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19 मार्च 2021, शुक्रवार संत योसेफ, धन्य कुँवारी मरियम का दुल्हा - समारोह

 

19 मार्च 2021, शुक्रवार

संत योसेफ, धन्य कुँवारी मरियम का दुल्हा - समारोह

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पहला पाठ : 2 समुएल 7:4-5अ, 12-14अ, 16


4) उसी रात प्रभु की वाणी नातान को यह कहते हुए सुनाई पड़ी,

5) "मेरे सेवक दाऊद के पास जाकर कहो - प्रभु यह कहता है:

12) जब तुम्हारे दिन पूरे हो जायेंगे और तुम अपने पूर्वजों के साथ विश्राम करोगे, तो मैं तुम्हारे पुत्र को तुम्हारा उत्तराधिकारी बनाऊँगा और उसका राज्य बनाये रखूँगा।

13) वही मेरे आदर में एक मन्दिर बनवायेगा और मैं उसका सिंहासन सदा के लिए सुदृढ़ बना दूँगा।

14) मैं उसका पिता होऊँगा, और वह मेरा पुत्र होगा।

16) इस तरह तुम्हारा वंश और तुम्हारा राज्य मेरे सामने बना रहेगा और उसका सिंहासन अनन्त काल तक सुदृढ़ रहेगा।"


दूसरा पाठ : रोमियों 4:13, 16-18,22


13) ईश्वर ने इब्राहीम और उनके वंश से प्रतिज्ञा की कि वे पृथ्वी के उत्तराधिकारी होंगे। यह इसलिए नहीं हुआ कि इब्राहीम ने संहिता का पालन किया, बल्कि इसलिए कि उन्होंने विश्वास किया और ईश्वर ने उन्हें धार्मिक माना है।

16) सब कुछ विश्वास पर और इसलिए कृपा पर भी, निर्भर रहता है। वह प्रतिज्ञा न केवल उन लोगों पर, जो संहिता का पालन करते हैं, बल्कि समस्त वंश पर लागू होती है- उन सबों पर, जो इब्राहीम की तरह विश्वास करते हैं।

17) इब्राहीम हम सबों के पिता हैं। जैसा कि लिखा है-मैंने तुम को बहुत-से राष्ट्रों का पिता नियुक्त किया है। ईश्वर की दृष्टि में इब्राहीम हमारे पिता हैं। उन्होंने उस ईश्वर में विश्वास किया, जो मृतकों को पुनर्जीवित करता है और जो नहीं है, उसे भी अस्तित्व में लाता है।

18) इब्राहीम ने निराशाजनक परिस्थिति में भी आशा रख कर विश्वास किया और वह बहुत-से राष्ट्रों के पिता बन गये, जैसा कि उन से कहा गया था- तुम्हारे असंख्य वंशज होंगे।

22) इस विश्वास के कारण ईश्वर ने उन्हें धार्मिक माना है।


सुसमाचार : सन्त मत्ती 1:16, 18-21, 24अ


(16) याकूब से मरियम का पति यूसुफ़़, और मरियम से ईसा उत्पन्न हुए, जो मसीह कहलाते हैं।

(18) ईसा मसीह का जन्म इस प्रकार हुआ। उनकी माता मरियम की मँगनी यूसुफ से हुई थी, परंतु ऐसा हुआ कि उनके एक साथ रहने से पहले ही मरियम पवित्र आत्मा से गर्भवती हो गयी।

(19) उसका पति यूसुफ चुपके से उसका परित्याग करने की सोच रहा था, क्योंकि वह धर्मी था और मरियम को बदनाम नहीं करना चाहता था।

(20) वह इस पर विचार कर ही रहा था कि उसे स्वप्न में प्रभु का दूत यह कहते दिखाई दिया, ’’यूसुफ! दाऊद की संतान! अपनी पत्नी मरियम को अपने यहाँ लाने में नहीं डरे,क्योंकि उनके जो गर्भ है, वह पवित्र आत्मा से है।

(21) वे पुत्र प्रसव करेंगी और आप उसका नाम ईसा रखेंगें, क्योंकि वे अपने लोगों को उनके पापों से मुक्त करेगा।’’

(24) यूसुफ नींद से उठ कर प्रभु के दूत की आज्ञानुसार अपनी पत्नी को अपने यहाँ ले आया।


📚 मनन-चिंतन

आज हम संत यूसफ का पर्व मना रहे है। संत यूसफ प्रभु येसु का पालक पिता है। धर्मग्रथ के अनुसार मत्ती 1:19 संत यूसफ का सबसे बडा गुण यह है कि वह धर्मि था। धर्मि का मतलब क्या है? लूकस 1:6 वचन कहता है कि योहन बपतिस्ता का माता पिता दोनो ईश्वर की दृष्टि में धार्मिक थे-वे पुभु की सब आज्ञाओं और नियमों का निर्दोष अनुसरण करते थे। संत यूसफ ने अपने जीवन में हमेंशा ईश्वर को प्रथम स्थान देते हुए ईश्वर की आज्ञाओं के अनुसार जीवन बिताया है। उदाहरण केलिए- जब संत यूसफ माता मरियम को बदनाम न करते हुए परित्याग करने की सोच रहा था, तब स्वप्न में ईश्वर के दूत ने उनको जो कहा उसके अनुसार वे माता मरियम को अपनी पत्नि के रूप में स्वीकार करते है।

जीवन में धर्मि बनना सबसे मुख्य बात है। इसलिए येसु संत मत्ती के सुसमाचार 6:25से कहते है तुम क्या खाये क्या पिये क्या पहने इसकी चिन्ता न करें। बल्कि तुम सब से पहले ईश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहो और ये सब चीजें़ तुम्हें यों ही मिल जायेंगी। संत लूकस 1:75 वचन कहता है ईश्वर की सेवा पवित्रता और धार्मिकता से करना है। और प्रज्ञा ग्रथ 9:3 में कहते है कि विश्व की सेवा हमें औचित्य और धार्मिकता से करना है। एफेसियों 4:24 में वचन कहता है कि जो मनुष्य धार्मिक है उनका स्वभाव ईश्वर के स्वभाव के अनुसार होता है।

ईश्वर से हम निरंतर प्रार्थना करें कि धार्मिकता का द्वार हमारे लिए खोल दीजिए ताकी हम उस में प्रवेश कर प्रभु को धन्यवाद कर सके। संत मत्ति के सुसमाचार 5:6 में वचन कहता है धन्य है वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, वे तृप्त किये जायेंगे। आईए हम धर्मि संत यूसफ के मध्यस्तता की शरण ले क्योंकि संत अवीला के संत तेरेसा कहती है कि मघ्यस्थता के लिए आप लोग संत युसुफ के पास जाये क्योंकि उनको ईश्वर पर प्रभाव है। वचन कहता है याकूब 5:16 धर्मात्मा की भक्तिमय प्रार्थना बहुत प्रभावशाली होती है।




📚 REFLECTION


Today we are celebrating the feast of St. Joseph. He is the foster father of Jesus. According to the Word of God Mat 1:19 Joseph was a righteous man. What does it mean to be righteous? We have the answer in Lk 1:6 the parents of St. John the Baptist were righteous before Gods, living blamelessly according to all the commandments and regulations of the Lord. Which means St. Joseph gave most important place for God in his life therefore he obeyed all that God asked of him. For example St. Joseph had planned the get rid of Mary quietly. But when the angel of the Lord said to him in a dream to take Mary as his wife, he obeys. He gives up his plan and takes up God’s plan.

What is the most important thing in life is to become a righteous man. Therefore in the Gospel of Mt 6:25 following that don’t worry about what you will eat, what you will wear and so on but strive first for the kingdom of God and his righteousness and all these things will be given to you as well. Lk 1:75 says that we should serve God in holiness and righteousness. In eph 4:24 says the person who is righteous is having the image of God.

Like the Psalmist 118:19 lets also pray to God that Lord open to me the gates of righteousness so that we may enter and give thanks to you. In Mat 5:6 says blessed are those who hunger and thirst for righteousness their will be filled. Let’s come to St. Joseph and ask him to help us to be righteous in our lives. St. Teresa of Avila says though you have recourse to many saints as your intercessors, go especially to St. Joseph, for he has great power with God. The word of God says in James 5:16 the prayer of the righteous is very powerful.

 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!

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