शुक्रवार, 05 नवंबर, 2021
वर्ष का इकत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह
पहला पाठ: रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 15:14-21
14) भाइयो! मुझे दृढ़ विश्वास है कि आप लोग सद्भाव और हर प्रकार के ज्ञान से परिपूर्ण हो कर एक दूसरे को सत्परामर्श देने योग्य हैं।
15 (15-16) फिर भी कुछ बातों का स्मरण दिलाने के लिए मैंने आप को निस्संकोच हो कर लिखा है; क्योंकि ईश्वर ने मुझे गै़र-यहूदियों के बीच ईसा मसीह का सेवक तथा ईश्वर के सुसमाचार का पुरोहित होने का वरदान दिया है, जिससे ग़ैर-यहूदी, पवित्र आत्मा द्वारा पवित्र किये जाने के बाद, ईश्वर को अर्पित और सुग्राह्य हो जायें।
17) इसलिए मैं ईसा मसीह द्वारा ईश्वर की सेवा पर गौरव कर सकता हूँ।
18) मैं केवल उन बातों की चर्चा करने का साहस करूँगा, जिन्हें मसीह ने गैर-यहूदियों को विश्वास के अधीन करने के लिए मेरे द्वारा वचन और कर्म से,
19) शक्तिशाली चिन्हों और चमत्कारों से और आत्मा के सामर्थ्य से सम्पन्न किया है। मैंने येरुसालेम और उसके आसपास के प्रदेश से लेकर इल्लुरिकुम तक मसीह के सुसमाचार का कार्य पूरा किया है।
20) इस में मैंने एक बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा। मैंने कभी वहाँ सुसमाचार का प्रचार नहीं किया, जहाँ मसीह का नाम सुनाया जा चुका था; क्योंकि मैं दूसरों द्वारा डाली हुई नींव पर निर्माण करना नहीं चाहता था,
21) बल्कि धर्मग्रन्थ का यह कथन पूरा करना चाहता था-जिन्हें कभी उसका सन्देश नहीं मिला था, वे उसके दर्शन करेंगे और जिन्होंने कभी उसके विषय में नहीं सुना, वे समझेंगे।
सुसमाचार : सन्त लूकस 16:1-8
1) ईसा ने अपने शिष्यों से यह भी कहा, ’’किसी धनवान् का एक कारिन्दा था। लोगों ने उसके पास जा कर कारिन्दा पर यह दोष लगाया कि वह आपकी सम्पत्ति उड़ा रहा है।
2) इस पर स्वामी ने उसे बुला कर कहा, ‘यह मैं तुम्हारे विषय में क्या सुन रहा हूँ? अपनी कारिन्दगरी का हिसाब दो, क्योंकि तुम अब से कारिन्दा नहीं रह सकते।’
3) तब कारिन्दा ने मन-ही-मन यह कहा, ‘मै क्या करूँ? मेरा स्वामी मुझे कारिन्दगरी से हटा रहा है। मिट्टी खोदने का मुझ में बल नहीं; भीख माँगने में मुझे लज्जा आती है।
4) हाँ, अब समझ में आया कि मुझे क्या करना चाहिए, जिससे कारिन्दगरी से हटाये जाने के बाद लोग अपने घरों में मेरा स्वागत करें।’
5) उसने अपने मालिक के कर्ज़दारों को एक-एक कर बुला कर पहले से कहा, ’तुम पर मेरे स्वामी का कितना ऋण है?’
6) उसने उत्तर दिया, ‘सौ मन तेल’। कारिन्दा ने कहा, ‘अपना रुक्का लो और बैठ कर जल्दी पचास लिख दो’।
7) फिर उसने दूसरे से पूछा, ‘तुम पर कितना ऋण है?’ उसने कहा, ‘सौ मन गेंहूँ। कारिन्दा ने उस से कहा, ‘अपना रुक्का लो और अस्सी लिख दो’।
8) स्वामी ने बेईमान कारिन्दा को इसलिए सराहा कि उसने चतुराई से काम किया; क्योंकि इस संसार की सन्तान आपसी लेन-देन में ज्योति की सन्तान से अधिक चतुर है।
मनन-चिंतन
”मूर्ख व्यक्ति हर किसी की बात पर विश्वास करता, किन्तु समझदार सोच-विचार कर आगे बढता है” (सूक्ति 14ः15)
आज का सुसमाचार यीशु द्वारा बताए गए उलझा और गलत समझे गए दृष्टांतों में से एक प्रस्तुत करता हैं । पहली नजर में यह समझना मुशकिल है कि यीशु बेईमान सेवक की प्रशंसा कैसे कर सकता हैं ? लेकिन दृष्टांत में गहराई से जाने से यह स्पष्ट है कि यीशु ने नौकर की प्रशंसा बेईमानी के लिए नही बल्कि उसकी दूरदशर््िाता के लिए की है ।
आज का सुसमाचार में पूर्वाभास के साथ आध्यात्मिक संकट पर विजय पाने का संदेश हैं। किसी ने एक बार कहा था“, ”अगर बुराई इतना गंभीर है कि उसमे सफलता का दृढसंकल्प है तो उसके बराबर अच्चाई में भी यह दृढसंकल्प होनी चाहिए“। यह सच हैं कि अपने सांससारिक जीवन में व्यवसाय, कैरियर, दोस्ती और कई अन्य चिंताए है लेकिन आध्यात्मिक जीवन की चिंता बहुत कम है । आज पूछा जाने वाला प्रश्न यह है कि यदि दुनिया के बच्चे अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए अनैतिक तरीका और चीजो का उपयोग कर रहे है, तो हम ईश्वरीय कृपाओं के लिए अच्छे तरीकों का उपयोग क्यों नही करते ?
यह सच है कि आज इस दुनिया में आध्यात्मिक संकट है । इसलिए हमें चाहिए आध्यात्मिकता को पुनर्जीवित करने के लिए विश्वास की बहुत सारी रचनात्मक साझेदारी करें । विभिन्न प्रकार के कमिशन कार्य इस आशय की पूर्ति कर रहे है जैसेः जेल मिशन, बंजारो का देखभाल, ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन, सामाजिक विकास कार्यक्रम नैतिक शिक्षा बाइबिल मूल्यों के आधार पर लघु फिल्मो का निर्माण, अध्यात्मिक पुस्तकालय, संगीत साधना, बाइबिल के कुछ पात्रो के नाम पर हास्य चित्र आदि। विश्वास के रचनात्मक आदान प्रदान के प्रति हमारी दूरदर्शिता हमारे भविष्य सुरक्षित कर सकती है ।
REFLECTION
“The simple believe everything, but the clever consider their steps” Prov. 14:15. Today’s gospel presents one of the perplexed and misunderstood parables told by Jesus. At first sight it is confusing as to how Jesus could praise the dishonest servant. But going deeper into the parable it is very clear that Jesus did not praise the servant for his dishonesty but for his farsightedness.
Overcoming the spiritual crisis with foresightedness is the message of the gospel today. Someone once said “If evil is serious in its craft and determined to succeed the good should be equally determined to succeed”. It is true that we take lot of effort in our earthly life to succeed in business, career, friendship and many other concerns but not in spiritual life. The question to be asked today is if the children of the world are using everything including immoral ways to secure their future then children of God should use every god given talent and good ways to win God’s favour?
It is a fact that there is a spiritual crisis in this world today. Therefore we require lot of creative sharing of faith to revive the spirituality. There are various ministries that are catering to this effect. Prison Ministry, Pastoral care for the Nomads, Village Health ministry, Social Development Programme, Value Education Ministry, Producing short films based on Bible Values, Spiritual Library on wheels, Music Ministry, Cartoons on biblical characters etc. are to name few. May our farsightedness through creative sharing of faith secure our future in heaven.
मनन-चिंतन - 2
दुनिया में हम जीवित रहने के लिए, अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिए, अपनी आय में सुधार करने और अपने जीवन स्तर को बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। हम अपने लक्ष्यों तक जल्द से जल्द पहुंचने और अपनी इच्छानुसार सब कुछ प्राप्त करने के सही और गलत तरीके अपनाते हैं। लेकिन हम शायद ही कभी अपनी मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में सोचते हैं। मेरे मरने पर मेरा क्या होगा? येसु चाहते हैं कि हम इस विषय के बारे में सोचें और उसके अनुसार कार्य करें। आज के सुसमाचार में एक कारिन्दा है जो जब उसे पता चलता है कि वह अपनी नौकरी खो देगा, तो वह अपने लिए नयी व्यवस्था (हालांकि वे सांसारिक तरीके हैं) करना शुरू कर देता है यह सुनिश्चित करने के लिए कि जब वह नौकरी से बाहर निकाल दिया जायेगा, तो लोग अपने घरों में उसका स्वागत करें। प्रभु येसु चाहते हैं कि हम अनंत जीवन के बारे में सोचें। क्या मैंने अपने शाश्वत जीवन की सुरक्षा के बारे में सोचा है? क्या मैं किसी भी घटना के मुकाबला करने लिए तैयार हूँ?
REFLECTION
In the world we strive hard to survive, to extend our influence, to improve our income, and raise our living standards. We take right and wrong methods of reaching our goals as quickly as possible and of obtaining what we desire. But we seldom think about our life after death. What will happen to me when I die? Jesus wants us to think about this question and act accordingly. We have a steward in the Gospel who when he realises that he would lose his job, starts making arrangements (although they are worldly ways) to see that when he is out of the job, there will be some to welcome him into their homes. Jesus wants us to think about eternal life. Have I thought about the security of my eternal life? Am I prepared for any eventuality?
✍ -Br Biniush Topno
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