About Me

My photo
Duliajan, Assam, India
Catholic Bibile Ministry में आप सबों को जय येसु ओर प्यार भरा आप सबों का स्वागत है। Catholic Bibile Ministry offers Daily Mass Readings, Prayers, Quotes, Bible Online, Yearly plan to read bible, Saint of the day and much more. Kindly note that this site is maintained by a small group of enthusiastic Catholics and this is not from any Church or any Religious Organization. For any queries contact us through the e-mail address given below. 👉 E-mail catholicbibleministry21@gmail.com

28 अगस्त 2022 वर्ष का बाईसवाँ सामान्य इतवार

 

28 अगस्त 2022

वर्ष का बाईसवाँ सामान्य इतवार



📒 पहला पाठ : 1 प्रवक्ता ग्रन्थ 3:17-18, 20, 28-29


17) और तुम्हारी धार्मिकता समझी जायेगी। लोग तुम्हारी विपत्ति के दिन तुम को याद करेंगे और तुम्हारे पाप धूप में पाले की तरह गल जायेगे।

18) जो अपने पिता का त्याग करता, वह ईष-निंदक के बराबर है। जो अपनी माता को दुःख देता है, वह ईश्वर द्वारा अभिशप्त है।

20) तुम जितने अधिक बड़े हो, उतने ही अधिक नम्र बनों इस प्रकार तुम प्रभु के कृपापात्र बन जाओगे। बहुत लोग घमण्डी और गर्वीले हैं, किन्तु ईश्वर दीनों पर अपने रहस्य प्रकट करता है।

28) कपटी हृदय अपने कार्यो में असफल होगा और दुष्ट हृदय पाप के जाल में फॅसेगा।

29) दुष्ट हृदय बहुत कष्ट पायेगा। पापी पाप-पर-पाप करता रहेगा।



📒 दूसरा पाठ : इब्रानियों 12:18-19, 22-24



18) आप लोग ऐसे पर्वत के निकट नहीं पहुँचे हैं, जिसे आप स्पर्श कर सकते हैं। यहाँ न तो सीनई बादल की धधकती अग्नि है और न काले बादल; न घोर अन्धकार, बवण्डर,

19) तुरही का निनाद और न बोलने वाले की ऐसी वाणी, जिसे सुन कर इस्राएली यह विनय करते थे कि वह फिर हम से कुछ न कहे;

22) आप लोग सियोन पर्वत, जीवन्त ईश्वर के नगर, स्वर्गिक येरूसालेम के पास पहुँचे, जहाँ लाखों स्वर्गदूत,

23) स्वर्ग के पहले नागरिकों का आनन्दमय समुदाय, सबों का न्यायकर्ता ईश्वर, धर्मियों की पूर्णता-प्राप्त आत्माएँ

24) और नवीन विधान के मध्यस्थ ईसा विराजमान हैं, जिनका छिड़काया हुआ रक्त हाबिल के रक्त से कहीं अधिक कल्याणकारी है।



📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 14:1,7-14



1) ईसा किसी विश्राम के दिन एक प्रमुख फ़रीसी के यहाँ भोजन करने गये। वे लोग उनकी निगरानी कर रहे थे।

7) ईसा ने अतिथियों को मुख्य-मुख्य स्थान चुनते देख कर उन्हें यह दृष्टान्त सुनाया,

8) "विवाह में निमन्त्रित होने पर सब से अगले स्थान पर मत बैठो। कहीं ऐसा न हो कि तुम से प्रतिष्ठित कोई अतिथि निमन्त्रित हो

9) और जिसने तुम दोनों को निमन्त्रण दिया है, वह आ कर तुम से कहे, ’इन्हें अपनी जगह दीजिए’ और तुम्हें लज्जित हो कर सब से पिछले स्थान पर बैठना पड़े।

10) परन्तु जब तुम्हें निमन्त्रण मिले, तो जा कर सब से पिछले स्थान पर बैठो, जिससे निमन्त्रण देने वाला आ कर तुम से यह कहे, ’बन्धु! आगे बढ़ कर बैठिए’। इस प्रकार सभी अतिथियों के सामने तुम्हारा सम्मान होगा;

11) क्योंकि जो अपने को बड़ा मानता है, वह छोटा बनाया जायेगा और जो अपने को छोटा मानता है, वह बड़ा बनाया जायेगा।"

12) फिर ईसा ने अपने निमन्त्रण देने वाले से कहा, "जब तुम दोपहर या शाम का भोज दो, तो न तो अपने मित्रों को बुलाओ और न अपने भाइयों को, न अपने कुटुम्बियों को और न धनी पड़ोसियों को। कहीं ऐसा न हो कि वे भी तुम्हें निमन्त्रण दे कर बदला चुका दें।

13) पर जब तुम भोज दो, तो कंगालों, लूलों, लँगड़ों और अन्धों को बुलाओ।

14) तुम धन्य होगे कि बदला चुकाने के लिए उनके पास कुछ नहीं है, क्योंकि धर्मियों के पुनरूत्थान के समय तुम्हारा बदला चुका दिया जायेगा।"



📚 मनन-चिंतन



सुसमाचार में येसु आत्म-केंद्रितता और पाखंड पर सवाल उठाते हैं। हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जो प्रतिस्पर्धा और सफलता को महत्व देती है, और सबसे ऊपर 'सम्मान के स्थान' पर कब्जा करती है। कमजोरों के लिए और जो खुद को आगे बढ़ाने में असमर्थ हैं उनके लिए बहुत कम जगह है। एक स्वयं की छवि जो स्वयं को विशेष पहचान के योग्य मानती है, स्वयं विनाशकारी हो सकती है। जब हम खुशी-खुशी अपनी ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा का उपयोग दूसरों की सेवा करने में करते हैं, तो हम स्वीकार करते हैं कि ईश्वर सभी अच्छाइयों का सच्चा स्रोत है। जिस तरह की नम्रता की बात येसु यहाँ कर रहे हैं, उसका वर्णन कैंटबरी के एक पूर्व आर्चबिशप, विलियम टेम्पल ने अच्छी तरह से किया था: “विनम्रता का अर्थ अन्य लोगों की तुलना में अपने बारे में कम सोचना नहीं है, और न ही इसका अर्थ अपने स्वयं के उपहारों के बारे में कम राय रखना है। इसका अर्थ है अपने बारे में बिल्कुल भी सोचने से मुक्ति।"




📚 REFLECTION



In the gospel Jesus questions the self-centredness and hypocrisy. We are living in a world that values competition and success, occupying the ‘place of honour’, above all else. There is little space for the weak and for those who are unable to push themselves forward. A self image that considers oneself deserving of special recognition can be self destructive. When we happily use our God-given talents in serving others, we acknowledge that God is the true source of all goodness. The kind of humility Jesus is talking about here was described well by a former Archbishop of Canterbury, William Temple: “Humility does not mean thinking less of yourself than of other people, nor does it mean having a low opinion of your own gifts. It means freedom from thinking about yourself at all.”



📙 मनन-चिंतन -2


पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉ० अब्दुल कलाम को 2007 के रामनाथ गोयनका उत्कृष्ट पत्रकारिता पुरस्कार समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था. उस समय भी वे देश के प्रथम नागरिक (राष्ट्रपति) थे, और उन्हें उस समारोह को सम्बोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था, और उसके बाद बड़े-बड़े पत्रकारों का पत्रकारिता के बारे में विचारों का आदान-प्रदान का कार्यक्रम था, और उसके लिए मुख्य अतिथि का रुकना ज़रूरी नहीं था. सबने सोचा कि राष्ट्रपति अपने सम्बोधन के बाद विदा ले लेंगे, लेकिन डॉ० अब्दुल कलाम विचार-विमर्श के इस कार्यक्रम के लिए भी रुक गये, लेकिन इससे अधिक आश्चर्यजनक बात यह थी उन्होंने उस आदान-प्रदान में सक्रीय भाग भी लिया, और वे जोश में आकर अतिथि दीर्घा से उठकर मंच पर जा बैठे, वो भी कुर्सी पर नहीं नीचे. सब लोग आश्चर्यचकित थे कि देश का राष्ट्रपति एक आम इन्सान के सामान नीचे मंच पर बैठा है, लेकिन उन्हें किसी बात की परवाह नहीं थी. उस कार्यक्रम की उस तस्वीर को आज भी इन्टरनेट पर खोजा जा सकता है. इसमें कोई संदेह नहीं कि डॉ० अब्दुल कलाम विनम्रता के जीते-जागते उदाहरण थे, और इसलिए आज भी वे करोड़ों लोगों में जिंदा हैं और और लोग उन्हें सम्मान के साथ याद करते हैं.

आज की पूजन-विधि में हमारे मनन-चिंतन का विषय भी यही महान गुण ‘विनम्रता’ है. आज के पहले पाठ, प्रवक्ता-ग्रन्थ में विनम्रता और विनम्र व्यक्ति की प्रशंसा की गयी है. दूसरे पाठ में भी हम पुराने व्यवस्थान के भय उत्पन्न करने वाले ईश्वर की अपेक्षा प्रभु येसु में एक विनम्र मेमने के रूप में ईश्वर के दर्शन करते हैं, और आज के सुसमाचार में स्वयं प्रभु येसु इसी महान गुण के बारे में समझाते हैं. हर इन्सान चाहता है कि वह महान बने, लोग उसका आदर सम्मान करें. सभी के अन्दर खुद की एक पहचान बनाने की लालसा रहती है, कुछ करने की, कुछ बनने लालसा रहती है. ऐसी लालसा होना बुरी बात नहीं है, यह स्वभाविक है, तभी तो पिता ईश्वर ने भी कहा “फलो-फूलो. पृथ्वी पर फैल जाओ और उसे अपने अधीन कर लो. (उत्पत्ति ग्रन्थ 1:28).” महान बनने की लालसा मनुष्य में प्रारम्भ से ही है, काईन ने अपने भाई हाबिल का रक्त बहाया, याकूब ने एसाव का प्रथम अधिकार छिना, राजा साउल भी दाउद को मारना चाहता था. बड़ा और महान बनने के लिये इन सब ने गलत और बुरा रास्ता चुना, और आज की दुनिया में हम भी वही गलतियाँ करते हैं. लेकिन प्रभु येसु हमें महान और बड़ा बनने का सबसे अच्छा और सही रास्ता बताते हैं. प्रभु येसु के अनुसार ‘यदि हमें बड़ा और महान बनना है तो सबसे पहले सबसे छोटा और विनम्र बनना पड़ेगा.’ दरअसल विनम्रता, महान बनने की सबसे पहली सीढ़ी है.

विश्वप्रसिद्ध आध्यात्मिक कृति “दि इमीटेशन ऑफ़ क्राइस्ट” (ख्रिस्तानुकरण) में लेखक थॉमस केम्पिस इस पुस्तक के दूसरे अध्याय में कहते हैं, “स्वयं को नगण्य समझना, एवं दूसरों को अपने से अच्छा और श्रेष्ठ समझना ही सर्वोत्तम एवं सर्वश्रेष्ठ बुद्धिमानी (प्रज्ञा) है.” विनम्रता ही अन्य सद्गुणों की जननी है. किसी ने कहा है कि, ‘विनम्रता एक विशाल वृक्ष की जड़ के समान है, और यदि एक वृक्ष की जड़ें ज़मीन में दृढ़ता से नहीं जमीं हैं तो वह वृक्ष ना तो मजबूती से बढ़ सकता है, और ना कोई फल उत्पन्न कर सकता है, और ना ही ज़्यादा दिनों तक जीवित रह सकता है. उस विनम्रता रूपी वृक्ष की डालियाँ हैं- शालीनता या सादगी, निरभिमान एवं गौरव. जिस व्यक्ति में विनम्रता नहीं है, उसमें दूसरे सद्गुणों का पनपना मुश्किल है. राजा सुलेमान के अनुसार ‘विनम्र व्यक्ति में ही प्रज्ञा का वास है.’ (सूक्ति ग्रन्थ 11:2).

प्रभु येसु आखिर क्यों चाहते हैं कि हम विनम्र बनें? प्रभु येसु के इस दुनिया में आने का मुख्य उद्देश्य समस्त मानव जाति का पिता ईश्वर से मेल कराना है, यानि कि हमें ईश्वर से मिलाना है, ईश्वर के दर्शन कराना है. और ईश्वर के दर्शन करने के लिए हमारा विनम्र होना अनिवार्य है. अहंकारी व्यक्ति कभी प्रभु को नहीं पा सकता है वहीँ दूसरी ओर प्रभु येसु ने स्वयं वादा किया है, “धन्य हैं वे जो नम्र हैं, उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा.” (मत्ती 5:4). विनम्र व्यक्ति सारी दुनिया को जीत सकता है, सबके दिलों पर राज कर सकता है. आइये हम प्रभु से इस महान गुण का वरदान माँगें.


 -Br. Biniush Topno



Copyright © www.catholicbibleminisyry1.blogsoot.com
Praise the Lord!

21 अगस्त 2022 वर्ष का इक्कीसवाँ इतवा

 

21 अगस्त 2022

वर्ष का इक्कीसवाँ इतवार



📒 पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 66:18-21

18) “मैं सभी भाषाओं के राष्ट्रों को एकत्र करूँगा। वे मेरी महिमा के दर्शन करने आयेंगे।

19) मैं उन में एक चिन्ह प्रकट करूँगा। जो बच गये होंगे, उन में से कुछ लोगों को मैं राष्ट्रों के बीच भेजूँगा- तरशीश, पूट, धनुर्धारी लूद, तूबल, यूनान और उन सुदूर द्वीपों को, जिन्होंने अब तक न तो मेरे विषय में सुना है और न मेरी महिमा देखी है। उन राष्ट्रों में वे मेरी महिमा प्रकट करेंगे।

20) वे प्रभु की भेंटस्वरूप सभी राष्ट्रों में से तुम्हारे सब भाइयों को ले आयेंगे।“ प्रभु कहता है, “जिस तरह इस्राएली शुद्ध पात्रों में चढ़ावा लिये प्रभु के मन्दिर आते हैं, उसी तरह वे उन्हें घोड़ों, रथों, पालकियों, खच्चरों और साँड़नियों पर बैठा कर मेरे

21) मैं उन मे से कुछ को याजक बनाऊँगा और कुछ लोगों को लेवी।“ यह प्रभु का कहना है।

📒 दूसरा पाठ : इब्रानियों 12:5-7,11-13

5) क्या आप लोग धर्मग्रन्थ का यह उपदेश भूल गये हैं, जिस में आप को पुत्र कह कर सम्बोधित किया गया है? -मेरे पुत्र! प्रभु के अनुशासन की उपेक्षा मत करो और उसकी फटकार से हिम्मत मत हारो;

6) क्योंकि प्रभु जिसे प्यार करता है, उसे दण्ड देता है और जिसे पुत्र मानता है, उसे कोड़े लगाता है।

7) आप जो कष्ट सहते हैं, उसे पिता का दण्ड समझें, क्योंकि वह इसका प्रमाण है, कि ईश्वर आप को पुत्र समझ कर आपके साथ व्यवहार करता है। और कौन पुत्र ऐसा है, जिसे पिता दण्ड नहीं देता?

11) जब दण्ड मिल रहा है, तो वह सुखद नहीं, दुःखद प्रतीत होता है; किन्तु जो दण्ड द्वारा प्रशिक्षित होते हैं, वे बाद में धार्मिकता का शान्तिप्रद फल प्राप्त करते हैं।

12) इसलिए ढीले हाथों तथा शिथिल घुटनों को सबल बना लें।

13) और सीधे पथ पर आगे बढ़ते जायें, जिससे लंगड़ा भटके नहीं, बल्कि चंगा हो जाये।

📙 सुसमाचार : लूकस 13:22-30

22) ईसा नगर-नगर, गाँव-गाँव, उपदेश देते हुए येरूसालेम के मार्ग पर आगे बढ़ रहे थे।

23) किसी ने उन से पूछा, "प्रभु! क्या थोड़े ही लोग मुक्ति पाते हैं?’ इस पर ईसा ने उन से कहा,

24) "सँकरे द्वार से प्रवेश करने का पूरा-पूरा प्रयत्न करो, क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ - प्रयत्न करने पर भी बहुत-से लोग प्रवेश नहीं कर पायेंगे।

25) जब घर का स्वामी उठ कर द्वार बन्द कर चुका होगा और तुम बाहर रह कर द्वार खटखटाने और कहने लगोगे, ’प्रभु! हमारे लिए खोल दीजिए’, तो वह तुम्हें उत्तर देगा, ’मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के हो’।

26) तब तुम कहने लगोगे, ’हमने आपके सामने खाया-पीया और आपने हमारे बाज़ारों में उपदेश दिया’।

27) परन्तु वह तुम से कहेगा, ’मैं नहीं जानता कि तुम कहाँ के हो। कुकर्मियो! तुम सब मुझ से दूर हटो।’

28) जब तुम इब्राहीम, इसहाक, याकूब और सभी नबियों को ईश्वर के राज्य में देखोगे, परन्तु अपने को बहिष्कृत पाओगे, तो तुम रोओगे और दाँत पीसते रहोगे।

29) पूर्व तथा पश्चिम से और उत्तर तथा दक्षिण से लोग आयेंगे और ईश्वर के राज्य में भोज में सम्मिलित होंगे।

30) देखो, कुछ जो पिछले हैं, अगले हो जायेंगे और कुछ जो अगले हैं, पिछले हो जायेंगे।"

📚 मनन-चिंतन

हम में से अधिकांश लोग धार्मिकता के फल को पसंद तो करते हैं लेकिन अनुशासन के दर्द के बिना। फिर भी धर्मग्रंत कहता है कि हमें ईश्वर और दूसरों से प्रेम करने के लिए अनुशासन सीखना चाहिए। यह केवल अनुशासन जो ईश्वर के प्रति वफादार रहने की कोशिश में मददगार है। यह हमें उन दर्दों को गले लगाने में मदद करेगा जो अंततः आनंद की ओर ले जाते हैं। हमारे अच्छे इरादे मायने नहीं रखते। यहूदी धार्मिक नेताओं ने बाहरी कृत्यों पर जोर दिया। दूसरी ओर, येसु ने आंतरिक विश्वास पर बल दिया। यहूदी धर्मगुरुओं ने कर्म पर जोर दिया जबकि येसु ने विश्वास करने पर जोर दिया। जबकि मुक्ति ईश्वर का एक उपहार है, इसके लिए हमारे गंभीर प्रयास, हमारे तत्काल ध्यान और हमारी सावधानीपूर्वक आत्मचिंतन की आवश्यकता होती है। येसु के अनुसार, आत्मिक मामलों में आत्मप्रबंचना लोगों को ईश्वर के राज्य से बंचित रखता है। इस रविवार का संदेश हमें स्वयं की विफलताओं को देखने और जानने के बावजूद ईश्वर के प्रति वफादार रहने का प्रयास जारी रखने के लिए एक प्रोत्साहन है।



📚 REFLECTION


Most of us prefer the fruit of righteousness but without the pain of discipline. Yet the Scripture tells that we must learn discipline in order to love God and others. It is only discipline learned in trying to be faithful to God that will help us embrace the pains that ultimately lead to joy. Our good intentions don’t count. The Jewish religious leaders emphasized outward acts. Jesus, on the other hand, emphasized inward faith. The Jewish religious leaders emphasized doing while Jesus emphasized believing. While salvation is a gift of God, it requires our earnest effort, our urgent attention, and our careful self-examination. According to Jesus, self-deception in spiritual matters has the potential to exclude people from God’s Kingdom. The message of this Sunday is an encouragement to keep on striving to be faithful to God, even when we can see and know our own failures.


📙 मनन-चिंतन -2


नये व्यवस्थान के चारों सुसमाचारों में से दो सुसमाचारों में प्रभु येसु की वंशावली का वर्णन है, जिसमें सन्त लूकस आदम से लेकर प्रभु येसु तक की वंशावली का वर्णन करते हैं (लूकस 3:23-38) जबकि सन्त मत्ती प्रभु येसु की वंशावली को धर्म-पिता इब्राहीम से प्रारम्भ करते हैं (मत्ती 1:1-16)। इसमें कोई दो राय नहीं कि इब्राहीम को हम अपने विश्वास के पिता के रूप में मानते हैं क्योंकि ईश्वर ने उनके उनके देश, कुटुम्ब आदि को छोड़कर बुलाया और वे अपना सब कुछ छोड़कर ईश्वर के बुलाबे के अनुसार सब कुछ छोड़कर प्रतिज्ञात देश के लिए रवाना हुए। (देखें इब्रानियों के नाम पत्र 11:8-19)। ईश्वर ने इब्राहीम से प्रतिज्ञा की कि वह इब्राहीम को राष्ट्रों का पिता बनाएगा और उसके द्वारा पृथ्वी भर के वंश आशीर्वाद प्राप्त करेंगे (उत्पत्ति 12:4)। ईश्वर ने उसके साथ एक विधान ठहराया, और वही विधान बाद में इसहाक, याकूब व आने वाली पीढ़ियों के साथ भी दुहराया और वह विधान यह था कि ईश्वर सदा उनका ईश्वर बना रहेगा और वे उसकी प्रिय प्रजा बने रहेंगे, ईश्वर सदा उनकी रक्षा करेगा और उन्हें संभालेगा, बदले में उनकी चुनी हुई प्रजा सदा ईश्वर को ही अपना प्रभु मानेंगे और उसकी आज्ञाओं का पालन करेंगे। मानव इतिहास और मुक्ति इतिहास इस बात के साक्षी हैं कि ईश्वर ने कभी अपने विधान की प्रतिज्ञाओं को नहीं तोडा, बल्कि मनुष्य ने ही ईश्वर की आज्ञाओं की अवेहलना की और ईश्वर के रास्ते से भटक गया। पुराने व्यवस्थान में प्रभु ने इस्राएल को अपनी चुनी हुई प्रजा बनाया था, और नये व्यवस्थान में ईश्वर की वही चुनी हुई प्रजा नया इस्राएल अर्थात् प्रभु येसु में विश्वास करने वाले उनके अनुयायी हैं।

हमारी धर्मशिक्षा हमें सिखाती है कि जब हम प्रभु येसु में बप्तिस्मा ग्रहण करते हैं तो हम उसी ईश्वरीय प्रजा के सदस्य बन जाते हैं; हम चुने हुए लोगों में सम्मिलित हो जाते हैं। हम प्रभु येसु के कलवारी के बलिदान के फल के सहभागी बन जाते हैं, इसी सहभागिता पर हम गर्व करते हैं। लेकिन अगर हम प्रभु येसु की मुक्ति के सहभागी बनते हैं तो हमारी भी कुछ जिम्मेदारी बनती है। ईश्वर द्वारा ठहराये हुए विधान में दो पक्षकार हैं- एक स्वयं ईश्वर और दूसरा उनकी चुनी हुई प्रजा। दोनों ही पक्षों को अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभानी है, तभी वह विधान सफल माना जायेगा। नये विधान की शर्ते पुराने विधान की शर्तों से अलग नहीं हैं, लेकिन क्या हम ईश्वर के उस विधान की शर्तों का पालन कर पाते हैं?

भले ही प्रभु येसु ने क्रूस पर पूरी दुनिया के लिए अपने प्राण न्यौछावर किये हों, और संसार के सब लोगों को मुक्ति प्रदान की है, लेकिन आज की दुनिया में हम अगर नज़र दौडायें तो हम भी आज के सुसमाचार में शिष्यों की तरह प्रभु से पूछ उठेंगे, “प्रभु क्या थोड़े ही लोग मुक्ति पाते हैं?” जब तक हम प्रभु को अपना मुक्तिदाता नहीं स्वीकार करेंगे तब तक कैसे हम उस मुक्ति के सहभागी होंगे? जब तक हम ईश्वर के विधान की शर्तों के अनुसार व्यवहार नहीं करेंगे तो ईश्वर की चुनी हुई प्रजा कैसे बनेंगे? क्या कभी ताली एक हाथ से बज सकती है? हमारा ध्यान संकरे मार्ग की ओर नहीं बल्कि चौड़े मार्ग की ओर है क्योंकि सँकरे मार्ग पर चलना कठिन और चुनौतीपूर्ण है।

चूंकि बप्तिस्मा के द्वारा हम ईश्वर की चुनी हुई प्रजा हैं, और मुक्ति के बारे में निश्चिन्त हो जाते हैं और कभी-कभी ये गर्व हमारे लिए घमण्ड बन जाता है और मुक्ति से वंचित होने का कारण भी बन सकता है। हम ख्रीस्तीय हैं, बचपन से ही प्रभु के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, प्रभु येसु कौन हैं, उनका जन्म कहाँ हुआ, उन्होंने क्या-क्या चमत्कार किये, और उनकी मृत्यु और पुनुरुत्थान कैसे हुआ इत्यादि। लेकिन क्या ईश्वर के साथ हमारा व्यक्तिगत सम्बन्ध है? क्या हम प्रभु येसु से व्यक्तिगत रूप से जुड़े हैं? कभी-कभी हम सोचते हैं कि हम तो ख्रीस्तीय हैं, बस इतना ही काफी है, इसी से हम स्वर्ग में प्रवेश पा लेंगे। अगर एक बच्चे के माता-पिता शिक्षक हैं, तो इसका मतलब ये नहीं कि वह बच्चा बिना मेहनत किये ही होशियार हो जायेगा। उसे अगर अपने माता-पिता का नाम रोशन करना है और होशियार (बुद्धिमान) बनना है तो इसके लिए उसे मेहनत करनी होगी। उसी तरह यदि हम स्वर्गीय पिता की संताने हैं, तो उसके योग्य बनने के लिए हमें मेहनत करनी पड़ेगी, “पूरा-पूरा प्रयत्न” करना पड़ेगा। पिता ईश्वर की योग्य संतानें बनने के लिए हमें उनकी आज्ञाओं का पालन करना पड़ेगा, ईश्वरीय विधान की शर्तों को पूरा करना पड़ेगा। ईश्वर की राह कठिन है, लेकिन जो लगन के साथ इस पर डटे रहते हैं, वही ईश्वर को जान लेते हैं, और ईश्वर उन्हें पहचान लेते हैं।

 -Br. Biniush Topno


Copyright © www.catholicbibleministry1.blogspot.com
Praise the Lord!

मै और मेरा परिचय

 मै और मेरा परिचय 

मैं बिनिऊष तोपनो डिब्रूगढ़ असम का रहने वाला हूं आज में मेरे पापा के लिए कुछ लिखने जा रहा हूं। जो आज  हमलोगो के बीच नहीं  रहे ।में एक छोटा परिवार से हूं और मेरे पापा का बढ़ा बेटा,  में छोटे से पढ़ाई करते आ रहा हूं और  अभी हॉयर स्टडीज पढ़ रहा हूं मुझे तभी से पढ़ाई में सहायता करते आया है हरेक कमियी में पूरा करता था ।  आज जो पाप ने मेरे लिए किया । आज में पढ़ाई करके कुछ पापा का नाम रोशन करने जा रहा हूं ताकि लोग कह पाए कि आपका लडका को आप बहुत अच्छा बनाया और आप जैसा पापा। पाप कहते थे कि  मैं खुदको बेचकर भी सपने पुरे करूँगा तेरे । बस तू सपने जरा बड़े देखना । मित्रों हमारे संसार की शुरुआत माता पिता से ही होती हैं. अतः हमारा सर्वस्व जीवन उन्ही देवता को समर्पित रहना चाहिए. जीवन में एक पिता का महत्व एवं किरदार क्या होता हैं.बेटे और बेटी पर बाप का छाया होता हैं।दिल  से लौटू तो ऐसा लगता हैं कि कोई बुला रहा है,, घर के अन्दर से निकलकर जैसे कोई मेरे पास आ रहा है। लगता हैं कि वो डाँटेगा और कहेगा कि मास्क लगाया नहीं तूने, अरे ये बाईक और मोबाईल भी आज सेनेटाइज किया नहीं तूने। महामारी फैली हुई हैं और तू बेपरवाह होता जा रहा है, हेलमेट भी नही लगाया कितना लापरवाह होता जा रहा है। हर रोज की तरह आज भी तू मुझको बताकर नही गया, तेरी माँ सुबह से परेशान है कि तू खाना खाकर नही गया। सोचता हूँ कि ये सब घर पर सुनूंगा और सहम जाऊंगा मैं, मगर ये क्या पता कि अब ये सिर्फ एक वहम पाऊंगा मैं। अब घर लौटते ही दरवाज़े पर खड़े पिताजी नहीं मिलते, मेरी जीवन नौका तारणहार मेरे वो माझी नहीं मिलते। अब क्या गलत है और क्या सही है ये बताने वाला कोई नहीं, बार बार डांटकर फटकार कर अब समझाने वाला कोई नहीं। आज सब कुछ पाकर जब अपने पैरों पर खड़ा हो चुका हूं मैं, पर पापा मेरी गलती नहीं बताते क्या इतना बड़ा हो चुका हूं मैं। आज सुख चैन है, खुशियां है मेरे पास मगर आप नहीं, ये मकान सशरीर खड़ा है मगर इसमें शायद प्राण नहीं। धैर्य, त्याग, स्नेह, समर्पण, परिश्रम और अनुशासन है, पिताजी परिवार रूपी देश पर एक लोकतांत्रिक शासन है।वो, जो मेरी ख़ुशी केे लिए अपनी ख़ुशी भूल जाते हैं | वो जो मेरी एक हसीं केे लिए कुछ भी कर जाते हैं | आने लगे जो कोई ग़म मेरी ज़िंदगी में, वो आने से पहले ही उससे लड़ जाते हैं | आँसू ना आये मेरी आँखों से इसका वो पूरा ख्याल रखते है, अपने दर्द को मेरे सामने वो अक्सर छुपाया करते हैं | जो मुझे चाहिए , वो वक़्त से पहले ला देते हैं, इस क़दर वो अपना निस्वार्थ प्रेम जताया करते हैं | मेरे नाम से जाने सब उन्हें , ये सपना है उनका , पूरा करना है ये सपना , यही है मकसद ज़िंदगी का | उनके गुस्से में भी प्यार छुपा होता है , उनकी डाट में भी दुलार भरा होता है , और उसी शख्स का नाम पापा होता हैं | अभी जो कुछ कम कर रहा हूं पापा वह आपको प्रिया लगे । मेरी हर मुश्किल में मेरे साथ मेरी ख़ुशी में मेरे गम में मेरे साथ जिसने कभी टूटने दिया नहीं रास्ते में कभी तनहा किया नहीं एक वहीं ! जिसने अपने जीवन की पूंजी लगा दी मुझे संवारने में अपने संस्कारों से.. अपने तजूर्बे से... जिसने दिन को दिन न समझा जिसने रात को रात न समझा जिसने मुझे ये ज़िन्दगी दी ! एक वहीं (मेरे पिता) हम पानी से नहाते हैं वो पसीने से नहाता है देखकर मुस्कान हमारे चेहरे की वो अपना हर दर्द भूल जाता है मुकम्मल हो हमारे सपने इसलिए वो हर रोज़ काम पे जाता है वो हस्ती कोई आम नहीं जो पिता कहलाता है जीवन की कहानी कितनी ही लंबी क्यूँ ना हो जाये ... लेकिन इस कहानी का सारांश हमेशा आप ही रहोगें ... पिता जी /पापा ?लिखने की बुनियाद कलम है, और ये कलम मुझे मेरे पिता ने दिलाई. बस इतना लिख के समाप्त करता हूं पापा कहने तो बहुत है। पर कभी मौका मिलने से फिर खत लिखूंगा बहुत याद आ रहा है पापा 

✍️आपका बेटा अल्बिनिऊष तोपनो 💞❣️




14 अगस्त 2022 वर्ष का बीसवाँ सामान्य रविवार

 

14 अगस्त 2022

वर्ष का बीसवाँ सामान्य रविवार




📒पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 38:4-6,8-10



4) पदाधिकारियों ने राजा से कहा, “यिरमियाह को मार डाला जाये। वह येरूासालेम की हार की भवियवाणी करता है और इस प्रकार शहर में रहने वाले सौनिकों और सारी जनता की हिम्मत तोड़ता है। वह प्रजा का हित नहीं, बल्कि अहित चाहता है“।

5) राजा सिदकीया ने उत्तर दिया, “वह आप लोगों के वश में है। राजा आप लोगों के विरुद्ध कुछ नहीं कर सकता।“

6) इस पर वे यिरमियाह को ले गये और उन्होंने उस को रक्षादल के प्रांगण में स्थित राजकुमार मलकीया के कुएँ में डाल दिया। उन्होंने यिरमियाह को रस्सी से उतार दिया। कुएँ में पानी नहीं था, उस में केवल कीच था और यिरमियाह कीच में धँस गया।

8) एबेद-मेलेक ने राजमहल से निकल कर राजा से कहा,

9) “राजा! मेरे स्वामी! उन लोगों ने नबी यिरमियाह के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया- उन्होंने उन को कुएँ में डाल दिया। वह वहाँ भूखे मर जायेंगे, क्योंकि नगर में रोटी नहीं बची है।“

10) इस पर राजा ने कूशी एबेद-मेलेक को यह आदेश दिया, “यहाँ के तीन आदमियों को अपने साथ ले जाओ और इस से पहले कि यिरमियाह मर जाये, उसे कुएँ में से खींच निकालो।“


📒दूसरा पाठ : इब्रानियों 12:1-4


1) जब विश्वास के साक्षी इतनी बड़ी संख्या में हमारे चारों ओर विद्यमान हैं, तो हम हर प्रकार की बाधा दूर कर अपने को उलझाने वाले पाप को छोड़ कर और ईसा पर अपनी दृष्टि लगा कर, धैर्य के साथ उस दौड़ में आगे बढ़ते जायें, जिस में हमारा नाम लिखा गया है।

2) ईसा हमारे विश्वास के प्रवर्तक हैं और उसे पूर्णता तक पहुँचाते हैं। उन्होंने भविष्य में प्राप्त होने वाले आनन्द के लिए क्रूस पर कष्ट स्वीकार किया और उसके कलंक की कोई परवाह नहीं की। अब वह ईश्वर के सिंहासन के दाहिने विराजमान हैं।

3) कहीं ऐसा न हो कि आप लोग निरूत्साह हो कर हिम्मत हार जायें, इसलिए आप उनका स्मरण करते रहें, जिन्होंने पापियों का इतना अत्याचार सहा।

4) अब तक आप को पाप से संघर्ष करने में अपना रक्त नहीं बहाना पड़ा।


📒सुसमाचार : लूकस 12:49-53


49) "मैं पृथ्वी पर आग ले कर आया हूँ और मेरी कितनी अभिलाषा है कि यह अभी धधक उठे!

50) मुझे एक बपतिस्मा लेना है और जब तक वह नहीं हो जाता, मैं कितना व्याकुल हूँ!

51) "क्या तुम लोग समझते हो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति ले कर आया हूँ? मैं तुम से कहता हूँ, ऐसा नहीं है। मैं फूट डालने आया हूँ।

52) क्योंकि अब से यदि एक घर में पाँच व्यक्ति होंगे, तो उन में फूट होगी। तीन दो के विरुद्ध होंगे और दो तीन के विरुद्ध।

53) पिता अपने पुत्र के विरुद्ध और पुत्र अपने पिता के विरुद्व। माता अपनी पुत्री के विरुद्ध होगी और पुत्री अपनी माता के विरुद्ध। सास अपनी बहू के विरुद्ध होगी और बहू अपनी सास के विरुद्ध।"


📚 मनन-चिंतन


आज के पाठ, समाज में ईश्वर के प्रतिनिधि की उपस्थिति के कारण, गहरी विभाजन के तीन उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। यह दर्शाता है कि ईश्वर के प्रति आज्ञाकारिता अक्सर विभाजन लाती है। नबी येरेमियस का संदेश विभाजनकारी था क्योंकि वह सशस्त्र विद्रोह का कड़ा विरोध करता था और ईश्वर की ओर लौटने के लिए लोगों को आदेश देता था। इब्रानियों के नाम पत्र के लेखक ने जोर देकर कहा कि - ईसाई धर्म और नैतिक मानदंडों के पालन के द्वारा ईसाइयों को दुनिया की सोच से अलग होना चाहिए। येसु शांति देने आए थे, हालांकि, उनका संदेश और उनकी उपस्थिति परिवार और समाज में विभाजन का कारण बन गई। येसु का संदेश हमारे अंतरतम का परीक्षण करता है, इस प्रकार हमारे दृष्टिकोण और उद्देश्यों को प्रकट करता है। शुद्ध करने वाली आग एक शोधन प्रक्रिया है। इसी प्रकार ईश्वर द्वारा भेजे गए संदेशवाहकों के कारण, हुए विभाजन का मुक्तिदायी प्रभाव होता है।



📚 REFLECTION


Today’s readings present three examples of deep divisions caused by the presence of God’s representative in the society. It shows that obedience to God often brings divisions. Jeremiah’s message was divisive because of his firm opposition to armed rebellion and his advocacy for the return to God. The author of the Hebrews insisted that Christians must be separated from the world by their adherence to the Christian faith and moral norms. Jesus did come to bring peace, however, his message and his presence became a cause of divisions in the family and society. The message of Jesus tests our deep inner self, thus revealing our attitudes and motives. The purifying fire is a refining process. Thus, the division caused by God’s messengers has salvific effect.



📙 मनन-चिंतन - 2


साधारणतः हम देखते हैं कि प्रभु येसु की छवि एक शांतिप्रिय एवं परहित की भावना से ओत-प्रोत की छवि है। जो भी निराश, परेशान व्यक्ति प्रभु येसु के पास आया, उनका हृदय उसके प्रति करुणा से भर गया। उन्होंने दूसरों की बीमारियों को दूर किया, उनके दुःख-दर्द और कष्टों को मिटाया और आपसी प्रेम और भाईचारे का सन्देश दिया। लेकिन आज के सुसमाचार में हम प्रभु येसु के मुख से बड़े अजीब शब्द सुनते हैं। प्रभु येसु कहते हैं,- “मैं पृथ्वी पर आग लेकर आया हूँ, और मेरी कितनी अभिलाषा है कि यह अभी धधक उठे” (लूकस 12:49)। उसके बाद के शब्द और भी अधिक डरावने हैं - “क्या तुम लोग समझते हो कि मैं पृथ्वी पर शान्ति लेकर आया हूँ? मैं तुमसे कहता हूँ, ऐसा नहीं है। मैं फूट डालने आया हूँ।” (लूकस 12:51) क्या ऐसे भड़काऊ शब्द प्रभु येसु के मुख से शोभा देते हैं? यदि हम प्रभु के इन शब्दों को गहराई से नहीं समझेंगे तो हम भ्रमित और गुमराह हो सकते हैं।

सन्त मत्ती के सुसमाचार 13:24-30 में हम जंगली बीज का दृष्टान्त सुनते हैं, जिसमें फसल का स्वामी चाहता है और आदेश देता है कि ‘कटनी तक दोनों तरह बीजों, अर्थात् अच्छे और जंगली बीजों को साथ-साथ बढ़ने देना है। (देखें मत्ती 13:29) और इसी अध्याय के पद संख्या 36-43 में हम उपरोक्त दृष्टान्त का अर्थ स्वयं प्रभु येसु से सुनते हैं, जिसमें प्रभु येसु अपने शिष्यों को समझाते हुए कहते हैं कि “खेत संसार है; अच्छा बीज राज्य की प्रजा है; जंगली बीज दुष्टात्मा की प्रजा है; बोने वाला बैरी शैतान है...” (मत्ती 13:38-39अ)। अर्थात् ईश्वरीय राज्य की प्रजा और दुष्टात्मा या शैतान की प्रजा, इस संसार में दोनों साथ-साथ बढ़ते हैं। अथवा सीधे-सीधे शब्दों में कहें तो इस संसार में दोनों तरह के लोग- अच्छे और बुरे, साथ-साथ आगे बढ़ते हैं, लेकिन समय आने पर ईश्वर उन्हें अलग-अलग करेंगे, और उनका एक दूसरे से अलग-अलग होना बहुत ज़रूरी है।

हम आज की दुनिया में देखते हैं कि लोगों के मन में अच्छाई और बुराई का अन्तर बहुत कम होता जा रहा है। अक्सर लोग अच्छाई और बुराई में अंतर नहीं कर पाते हैं, और अच्छाई को छोड़कर बुराई का साथ देने लग जाते हैं। आप कल्पना कीजिए कि आपके ऊपर दुनिया के सारे लोगों को बुराई से बचाने की जिम्मेदारी है, और ऐसे में आप पाते हैं कि अच्छे लोग बुरे लोगों में शामिल होते जा रहे हैं। जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, वैसे-वैसे अच्छाई और बुराई का अंतर ख़त्म होता जा रहा है, तो ज़रूर आपको लगेगा कि आप जल्द से जल्द अच्छे लोगों को बुरे लोगों से अलग कर दें। प्रभु येसु भी इस दुनिया में वही करने आये हैं - अच्छे और बुरे लोगों को एक दूसरे के विरुद्ध करने।

सन्त लूकस के सुसमाचार 3:16 में हम पढ़ते हैं, सन्त योहन बप्तिस्ता कहते हैं कि “मैं तो तुम लोगों को जल से बप्तिस्मा देता हूँ; परन्तु एक आने वाले हैं जो मुझसे अधिक शक्तिशाली हैं... वह तुम लोगों को पवित्र आत्मा और आग से बप्तिस्मा देंगे।” प्रभु येसु पवित्र आत्मा और आग के द्वारा इस संसार को शुद्ध करना चाहते हैं। आगे सन्त योहन इंगित करते हैं कि “वह हाथ में सूप ले चुके हैं, जिससे वह अपना खलिहान ओसा कर साफ करें, और अपना गेहूँ अपने बखार में जमा करें...”(लूकस 3:17)। इसलिए प्रभु येसु हमसे कहते हैं कि “मैं पृथ्वी पर आग लेकर आया हूँ”। यही आग हमें शुद्ध करती है, यही आग अच्छे और बुरे लोगों को अलग-अलग करती है, तीन को दो के विरुद्ध और दो को तीन के विरुद्ध, पिता को पुत्र के विरुद्ध और पुत्र को पिता के विरुद्ध, माता, पुत्री, सास-बहु आदि को एक दूसरे के विरुद्ध करती है, क्योंकि अच्छे बीज और बुरे बीज हमेशा एक साथ नहीं रह सकते।

हम अपने मन में झाँककर देखें, क्या हम उस आग से पवित्र किये जाने के लिये तैयार हैं? क्या हमारे मन में बुराई और अच्छाई के प्रति स्पष्ट अन्तर है या नहीं? क्या प्रभु येसु के इस कार्य में हमारी कोई भूमिका हो सकती है? क्या हम प्रभु येसु के साथ हैं या संसार के साथ हैं? इन सब बातों को समझने के लिए प्रभु हमें आशीष दें। आमेन।

 -Br. Biniush Topno



Copyright © www.catholicbibleministry1.blogspot.com
Praise the Lord!

07 अगस्त 2022 वर्ष का उन्नीसवाँ इतवार

 

07 अगस्त 2022

वर्ष का उन्नीसवाँ इतवार



📒 पहला पाठ : प्रज्ञा ग्रन्थ 18:6-9


6) उस रात के विषय में हमारे पूर्वजों को पहले से इसलिए बताया गया था कि वे यह जानकर हिम्मत बाँधे कि हमने किस प्रकार की शपथों पर विश्वास किया है।

7) तेरी प्रजा धर्मियों की रक्षा तथा अपने शत्रुओं के विनाश की प्रतीक्षा करती थी।

8) तूने हमारे शत्रुओं को दण्ड दिया और हमें अपने पास बुला कर गौरवान्वित किया है।

9) धर्मियों की भक्त सन्तान से छिप कर बलि चढ़ायी और पूर्वजों के भजन गाने के बाद उसने एकमत हो कर यह ईश्वरीय विधान स्वीकार किया कि सन्त-जन साथ रह कर भलाई और बुराई, दोनों समान रूप से भोगेंगे।



📕 दूसरा पाठ : इब्रानियों 11:1-2,8-19



1) विश्वास उन बातों की स्थिर प्रतीक्षा है, जिनकी हम आशा करते हैं और उन वस्तुओं के अस्तित्व के विषय में दृढ़ धारणा है, जिन्हें हम नहीं देखते।

2) विश्वास के कारण हमारे पूर्वज ईश्वर के कृपापात्र बने।

8) विश्वास के कारण इब्राहीम ने ईश्वर का बुलावा स्वीकार किया और यह न जानते हुए भी कि वह कहाँ जा रहे हैं, उन्होंने उस देश के लिए प्र्रस्थान किया, जिसका वह उत्तराधिकारी बनने वाले थे।

9) विश्वास के कारण वह परदेशी की तरह प्रतिज्ञात देश में बस गये और वहाँ इसहाक तथा याकूब के साथ, जो एक ही प्रतिज्ञा के उत्तराधिकारी थे, तम्बुओं में रहने लगे।

10) इब्राहीम ने ऐसा किया, क्योंकि वह उस पक्की नींव वाले नगर की प्रतीक्षा में थे, जिसका वास्तुकार तथा निर्माता ईश्वर है।

11) विश्वास के कारण उमर ढ़ल जाने पर भी सारा गर्भवती हो सकीं; क्योंकि उनका विचार यह था जिसने प्रतिज्ञा की है, वह सच्चा है

12) और इसलिए एक मरणासन्न व्यक्ति से वह सन्तति उत्पन्न हुई, जो आकाश के तारों की तरह असंख्य है और सागर-तट के बालू के कणों की तरह अगणित।

13) प्रतिज्ञा का फल पाये बिना वे सब विश्वास करते हुए मर गये। उन्होंने उसे दूर से देखा और उसका स्वागत किया। वे अपने को पृथ्वी पर परदेशी तथा प्रवासी मानते थे।

14) जो इस तरह की बातें कहते हैं, वे यह स्पष्ट कर देते हैं कि वे स्वदेश की खोज में लगे हुए हैं।

15) वे उस देश की बात नहीं सोचते थे, जहाँ से वे चले गए थे; क्योंकि वे वहाँ लौट सकते थे।

16) वे तो एक उत्तम स्वदेश अर्थात् स्वर्ग की खोज में लगे हुए थे; इसलिए ईश्वर को उन लोगों का ईश्वर कहलाने में लज्जा नहीं होती। उसने तो उनके लिए एक नगर का निर्माण किया है।

17) जब ईश्वर इब्राहीम की परीक्षा ले रहा था, तब विश्वास के कारण उन्होंने इसहास को अर्पित किया। वह अपने एकलौते पुत्र को बलि चढ़ाने तैयार हो गये थे,

18) यद्यपि उन से यह प्रतिज्ञा की गयी थी, कि इसहाक से तेरा वंश चलेगा।

19) इब्राहीम का विचार यह था कि ईश्वर मृतकों को भी जिला सकता है, इसलिए उन्होंने अपने पुत्र को फिर प्राप्त किया। यह भविष्य के लिए प्रतीक था।



📙 सुसमाचार : लूकस 12:32-48



32) छोटे झुण्ड! डरो मत, क्योंकि तुम्हारे पिता ने तुम्हें राज्य देने की कृपा की है।

33) "अपनी सम्पत्ति बेच दो और दान कर दो। अपने लिए ऐसी थैलियाँ तैयार करो, जो कभी छीजती नहीं। स्वर्ग में एक अक्षय पूँजी जमा करो। वहाँ न तो चोर पहुँचता है और न कीड़े खाते हैं;

34) क्योंकि जहाँ तुम्हारी पूँजी है, वहीं तुम्हारा हृदय भी होगा।

35) "तुम्हारी कमर कसी रहे और तुम्हारे दीपक जलते रहें।

36) तुम उन लोगों के सदृश बन जाओ, जो अपने स्वामी की राह देखते रहते हैं कि वह बारात से कब लौटेगा, ताकि जब स्वामी आ कर द्वार खटखटाये, तो वे तुरन्त ही उसके लिए द्वार खोल दें।

37) धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी आने पर जागता हुआ पायेगा! मैं तुम से यह कहता हूँः वह अपनी कमर कसेगा, उन्हें भोजन के लिए बैठायेगा और एक-एक को खाना परोसेगा।

38) और धन्य हैं वे सेवक, जिन्हें स्वामी रात के दूसरे या तीसरे पहर आने पर उसी प्रकार जागता हुआ पायेगा!

39) यह अच्छी तरह समझ लो-यदि घर के स्वामी को मालूम होता कि चोर किस घड़ी आयेगा, तो वह अपने घर में सेंध लगने नहीं देता।

40) तुम भी तैयार रहो, क्योंकि जिस घड़ी तुम उसके आने की नहीं सोचते, उसी घड़ी मानव पुत्र आयेगा।"

41) पेत्रुस ने उन से कहा, "प्रभु! क्या आप यह दृष्टान्त हमारे लिए कहते हैं या सबों के लिए?"

42) प्रभु ने कहा, "कौन ऐसा ईमानदार और बुद्धिमान् कारिन्दा है, जिसे उसका स्वामी अपने नौकर-चाकरों पर नियुक्त करेगा ताकि वह समय पर उन्हें रसद बाँटा करे?

43) धन्य हैं वह सेवक, जिसका स्वामी आने पर उसे ऐसा करता हुआ पायेगा!

44) मैं तुम से यह कहता हूँ, वह उसे अपनी सारी सम्पत्ति पर नियुक्त करेगा।

45) परन्तु यदि वह सेवक अपने मन में कहे, ’मेरा स्वामी आने में देर करता है’ और वह दासदासियों को पीटने, खाने-पीने और नशेबाजी करने लगे,

46) तो उस सेवक का स्वामी ऐसे दिन आयेगा, जब वह उसकी प्रतीक्षा नहीं कर रहा होगा और ऐसी घड़ी जिसे वह जान नहीं पायेगा। तब स्वामी उसे कोड़े लगवायेगा और विश्वासघातियों का दण्ड देगा।

47) "अपने स्वामी की इच्छा जान कर भी जिस सेवक ने कुछ तैयार नहीं किया और न उसकी इच्छा के अनुसार काम किया, वह बहुत मार खायेगा।

48) जिसने अनजाने ही मार खाने का काम किया, वह थोड़ी मार खायेगा। जिसे बहुत दिया गया है, उस से बहुत माँगा जायेगा और जिसे बहुत सौंपा गया है, उस से अधिक माँगा जायेगा।

.

📚 मनन-चिंतन - 2



सुसमाचार में येसु आने वाले न्याय के दिन के लिए तैयार रहने का निर्देश देता है। हमें उस लालची अमीर की तरह नहीं बनना है जो अपनी सारे उपज को बाँटने के बजाय भण्डार में रखने की योजना बनाता है। बल्कि, हमें अपने धन जरूरतमंदों के साथ बांटना है। आने वाले न्याय के दिन के लिए तैयार रहने का दूसरा प्रमुख तरीका सतर्क रहना है।अच्छे सेवक के तीन विशिष्ट लक्षण होते हैं। १) तैयारी- "कपड़े पहनकर तैयार रहना" २) रखरखाव- "दीपक जला कर" ३) अपेक्षा- "स्वामी के लौटने की प्रतीक्षा करता है।" तो प्रश्न यह है कि हम प्रभु के आगमन की तैयारी कैसे कर सकते हैं? हम हमेशा जागते हुए नहीं, बल्कि हमेशा वफादार रहकर तैयारी कर सकते हैं। दूसरा पाठ यात्रा की बात करता है।यह यात्रा हमारे जीवन शैली, गुणवत्ता और दिशा के बारे में है। इसमें हमारा हर अनुभव शामिल है और उस अनुभव के प्रति, हमारी प्रतिक्रिया भी। प्यार और सेवा में जिया गया एक वफादार जीवन ही हमारी असली संपत्ति है।


📚 REFLECTION



In the gospel Jesus instructs on how to be ready for the coming judgment. We are not to be like the greedy rich man who plans to store his great harvest in barns rather than share it. We are, rather, to share our wealth with those in need. The other major way to be ready for the coming judgment is to be watchful. There are three distinct characteristics of the good servant. a) Preparation- “dressed and ready” b) maintenance- “keeps the lamp burning” c) expectation- “waits for the master to return.” The question, then, is how can we prepare for the Lord’s coming? We can prepare, not by being always awake, but by being always faithful. The second reading speaks of journey. This journey is about the style and quality and direction of our living. It includes every experience we will have and how we respond to each one. A faithful life lived in love and service is our real wealth.


📚 मनन-चिंतन - 2



नबी इसायाह के ग्रन्थ 44:24 द्वारा प्रभु हमसे कहते हैं, “जिसने तुम्हारा उद्धार किया और माता के गर्भ में गढ़ा है, वही प्रभु यह कहता है: मैं प्रभु हूँ। मैंने सब कुछ बनाया है...” हम चाहे ईश्वर में विश्वास करें या न करें लेकिन सच्चाई यही है कि प्रभु ईश्वर ने ही सब कुछ की श्रृष्टि की है। उसी के अधिकार में सब कुछ है और सब कुछ उसी का दिया हुआ है, हमारा जीवन, हमारा परिवार, विभिन्न वरदान आदि, सब कुछ प्रभु का ही दिया हुआ है। इसलिए वही हमारा प्रभु और स्वामी है और हम उसके सेवक मात्र हैं। हमारा अपना कुछ भी नहीं है, और इसलिए हमें हर पल, हर क्षण उसी के लिए जीना है, उसी की इच्छा पूरी करनी है। इस बात को बहुत कम लोग गम्भीरता से लेते हैं, और यही कारण है कि ऐसे लोग प्रभु से दूर भटक जाते हैं।

आज का सुसमाचार हमें इसी ओर इंगित करता है कि हम ईश्वर के सेवक मात्र हैं और जो कार्य हमें प्रभु ने सौंपा है उसे हमें पूर्ण ईमानदारी से पूरा करना है, और जो सेवक अपने कार्य में सजग और ईमानदार पाया जायेगा, प्रभु उसे उसका उचित फल देगा। आखिर एक आम इन्सान जो अपनी नौकरी करता है, अपने परिवार की देख-भाल करता है, हर इतवार गिरजा जाता है आदि, वह व्यक्ति कैसे ईश्वर का सेवक हुआ और उसे प्रभु ने क्या जिम्मेदारी सौंपी है, और प्रभु के आने पर किस सौंपी हुई जिम्मेदारी का मूल्यांकन किया जायेगा? ईश्वर ने हमें इस दुनिया में ज़रुर कुछ न कुछ योजना पूरी करने के लिए भेजा है। ईश्वर ने हमें भेजा है ताकि हम उसका साक्ष्य दें, उसकी महानता का बखान करें। इसी के लिए उसने हमें यह जीवन प्रदान किया है।

मान लीजिये एक साधारण सा व्यक्ति एक साधारण जीवन व्यतीत करता है। उस व्यक्ति का अपना परिवार है। वह परिवार उसे किसने उसे सौंपा है? उस व्यक्ति के बाल-बच्चे हैं, वे बच्चे किसका वरदान हैं? वह व्यक्ति कोई नौकरी करके अपनी रोजी-रोटी कमाता है, वह नौकरी किसकी कृपा से मिली है? अगर विश्वासी ह्रदय से इन सवालों का जवाब दें तो यह सब ईश्वर की देन है, वास्तव में हर सवाल का जवाब ही ईश्वर में है। जो व्यक्ति ईश्वर में विश्वास नहीं करता है, उसे अपने जीवन का उद्देश्य कभी भी समझ में नहीं आयेगा। जब हमारा प्रभु आयेगा तो इन सभी चीजों के आधार पर ही हमारा मूल्यांकन होगा।

अगर एक व्यक्ति को एक परिवार को सँभालने की जिम्मेदारी ईश्वर ने दी है, लेकिन वह ईमानदारी के साथ अपने परिवार के प्रति अपना कर्तव्य नहीं निभाता है तो क्या उसे वफादार सेवक कहा जा सकता है? एक माता-पिता अपने बच्चों के प्रति जो जिम्मेदारी है, जैसे उनका उचित रीति से लालन-पालन करना, उचित शिक्षा-दीक्षा की व्यवस्था करना, धर्म की शिक्षाओं को उनके ह्रदय में बोना आदि, जब इन जिम्मेदारियों को ईमानदारी से नहीं निभाएंगे तो क्या वे भले और ईमानदार सेवक कहला सकते हैं? एक पति अपनी पत्नी के प्रति वफादार नहीं है, या पत्नी अपना पति धर्म पूरी ईमानदारी से नहीं निभाती है तो क्या ऐसे पति-पत्नि भले और ईमानदार सेवक कहलाये जा सकते हैं? अगर बच्चे अपने माता-पिता का आदर नहीं करते, उनके प्रति अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते, अपने उज्जवल भविष्य के बारे में बड़ों की बातें नहीं मानते, तो क्या वे प्रभु के ईमानदार सेवक बन जायेंगे। एक नौकरी वाला व्यक्ति अपना काम ठीक से नहीं करता, उचित परिश्रम नहीं करता, काम करने के लिए घूष लेता है, भ्रष्टाचार करता है, तो क्या इस दुनिया का स्वामी उसे सज़ा नहीं देगा?

हम जीवन में चाहे जो कुछ भी हों, माता-पिता हों, बच्चे हों, विद्यार्थी हों, डाक्टर, इंजिनियर, सरकारी कर्मचारी, शिक्षक, नर्स, ड्राइवर, चपरासी कुछ भी हों, उसी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाना ही हमारा कर्तव्य है, वही हमारे जीवन का उद्देश्य है, उसी के प्रति पूर्ण रूप से वफादार बने रहने में ही हमारे जीवन की सार्थकता है। अगर हम ऐसा करेंगे तो हमारा स्वामी चाहे जिस घड़ी आयेगा, हमें तैयार और सजग पायेगा। ईश्वर हमें भले, सजग, ईमानदार और वफादार सेवक बनने में मदद करे। आमेन।


 -Br. Biniush Toono


Copyright © www.catholicbibleministry1.blogspot.com
Praise the Lord!