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आज का पवित्र वचन 02 फरवरी 2021, मंगलवार बालक येसु का मन्दिर में समर्पण

 

02 फरवरी 2021, मंगलवार

बालक येसु का मन्दिर में समर्पण

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पहला पाठ : मलआकी का ग्रन्थ 3:1-4

1) प्रभु-ईश्वर यह कहता है, “देखो, मैं अपने दूत भेजूँगा, जिससे वह मेरे लिए मार्ग तैयार करे। वह प्रभु, जिसे तुम खोजते हो, अचानक अपने मन्दिर आ जायेगा। देखो, विधान का वह दूत, जिस के लिए तुम तरसते हो, आ रहा है।

2) कौन उसके आगमन के दिन का सामना कर सकेगा? जब वह प्रकट होगा, तो कौन टिकेगा? क्योंकि वह सुनार की आग और धोबी के खार के सदृश है।

3) वह चाँदी गलाने वाले और शोधन करने वाले की तरह बैठ कर लेवी के पुत्रों को शुद्ध करेगा और सोने-चाँदी की तरह उनका परिष्कार करेगा।

4) तब वे योग्य रीति से ईश्वर को भेंट चढ़ायेंगे और प्रभु-ईश्वर प्राचीन काल की तरह यूदा और यरूसलेम की भेंट स्वीकार करेगा।

सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 2:22-40

22) जब मूसा की संहिता के अनुसार शुद्धीकरण का दिन आया, तो वे बालक को प्रभु को अर्पित करने के लिए येरुसालेम ले गये;

23) जैसा कि प्रभु की संहिता में लिखा है: हर पहलौठा बेटा प्रभु को अर्पित किया जाये

24) और इसलिए भी कि वे प्रभु की संहिता के अनुसार पण्डुकों का एक जोड़ा या कपोत के दो बच्चे बलिदान में चढ़ायें।

25) उस समय येरुसालेम में सिमेयोन नामक एक धर्मी तथा भक्त पुरुष रहता था। वह इस्राएल की सान्त्वना की प्रतीक्षा में था और पवित्र आत्मा उस पर छाया रहता था।

26) उसे पवित्र आत्मा से यह सूचना मिली थी कि वह प्रभु के मसीह को देखे बिना नहीं मरेगा।

27) वह पवित्र आत्मा की प्रेरणा से मन्दिर आया। माता-पिता शिशु ईसा के लिए संहिता की रीतियाँ पूरी करने जब उसे भीतर लाये,

28) तो सिमेयोन ने ईसा को अपनी गोद में ले लिया और ईश्वर की स्तुति करते हुए कहा,

29) ’’प्रभु, अब तू अपने वचन के अनुसार अपने दास को शान्ति के साथ विदा कर;

30) क्योंकि मेरी आँखों ने उस मुक्ति को देखा है,

31) जिसे तूने सब राष़्ट्रों के लिए प्रस्तुत किया है।

32) यह ग़ैर-यहूदियों के प्रबोधन के लिए ज्योति है और तेरी प्रजा इस्राएल का गौरव।’’

33) बालक के विषय में ये बातें सुन कर उसके माता-पिता अचम्भे में पड़ गये।

34) सिमेयोन ने उन्हें आशीर्वाद दिया और उसकी माता मरियम से यह कहा, ’’देखिए, इस बालक के कारण इस्राएल में बहुतों का पतन और उत्थान होगा। यह एक चिन्ह है जिसका विरोध किया जायेगा।

35) इस प्रकार बहुत-से हृदयों के विचार प्रकट होंगे और एक तलवार आपके हृदय को आर-पार बेधेगी।

36) अन्ना नामक एक नबिया थी, जो असेर-वंशी फ़नुएल की बेटी थी। वह बहुत बूढ़ी हो चली थी। वह विवाह के बाद केवल सात बरस अपने पति के साथ रह कर

37) विधवा हो गयी थी और अब चैरासी बरस की थी। वह मन्दिर से बाहर नहीं जाती थी और उपवास तथा प्रार्थना करते हुए दिन-रात ईश्वर की उपासना में लगी रहती थी।

38) वह उसी घड़ी आ कर प्रभु की स्तुति करने और जो लोग येरुसालेम की मुक्ति की प्रतीक्षा में थे, वह उन सबों को उस बालक के विषय में बताने लगी।

39) प्रभु की संहिता के अनुसार सब कुछ पूरा कर लेने के बाद वे गलीलिया-अपनी नगरी नाज़रेत-लौट गये।

40) बालक बढ़ता गया। उस में बल तथा बुद्धि का विकास होता गया और उसपर ईश्वर का अनुग्रह बना रहा।

📚 मनन-चिंतन

आज एक ऐसा दिन है जब हम पारंपरिक रूप से मोमबत्तियों की आशीष करते हैं। यह प्रकाश का पर्व है, येसु में हम ईश्वर की ज्योति का दर्शन करते हैं। सुसमाचार में हम पढ़ते हैं धर्मी सिमोन ने येसु को राष्ट्रों के लिए ज्योति और इज़राइल की महिमा घोषित किया। आज का पर्व एक ख़ुशी का पर्व है पर हम देखते हैं कि यरूशलेम में येसु के समर्पण की ख़ुशी में गम का सन्देश सुनाया जाता है।

बालक येसु को गैर यहूदियों के लिए ज्योति और इजराइल के लिए महिमा घोषित करने के बाद सिमियोंन ने घोषणा की कि यह बच्चा एक चिन्ह है जिसे अस्वीकार कर दिया जायेगा। हर कोई उस प्रकाश का स्वागत नहीं करेगा, सिमियोंन के अनुसार यही कारण है कि इस बच्चे की वजह से इजरायल में कई लोगों के पतन और उत्थान होगा। इसराइल में कुछ लोग यीशु के कारन ठोकर खाएंगे; और कुछ को उनके द्वारा उठा लिया जाएगा। संत योहन के अनुसार प्रकाश संसार में आया और लोगों ने प्रकाश के सिवा अंधकार को पसंद किया क्योंकि उनके कर्म बुरे थे।

प्रभु येसु में झलकती ईश्वरीय प्रेम रूपी ज्योति से विमुख होना हमारे मानवीय दुर्बल स्वाभाव के कारण संभव है। कम रोशनी अथवा प्रकाश में हम खुद को अधिक सहज या आरामदायक पा सकते हैं पर ईश्वर का प्रकाश उनकी ज्योति प्रभु येसु के माध्यम से लगातार चमक रही है। और उस ज्योति को कोई भी कम नहीं कर सकता। हम सिमियोंन और अन्ना के समान, हर दिन ईश्वर की दिव्य ज्योति की ओर मुड़ें और ईश्वर के प्रकाश में जीवन बिताएं। आमेन।



📚 REFLECTION


Today is a day when we traditionally bless candles. It is a feast of light, of God’s light revealed in Jesus. In the gospel reading Simeon declares Jesus to be a light to enlighten the pagans, as well as being the glory of Israel. Today’s feast closes the Christmas festival of light. It is a joyful feast and, yet, a shadow is cast over this joyful scene in the Temple in Jerusalem.

Having declared the child Jesus to be God’s light to enlighten the pagans and to bring glory to Israel, Simeon goes on to declare that this same child is also destined to be a sign that is rejected. Not everyone will welcome the light that he brings which is why this child, according to Simeon, is destined for the fall and the rising of many in Israel. Some in Israel will stumble over Jesus; others will be lifted up by him. In the language of the fourth gospel, ‘the light has come into the world, and people loved darkness rather than light because their deeds were evil’.

We are all capable of turning away from the light, the light of God’s love and God’s truth shining through Jesus. We can be more comfortable with lesser lights. Yet, the light of God continues to shine through Jesus, the risen Lord. No amount of human rejection diminishes that light. Every day we are called by God to keep turning towards this radiant light of Jesus, after the example of Simeon and Anna in the gospel reading.

 Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!

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