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बुधवार, 03 नवंबर, 2021

 

बुधवार, 03 नवंबर, 2021

वर्ष का इकत्तीसवाँ सामान्य सप्ताह

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पहला पाठ: रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 13:8-10


8) भातृप्रेम का ऋण छोड़कर और किसी बात में किसी के ऋणी न बनें। जो दूसरों को प्यार करता है, उसने संहिता के सभी नियमों का पालन किया है।

9 ’व्यभिचार मत करो, हत्या मत करो, चोरी मत करो, लालच मत करो’ -इनका तथा अन्य सभी दूसरी आज्ञाओं का सारांश यह है- अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो।

10) प्रेम पड़ोसी के साथ अन्याय नहीं करता। इसलिए जो प्यार करता है, वह संहिता के सभी नियमों का पालन करता है।


सुसमाचार : सन्त लूकस 14:25-33


25) ईसा के साथ-साथ एक विशाल जन-समूह चल रहा था। उन्होंने मुड़ कर लोगों से कहा,

26) ’’यदि कोई मेरे पास आता है और अपने माता-पिता, पत्नी, सन्तान, भाई बहनों और यहाँ तक कि अपने जीवन से बैर नहीं करता, तो वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।

27) जो अपना क्रूस उठा कर मेरा अनुसरण नहीं करता, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।

28) ’’तुम में ऐसा कौन होगा, जो मीनार बनवाना चाहे और पहले बैठ कर ख़र्च का हिसाब न लगाये और यह न देखे कि क्या उसे पूरा करने की पूँजी उसके पास है?

29) कहीं ऐसा न हो कि नींव डालने के बाद वह पूरा न कर सके और देखने वाले यह कहते हुए उसकी हँसी उड़ाने लगें,

30 ’इस मनुष्य ने निर्माण-कार्य प्रारम्भ तो किया, किन्तु यह उसे पूरा नहीं कर सका’।

31) ’’अथवा कौन ऐसा राजा होगा, जो दूसरे राजा से युद्ध करने जाता हो और पहले बैठ कर यह विचार न करे कि जो बीस हज़ार की फ़ौज के साथ उस पर चढ़ा आ रहा है, क्या वह दस हज़ार की फौज़ से उसका सामना कर सकता है?

32) यदि वह सामना नहीं कर सकता, तो जब तक दूसरा राजा दूर है, वह राजदूतों को भेज कर सन्धि के लिए निवेदन करेगा।

33) ’’इसी तरह तुम में जो अपना सब कुछ नहीं त्याग देता, वह मेरा शिष्य नहीं हो सकता।


मनन-चिंतन


मार्टिन लूथर कहते हैं कि धर्म, जो कुछ नही देता, कुछ भी बलिदान नहीं करता है और कुछ भी नहीं सहता इस प्रकार के धर्म का कोई मूल्य नहीं है । आज का सुसमाचार हमको दो महत्वपूर्ण दिशा-निर्देशों द्वारा येसु का अनुयायी बनने के लिए तैयार करतंे है ।

प्राथमिकता तय करनाः- किसी भी नए उदयम् के लिए पहला कदम होता है प्राथमिकता तय करना, इसी प्राथमिकता के आधार पर ही हम लक्ष्य प्राप्त कर सकते है । प्राथमिकता निर्धारण करते ही हमें जीवन के कई सुखो को त्यागना पडता हैं । ये सुख सुविधा कोई चीज, कोई व्यक्ति या कोई जगह हो सकती है जिससे हम जूडे हैं । आज येसु अपने शिष्यों को रिस्तेे और संबंधों से एक कदम आगे के लिए आमंत्रित करते है । जो हम अपने लिए सबसे महत्वपूर्ण मानते है । प्रभु के लिए किये कुर्बान की सुन्दरता को हर एक श्क्ष्यि अपने जीवन में तब भी महसूस करते है जब प्रभु से उनका सबंध मजबूत हो और दुनिया के हर एक व्यक्ति उनके लिए मॉं-बाप और भाई-बहन बन जाते है।

अनुमान लगानाः- जब प्राथमिकताएॅ निर्धारित हो जाती हैं तब लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लागत का अनुमान लगाना आवश्यक होता है । जब हम लक्ष्य की ओर बढते हैं तो निर्माण और खरीद से पहले यह सुनिश्चित कर लेते है कि हमारे पास कार्य को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन है या नहीं । इस प्रक्रिया में हमे अनावश्यक तनाव, निराशा, और भारी नुकसान हो सकता है। मत्ती 25ः 1-25 में येसु दस कुवारियों के दृष्टान्त के माध्यम से समझाते है कि जब उन कुवारियों में तैयारी की समुचित व्यवस्था का अभाव था, तो उन्हे दुल्हे का देखने का मौका नहीं दिया गया और विवाह समारोह से बाहर निकाल दिया ।

जैसा कि हमने प्रभु के अनुसरण का निर्णय लिया हैं, तो आइए आज हम उनके साथ अपने संबंध को मजबूत करें । और सभी को अपना भाई-बहन समझो। प्रभू हमारे सभी साधनो व ऊर्जाओं को एकत्र कर परमेश्वर के राज्य के प्रसार के लिए हमें तैयार करें ।



REFLECTION



A religion that gives nothing, costs nothing, and suffers nothing, is worth nothing” Says Martin Luther. Today’s gospel places two important guidelines to prepare oneself to be the follower of Jesus.

1. Setting Priorities: Setting priority is the first step of any new venture we enter into. It is important for any firm or a group to achieve the target. Setting priorities presupposes foregoing many other comforts of life. These comforts may be a thing, person or a place we are attached to or comfortable with. Jesus today invites his disciples to move beyond blood relationships which we consider as most important in our life. The beauty of the renunciation is experienced only when the new relationship is built up with Jesus, where everyone in the world becomes a brother, sister, mother or father to the disciple.

2. Preparing Estimate: Once the priorities are set an estimate needs to be prepared to achieve the target. We are used to estimates and quotations before constructions and purchases. It is prepared only to make sure that we have the sufficient resources to complete the task. Failure in this procedure may invite unnecessary tension, despair and even a heavy loss. In Mat. 25: 1-13, Jesus himself gives an example of required preparation through the parable of Foolish Virgins. The failure of the foolish virgins in calculating the required oil puts them permanently out of the wedding party.

As we have decided to follow Jesus let us today strengthen our relationship with Jesus accepting everyone around us as brothers and sisters. May He use all our energy and recourses for spreading of Kingdom of God wherever we are.



मनन-चिंतन - 2


प्रभु येसु आज के सुसमाचार में शिष्यत्व के बारे में कम से कम चार बिंदुओं पर जोर देते हैं। सबसे पहले, वह सभी पारिवारिक संबंधों से अलगाव की मांग करता है क्योंकि यह रक्त-संबंध से परे जाने और ईश्वर के परिवार का हिस्सा बनने का आह्वान है जहां हर कोई भाई या बहन बन जाता है। दूसरा, प्रभु येसु चाहते हैं कि हर कोई यह समझे कि शिष्यत्व सुख और आनंद का जीवन जीने का आह्वान नहीं है, बल्कि उसमें दुख या क्रूस शामिल है। तीसरा, वे चाहते हैं कि जो कोई भी शिष्य बनना चाहता है, वह यह सुनिश्चित करे कि वह अपने मार्ग पर आने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक धीरज रखता है या नहीं। चौथा, प्रभु चाहते हैं कि हमें पता चले कि शिष्यत्व का मतलब बुराई के खिलाफ निरंतर युद्ध करना है और इसलिए वे हमें चेतावनी देते हैं कि शैतान का विरोध करने हेतु खुद को सुसज्जित करने के लिए विवेकपूर्ण बनें।



REFLECTION


Jesus emphasises at least four points about discipleship in today’s Gospel. First, he demands detachment from all family ties because this is a call to go beyond blood-relationship and become part of the family of God where everyone becomes a brother or sister. Second, Jesus wants everyone to understand that discipleship is not a call to live a life of comfort and pleasure but one that involves suffering or cross. Third, he wants anyone who desires to become a disciple to plan properly to ensure that he or she has the endurance required for facing the challenges that may come on the way. Fourth, Jesus wants us to know that discipleship means to be in constant war against the evil one and so he warns us to be prudent to equip ourselves for resist the devil.


 -Br Biniush Topno


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Praise the Lord! 

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