सोमवार, 19 जुलाई, 2021
वर्ष का सोलहवाँ सामान्य सप्ताह
पहला पाठ : निर्गमन 14:5-18
5) जब मिस्र के राजा को यह सूचना मिली कि इस्राएली भाग गये है, तो फिराउन और उसके पदाधिकारी, अपना मन बदल कर बोल उठे, ''हम लोग यह क्या कर बैठे! हमने इस्राएलियों को, अपने दासों को भाग जाने दिया!''
6) फिराउन अपना रथ तैयार करा कर अपनी सेना साथ ले गया -
7) छह सौ श्रेष्ठ रथ और मिस्र के सब रथ, जिन पर योद्धा सवार थे।
8) प्रभु ने मिस्र के राजा फिराउन का हृदय कठोर कर दिया; इसलिए उसने इस्राएलियों का पीछा किया,
9) जो उसे चुनौती देते हुए भाग रहे थे। मिस्रियों ने सब घोड़ों, फिराउन के रथों, उसके घुड़सवारों और उसकी सेना के साथ इस्राएलियों का पीछा किया और बालसफोन के सामने, पी-हहीरोत के निकट समुद्र के तट पर, उनके पास पहुँच गये, जहाँ उन्होंने पड़ाव डाला था।
10) फिराउन निकट आया ही था कि इस्राएलियों ने आँखें उठा कर देखा कि मिस्री हमारा पीछा कर रहें हैं। उन पर आतंक छा गया और वे चिल्ला कर प्रभु की दुहाई देने लगे।
11) उन्होंने मूसा से कहा, ''क्या मिस्र में हम को क़बरें नहीं मिल सकती थीं, जो आप हम को मरूभूमि में मरने के लिए यहाँ ले आये है? हम को मिस्र से निकाल कर आपने हमारा कौन-सा उपकार किया?
12) क्या हमने मिस्र में रहते समय आप से नहीं कहा था कि हमें मिस्रियों की सेवा करते रहने दीजिए? मरूभूमि में मरने की अपेक्षा मिस्रियों की सेवा करना कहीं अधिक अच्छा है।''
13) मूसा ने लोगों से कहा, ''डरो मत! धीर बने रहो! और यह देखो कि किस प्रकार प्रभु आज तुम लोगों की रक्षा करेगा। जिन मिस्रियों को तुम आज देख रहे हो, तुम उन्हें फिर कभी नहीं देखोगे।
14) प्रभु ही तुम्हारी ओर से युद्ध करेगा और तुम लोगों को कुछ भी नहीं करना पड़ेगा।''
15) प्रभु ने मूसा से कहा, ''तुम मेरी दुहाई क्यों दे रहे हो? इस्राएलियों को आगे बढ़ने का आदेश दो।
16) तुम अपना डण्डा उठा कर अपना हाथ सागर के ऊपर बढ़ाओ और उसे दो भागों में बाँट दो, जिससे इस्राएली सूखे पाँव समुद्र की तह पर चल सकें।
17) मैं मिस्रियों का हृदय कठोर बनाऊँगा और वे इस्राएलियों का पीछा करेंगे। तब मैं फिराउन, उसकी सेना, उसके रथ और घुड़सवार, सब को हरा कर अपना सामर्थ्य प्रदर्शित करूँगा
18) और जब मैं फिराउन, उसकी सेना, उसके रथ और उसके घुड़सवार सब को हरा कर अपना सामर्थ्य प्रदर्शित कर चुका होऊँगा, तब मिस्री जान जायेंगे कि मैं प्रभु हूँ।''
सुसमाचार : मत्ती 12:38-42
38) उस समय कुछ शास्त्री और फ़रीसी ईसा से बोले, "गुरुवर! हम आपके द्वारा प्रस्तुत कोई चिह्न देखना चाहते हैं"।
39) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, "यह दुष्ट और विधर्मी पीढ़ी एक चिह्न माँगती है, परन्तु नबी योनस के चिह्न को छोड़ कर कोई चिह्न नहीं दिया जायेगा।
40) जिस प्रकार योनस तीन दिन और तीन रात मच्छ के पेट में रहा, उसी प्रकार मानव पुत्र भी तीन दिन और तीन रात पृथ्वी के गर्भ में रहेगा।
41) न्याय के दिन निनिवे के लोग इस पीढ़ी के साथ जी उठेंगे और इसे दोषी ठहरायेंगे, क्योंकि उन्होंने योनस का उपदेश सुन कर पश्चात्ताप किया था, और देखो यहाँ वह है, जो योनस से भी महान् हैं।
42) न्याय के दिन दक्षिण की रानी इस पीढ़ी के साथ जी उठेगी और इसे दोषी ठहरायेगी; क्योंकि वह सुलेमान की प्रज्ञा सुनने के लिए पृथ्वी के सीमान्तों से आयी थी, और देखो-यहाँ वह है, जो सुलेमान से भी महान् है।
📚 मनन-चिंतन
आज के दोनों पाठों में हम एक जैसे लोगों को देखते हैं, जिनका ह्रदय ईश्वर के महान चिन्हों और चमत्कारों के प्रति बन्द है, और ईश्वर के महान कार्यों को अनदेखा कर देता है. पहले पाठ में हम देखते हैं कि जब इसरायली लोग नबी मूसा के नेतृत्व में मिस्र की दासता से बाहर निकल आये तो बाद में मिस्री राजा अपने सैनिकों और पलटन के साथ उनका पीछा करता है. जब वे उन्हें अपना पीछा करते हुए देखते हैं तो घबरा जाते हैं, और मूसा के विरुद्ध भुनभुनाने लगते हैं. अपनी दासता की ज़िन्दगी को बेहतर समझते हैं, और मूसा को कोसते हैं. वे भूल जाते हैं, बल्कि अनदेखा कर देते हैं ईश्वर के उन अनेक महान कार्यों को जिनके द्वारा ईश्वर ने उन्हें मुक्त किया था. मिस्रियों पर ऐसी विपत्तियाँ भेजी थीं कि वे भय से थर-थर कांपने लगे थे, लेकिन ये अविश्वासी लोग ईश्वर के उन महान चमत्कारों को अनदेखा कर देते हैं.
सुसमाचार में भी प्रभु येसु इस पीढ़ी के लोगों को धिक्कारते हैं जो उनसे चिन्ह माँगते हैं, जो ईश्वर में विश्वास नहीं करना चाहते हैं. प्रभु येसु उन्हें नबी योनस का चिन्ह देते हैं, और उसकी प्रमाणिकता इससे साबित होती है कि जिस तरह से नबी योनस तीन दिन तक मछली के पेट में रहा था उसी तरह प्रभु येसु भी पृथ्वी के गर्भ में रहेंगे. नबी योनस पश्चाताप के सन्देश का प्रतीक थे. निनिवे के लोग पापी जीवन जी रहे थे, तब ईश्वर ने नबी योनस को उन्हें चेतवानी देने भेजा था कि यदि तुम लोग पश्चताप नहीं करोगे तो नष्ट हो जाओगे. प्रभु येसु ने भी सबसे पहले आकर पश्चाताप का सन्देश दिया (मारकुस 1:15). आइये हम अपने मन में झाँककर देखें, कहीं हम भी उस पापी पीढ़ी के समान तो नहीं?
📚 REFLECTION
We see similar people in both the readings of today, whose heart is closed to God’s mighty works and wonders, who closes their eyes from God’s presence amidst them. In the first reading of today we see the Israelites, when they were brought out of the slavery from Egypt, started to curse Moses when they saw they were chased by the Egyptians, they could not believe in the might of God and started to regret to follow Moses. They forget the miracles and mighty works that God performed when he released them from the clutches of the Egyptians. The Ten plagues that resulted in their freedom from slavery could not move their hearts, could not change them.
In the Gospel of the day also Jesus condemns the present generation of his time, who sought for a sign, who did not want to believe in Jesus. Jesus gives them the sign of prophet Jonah, and tells them that as Jonah was inside the belly of the fish for three day, similarly he will remain in the heart of the earth for three days and three nights. The people of Nineveh lived a sinful life so God sent prophet Jonah to turn them to repentance. So Jonah warned them, they will perish if they did not repent and change their way of life. Jesus also began his ministry with the message of repentance (cf Mark 1:15). Let us look within our hearts, are we like the perverse generation who did not believe in Jesus and asked for a sign?
✍ -Fr. Johnson B.
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