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इतवार, 18 जुलाई, 2021 वर्ष का सोलहवाँ सामान्य इतवार

 

इतवार, 18 जुलाई, 2021

वर्ष का सोलहवाँ सामान्य इतवार

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पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 23:1-6


1) “धिक्कार उन चरवाहों को जो मेरे चरागाह की भेड़ों को नष्ट और तितर-बितर हो जाने देते हैं!“ यह प्रभु की वाणी है।

2) इसलिए प्रभु, इस्राएल का ईश्वर अपनी प्रजा को चराने वालों से यह कहता है, “तुम लोगों ने मेरी भेड़ों को भटकने और तितर-बितर हो जाने दिया; तुमने उनकी देखरेख नहीं की। देखो! मैं तुम लोगों को तुम्हारे अपराधों का दण्ड दूँगा।“ यह प्रभु की वाणी है।

3) “इसके बाद मैं स्वयं अपने झुण्ड की बची हुई भेड़ों को उन सभी देशों से एकत्र कर लूँगा, जहाँ मैंने उन्हें बिखेर दिया है; मैं उन्हें उनके अपने मैदान वापस ले चलूँगा और वे फलेंगी-फूलेंगी।

4) मैं उनके लिए ऐसे चरवाहों को नियुक्त करूँगा, जो उन्हें सचमुच चरायेंगे। तब उन्हें न तो भय रहेगा, न आतंक और न उन में से एक का भी सर्वनाश होगा।“ यह प्रभु की वाणी है।

5) प्रभु यह कहता है: “वे दिन आ रहे हैं, जब मैं दाऊद के लिए एक न्यायी वंशज उत्पन्न करूँगा। वह राजा बन कर बुद्धिमानी से शासन करेगा और अपने देश में न्याय और धार्मिकता स्थापित करेगा।

6) उसके राज्यकाल में यूदा का उद्धार होगा और इस्राएल सुरक्षित रहेगा और उसका यह नाम रखा जायेगा- प्रभु ही हमारी धार्मिकता है।“



दूसरा पाठ: एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 2:13-18



13) आप लोग पहले दूर थे, किन्तु ईसा मसीह से संयुक्त हो कर आप अब मसीह के रक्त द्वारा निकट आ गये है;

14) क्योंकि वही हमारी शान्ति हैं। उन्होंने यहूदियों और गैर-यहूदियों को एक कर दिया है। दोनों में शत्रुता की जो दीवार थी, उसे उन्होंने गिरा दिया है।

15) और अपनी मृत्यु द्वारा विधि-निषेधों की संहिता को रद्द कर दिया। इस प्रकार उन्होंने यहूदियों तथा गैर-यहूदियों को अपने से मिला कर एक नयी मानवता की सृष्टि की और शान्ति की स्थापित की है।

16) उन्होंने क्रूस द्वारा दोनों का एक ही शरीर में ईश्वर के साथ मेल कराया और इस प्रकार शत्रुता को नष्ट कर दिया।

17) तब उन्होंने आ कर दोनों को शान्ति का सन्देश सुनाया - आप लोगों को, जो दूर थे और उन लोगों को, जो निकट थे;

18) क्योंकि उनके द्वारा हम दोनों एक ही आत्मा से प्रेरित हो कर पिता के पास पहुँच सकते हैं।


सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 6:30-34


30) प्रेरितो ने ईसा के पास लौट कर उन्हें बताया कि हम लोगों ने क्या-क्या किया और क्या-क्या सिखलाया है।

31) तब ईसा ने उन से कहा, ’’तुम लोग अकेले ही मेरे साथ निर्जन स्थान चले आओ और थोड़ा विश्राम कर लो’’; क्योंकि इतने लोग आया-जाया करते थे कि उन्हें भोजन करने की भी फुरसत नही रहती थी।

32) इस लिए वे नाव पर चढ़ कर अकेले ही निर्जन स्थान की ओर चल दिये।

33) उन्हें जाते देख कर बहुत-से लोग समझ गये कि वह कहाँ जा रहे हैं। वे नगर-नगर से निकल कर पैदल ही उधर दौड़ पड़े और उन से पहले ही वहाँ पहुँच गये।

34) ईसा ने नाव से उतर कर एक विशाल जनसमूह देखा। उन्हें उन लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थे और वह उन्हें बहुत-सी बातों की शिक्षा देने लगे।



📚 मनन-चिंतन


भीड़ की भीड़ प्रभु येसु के पीछे-पीछे क्यों चली आती थी? सुसमाचार में कई जगह हम पढ़ते हैं कि जहाँ भी प्रभु येसु जाते थे, लोग वहाँ उनसे भी पहले पहुँच जाते थे. चाहे प्रभु येसु अंजान जगह पर जाएँ, या सुनसान, निर्जन स्थान पर जाएँ, चाहे किसी दूर-दराज के गॉंव जाएँ, लोग उन्हें खोज ही लेते थे. कई बार तो उन्हें भीड़ से बचने के लिए नाव पर चढ़कर सुसमाचार सुनाना पड़ता था. ऐसा ही दृश्य हम आज के सुसमाचार में देखते हैं, जहाँ शिष्य लोग ख़ुशी-ख़ुशी सुसमाचार का प्रचार करने के बाद लौटे थे. प्रभु येसु चाहते थे कि वे थोड़ा सा आराम कर लें क्योंकि लोग आ रहे थे, उन्हें खाना खाने की भी फुर्सत नहीं मिल पा रही थी, इसलिए वे उन्हें एक निर्जन स्थान पर ले जाते हैं, लेकिन लोग उन्हें जाते हुए देख लेते हैं, उनसे पहले ही वहाँ पैदल पहुँच जाते हैं. प्रभु येसु को वे बिना चरवाहे की भेड़ों के समान प्रतीत होते हैं.

शुरू से ही ईश्वर और उसकी प्रजा के बीच के सम्बन्ध को अलग-अलग प्रतीकों द्वारा व्यक्त किया जाता रहा है, उन्हीं में से एक है - चरवाहा और भेड़ें. आज के पहले पाठ में हम पढ़ते हैं, कि ईश्वर ने जिन चरवाहों को अपनी भेड़ों के ऊपर नियुक्त किया उन्होंने ही भेड़ों को तितर-बितर कर दिया है, उनकी उचित देख-भाल नहीं की. कुछ ऐसा ही हम नबी एज़ेकिएल के ग्रन्थ के 34 वें अध्याय में देखते हैं. लोगों का जो सम्बन्ध ईश्वर के साथ प्रारम्भ से था वह वैसा का वैसा नहीं रहा, धीरे-धीरे लोग ईश्वर से दूर होते गये. वे सही रास्ते से भटकते चले गये, और इसके लिए कुछ हद तक वे लोग ज़िम्मेदार थे, जिन्हें ईश्वर ने लोगों को सम्भाले रखने की ज़िम्मेदारी दी. उन्होंने लोगों को ईश्वर के करीब लाने की अपेक्षा, अपने बुरे जीवन द्वारा व लोगों के शोषण द्वारा उन्हें ईश्वर से और दूर कर दिया.

प्रभु येसु के समय यह तस्वीर और स्पष्ट हो जाती है, जब प्रभु येसु धर्म के उन ठेकेदारों और धार्मिक नेताओं को धिक्कारते हैं, उनकी कमियों और दोषों की ओर इंगित करते हैं. उनके जीवन के कुछ उदाहरण ऐसे हैं जिनके कारण लोग ईश्वर के पास नहीं बल्कि उनसे दूर हो चले थे, जैसे कि बाज़ारों में प्रणाम-प्रणाम सुनना, अपने आकर्षित करने वाले कपडे पहनना, लम्बी-लम्बी और खोखली प्रार्थनाएं करना, लोगों पर नियमों के अनावश्यक भार डालना, लोगों को गुमराह करना, नबियों की हत्या करना इत्यादि. प्रभु येसु उनकी तुलना चोर और डाकू तथा भाड़े के मजदूरों से करते हैं (योहन 10:8,12). इसीलिए प्रभु येसु स्वयं उनके लिए सच्चे और भले चरवाह बनकर आये ताकि उन्हें हरे-हरे चरागाहों में ले चलें, चोर, डाकुओं और भेडियों से उनकी रक्षा कर सकें. एक भला और सच्चा चरवाहा ही भेड़ों की सही स्थिति और उनके कष्ट जानता है.

ईश्वर ने हम सभी को अपनी ख़ुशी से अपने लिए बनाया है और हमारी आत्मा उसी ईश्वर के लिए सदा प्यासी रहती है (स्तोत्र 42:2). इसी प्यास के कारण हम जाने-अनजाने में भी ईश्वर को खोजते रहते हैं, क्योंकि ईश्वर को पाना और उसे मिलन ही हमारे जीवन का अंतिम उद्देश्य है. जो लोग इस उद्देश्य से भटक जाते हैं, इस उद्देश्य को भूल जाते हैं, वे अपने जीवन में खालीपन महसूस करते हैं. उस खालीपन को दूर करने के लिए बिना चरवाहे की भेड़ों के समान यहाँ-वहाँ भटकते हैं. खालीपन को दूर करने और शान्ति पाने के लिए नयी-नयी चीज़ें ट्राई करते हैं, संसारिकता, धन-दौलत और ऐशो-आराम में संतुष्टि पाने की कोशिश करते हैं, लेकिन हमारी वास्तविक और अनन्त संतुष्टि केवल ईश्वर में है, वही हमारा भला और सच्चा चरवाहा है. आइये हम पूरे ह्रदय से उसके पास जाएँ. आमेन.



📚 REFLECTION



Why is it that so many people came searching Jesus? We read in the gospels that wherever Jesus went, people reached there even before him. Whether Jesus went to known places or unknown places, deserted or secluded places or remote unknown villages, people always found their way to reach him. Many times he had to use boat to preach because of the crowd that was pressing on him. Something similar we see in the gospel today when the disciples happily returned after their mission work and they were filled with joy and excitement. Jesus wanted them to rest for a while because so many people were coming and going that they did not even have time to eat peacefully, so he takes them to a deserted place where nobody could disturb them, but people see them leaving and they reach the place even before them, walking on foot. Jesus felt pity for them and they seemed to him like sheep without shepherd.

The relationship between God and His people has been expressed through various imageries and symbols, one of such express is that of Shepherd and sheep. God is the Shepherd and the people are sheep. We see in the first reading of today, the shepherds whom God had appointed for caring His sheep, they scattered them, they did not care for them. Similar words we see in the 34th chapter of prophet Ezekiel. This relationship of people with God could not remain the same, they offended God and went away from God gradually. They went astray from the right path, and people and leaders who were given the responsibility to care for the sheep, they responsible for the downfall of the people to some extent. Instead of leading people towards God, their scandalous life became a means sending people away from God and cause for their exploitation.

This became all the more clear at the time of Jesus, when he condemns these leaders and false teachers of the religion. He points out their wrongful conduct and exploitative ways. There were many examples of their wrongful conduct that kept people away from them as well as from God. Some such examples are – they liked to be greeted in the markets, wear very royal and attractive clothes, make empty and long prayers, burn the people with unnecessary laws, misleading the people in the matters of religion and killing the prophets etc. Jesus compares them with theives and decoits who want to steal and kill, they were like hired servants who didn’t care for the sheep (John10:8,12). Therefore Jesus came down as the Good Shepherd who would take his sheep to green pastures and give them rest, protect and safeguard them from thieves and robbers. A good shepherd knows his sheep and their needs and can take care of them well.

God has created us out of His free will and for His own happiness and put a thirst in souls, so that they always thirst for God (Psalm 42:2). It is because of this thirst within us that we search and long for God, it becomes our only goal and destiny. Those who forget their destiny and goal, they feel emptiness and dryness within. They want to fill that emptiness and hence go around restlessly like sheep without shepherd. They try new things, they try to attain happiness and fulfilment through wealth, money, pleasure and luxuries, but all in vain because our true happiness lies in finding God. Only God ca become our True and Good Shepherd. Let us turn towards our Good Shepherd. Amen.



मनन-चिंतन -2


Have a break have a kit-kat. अंतराल लो kit-kat खाओ. Break हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आज के सुसमाचार में हम देखते है कि प्रेषित कार्य के बाद वापस लौटे शिष्यों को प्रभु आराम करने का निमत्रंण देते है।

फादर जैरी ओरबोस अपनी श्रमततल व्तइवे एक किताब में येसु द्वारा दिये गये इस आराम के तीन कारण बताते है। शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक।

शारीरिक: शिष्यों ने अपना प्रेषित कार्य इतने जोशखरोश के साथ किया कि उनके पास आराम के बारे में सोचने तक का समय नहीं था। उन्होंने उनकी शारीरिक क्षमता की परवाह न रखते हुए काम किया। यदि इस गति के साथ वे काम करना जारी रखते तो वे शायद बीमार भी हो सकते थे। इस बात को मन में रखते हुए प्रभु उन्हें आराम करने के लिए कहते है।

मानसिक: बाइबिल में हम देखते है कि जब कुछ महिलाऐं बच्चों को आर्शीवाद के लिए प्रभु के पास लाती है तो शिष्यगण नाराज हो कर उनको दूर कर देते है। भीड बढ़ने पर उनकी आशंका होती थी। यहॉं पर हम देखते है कि वे पहले से ही थक चुके थे और ऊपर से भीड उमड पड रही थी। उनके अच्छे कार्यों को प्रभु गुस्से में डुबाना नहीं चाहते थे। भीड में शिष्य चिडचिडेपन के कारण लोगों से गुस्सा कर सकते थे। यह सब देखते हुए येसु ने उनको आराम करने भेजा।

आध्यात्मिक: आष्टा सेमिनारी में हमारा ARA (Action Reflection Action) नामक कार्यक्रम हुआ करते थे। इसका उद्देश्य यह था कि लोगों के बीच सामाजिक जागरूकता के कार्य करने के बाद मनन चिंतन करके और भी अच्छी तरीके से उसको करना। यही योजना प्रभु के मन में थी। उन्होंने अपने शिष्यों को आराम करने के लिए इसीलिए कहा कि वे अपने कार्यों पर मनन-चिन्तन करें और यह समझे की प्रभु की कृपा कितनी बडी मात्रा में उनके कार्यों पर बनी रही। यह आराम उनके आगे के मिशन कार्यों के लिए जोश और ऊर्जा प्रदान कर सकता था।

हम सब अपनी गाडियों की सर्विसिंग कराते है इस तरह हम गाडी को break या विश्राम देते है। इंजन का तेल (Engine oil) बदलने से तथा पहियों को तेल से रमाने से गाडी की क्षमता बढ़ जाती है। इस प्रकार गाडी के समान हमें भी विश्राम की जरूरत है लेकिन ज्यादातर लोग यह विश्राम लेना नहीं चाहते हैं।

पुराने जमाने में कपडे धोने और बर्तन मांझने में बहुत समय लगता था। कुॅए और हैंडपंप से पानी निकालते थे, चूल्हा लकडी से जलाते थे। यह सब करने के लिए भी बहुत समय लगता था लेकिन फिर भी लोगों के पास आराम करने के लिए, break लेने के लिए पर्याप्त समय था। आजकल कपडे और बर्तन धोने के लिए मशीन है, पानी नल खोलने पर उपलब्ध है, गैस और बिजली से चूल्हे जलते है। इस मशीनों के कारण समय की काफी बचत होती है। फिर भी आज break लेने के लिए किसी के पास समय नहीं है। सब व्यस्त रहते है।

वैसे तो प्राकृतिक तौर पर तो हम सब break लेते है। सुबह से tea break, lunch break शाम को लंबे आराम के लिए सोने का break लेते है। break लेना भूल जाते है या लेना नहीं चाहते है उनके लिए भी प्रकृति का नियम है - बीमारी। किसी के बीमार होने से उनको तीन-चार दिन लगातार break मिलता है।

हम सबको break लेने की आदत अपनाना चाहिए। Break लेने से हम अपने शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक क्षमता बडा सकते है। साथ साथ और भी ऊर्जा के साथ प्रभु के लिए काम कर सकते है।


फादर मेलविन चुल्लिकल



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Praise the Lord!

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