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25 दिसंबर 2020, शुक्रवार ख्रीस्त जयन्ती

 

25 दिसंबर 2020, शुक्रवार

ख्रीस्त जयन्ती

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📒 पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 52:7-10

7) जो शान्ति घोषित करता है, सुसमाचार सुनाता है, कल्याण का सन्देश लाता और सियोन से कहता है, “तेरा ईश्वर राज्य करता है“- इस प्रकार शुभ सन्देश सुनाने वाले के चरण पर्वतों पर कितने रमणीय हैं!

8) येरुसालेम! तेरे पहरेदार एक साथ ऊँचे स्वर से आनन्द के गीत गाते हैं। वे अपनी आँखों से देख रहे हैं कि प्रभु ईश्वर सियोन की ओर वापस आ रहा है।

9) येरुसालेम के खँड़हर आनन्दविभोर हो कर जयकार करें! प्रभु-ईश्वर अपनी प्रजा को सान्त्वना देता और येरुसालेम का उद्धार करता है।

10) प्रभु-ईश्वर ने समस्त राष्ट्रों के देखते-देखते अपना पावन सामर्थ्य प्रदर्शित किया है। पृथ्वी के कोने-कोने में हमारे ईश्वर का मुक्ति-विधान प्रकट हुआ है।

📕 दूसरा पाठ : इब्रानियों के नाम पत्र 1:1-6

1) प्राचीन काल में ईश्वर बारम्बार और विविध रूपों में हमारे पुरखों से नबियों द्वारा बोला था।

2) अब अन्त में वह हम से पुत्र द्वारा बोला है। उसने उस पुत्र के द्वारा समस्त विश्व की सृष्टि की और उसी को सब कुछ का उत्तराधिकारी नियुक्त किया है।

3) वह पुत्र अपने पिता की महिमा का प्रतिबिम्ब और उसके तत्व का प्रतिरूप है। वह पुत्र अपने शक्तिशाली शब्द द्वारा समस्त सृष्टि को बनाये रखता है। उसने हमारे पापों का प्रायश्चित किया और अब वह सर्वशक्तिमान् ईश्वर के दाहिने विराजमान है।

4) उसका स्थान स्वर्गदूतों से ऊँचा है; क्योंकि जो नाम उसे उत्तराधिकार में मिला है, वह उनके नाम से कहीं अधिक श्रेष्ठ है।

5) क्या ईश्वर ने कभी किसी स्वर्गदूत से यह कहा- तुम मेरे पुत्र हो, आज मैंने तुम्हें उत्पन्न किया है और मैं उसके लिए पिता बन जाऊँगा और वह मेरा पुत्र होगा?

6) फिर वह अपने पहलौठे को संसार के सामने प्रस्तुत करते हुए कहता है- ईश्वर के सभी स्वर्गदूत उसकी आराधना करें,

📙 सुसमाचार : सन्त योहन 1:1-18

1) आदि में शब्द था, शब्द ईश्वर के साथ था और शब्द ईश्वर था।

2) वह आदि में ईश्वर के साथ था।

3) उसके द्वारा सब कुछ उत्पन्न हुआ। और उसके बिना कुछ भी उत्पन्न नहीं हुआ।

4) उस में जीवन था, और वह जीवन मनुष्यों की ज्योति था।

5) वह ज्योति अन्धकार में चमकती रहती है- अन्धकार ने उसे नहीं बुझाया।

6) ईश्वर को भेजा हुआ योहन नामक मनुष्य प्रकट हुआ।

7) वह साक्षी के रूप में आया, जिससे वह ज्योति के विषय में साक्ष्य दे और सब लोग उसके द्वारा विश्वास करें।

8) वह स्वयं ज्यांति नहीं था; उसे ज्योति के विषय में साक्ष्य देना था।

9) शब्द वह सच्च ज्योति था, जो प्रत्येक मनुष्य का अन्धकार दूर करती है। वह संसार में आ रहा था।

10) वह संसार में था, संसार उसके द्वारा उत्पन्न हुआ; किन्तु संसार ने उसे नहीं पहचाना।

11) वह अपने यहाँ आया और उसके अपने लोगों ने उसे नहीं अपनाया।

12) जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विश्वास करते हैं, उन सब को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया।

13) वे न तो रक्त से, न शरीर की वासना से, और न मनुष्य की इच्छा से, बल्कि ईश्वर से उत्पन्न हुए हैं।

14) शब्द ने शरीर धारण कर हमारे बीच निवास किया। हमने उसकी महिमा देखी। वह पिता के एकलौते की महिमा-जैसी है- अनुग्रह और सत्य से परिपूर्ण।

15) योहन ने पुकार-पुकार कर उनके विषय में यह साक्ष्य दिया, ‘‘यह वहीं हैं, जिनके विषय में मैंने कहा- जो मेरे बाद आने वाले हैं, वह मुझ से बढ़ कर हैं; क्योंकि वह मुझ से पहले विद्यमान थे।’’

16) उनकी परिपूर्णता से हम सब को अनुग्रह पर अनुग्रह मिला है।

17) संहिता तो मूसा द्वारा दी गयी है, किन्तु अनुग्रह और सत्य ईसा मसीह द्वारा मिला है।

18) किसी ने कभी ईश्वर को नहीं देखा; पिता की गोद में रहने वाले एकलौते, ईश्वर, ने उसे प्रकट किया है।

मनन-चिंतन

क्रिसमस - शब्द के देहधारण का उत्सव है। संत योहन के सुसमाचार की प्रस्तावना (योहन 1: 1-18) में इस रहस्य को समृद्ध ईशशास्त्र में प्रस्तुत किया गया है। नाज़रेत का येसु मानव रूप में ईश्वर है। सर्वशक्तिमान ईश्वर, दुनिया का सृष्टिकर्ता एक ऐसा व्यक्ति बन जाता है जो हमें मानवीय तरीके से ईश्वरीय प्यार का अनुभव कराने में सक्षम है। वे हमारी ही तरह बनते हैं। संत पौलुस हमें ईसा मसीह के समान मानसिकता रखने के लिए कहते हुए उनका परिचय इस प्रकार देते हैं - "वह वास्तव में ईश्वर थे और उन को पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें, फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद मरण तक, हाँ क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन बना लिया।” (फिलिप्पियों 2: 6-8) स्वर्ग ईश्वर का सिंहासन है और पृथ्वी उनका पावदान है (देखें इसायाह 66:1)। फिर भी वे बेथलेहेम के गोशाले में जन्म लेते हैं। संत पौलुस हमें मसीह की इस आत्म-त्याग करने वाली विनम्रता का अनुकरण करने को कहते हैं। प्रभु ईश्वर हमें "ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार" देने के लिए मानव बन गये (योहन 1:12)। वे नीचे आते हैं ताकि हमें ऊपर उठाया जा सकें। प्रभु के आगमन का त्यौहार हमें अनके स्वयं को शून्य करने वाले तथा उदार प्रेम के लिए ईश्वर की स्तुति करने तथा हमारी अपनी परिस्थितियों में उसी प्रकार का प्रेम प्रदर्शित करने के लिए आमंत्रित करता है।



REFLECTION

Christmas is the celebration of the Word made flesh. In the Johannine prologue (Jn 1:1-18) this mystery is presented in rich theology. Jesus of Nazareth is God in human form. The Almighty God, the creator of the world becomes one like us in order to enable us to experience his love in a human way. He becomes one like us. St. Paul tells us that we should have the same mindset as that of Christ Jesus, “Who, being in very nature of God, did not consider equality with God something to be used to his own advantage; rather, he made himself nothing by taking the very nature of a servant, being made in human likeness. And being found in appearance as a man, he humbled himself…” (Phil 2:6-8). God has heaven as his throne and earth as footstool. Yet he comes down to us in the babe of Bethlehem. St. Paul asks us to imitate this self-emptying humility of Christ. He became a human child, in order to give us “power to become children of God” (Jn 1:12). He comes down so that we can be raised up. The feast of the Nativity of the Lord calls us to praise God for his self-emptying and generous love and live the same kind of self-emptying love in our own situations of human life.


मनन-चिंतन-2

एक गाने की पंक्ति मुझे याद आ रही है जो इस प्रकार है - ईश्वर इंसान बन गया और एक नया इतिहास बन गया। हॉ, इसलिए तो सारी दुनिया इस पर्व को धूम धाम से मनाती है। क्रिसमस सारी मानवजाति के लिए महत्वपूर्ण क्यों है? बाकी त्योहारों की अपेक्षा इस त्योहार में क्या ख़ास बात है?

सरी दुनिया एक मुक्ति दाता की प्रतीक्षा कर रही थी क्योंकि नबियों एवं धर्मात्माओं ने एक मुक्तिदाता के बारे में भविष्यवाणी की थी कि एक कुँवारी गर्भवती होगी। वह एक पुत्र को प्रसव करेगी और वह उसका नाम इम्मानूएल रखेगी (इसायाह 7:14) क्योंकि वे अपने लोगों को उनके पापों से मुक्त करेगा। (मत्ती 1:21) वह दाऊद के सिंहासन पर विराजमान हो कर सदा के लिए शाँति, न्याय और धार्मिकता का साम्राज्य स्थापित करेगा। विश्वमण्डल के प्रभु का अनन्य प्रेम यह कार्य सम्पन्न करेगा। (इसायाह 9:6) वह मुक्ंितदाता प्रभु येसु ही है। येसु ने स्वयं कहा कि धन्य है तुम्हारी आँखें, क्योंकि वे देखती हैं और धन्य हैं तुम्हारे कान, क्योंकि वे सुनते हैं! मैं तुम लोगों से यह कहता हॅू - तुम जो बातें देख रहे हो, उन्हें कितने ही नबी और धर्मात्मा देखना चाहते थे; परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं देखा और तुम जो बातें सुन रहे हो, वे उन्हें सुनना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं सुना। (मत्ती 13:16-17) और क्रिस्मस में हम उन्हीं प्रभु येसु मसीह का जन्मदिन मनाते हैं।

येसु का जन्म हमारे लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि उनके जन्मोत्सव में हम हमारी मुक्ति का भी जन्मोत्सव मनाते हैं। हॉ, येसु के जन्म के साथ ही हमारी मुक्ति का भी आरंभ हुआ। येसु ने कहा कि “मैं संसार को दोषी ठहराने नहीं, संसार का उद्वार करने आया हॅू।“ (योहन 12:47) मानवपुत्र भी अपनी सेवा कराने नहीं, बल्कि सेवा करने तथा बहुतों के उद्वार के लिए अपने प्राण देने आया है।(मत्ती 20:28) क्योंकि पिता ईश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को मुक्तिकार्य के लिए ही भेजा था। इसलिए संत योहन कहते है कि “ईश्वर ने संसार को इतना प्यार किया कि उसने उसके लिए अपने एकलौते पुत्र को अर्पित कर दिया, जिससे जो उस में विश्वास करता है, उसका सर्वनाश न हो, बल्कि अनन्त जीवन प्राप्त करे। (योहन 3:16) पिता ईश्वर चाहता है कि सभी मनुष्य मुक्ति प्राप्त करें और सत्य को जानें। (1 तिमथी 2:4) इसलिए येसु ने कहा कि “...मैं धर्मियों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हॅू।(मत्ती 9:13)

प्रभु येसु मसीह ने इस जगत में हम सबों को ईश्वर की संतान बनाने के लिए जन्म लिया। क्योंकि पिता परमेश्वर ने प्रेम से प्रेरित होकर आदि में ही निर्धारित किया कि हम ईसा मसीह द्वारा उसके दत्तकपुत्र-पुत्रियाँ बनेंगे। (एफेसियों 1:5) पुराने विधान में हम कई स्थानों पर ईश-वचन को पढते है जहॉ ईश्वर और मानव के बीच के संबन्ध की ईश्वर और प्रजा के रुप में तुलना की गयी है - यदि तुम मेरी बात पर ध्यान दोगे, तो मैं तुम्हारा ईश्वर होऊॅगा और तुम मेरी प्रजा होगे। (यिरमियाह 7:23, 30:22, निर्गमन 6:7, लेवी 26:12) संत योहन कहते है कि “पिता ने हमें कितना प्यार किया है! हम ईश्वर की सन्तान कहलाते हैं और हम वास्तव में वही हैं।“(1योहन 3:1); क्योंकि जितनों ने उसे अपनाया, और जो उसके नाम में विश्वास करते हैं, उन सबों को उसने ईश्वर की सन्तति बनने का अधिकार दिया। (योहन 1:12) इसलिए संत पौलुस गलातियों से कहते हैं कि आप लोग सब-के-सब ईसा मसीह में विश्वास करने के कारण ईश्वर की सन्तति हैं। (गलातियों 3:26) ईश्वर की सन्तान होने के कारण ईसाईयों से पाप से दूर रहने के लिए संत योहन अपने पत्र में आग्रह करते हुए लिखते हैं - जो ईश्वर की सन्तान है, वह पाप नहीं करता; क्योंकि ईश्वर का जीवन-तत्व उस में क्रियाशील है।(1योहन 3:9)

क्रिसमस सारी मानव-जाति के लिए बहुत अहम है क्योंकि येसु के जन्म द्वारा स्वर्ग और पृथ्वी के बीच का टूटा रिश्ता फिर से बन गया है। पाप करने के कारण ईश्वर ने आदम और हेवा को अदन की वाटिका से निकाल दिया था। (योहन 3:23) इस प्रकार एक ही मनुष्य के अपराध के फलस्वरूप सबों को दण्डाज्ञा मिली... सब पापी ठहराये गये। (रोमियों 5:18-19) हमारे अर्धम ने हम को ईश्वर से दूर किया, हमारे पापों ने ईश्वर को हम से विमुख कर दिया। (इसायाह 59:2) संत पौलुस कहते हैं कि हम सब पापी थे, ईश्वर के शत्रु थे और अब हमारे प्रभु येसु मसीह के द्वारा ईश्वर से हमारा मेल हो गया है। (रोमियों 5:11, 2 कुरिन्थियों 5:18-19) पिता ईश्वर और मनुष्यों के बीच केवल एक ही मध्यस्थ हैं, अर्थात् येसु मसीह। (1तिमथी 2:5) येसु ने यह बात स्वयं कही है कि मार्ग, सत्य और जीवन मैं हॅू। मुझ से हो कर गये बिना कोई पिता के पास नहीं आ सकता। (योहन 14:6) क्योंकि समस्त संसार में येसु नाम के सिवा मनुष्यों को कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया है, जिसके द्वारा हमें मुक्ति मिल सकती है। (प्रेरित 4:12)

इस प्रकार प्रभु येसु के जन्म के द्वारा हम लोगों के लिए स्वर्ग के हर प्रकार के आध्यात्मिक वरदान, (एफेसियों 1:3) परिपूर्ण नवजीवन एवं अक्षय, अदूषित तथा अविनाशी विरासत (1पेत्रुस 1:3-4) प्राप्त करने का मार्ग खुल गया है।

- Br. Biniush Topno

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Praise the Lord!

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