शनिवार, 15 मई, 2021
पास्का का छठवाँ सप्ताह
पहला पाठ : प्रेरित-चरित 18:23-28
23) पौलुस कुछ समय वहाँ रहा। तब फिर विदा हो कर उसने गलातिया और इसके बाद फ्रुगिया का भ्रमण करते हुए सब शिष्यों को ढारस बँधाया।
24) उस समय अपोल्लोस नामक यहूदी एफेसुस पहुँचा। उसका जन्म सिकन्दरिया में हुआ था। वह शक्तिशाली वक्ता और धर्मग्रन्थ का पण्डित था।
25) उसे प्रभु के मार्ग की शिक्षा मिली थी। वह उत्साह के साथा बोलता और ईसा के विषय में सही बातें सिखलाता था, यद्यपि वह केवल योहन के बपतिस्मा से परिचित था।
26) वह सभागृह में निस्संकोच बोलने लगा। प्रिसिल्ला और आक्विला उसकी शिक्षा सुनने के बाद उसे अपने साथ ले गये और उन्होंने अधिक विस्तार के साथ उसे ईश्वर का मार्ग समझाया।
27) जब अपोल्लोस ने अखै़या जाना चाहा, तो भाइयों ने उसकी सहायता की और शिष्यों के नाम पत्र दे कर निवेदन किया कि वे उसका स्वागत करें। अपोल्लोस के वहाँ पहुंचने के बाद उस से विश्वासियों को ईश्वर की कृपा से बहुत लाभ हुआ;
28) क्योंकि वह अकाट्य तर्कों से यहूदियों का खण्ड़न करता और सब के सामने धर्मग्रन्थ के आधार पर यह प्रमाणित करता था ही ईसा ही मसीह हैं।
सुसमाचार : योहन 16:23ब-28
23) मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- तुम पिता से जो कुछ माँगोगे वह तुम्हें मेरे नाम पर वही प्रदान करेगा।
24) अब तक तुमने मेरा नाम ले कर कुछ भी नहीं माँगा है। माँगो और तुम्हें मिल जायेगा, जिससे तुम्हारा आनन्द परिपूर्ण हो।
25) मैंने तुम लोगो से यह सब दृष्टांतो में कहा है। वह समय आ रहा है, जब मैं फिर तुम लेागों से दृष्टांतो में कुछ नहीं कहूँगा, बल्कि तुम्हें स्पष्ट शब्दों में पिता के विषय में बताऊँगा।
26) तुम उस दिन मेरा नाम लेकर प्रार्थना करोग। मैं नहीं कहता कि तुम्हारे लिये पिता से प्रार्थना करूँगा।
27) पिता तो स्वयं तुम्हें प्यार करता है, क्योंकि तुम मुझे प्यार करते और यह विश्वास करते हो कि मैं ईश्वर के यहाँ से आया हूँ।
28) मैं पिता के यहाँ से संसार में आया हूँ। अब मैं संसार को छोड कर पिता के पास जा रहा हूँ।’’
📚 मनन-चिंतन
बचपन से हमें ईश्वर से प्रार्थना करना सिखाया गया है, बाईबिल में भी येसु हम से कहते है मॉंगो और तुम्हे दिया जायेगा। प्रार्थना का कई प्रारूप होता है जैसे कि आराधना, स्तुति, मध्यस्थता, पश्चाताप इत्यादि। परंतु अक्सर हम अधिकतर प्रार्थना में ईश्वर से अपने लिए और अपने परिजनों के लिए कुछ न कुछ दुआ करते है प्रार्थना करते है।
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु कहते है कि तुम पिता से जो कुछ मॉंगोगे वह तुम्हें मेरे नाम पर वही प्रदान करेगा। प्रभु येसु अपने नाम का महत्व समझाते है और उस शक्तिशाली नाम को हमें एक हथियार के रूप में प्रदान करते है। पिता ईश्वर जो हम से प्रेम करता है और हमारे मॉंगने से पहले ही जानता है कि हमारे लिए क्या क्या की जरूरत है तो वह ईश्वर प्रभु येसु के नाम पर हमारी लिए अच्छी चिजों क्यों नहीं प्रदान करेगा।
प्रभु येसु हमें यह परामर्श देते है कि जब कभी हम प्रार्थना करें तो उनका नाम लेकर प्रार्थना करें। ईश्वर हमारे लिए सर्वोत्तम चाह रखता है। मत्ती 6ः8 इस बात को बहुत अच्छी तरह से हमारे सामने रखता है, ‘‘तुम्हारे मॉंगने से पहले ही तुम्हारा पिता जानता है कि तुम्हें किन-किन चीज़ों की जरूरत है।’’ हम बहुत सारी चीज़ों की ख्वाहीश रखते हैं; उनमें से कुछ तो हमारे स्वार्थ के लिए होती है और कुछ हमारी जरूरतों के लिए। जब हम प्रार्थना करते है तब हमें यह ध्यान रखनें की जरूरत है कि वह हम अपने ईच्छा की पूर्ती के लिए करते है या हम उस में ईश्वर की ईच्छा खोजते है।
हमारी प्रार्थना ईश्वर की ईच्छा और योजना के अनुसार होनी चाहिए। आईये हम प्रार्थनाओं को ईश्वर के समक्ष लोगों के लिए मध्यस्थता के रूप में अर्पित करें। आमेन!
📚 REFLECTION
From childhood onwards we were being taught to pray, in the bible too Jesus tells us Ask and you will receive. Prayer has got different formats like adoration, praise and worship, intersessions, penitentiary etc. But most often in the prayers we pray and ask for ourselves and for our relatives.
In today’s gospel Jesus says that whatever you ask in my name to the Father you will receive it. Lord Jesus explains the importance of his name and gives us that name as a powerful weapon for us. Father Almighty who loves us and knows what we need before our asking then why will not He will provide all good things in the name of Jesus.
Lord Jesus gives us the advice that when ever we pray we must pray in the name of Jesus. God seeks the best for us. Mt 6:8 very well expresses this in front of us, “Father knows what you need before you ask him.” We desire for many things; among them some are for selfish motives and some for our genuine needs. Whenever we pray we must keep in mind that whether we are praying for our will to be fulfilled or do we seek the will of God.
Our prayer should be based on God’s will and His plan. Let’s put forward the prayers and petitions of people in the form of intercessions. Amen!
✍ -Br. Biniush Topno
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