौते को इस संसार में भेजने के पीछे भी यही कारण था। इसलिए संत मारकुस के सुसमाचार 1:14-15 में हम पढते हैं कि जब प्रभु येसु ने अपनी सेवकाई प्रारम्भ की तो उनके मुख से निकले पहले शब्द यही थे- ‘‘समय पूरा हो चुका है। ईश्वर का राज्य निकट आ गया है। पश्चाताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो।’’ संत लूकस 24-47 में वचन कहता है - ‘‘उनके येसु नाम पर येुरूसालेम से लेकर सभी राष्टों को पाप क्षमा के लिए पश्चाताप का उपदेश दिया जायेगा। पूरे धर्मग्रंथ का संदेश इसी विषय के ईर्द-गिर्द घुमता है।
इससे हमें यह समझ में आता है कि मनुष्य की सबसे बडी समस्या जो हैं, वो हैं उसका पाप। और उसका सबसे उत्तम समाधान जो हैं वो है पश्चाताप। पाप किस प्रकार से हमारी सबसे बडी समस्या है इसे संत योहन 8:34 के द्वारा समझा जा सकता है जहॉं प्रभु का वचन कहता है- ‘‘जो पाप करता है वह पाप का दास है। दास सदा घर में नहीं रहता, पुत्र सदा रहता है।’’ यहॉं पुत्र के घर में रहने की बात कही गयी है। पुत्र जो है वह हमेशा घर में रहता है। यहॉं पर कौन से घर की बात कही गई है? यह पिता का घर है जो स्वर्ग में है। तो जो पाप करता है वह इस घर में हमेशा नहीं रहता। वह इसे छोडर दूर चला जाता है जैसा कि हम खोये हुए बेटे के दृष्टांत में पढते हैं। छोटा बेटा जो कि अपने पिता के विरूद्ध पाप करता है, वह अपने घर से दूर चला जाता है। यही हमारे इस दुनियाई जीवन की वास्तविकता है। हम अपने पिता के घर से दूर आ गये हैं। जैसा कि संत पौलुस फिलिपियों 3:20 में कहते हैं - ‘‘हमारा स्वदेश तो स्वर्ग है।’’ तो हम उस स्वर्ग बहुत दूर आ गये हैं।
इन सब बातों से यह स्पष्ट हो जाता है कि हमारी सब से बडी समस्या हमारा ईश्वर के घर से दूर हो जाना है। और परम पिता ईश्वर ने इस समस्या के समाधान हेतु अपने इकलौते बेटे को दे दिया है ताकि जो कोई उनमें विश्वास करें, उनका सर्वनाश न हो बल्कि वे अनंनत जीवन प्राप्त करें। परन्तु इस ओर एक कदम हमें भी बढाने की ज़रूरत है। जैसा कि आज के सुसमाचार में ज़केयुस ने किया। वह एक पापी था। उसने बेईमानी की कमाई से, गरीबों को लूटकर काफी धन जमा कर लिया था। लेकिन येसु को अपने घर में पाकर उसे अपनी गलती का एहसास हो जाता है। वह पश्चाताप से भर कर बोल उठता है - ‘‘प्रभु! देखिए, मैं अपनी आधी संपत्ती गरीबों को दूँगा और मैंने जिन जिन लोगों के साथ किसी भी बात में बेईमानी की है, उन्हें उसका चौगुना लौटा दूँगा।’’ तब प्रभु ने उससे कहा - ‘‘आज इस घर में मुक्ति का आगमन हुआ है...जो खो गया था मानव पुत्र उसी को खोजने और बचाने आया है।’’ दूसरे शब्दों में कहें तो, जो अपने पिता के घर से दूर हो गया था, उसी को वापस अपने पिता के घर ले जाने के लिए येसु इस दुनिया में आये हैं।
यह मुक्ति तभी संभव है जब हम येसु से मिलने के लिए बेताब हैं और ज़केयुस जैसे अपने जीवन में येसु को कार्य करने दें। उनकी कृपा के लिए हमारे जीवन के दरवाजे़ खोल दें। और सबसे महत्वपूर्ण यह कि हम हमारे पापों के ऊपर पश्चाताप करें। तब प्रभु येसु हमसे भी यही कहेंगे - आज इस घर में, इस पल्ली में, इस व्यक्ति के जीवन में मुक्ति का आगमन हुआ है।
आईये हम हमारी मुक्ति के स्रोत येसु को अपने जीवन में बुलाने में न हिचकें। और उनकी कृपा के लिए अपने जीवन के द्वार को खोल दें। ताकि हम जो अपने पिता के घर से दूर हो गये हैं प्र्रभु येसु के द्वारा, उनके साथ वापस अपने पिता के घर उस अनन्त निवास में लौट सकें, जहॉं हमारा स्वर्गिक पिता हम सब का इंतजार कर रहा है। आमेन।
✍ -Br. Biniush Topno
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