मंगलवार, 09 नवंबर, 2021
वर्ष का बत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह
लातरेन महामन्दिर का प्रतिष्ठान - पर्व
पहला पाठ: एज़ेकिएल का ग्रन्थ 47:1-2,8-9,12
1) वह मुझे मंदिर के द्वार पर वापस ले आया। वहाँ मैंने देखा कि मन्दिर की देहली के नीचे से पूर्व की ओर जल निकल कर बह रहा है, क्योंकि मन्दिर का मुख पूर्व की ओर था। जल वेदी के दक्षिण में मन्दिर के दक्षिण पाश्र्व के नीचे से बह रहा था।
2) वह मुझे उत्तरी फाटक से बाहर-बाहर घुमा कर पूर्व के बाह्य फाटक तक ले गया। वहाँ मैंने देखा कि जल दक्षिण पाश्र्व से टपक रहा है।
8) उसने मुझ से कहा, ’’यह जल पूर्व की ओर बह कर अराबा घाटी तक पहुँचता और समुद्र में गिरता है। यह उस समुद्र के खारे पानी को मीठा बना देता है।
9) यह नदी जहाँ कहीं गुज़रती है, वहाँ पृथ्वी पर विचरने वाले प्राणियों को जीवन प्रदान करती है। वहाँ बहुत-सी मछलिया पाय जायेंगी, क्योंकि वह धारा समुद्र का पानी मीठा कर देती है। और जहाँ कहीं भी पहुचती है, जीवन प्रदान करती है।
12) नदी के दोनों तटों पर हर प्रकार के फलदार पेड़े उगेंगे- उनके पत्ते नहीं मुरझायेंगें और उन पर कभी फलों की कमी नहीं होगी। वे हर महीने नये फल उत्पन्न करेंगे; क्योंकि उनका जल मंदिर से आता है। उनके फल भोजन और उनके पत्ते दवा के काम आयेंगे।
सुसमाचार : सन्त योहन 2:13-22
13) यहूदियों का पास्का पर्व निकट आने पर ईसा येरुसालेम गये।
14) उन्होंने मन्दिर में बैल, भेड़ें और कबूतर बेचने वालों को तथा अपनी मेंज़ों के सामने बैठे हुए सराफों को देखा।
15) उन्होंने रस्सियों का कोड़ा बना कर भेड़ों और बेलों-सहित सब को मन्दिर से बाहर निकाल दिया, सराफों के सिक्के छितरा दिये, उनकी मेजे़ं उलट दीं
16) और कबूतर बेचने वालों से कहा, ‘‘यह सब यहाँ से हटा ले जाओ। मेरे पिता के घर को बाजार मत बनाओ।’’
17) उनके शिष्यों को धर्मग्रन्थ का यह कथन याद आया- तेरे घर का उत्साह मुझे खा जायेगा।
18) यहूदियों ने ईसा से कहा, ‘‘आप हमें कौन-सा चमत्कार दिखा सकते हैं, जिससे हम यह जानें कि आप को ऐसा करने का अधिकार है?’’
19) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, ‘‘इस मन्दिर को ढा दो और मैं इसे तीन दिनों के अन्दर फिर खड़ा कर दूँगा’’।
20) इस पर यहूदियों ने कहा, ‘‘इस मंदिर के निर्माण में छियालीस वर्ष लगे, और आप इसे तीन दिनों के अन्दर खड़ा कर देंगे?’’
21) ईसा तो अपने शरीर के मन्दिर के विषय में कह रहे थे।
22) जब वह मृतकों में से जी उठे, तो उनके शिष्यों को याद आया कि उन्होंने यह कहा था; इसलिए उन्होंने धर्मग्रन्ध और ईसा के इस कथन पर विश्वास किया।
मनन-चिंतन
आज हम संत योहन लातरेन महामन्दिर केे बेसिलिका का प्रतिष्ठांन का पर्व मनाते हैं। लातरेन बेसिलिका सभी ईसाई गिरजाघरों मातृ-गिरजाघर है, जिसे रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन द्वारा चौथी शताब्दी में बनाया गया था। मूल इमारत भूकंप से नष्ट हो गई थी और इसके दो निम्नलिखित प्रतिस्थापन आग से नष्ट हो गए थे। वर्तमान इमारत 14वीं शताब्दी की है।
ऊँचा खड़ा लातरेन बेसिलिका हमें आशा का एक पाठ सिखाता है कि जो कुछ भी ईश्वर बचाना या रखना चाहता है वह उसकी योजना के अनुसार बचा रहेगा।
आज के पहले पाठ में हम देखते हैं कि एजिकिएल ने मंदिर को ईश्वर की आत्मा के स्रोत के रूप में देखा, जो एक शक्तिशाली नदी की तरह बह रहा था ताकि सभी को जीवन मिल सके। द्वितीय वेटिकन परिषद के अनुसार, येसु हमारे ईसाई धर्म का स्रोत और शिखर है। ईश्वर के वचन और येसु के अनमोल शरीर और रक्त से पोषित होने के बाद, ईश्वर का आत्मा हमारे द्वारा इस घायल संसार में प्रवाहित होना चाहिए।
बहुत अधिक गतिविधि और कम प्रार्थना के साथ लोगों ने मंदिर को सार्वजनिक बाजार में बदल दिया। प्रभु इतने क्रोधित हुए कि उन्होंने मेजों को उलट दिया, और सराफों के उन सभी सिक्कों को छितरा दिये जो उन पर थे। उन्होनें उन्हें बाहर फेंक दिया और उनसे कहा, ‘‘मेरा घर प्रार्थना का घर कहलायेगा, परन्तु तुम लोग उसे लुटेंरों का अड्डा बनाते हो।’’ (मत्ती 21ः13;)
हम कैथोलिक विश्वासियों के लिए गिरजाघर को एक महत्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ती है। यह सिर्फ एक इमारत नहीं है । यह एक ऐसा स्थान है जहां हम अपने सुख-दुख को पवित्र यूख्र्र्रीस्त के सामने प्रस्तुत करते हैं, यूख्र्र्रीस्त में प्रभु से मिलते हैं, क्षमा और दया प्राप्त करते हैं और संस्कारों के माध्यम से अपने विश्वास को मजबूत करते हैं। गिरजाधर में ही हमारे ईसाई जीवन के सभी सबसे महत्वपूर्ण चरण सम्पन्न होते हैं; हमारे बपतिस्मा से शुरू होकर हमारे जीवन के अंत में हमारे अंतिम संस्कार के साथ समाप्त होते हैं। आइए हम अपने गिरजाघरों का सम्मान करना और उनकी देखभाल करना सीखें।
REFLECTION
Today we celebrate the dedication of the Basilica of Saint John Lateran. Lateran Basilica is the mother church of all Christian churches, built in the fourth century by the Roman Emperor Constantine. The original building was destroyed by an earthquake and its two following replacements were destroyed by fire. The present building dates back to 14th century. The tall standing Lateran Basilica teaches us a lesson of hope that whatever God wants to endure will endure according to His plan.
Today’s first reading we see that Ezekiel perceived the temple as the source of God’s Spirit flowing like a mighty river to bring life to all that it touched. According to second Vatican Council, Jesus is the source and the summit of our Christian faith. Having nourished by God’s Word and the precious Body and Blood of Jesus, the Spirit of God should flow out from us into this wounded world.
With much activity and little prayer people turned temple into a public market. The Lord was so furious that he overturned the tables, spilling all of the moneychangers’ coins that were on them. He threw them out and said to them, “my house is a house of prayer but you have made it into a den of thieves.” (Mt 21:13)
For us Catholics the church has an important role to play. It is not just a building; it is a place where we present our joys and sorrows before the Blessed Sacrament, encounter the Lord in the Eucharist, receive pardon and mercy and strengthen our faith through the sacraments. It is in the church all the most important stages in our Christian life take place, beginning with our Baptism and ending with our funeral at the end of our lives. Let us learn to respect and take care of our churches.
मनन-चिंतन - 2
आज के सुसमाचार में हम देखते हैं कि प्रभु येसु येरूसालेम के मन्दिर में बैल, भेड़ें और कबूतर बेचने वालों को तथा अपनी मेंज़ों के सामने बैठे हुए सराफों को देखा। उन्होंने रस्सियों का कोड़ा बना कर भेड़ों और बेलों-सहित सब को मन्दिर से बाहर निकाल दिया, सराफों के सिक्के छितरा दिये, उनकी मेजे़ं उलट दीं और कबूतर बेचने वालों से कहा, “यह सब यहाँ से हटा ले जाओ। मेरे पिता के घर को बाजार मत बनाओ।” पवित्र बाइबिल में मन्दिर के चार अर्थ हैं।
1. येरूसालेम का मन्दिर
2. येसु ख्रीस्त का मानवीय शरीर
3. कलीसिया यानि विश्वासियों का समुदाय
4. मनुष्य का शरीर
आज का सुसमाचार येरूसालेम के मंदिर की पवित्रता के बारे में प्रभु येसु की चिंता को दर्शाता है। प्रभु येसु पापविहीन और पवित्र हैं। वे इस्राएल के परमपावन हैं। वे पवित्रता का स्रोत हैं। कलीसिया जो शिष्यों का समुदाय है - उसे सभी पापों और बुरी प्रथाओं से बचकर अपनी पवित्रता बनाए रखना चाहिए। हमें अपने शरीर को शुद्ध और पवित्र रखने की भी आवश्यकता है। संत पौलुस कहते हैं, “क्या आप लोग यह नहीं जानते कि आपका शरीर पवित्र आत्मा का मन्दिर है? वह आप में निवास करता है और आप को ईश्वर से प्राप्त हुआ है। आपका अपने पर अधिकार नहीं है; क्योंकि आप लोग कीमत पर खरीदे गये हैं। इसलिए आप लोग अपने शरीर में ईश्वर की महिमा प्रकट करें।” (1कुरिन्थियों 6: 19-20) लेवि 20:26 में हम पढ़ते हैं,“ मेरे लिये पवित्र बनो, क्योंकि मैं प्रभु पवित्र हूँ। मैंने तुम लोगों को अन्य राष्ट्रों से अपने लिये अलग कर लिया है”।
REFLECTION
In today’s Gospel we find Jesus entering the temple of Jerusalem, making a whip and chasing away those who were doing various types of business. He warned them, “Stop making my Father’s house a marketplace!” In the Bible we find the word ‘temple’ being used with four meanings.
1. Jerusalem Temple
2. The human body of Jesus
3. Church, the community of disciples
4. Our Human body
The Gospel passage shows the concern of Jesus about the sanctity of the Temple of Jerusalem. Jesus was sinless and impeccable. He is the Holy One of Israel. He is the source of holiness. The church which is the community of disciples needs to keep its sanctity by avoiding all sins and evil practices. We also need to keep our body pure and holy. St. Paul says, “do you not know that your body is a temple of the Holy Spirit within you, which you have from God, and that you are not your own? For you were bought with a price; therefore glorify God in your body.” (1Cor 6:19-20) In Lev 20:26, we read, “You shall be holy to me; for I the Lord am holy, and I have separated you from the other peoples to be mine”.
✍ -Br Biniush Topno
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