04 जनवरी 2022, मंगलवार
प्रभु-प्रकाश पर्व के बाद का मंगलवार
⭐ पहला पाठ : 1 योहन 4:7-10
7) प्रिय भाइयो! हम एक दूसरे को प्यार करें, क्योंकि प्रेम ईश्वर से उत्पन्न होता है।
8) जौ प्यार करता है, वह ईश्वर की सन्तान है और ईश्वर को जानता है। जो प्यार नहीं करता, वह ईश्वर को नहीं जानता; क्येोंकि ईश्वर प्रेम है।
9) ईश्वर हम को प्यार करता है। यह इस से प्रकट हुआ है कि ईश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को संसार में भेजा, जिससे हम उसके द्वारा जीवन प्राप्त करें।
10) ईश्वर के प्रेम की पहचान इस में है कि पहले हमने ईश्वर को नहीं, बल्कि ईश्वर ने हम को प्यार किया और हमारे पापों के प्रायश्चित के लिए अपने पुत्र को भेजा।
⭐ सुसमाचार : मारकुस 6:34-44
34) ईसा ने नाव से उतर कर एक विशाल जनसमूह देखा। उन्हें उन लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थे और वह उन्हें बहुत-सी बातों की शिक्षा देने लगे।
35) जब दिन ढलने लगा, तो उनके शिष्यों ने उनके पास आ कर कहा, "यह स्थान निर्जन है और दिन ढल चुका है।
36) लोगों को विदा कीजिए, जिससे वे आसपास की बस्तियों और गाँवों में जा कर खाने के लिए कुछ खरीद लें।"
37) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, "तुम लोग ही उन्हें खाना दे दो"। शिष्यों ने कहा, "क्या हम जा कर दो सौ दीनार की रोटियाँ ख़रीद लें और उन्हें लोगों को खिला दें?"
38) ईसा ने पूछा, "तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ है? जा कर देखो।" उन्होंने पता लगा कर कहा, "पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ"।
39) इस पर ईसा ने सब को अलग-अलग टोलियों में हरी घास पर बैठाने का आदेश दिया।
40) लोग सौ-सौ और पचास-पचास की टोलियों में बैठ गये।
41) ईसा ने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ ले ली और स्वर्ग की ओर आँखें उठा कर आशिष की प्रार्थना पढ़ी। वे रोटियाँ तोड-तोड कर अपने शिष्यों को देते गये, ताकि वे लोगों को परोसते जायें। उन्होंने उन दो मछलियों को भी सब में बाँट दिया।
42) सबों ने खाया और खा कर तृप्त हो गये।
43) रोटियों और मछलियों के बचे हुए टुकड़ों से बारह टोकरे भर गये।
44) रोटी खाने वाले पुरुषों की संख्या पाँच हज़ार थी।
📚 मनन-चिंतन
रोटियों का चमत्कार प्रभु येसु के सबसे महत्वपूर्ण चमत्कारों में से एक है। सुसमाचार-लेखकों के अनुसार येसु ने कम से कम दो बार रोटियों का चमत्कार किया : एक बार उन्होंने पाँच रोटियों और दो मछलियों से पाँच हज़ार लोगों को खिलाया और दूसरी बार उन्होंने सात रोटियों तथा कुछ छोटी मछलियों से चार हज़ार लोगों को खिला कर तृप्त किया। दोनों ही समय बहुत अधिक रोटियाँ बच गयी थीं, इतना कि शिष्यों को बचे हुए टुकड़ों को कई टोकरियों में इकट्ठा करना पडा था। इस चमत्कार का अर्थ हम दो परतों में समझ सकते हैं। सबसे पहले, जो लोग शारीरिक रूप से भूखे थे, उन पर दया करते हुए प्रभु येसु ने उन्हें खाने के लिए भरपूर भोजन दिया। दूसरा, आध्यात्मिक रूप से भूखे लोगों के लिए करुणा महसूस करते हुए उसने उन्हें स्वर्ग से भोजन दिया - यूखरिस्त में अपना शरीर और रक्त। हम रोटियों के चमत्कारों में यूखरिस्त की छाया पा सकते हैं। आइए हम ईश्वरीय पूर्वप्रबंध के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते रहें।
📚 REFLECTION
The miracle of the multiplication of bread is one of the most important miracles of Jesus. According to the evangelists Jesus multiplied bread at least twice : once he multiplied five loaves and two fish to feed five thousand people and on another occasion he multiplied seven loaves and some small fish to feed four thousand people. Both the times there was a abundance of bread, so much so the disciples had to collect the pieces left over in many baskets. We can understand this miracle in two layers of meaning. First, feeling compassion for the people who were physically hungry he gave them plenty of food to eat. Second, feeling compassion for people who were spiritually hungry he gave them food from heaven – his own body and blood in the Eucharist. We can find a shadow of the Eucharist in the multiplication of the bread. Let us be thankful to God for the divine providence.
📚 मनन-चिंतन - 02
आज हम पाँच रोटियों और दो मछलियों से हज़ारों लोगों को भोजन कराने के चमत्कार को देखते हैं। ऐसा क्या था जिसके कारण प्रभु येसु ने यह चमत्कार किया? लोगों के प्रति करुण प्रेम ने उन्हें उनके लिए कुछ करने के लिए प्रेरित और मजबूर किया। जब प्रभु ने देखा कि एक बड़ी भीड़ उनके पीछे-पीछे आ रही है, बड़ी आशा लिए उन्हें खोज रही है, उन्हें उन पर तरस आया, उन्हें वे बिना चरवाहे की भेड़ों के समान लगे। प्रभु येसु अगर चाहते तो दो मछलियों और पाँच रोटियों के बिना भी यह चमत्कार कर सकते थे, लेकिन वे चाहते हैं कि उनके मुक्तिकार्य में हम मनुष्यों का भी कुछ योगदान होना चाहिए।
इन दिनों के पाठों में क़रीब हर दिन हम ईश्वर के प्रेम के नए-नए पहलुओं को देखते हैं। आज की पूजन विधि में अपने आप को एक प्रेमी पिता के रूप में प्रकट करते हैं जो अपने बच्चों के दुःख-दर्द को अनदेखा नहीं कर सकते। हमारे दर्द, हमारी परेशानियाँ और हमारे मन का अंधकार उन्हें हमारे लिए व्यथित कर देता है। अगर हम ईश्वर की संतानें हैं तो हम में भी हमारे स्वर्गीय पिता के गुण होना ज़रूरी है। क्या दूसरों के दुःख-दर्द देखकर मेरा मन भी दुखी होता है और उनके लिए कुछ करने के लिए मुझे मजबूर कर देता है?
📚 REFLECTION
Today we reflect about the miracle of Jesus feeding a large number of people from five loaves and two fish. What made Jesus to perform this miracle? It was his love for the people that moved him to act for them. When he saw crowds seeking him, coming after him with so much expectation, he felt pity for them, he found that they needed someone to lead them to the right path and help them to come God. He could have performed this miracle even without five loaves and two fish, but he wants that in his saving mission there should be some contribution from our side as well.
These days in the daily readings almost everyday we witness new aspects of God’s love towards us. In today’s liturgy he shows that he is our loving father who cannot see the pain and misery of his children. Our sufferings, our pain, our sicknesses and our being in darkness moves him with pity. If we are his children we also need to possess some of the qualities of our heavenly father. Does somebody’s pain or misery or sufferings move me to act, to do something for them?
✍ -Br. Biniush Topno
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