शनिवार, - 24 अप्रैल 2021
पहला पाठ :प्रेरित-चरित . 9:31-42
31) उस समय समस्त यहूदिया, गलीलिया तथा समारिया में कलीसिया को शान्ति मिली। उसका विकास होता जा रहा था और वह, प्रभु पर श्रद्धा रखती हुई और पवित्र आत्मा की सान्त्वना द्वारा बल प्राप्त करती हुई, बराबर बढ़ती जाती थी।
32) पेत्रुस, चारों ओर दौरा करते हुए, किसी दिन लुद्दा में रहने वाली ईश्वर की प्रजा के यहाँ भी पहुँचा।
33) वहाँ उसे ऐनेयस नामक अद्र्धांगरोगी मिला, जो आठ वर्षों से बिस्तर पर पड़ा हुआ था।
34) पेत्रुस ने उस से कहा, "ऐनेयस! ईसा मसीह तुम को स्वस्थ करते हैं। उठो और अपना बिस्तर स्वयं ठीक करो।" और वह उसी क्षण उठ खड़ा हुआ।
35) लुद्दा और सरोन के सब निवासियों ने उसे देखा और वे प्रभु की ओर अभिमुख हो गये।
36) योप्पे में तबिया नामक शिष्या रहती थी। तबिथा का यूनानी अनुवाद दोरकास (अर्थात् हरिणी) है। वह बहुत अधिक परोपकारी और दानी थी।
37) उन्हीं दिनों वह बीमार पड़ी और चल बसी। लोगों ने उसे नहला कर अटारी पर लिटा दिया।
38) लुद्दा योप्पे से दूर नहीं है और शिष्यों ने सुना था कि पेत्रुस वहाँ है। इसलिए उन्होंने दो आदमियों को भेज कर उस से यह अनुरोध किया कि आप तुरन्त हमारे यहाँ आइए।
39) पेत्रुस उसी समय उनके साथ चल दिया। जब वह योप्पे पहुँचा, तो लोग उसे उस अटारी पर ले गये। वहाँ सब विधवाएं रोती हुई उसके चारों ओर आ खड़ी हुई और वे कुरते और कपड़े दिखाने लगीं, जिन्हें दोरकास ने उनके साथ रहते समय बनाया था।
40) पेत्रुस ने सबों को बाहर किया और घुटने टेक कर प्रार्थना की। इसके बाद वह शव की ओर मुड़ कर बोला, "तबिथा, उठो! उसने आँखे खोल दीं और पेत्रुस को देख कर वह उठ बैठी।
41) पेत्रुस ने हाथ बढ़ा कर उसे उठाया और विश्वासियों तथा विधवाओं को बुला कर उसे जीता-जागता उनके सामने उपस्थित कर दिया।
42) यह बात योप्पे में फैल गयी और बहुत-से लोगों ने प्रभु में विश्वास किया।
सुसमाचार : योहन 6:60-69
60) उनके बहुत-से शिष्यों ने सुना और कहा, "यह तो कठोर शिक्षा है। इसे कौन मान सकता है?"
61) यह जान कर कि मेरे शिष्य इस पर भुनभुना रहे हैं, ईसा ने उन से कहा, "क्या तुम इसी से विचलित हो रहे हो?
62) जब तुम मानव पूत्र को वहाँ आरोहण करते देखोगे, जहाँ वह पहले था, तो क्या कहोगे?
63) आत्मा ही जीवन प्रदान करता है, मांस से कुछ लाभ नहीं होता। मैंने तुम्हे जो शिक्षा दी है, वह आत्मा और जीवन है।
64) फिर भी तुम लोगों में से अनेक विश्वास नहीं करते।" ईसा तो प्रारम्भ से ही यह जानते थे कि कौन विश्वास नहीं करते और कौन मेरे साथ विश्वासघात करेगा।
65) उन्होंने कहा, "इसलिए मैंने तुम लोगों से यह कहा कि कोई मेरे पास तब तक नहीं आ सकता, जब तक उसे पिता से यह बरदान न मिला हो"।
66) इसके बाद बहुत-से शिष्य अलग हो गये और उन्होंने उनका साथ छोड़ दिया।
67) इसलिए ईसा ने बारहों से कहा, "कया तुम लोग भी चले जाना चाहते हो?"
68) सिमोन पेत्रुस ने उन्हें उत्तर दिया, "प्रभु! हम किसके पास जायें! आपके ही शब्दों में अनन्त जीवन का सन्देश है।
69) हम विश्वास करते और जानते हैं कि आप ईश्वर के भेजे हुए परमपावन पुरुष हैं।"
📚 मनन-चिंतन
आज के पहले पाठ में हमें उन दो घटनाओं का विवरण दिया गया है जिनमें ईश्वर ने पेत्रुस से सामर्थ्य के महान कार्य करवाये। पहले पेत्रुस एक ऐसे अर्द्धांग रोगी को चंगा करता है जो पिछले आठ साल से ऐसी अवस्था में तथा एक मृत ख्राीस्तीय महिला को पुनर्जीवित करना। हम समझ सकते हैं कि मृत स्त्री को पुनर्जीवित करना अत्यंत अतिसाधारण बात थी।
हमें यह पूछना चाहिये कि क्यों इन घटनाओं विवरण दिया गया है। यह साधारण सी बात है उन नगरों में कई अन्य लोग भी बीमार थे किन्तु उन्हें चंगाई नहीं गयी तथा कई मर गये लेकिन उन्हें पेत्रुस ने पुनर्जीवित नहीं किया। हम इन दो चमत्कारों की घटनाओं की सत्यता पर संदेश नहीं करते हैं किन्तु यह निष्कर्ष भी गलत नहीं है कि अनेक बहुतों के लिये कोई चमत्कार नहीं हुआ।
इन चमत्कारों का प्रमुख उददेश्य लोगों का येसु में विश्वास जगाना था। वाक्य 9:35 कहता हैं, ’’लुद्दा और सरोन के सब निवासियों ने उसे देखा और वे प्रभु की ओर अभिमुख हो गये।’’ ऐनेयस की चंगाई का परिणाम यह हुआ की वहां के निवासियों ने येसु पर विश्वास किया। इस प्रकार 9:42 में तबिथा को जीवन-दान के बाद हम पढते हैं, ’’यह बात योप्पें में फैल गयी और बहुत से लोगों ने प्रभु में विश्वास किया।’’ फिर से इन अभूतपूर्व चमत्कार के कारण लोगों ने प्रभु में विश्वास किया। ईश्वर का चमत्कारी शक्ति प्रदर्शित करती है कि किस प्रकार ईश्वर दयापूर्वक मजबूर तथा कमजोर लोगों को चंगाई तथा जीवनदान प्रदान करता है। ईश्वर का सामर्थ्य गैर-विश्वासियों को उसकी ओर आकर्षित करता तथा हमें उनके सुसमाचार के प्रचार के लिये प्रोत्साहित करता है।
📚 REFLECTION
In today’s first reading we come across two incidents where God used Peter mightily, first to heal a man who had been paralyzed for eight years and second, to raise a Christian woman from the dead. Raising to life the woman was an extraordinary event.
We need to ask why these incidents are mentioned. It is easy to assume that there were many in these towns who remained sick or who died and were not raised. While we definitely believe the authenticity of these incidents and say that God willed for these two miracles to take place, and still know that there were many for whom no miracle occurred.
The greater and far-reaching purpose of these happenings are to bring people to faith in Jesus. In verse 9:35, it says, that “all who lived at Lydda and Sharon turned to the Lord” as a result of Aeneas’ healing. Then again in 9:42, it concludes the miracle stating that the result of the raising of Dorcas was that many believed in the Lord. The miraculous powers of God show us how God mercifully gives healing and new life to those who are helpless and dead because of sin.God’s mighty power causes unbelievers to turn to Him in saving faith and should encourage us to proclaim the Good news.
✍ -Br. Biniush Topno
No comments:
Post a Comment