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आज का पवित्र वचन 28 दिसंबर 2020 पवित्र बालकपन का त्योहार

 

28 दिसंबर 2020

पवित्र बालकपन का त्योहार

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📒 पहला पाठ: योहन का पहला पत्र 1:5-2:2

5) हमने जो सन्देश उन से सुना और तुम को भी सुनाते हैं, वह यह है- ईश्वर ज्योति है और उस में कोई अन्धकार नहीं!

6) यदि हम कहते हैं कि हम उसके जीवन के सहभागी हैं, किन्तु अन्धकार में चल रहे हैं, तो हम झूठ बोलते हैं और सत्य के अनुसार आचरण नहीं करते।

7) परन्तु यदि हम ज्योति में चलते हैं- जिस तरह वह स्वयं ज्योति में हैं- तो हम एक दूसरे के जीवन के सहभागी हैं और उसके पुत्र ईसा का रक्त हमें हर पाप से शुद्ध करता है।

8) यदि हम कहते हैं कि हम निष्पाप हैं, तो हम अपने आप को धोखा देते हैं और हम में सत्य नहीं है।

9) यदि हम अपने पाप स्वीकार करते हैं, तो वह हमारे पाप क्षमा करेगा और हमें हर अधर्म से शुद्ध करेगा; क्योंकि वह विश्वसनीय तथा सत्यप्रतिज्ञ है।

10) यदि हम कहते हैं कि हमने पाप नहीं किया है, तो हम उसे झूठा सिद्ध करते हैं और उसका सत्य हम में नहीं है।

1) बच्चो! मैं तुम लोगों को यह इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम पाप न करो। किन्तु यदि कोई पाप करता, तो पिता के पास हमारे एक सहायक विद्यमान हैं, अर्थात् धर्मात्मा ईसा मसीह।

2) उन्होंने हमारे पापों के लिए प्रायश्चित किया है और न केवल हमारे पापों के लिए, बल्कि समस्त संसार के पापों के लिए भी।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 2:13-18

(13) उनके जाने के बाद प्रभु का दूत युसुफ़ को स्वप्न में दिखाई दिया और यह बोला ’’उठिए! बालक और उसकी माता को लेकर मिस्र देश भाग जाइए। जब तक में आप से न कहूँ वहीं रहिए क्योंकि हेरोद मरवा डालने के लिए बालक को ढूँढ़ने वाला है।

(14) यूसुफ उठा और उसी रात बालक और उसकी माता को ले कर मिस्र देश चल दिया।

(15) वह हेरोद की मृत्यु तक वहीं रहा जिससे नबी के मुख से प्रभु ने जो कहा था, वह पूरा हो जाये - मैंने मिस्र देश से अपने पुत्र को बुलाया।

(16) हेरोद को यह देख कर बहुत क्रोध आया कि ज्योतिषियों ने मुझे धोखा दिया है। उसने प्यादों को भेजा और ज्योतिषियों से ज्ञात समय के अनुसार बेथलेहेम और आसपास के उन सभी बालकों को मरवा डाला, जो दो बरस के या और भी छोटे थे।

(17) तब नबी येरेमियस का यह कथन पूरा हुआ-

(18) रामा में रूदन और दारुण विलाप सुनाई दिया, राखेल अपने बच्चों के लिए रो रही है, और अपने आँसू किसी को पोंछने नहीं देती क्योंकि वे अब नहीं रहे।

मनन-चिंतन

ईश्वर ने प्रभु येसु के जन्म और जीवन के लिए कोई कृत्रिम परिपूर्ण वातावरण नहीं बनाया। उन्हें मानव जीवन की कठोर वास्तविकताओं का सामना करना पड़ा। हिंसा के बीच खुद को जिंदा रखने के लिए उनके परिवार को मिस्रदेश भागना पड़ा। उन्हें एक अपरिचित पड़ोस में मिस्र में रहना पड़ा। इब्रानियों का पत्र कहता है, "हमारे प्रधानयाजक हमारी दुर्बलताओं में हम से सहानुभूति रख सकते हैं, क्योंकि पाप के अतिरिक्त अन्य सभी बातों में उनकी परीक्षा हमारी ही तरह ली गयी है" (इब्रानियों 4:15) )। येसु को उन लोगों की हिंसा का सामना पडा जिन्होंने उनके बचपन से ही उनका खून माँगा था। उन्हें विदेशी भूमि में रहने की सभी असुविधा और खतरे का सामना करना पड़ा। कई मासूम बच्चे को समाज में शासकों तथा अन्य शक्तिशाली लोगों के अन्याय के शिकार बनना पडा। हमें जीवन में एक सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, भले ही परिस्थितियां अनुकूल न हों, जिन लोगों के साथ हम रहते हैं और काम करते हैं वे दयालु नहीं हों और सबसे अच्छे इरादों के बावजूद भी हमारे प्रयास नकारात्मक परिणाम लाते हों। हमें सभी कष्टों और विरोधों के बीच आनंदित और शांतिपूर्ण होने की आवश्यकता है।



REFLECTION

God did not create perfect artificial surroundings for the birth and life of Jesus. Jesus had to face the harsh realities of human life. His family had to flee to Egypt to keep themselves alive in the midst of violence. They had to live in Egypt in an unfamiliar neighbourhood. The Letter to the Hebrews tells us, “For we do not have a high priest who is unable to sympathize with our weaknesses, but we have one who in every respect has been tested as we are, yet without sin” (Heb 4:15). Jesus confronted the violence of those who sought his blood from his childhood. He had to face all the inconvenience and threat of staying in a foreign land. Many innocent children were victims of the injustice perpetuated by those wielding power in the society. We need to cultivate a positive attitude to life even when circumstances are not ideal, the people with whom we live and work are not kind and our efforts seem to bring negative results even with the best of intentions. We need to seek to be joyful and peaceful in the midst of all tribulations and oppositions.

 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!

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