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10 जुलाई 2022, इतवार वर्ष का पन्द्रहवाँ इतवार

 

10 जुलाई 2022, इतवार

वर्ष का पन्द्रहवाँ इतवार



पहला पाठ : विधि-विवरण 30:10-14



10) बषर्तें तुम अपने प्रभु-ईश्वर की बात मानो, इस संहिता के ग्रन्थ में लिखी हुई उसकी आज्ञाओं और नियमों का पालन करो और सारे हृदय तथा सारी आत्मा से प्रभु-ईश्वर के पास लौट जाओ।

11) "क्योंकि मैं तुम लोगों को आज जो संहिता दे रहा हूँ, वह न तो तुम्हारी शक्ति के बाहर है और न तुम्हारी पहुँच के परे।

12) यह स्वर्ग नहीं है, जो तुमको कहना पड़े - कौन हमारे लिए स्वर्ग जा कर उसे हमारे पास लायेगा, जिससे हम उसे सुन कर उसका पालन करें?

13) और यह समुद्र के उस पार नहीं है, जो तुम को कहना पड़े - कौन हमारे लिए समुद्र पार कर उसे हमारे पास लायेगा, जिससे हम उसे सुन कर उसका पालन करें?

14) नहीं, वचन तो तुम्हारे पास ही है; वह तुम्हारे मुख और हृदय में हैं, जिससे तुम उसका पालन करो।



दुसरा पाठ : कालोसियों 1:15-20



15) ईसा मसीह अदृश्य ईश्वर के प्रतिरूप तथा समस्त सृष्टि के पहलौठे हैं;

16) क्योंकि उन्हीं के द्वारा सब कुछ की सृष्टि हुई है। सब कुछ - चाहे वह स्वर्ग में हो या पृथ्वी पर, चाहे दृश्य हो या अदृश्य, और स्वर्गदूतों की श्रेणियां भी - सब कुछ उनके द्वारा और उनके लिए सृष्ट किया गया है।

17) वह समस्त सृष्टि के पहले से विद्यमान हैं और समस्त सृष्टि उन में ही टिकी हुई है।

18) वही शरीर अर्थात् कलीसिया के शीर्ष हैं। वही मूल कारण हैं और मृतकों में से प्रथम जी उठने वाले भी, इसलिए वह सभी बातों में सर्वश्रेष्ठ हैं।

19) ईश्वर ने चाहा कि उन में सब प्रकार की परिपूर्णता हो।

20) मसीह ने क्रूस पर जो रक्त बहाया, उसके द्वारा ईश्वर ने शान्ति की स्थापना की। इस तरह ईश्वर ने उन्हीं के द्वारा सब कुछ का, चाहे वह पृथ्वी पर हो या स्वर्ग में, अपने से मेल कराया।



सुसमाचार : लुकस 10:25-37



25) किसी दिन एक शास्त्री आया और ईसा की परीक्षा करने के लिए उसने यह पूछा, "गुरूवर! अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?"

26) ईसा ने उस से कहा, "संहिता में क्या लिखा है?" तुम उस में क्या पढ़ते हो?"

27) उसने उत्तर दिया, "अपने प्रभु-ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करो और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो"।

28) ईसा ने उस से कहा, "तुमने ठीक उत्तर दिया। यही करो और तुम जीवन प्राप्त करोगे।"

29) इस पर उसने अपने प्रश्न की सार्थकता दिखलाने के लिए ईसा से कहा, "लेकिन मेरा पड़ोसी कौन है?"

30) ईसा ने उसे उत्तर दिया, "एक मनुष्य येरूसालेम से येरीख़ो जा रहा था और वह डाकुओं के हाथों पड़ गया। उन्होंने उसे लूट लिया, घायल किया और अधमरा छोड़ कर चले गये।

31) संयोग से एक याजक उसी राह से जा रहा था और उसे देख कर कतरा कर चला गया।

32) इसी प्रकार वहाँ एक लेवी आया और उसे देख कर वह भी कतरा कर चला गया।

33) इसके बाद वहाँ एक समारी यात्री आया और उसे देख कर उस को तरस हो आया।

34) वह उसके पास गया और उसने उसके घावों पर तेल और अंगूरी डाल कर पट्टी बाँधी। तब वह उसे अपनी ही सवारी पर बैठा कर एक सराय ले गया और उसने उसकी सेवा शुश्रूषा की।

35) दूसरे दिन उसने दो दीनार निकाल कर मालिक को दिये और उस से कहा, ’आप इसकी सेवा-शुश्रूषा करें। यदि कुछ और ख़र्च हो जाये, तो मैं लौटते समय आप को चुका दूँगा।’

36) तुम्हारी राय में उन तीनों में कौन डाकुओं के हाथों पड़े उस मनुष्य का पड़ोसी निकला?"

37) उसने उत्तर दिया, "वही जिसने उस पर दया की"। ईसा बोले, "जाओ, तुम भी ऐसा करो"।



📚 मनन-चिंतन



ईश्वर और पडोसी के प्रति प्रेम

भले समारी का दृष्टाँत हमें पडोसी के प्रति प्रेम के विषय में कुछ अप्रिय सच्चाईयों से अवगत कराता है। समारी उस व्यक्ति पर तरस खाकर उसकी मदद करता हैं। हमारे जीवन के लिए उपयोगी सीख- अनंत जीवन ईश्वर की एक विरासत है जो उन लोगों के लिए आरक्षित है जो ईश्वर और पडोसी से प्यार करते हैं। लेकिन हम यह नहीं कह सकते कि, हम ईश्वर से प्यार करते है और अपने पडोसी को नजर अंदाज कर दें। पडोसी के प्रति संवेदनशील रहना हमारे ईश्वर के प्रति सच्चे प्रेम का प्रमाण है। आज के पाठ हमें अपने पडोसी के प्रति प्रेम पर मनन् चिंतन करने के लिए आमंत्रित करते हैं। क्योंकि ईश्वर प्रेम है।





📚 REFLECTION


Love of God and Neighbour

The story of the Good Samaritan is one that should wake us up to some not-so-pleasant truths about love of neighbour. First, a priest and a Levite walked by the beaten and suffering man on the side of the road and ignored him, passing on the opposite side of the road. Then the Samaritan walked by, filled with compassion, went out of his way to help the man. The lessons we can draw for us are as follows- Eternal Life is an inheritance of God reserved for those who love Him. But we cannot say we love Him if we refuse to show mercy to the people around us. Our love for one another truly reveals our love for God. To show mercy and be a neighbour to the needy is the act of that love (Caris). Be a neighbour to anyone in need. God created everyone in His own image and Jesus showed one cannot hate another human being and still claim to love God. Because Deus caritas est- God is Love.



मनन-चिंतन -2


आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि एक शास्त्री प्रभु येसु के पास आकर उनकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से उनसे पूछता है, "गुरूवर! अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिए मुझे क्या करना चाहिए?" प्रभु उससे प्रश्न करते है, "संहिता में क्या लिखा है?" तुम उस में क्या पढ़ते हो?" तब वह ज्ञानी शास्त्री ईश्वर को अपने सारे हृदय, अपनी सारी आत्मा, अपनी सारी शक्ति और अपनी सारी बुद्धि से प्यार करने तथा अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करने की बात प्रभु के सामने रखता है। प्रभु उस जवाब को सही ठहराते हुए उससे कहते हैं, "तुमने ठीक उत्तर दिया। यही करो और तुम जीवन प्राप्त करोगे"। इस पर भी शास्त्री प्रभु को नहीं छोड़ता है। वह अपने प्रश्न की सार्थकता दिखलाने के लिए प्रभु से और एक सवाल करता है, "लेकिन मेरा पड़ोसी कौन है?" इस पर प्रभु येसु भले समारी का दृष्टान्त सुनाते हैं जो विश्व-विख्यात है। हम सब इस दृष्टान्त को कई बार सुन चुके हैं। इसलिए मैं इस बात पर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ कि प्रभु इस दृष्टान्त के द्वारा क्या संदेश देते हैं।

दृष्टान्त सुनाने के बाद प्रभु उस शास्त्री से पूछते हैं, “तुम्हारी राय में उन तीनों में कौन डाकुओं के हाथों पड़े उस मनुष्य का पड़ोसी निकला?" और वह शास्त्री उत्तर देता है, "वही जिसने उस पर दया की"। तब प्रभु कहते हैं, "जाओ, तुम भी ऐसा करो"।

शास्त्री का प्रश्न था कि मेरा पडोसी कौन है। उसका जवाब प्रभु देते ही है। प्रभु के अनुसार हमारा पडोसी हमारी जीवन-यात्रा में हमारी राह पर आने वाला हरेक ज़रूरतमंद व्यक्ति है। लेकिन प्रभु उस शास्त्री और हम में से हरेक को यह सिखाना चाहते हैं कि हमें ज़रूरतमंदों का अच्छा पडोसी बनना चाहिए। प्रभु ने उस शास्त्री से जब पूछा, “तुम्हारी राय में उन तीनों में कौन डाकुओं के हाथों पड़े उस मनुष्य का पड़ोसी निकला?" तब उसने उत्तर दिया "वही जिसने उस पर दया की"। इस प्रकार प्रभु येसु हमें अच्छा पडोसी बनने का मार्ग भी दिखाते हैं। हम ज़रूरतमंदों पर दया दिखा कर उनके अच्छे पडोसी बन सकते हैं।

न्याय का मतलब यह है कि जिसे प्राप्त करने का हमारा अधिकार है वह हमें मिल जाये। लेकिन जिसे प्राप्त करने का हमारा अधिकार नहीं है, उसे भी दे देना दया है। प्रभु अपने शिष्यों से यह अपेक्षा करते हैं कि हम दूसरों पर दया दिखायें।

प्रभु दयालु है। स्तोत्रकार उन्हें दयासागर भी कहते हैं (देखिए स्तोत्र 51:1-3)। आदम और हेवा के पाप करने के बावजू्द प्रभु ने खाल के कपड़े बनाये और उन्हें पहनाया (देखिए उत्पत्ति 3:21)। काईन ने अपने भाई हाबिल को मार डाला। फिर भी प्रभु ईश्वर ने यह सोच कर कि काइन से भेंट होने पर कोई उसका वध न करे, काइन पर एक चिन्ह अंकित किया (देखिए उत्पत्ति 4:15)। अब्राम को साराय की दासी हागार से उत्पन्न बेटे को भी प्रभु ने आशीर्वाद दिया (देखिए उत्पत्ति 21:17-21)।

लूकस 9:52-56 में हम देखते हैं कि जब समारियों के एक गाँव के निवासियों ने प्रभु येसु को स्वागत करने से इनकार किया तो उनके शिष्य याकूब और योहन उस गाँव को आकाश से आग बरसा कर भस्म करना चाह रहे थे। परन्तु प्रभु ने मुड़ कर उन्हें डाँटा और वे दूसरी बस्ती चले गये। प्रभु येसु ने अपने साथ विश्वासघात करने वाले यूदस को मित्र कहा। उन्होंने पेत्रुस को जिसने उन्हें तीन बार अस्वीकार किया था, क्षमा कर उसे तीन बार प्रभु के प्रति अपने प्यार को प्रकट करने का अवसर दिया।

हम में से कोई भी न्याय के अनुसार मुक्ति नहीं पायेगा। अगर हम बचेंगे, तो सिर्फ़ ईश्वर की दया के कारण। इसलिए स्तोत्रकार सवाल करते हैं, “प्रभु! यदि तू हमारे अपराधों को याद रखेगा, तो कौन टिका रहेगा?” (स्तोत्र 130:3)। आज के सुसमाचार से हम सभी ज़रूरतमंदों पर दया दिखाने की चुनौती स्वीकार करें।


 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!

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