मंगलवार, 28 सितम्बर, 2021
वर्ष का छ्ब्बीसवाँ सामान्य सप्ताह

पहला पाठ : ज़करिया 8:20-23
20) "विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है- राष्ट्र तथा महानगरों के निवासी फिर आयेंगे।
21) एक नगर के लोग दूसरे नगर के लोगों के पास जा कर कहेंगे, ’आइए, हम प्रभु की कृपा माँगने चलें; हम विश्वमण्डल के प्रभु के दर्शन करने जायें। मैं तो जा रहा हूँ।’
22) इस प्रकार बहुसंख्यक लोग और शक्तिशाली राष्ट्र विश्वमण्डल के प्रभु के दर्शन करने और प्रभु की कृपा माªगने के लिए येरूसालेम आयेंगे।
23) विश्वमण्डल का प्रभु यह कहता है- उन दिनों राष्ट्रों में प्रचलित सभी भाषाएँ बोलने वाले दस मनुष्य एक यहूदी की चादर का पल्ला पकडेंगे और कहेंगे, ’हम आप लोगों के साथ चलना चाहते है, क्योंकि हमने सुना है कि ईश्वर आप लोगों के साथ है’।"
सुसमाचार : सन्त लूकस 9:51-56
51) अपने स्वर्गारोहण का समय निकट आने पर ईसा ने येरूसालेम जाने का निश्चय किया
52) और सन्देश देने वालों को अपने आगे भेजा। वे चले गये और उन्होंने ईसा के रहने का प्रबन्ध करने समारियों के एक गाँव में प्रवेश किया।
53) लोगों ने ईसा का स्वागत करने से इनकार किया, क्योंकि वे येरूसालेम जा रहे थे।
54) उनके शिष्य याकूब और योहन यह सुन कर बोल उठे, "प्रभु! आप चाहें, तो हम यह कह दें कि आकाश से आग बरसे और उन्हें भस्म कर दे"।
55) पर ईसा ने मुड़ कर उन्हें डाँटा
56) और वे दूसरी बस्ती चले गये।
मनन-चिंतन
तिरस्कार जीवन की ऐसी सच्चाई है जिसे जीवन में हर किसी को सामना करना पड़ता है क्योंकि यह जरूरी नहीं कि हर कोई हमारा स्वागत सत्कार करें। यहीं प्रभु येसु के साथ भी हुआ उन्हें अपने स्वयं के नगर के लोगों से तिरस्कार सहना पड़ा, फरीसी शास्त्री से तिरस्कार सहना पड़ा, गेरासेनियों के लोगो से तिरस्कार सहना पड़ा और आज के सुसमाचार में येसु को समारियों से तिरस्कार सहना पड़ा। परंतु येसु ने कभी भी उनका तिरस्कार करने वालो का बुरा नहीं चाहा परंतु उनका भला ही चाहा। जिस प्रकार वे कू्रस पर टॅंगे होने पर भी उनका अपमान करने वालों के लिए प्रार्थना करते है, ‘‘पिता! इन्हें क्षमा कर क्योंकि यह नहीं जानते कि क्या कर रहें है।’’ यह स्वभाव ईश्वर का स्वभाव को दर्शाता है जो भले और बुरे दोनो पर सूर्य उगाता तथा धर्मियों और अधर्मियों दोनो पर पानी बरसाता है।
📚 REFLECTION
Rejection is that reality of life which everyone has to face in their lives because it is not necessary that all will welcome us or all will be good to us. This happed with Jesus also; He bore the rejections of the people from his own home town, rejection from Pharisees and Scribes, rejection from the people of Gerasenes and in today’s gospel Jesus was rejected by the people of Samaria. But Jesus never thought of bad for the people who rejected him but instead thought only good for them. As being hung on the Cross he prays for those who humiliated him, “Father, forgive them; for they do not know what they are doing.” This nature reflects the nature of God who makes his sun rise on the evil and on the good, and sends rain on the righteous and on the unrighteous.
✍ -Br. Biniush Topno
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