सोमवार, 01 नवंबर, 2021
सब संतों का पर्व
पहला पाठ :प्रकाशना 7:2-4,9-14
2) मैंने एक अन्य दूत को पूर्व से ऊपर उठते देखा। जीवन्त ईश्वर की मुहर उसके पास थी और उसने उन चार दूतों से, जिन्हें पृथ्वी और समुद्र को उजाड़ने का अधिकार मिला था, पुकार कर कहा,
9) इसके बाद मैंने सभी राष्ट्रों, वंशों, प्रजातियों और भाषाओं का एक ऐसा विशाल जनसमूह देखा, जिसकी गिनती कोई भी नहीं कर सकता। वे उजले वस्त्र पहने तथा हाथ में खजूर की डालियाँ लिये सिंहासन तथा मेमने के सामने खड़े थे
10) और ऊँचे स्वर से पुकार-पुकार कर कह रहे थे, "सिंहासन पर विराजमान हमारे ईश्वर और मेमने की जय!"
11) तब सिंहासन के चारों ओर खड़े स्वर्गदूत, वयोवृद्ध और चार प्राणी, सब-के-सब सिंहासन के सामने मुँह के बल गिर पड़े और उन्होंने यह कहते हुए ईश्वर की आराधना की,
12) "आमेन! हमारे ईश्वर को अनन्त काल तक स्तुति, महिमा, प्रज्ञा, धन्यवाद, सम्मान, सामर्थ्य और शक्ति ! आमेन !"
13) वयोवृद्धों में एक ने मुझ से कहा, "ये उजले वस्त्र पहने कौन हैं और कहाँ से आये हैं?
14) मैंने उत्तर दिया, "महोदय! आप ही जानते हैं" और उसने मुझ से कहाँ, "ये वे लोग हैं, जो महासंकट से निकल कर आये हैं। इन्होंने मेमने के रक्त से अपने वस्त्र धो कर उजले कर लिये हैं।
दूसरा पाठ :1 योहन 3:1-3
1) पिता ने हमें कितना प्यार किया है! हम ईश्वर की सन्तान कहलाते हैं और हम वास्तव में वही हैं। संसार हमें नहीं पहचानता, क्योंकि उसने ईश्वर को नहीं पहचाना है।
2) प्यारे भाइयो! अब हम ईश्वर की सन्तान हैं, किन्तु यह अभी तक प्रकट नहीं हुआ है कि हम क्या बनेंगे। हम इतना ही जानते हैं कि जब ईश्वर का पुत्र प्रकट होगा, तो हम उसके सदृश बन जायेंगे; क्योंकि हम उसे वैसा ही देखेंगे, जैसा कि वह वास्तव में है।
3) जो उस से ऐसी आशा करता है, उसे वैसा ही शुद्ध बनना चाहिए, जैसा कि वह शुद्ध है।
सुसमाचार : मत्ती 5:1-12अ
(1) ईसा यह विशाल जनसमूह देखकर पहाड़ी पर चढ़े और बैठ गए उनके शिष्य उनके पास आये।
(2) और वे यह कहते हुए उन्हें शिक्षा देने लगेः
(3) "धन्य हैं वे, जो अपने को दीन-हीन समझते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
(4) धन्य हैं वे जो नम्र हैं! उन्हें प्रतिज्ञात देश प्राप्त होगा।
(5) धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं! उन्हें सान्त्वना मिलेगी।
(6) घन्य हैं, वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं! वे तृप्त किये जायेंगे।
(7) धन्य हैं वे, जो दयालू हैं! उन पर दया की जायेगी।
(8) धन्य हैं वे, जिनका हृदय निर्मल हैं! वे ईश्वर के दर्शन करेंगे।
(9) धन्य हैं वे, जो मेल कराते हैं! वे ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
(10) धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण अत्याचार सहते हैं! स्वर्गराज्य उन्हीं का है।
(11) धन्य हो तुम जब लोग मेरे कारण तुम्हारा अपमान करते हैं, तुम पर अत्याचार करते हैं और तरह-तरह के झूठे दोष लगाते हैं।
(12) खुश हो और आनन्द मनाओ स्वर्ग में तुम्हें महान् पुरस्कार प्राप्त होगा।
मनन-चिंतन - 2
सभी गिरजाघरो में धार्मिक अवधारणा के अनुसार कलीसिया सब संतों का पर्व एक साथ मिलकर मनाती है । इसी तरह कलीसिया प्रत्येक घोषित संतो के नाम का पर्व वर्ष एक निश्चित दिन पर उनके नाम के अनुसार मनाया जाता हैं । परन्तु कुछ ऐसे भी अज्ञात और अघोषित संत है जिनका कोई पर्व दिवस नहीं हैं । वे हमारे माता-पिता, दादा-दादी, भाई-बहन दोस्त या हमारे परिजन हो सकते है, जिन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन ईश्वर पर भरोसा रखते हुए जिया है । आज हम उन सभी अज्ञात संतो का सम्मान करते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते है । इन साधारण सामान्य पुरूषों और महिलाओं को अपने विश्वास के प्रतिफल में ईश्वर आपने पवित्रता और स्वर्गीय महिमा का हिस्सेदार बनाने के लिए हम ईश्वर को धन्यवाद देते है । संतो में हम विविधताएॅं पाते है क्योंकि इसमें पवित्रता का एक प्रतिरूप/पैटर्न नहीं है । इसके अन्तर्गत विद्वान, बुद्धिजीवी दार्शनिक वैज्ञानिक, मिशनरी शहीद, मूर्ख, अमीर गरीब और साधारण पाए जाते है । इन संतो के जीवन द्वारा कलीसिया हमे आज यह याद दिलाती है कि ईश्वर हमे उनके प्रेम में जीने और लोगो के जीवन में उनके प्रेम को वास्तविक बनाने के लिए बुलाया है । संत आगस्टीन ने कहा -अगर ये और वह संत बन सकते है तो मैं क्यों नही ? यह पर्व हम में से प्रत्येक को चुनौती देता है कि ईश्वर की कृपा मिलने पर कोई भी व्यक्ति को अपना उम्र, जीवन शैलि परिस्थितीया संत बनने के लिए बाधा नहीं है । इसके लिए मसीह का अनुसरण करना होगा और बुराई से दूर रहकर भले कार्य करने होंगंे । “जो लोग मुझें प्रभु ! प्रभु ! कह कर पुकारते है उनमें सब के सब स्वर्ग-राज्य में प्रवेश नहीं करोगे। जो मेंरे स्वर्गिय पिता की इच्छा पूरी करता है वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा“(मती 7ः21) यह पर्व हमारे लिए ईश्वर को धन्यवाद देने का अवसर है । ईश्वर ने संतो के साथ हमारे कई पूर्वजो को इसमें शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है । अगर हमारा जीवन अखंडता सत्य, न्याय, दान, दया और करूणा में दूसरो के साथ बाटकर जीते है, तब भी हम पवित्रता में आगे बढ सकते है । इन वीर संतो के जीवन शैली का अनुगमन प्रभु येसु के उन स्वागत शब्द को सुनने के लिए हमें साक्ष्म बनाये । “शाबाश भले और ईमानदार सेवक ! तुम थोडे में ईमानदार रहे, मै तुम्हें बहुत पर नियुक्त करूंगा अपने स्वामी के आनन्द के सहभागी बनों” !! (मत्ती 25ः21)
REFLECTION
The Church celebrates the feast of each canonized saint on a particular day of the year. But there are many unknown and uncanonized saints who have no feast days. Some of them may be our own parents and grandparents, brothers and sisters, friends and relatives who have lived a life of faith placing their trust in God. Today we honor and pay our tribute to these Unknown saints. We thank God for giving ordinary men and women a share in His holiness and Heavenly glory as a reward for their Faith. There is diversity in saints. There isn’t one pattern of holiness to be found among them. There are scholars, intellectuals, philosophers, scientists, missionaries, martyrs, foolish, rich, poor and simple. The Church reminds us today that God’s call for holiness is universal, that all of us are called to live in His love and to make His love real in the lives of those around us. St. Augustine asked: “If he and she can become saints, why can’t I?” This feast challenges each one of us: anybody can, with the grace of God, become a saint, regardless of his or her age, lifestyle or living conditions. We all can become saints by choosing to follow Christ, doing good and avoiding evil. “Not everyone who says to me, ‘Lord, Lord,’ will enter the Kingdom of Heaven, but only the one who does the will of my Father in Heaven” (Mt 7:21). 2) The feast gives us an occasion to thank God for having invited so many of our ancestors to join the company of the saints. Holiness is related to the word wholesomeness. We grow in holiness when we live a life of integrity, truth, justice, charity, mercy, and compassion, sharing our blessings with others. May our reflection on the heroic lives of the saints and the imitation of their lifestyle enable us to hear from our Lord the words of grand welcome to eternal bliss: “Well done, good and faithful servant! Enter into the joys of your master” (Mt 25:21).
मनन-चिंतन - 2
आज के सुसमाचार में हम आशीर्वचन पाते हैं। ये वे मार्ग हैं जो हमें स्वर्गीय जीवन की ओर ले जाते हैं। जब सबसे पहले के ख्रीस्तीय धार्मिक समुदायों के पास धार्मिक व्यवस्था का कोई अन्य लिखित संविधान नहीं था, तब आशीर्वचन के अनुसार ही वे अपने जीवन को अनुशासित करते थे। संत पापा फ्रांसिस ने, 6 जून, 2016 को मिस्सा बलिदान के दौरान प्रवचन में पवित्र बाइबिल के आशीर्वचनों को "नया कानून" या “नयी संहिता” कहा। मूसा दस आज्ञाओं की पत्थर की पाटियाँ लेकर पहाड़ से नीचे उतर कर आये थे। प्रभु ने एक पहाड़ पर चढ़कर आशीर्वचनों की शिक्षा दी – नयी संहिता। वे गरीबों, विनीतों, शोक करने वालों, धार्मिकता के भूखों और प्यासों, दयालुओं, हृदय में निर्मल लोगों, शांतिप्रिय और सताए हुए लोगों को धन्य घोषित करते हैं क्योंकि ईश्वर उनसे प्यार करते हैं और वे स्वयं उनके जीवन में हस्तक्षेप करके उनको अनुग्रहित करेंगे। संत वे हैं, जिन्होंने अपने जीवन में आशीर्वचनों का पालन किया और परिणामस्वरूप वे ईश्वर के दर्शन का आनन्द लेते हैं।
REFLECTION
In today’s Gospel we find the beatitudes. They are the noble paths that lead to heavenly life. The earliest Christian religious communities were guided by the beatitudes even when they had no other written constitution of the religious order. Pope Francis, delivering a homily on June 6, 2016 called the beatitudes “the new law”. Moses brought the stone tablets of the Ten Commandments when he came down from the mountain the old law. Jesus went up on a mountain and taught the beatitudes – the new law. He declares the poor, the gentle, those who mourn, those who hunger and thirst for righteousness, the merciful, the pure in heart, the peacemakers and the persecuted to be blessed because God loves them; he takes their side and he himself will intervene in their lives to fill them with his blessings. The saints are those who followed the beatitudes in their lives and as a result they enjoy the beatific vision.
✍ -Br Biniush Topno
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