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आज का पवित्र वचन 09 दिसंबर 2020 आगमन का दूसरा सप्ताह, बुधवार

 

09 दिसंबर 2020
आगमन का दूसरा सप्ताह, बुधवार

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📒 पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 40:25-31

25) परमपावन ईश्वर कहता है, “तुम मेरी तुलना किस से करना चाहते हो? मेरी बराबरी कौन कर सकता है?“

26) आकाश की ओर दृष्टि लगाओ। किसने यह सब बनाया है? उसी ने, जो नक्षत्रों का समूह फैलाता और एक-एक का नाम ले कर पुकारता है। उसका सामर्थ्य इतना महान् है और उसका तेज इतना अदम्य कि एक भी नक्षत्र अविद्यमान नहीं रहता।

27) याकूब! तुम यह क्यों कहते हो, इस्राएल! तुम यह क्यों बोलते होः “प्रभु मेरी दुर्दशा पर ध्यान नहीं देता, मेरा ईश्वर मुझे न्याय नहीं दिलाता“?

28) क्या तुम यह नहीं जानते, क्या तुमने यह नहीं सुना कि प्रभु अनादि-अनन्त ईश्वर है, वह समस्त पृथ्वी का सृष्टिकर्ता है? वह कभी क्लान्त अथवा परिश्रन्त नहीं होता। कोई भी उसकी प्रज्ञा की थाह नहीं ले सकता।

29) वह थके-माँदे को बल देता और अशक्त को सँभालता है।

30) जवान भले ही थक कर चूर हो जायें और फिसल कर गिर पड़ें,

31) किन्तु प्रभु पर भरोसा रखने वालों को नयी स्फूर्ति मिलती रहती है। वे गरुड़ की तरह अपने पंख फैलाते हैं; वे दौड़ते रहते हैं, किन्तु थकते नहीं, वे आगे बढ़ते हैं, पर शिथिल नहीं होते।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 11:28-30

28) ’’थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगो! तुम सभी मेरे पास आओ। मैं तुम्हें विश्राम दूँगा।

29) मेरा जूआ अपने ऊपर ले लो और मुझ से सीखो। मैं स्वभाव से नम्र और विनीत हूँ। इस तरह तुम अपनी आत्मा के लिए शान्ति पाओगे,

30) क्योंकि मेरा जूआ सहज है और मेरा बोझ हल्का।’’

📚 मनन-चिंतन

तनावों और संघर्षों के बीच दुनिया हमें आराम पाने के लिए कई तरीके प्रदान करती है। हम आराम और सांत्वना के लिए विभिन्न लोगों, अभ्यासों और उपचारों की ओर मुड़ते हैं। आज के सुसमाचार-पाठ के द्वारा हमें यह समझाया जाता है कि हमें वास्तविक आराम प्रभु ईश्वर ही दे सकते हैं। प्रभु येसु थके-माँदे और बोझ से दबे हुए लोगों को अपने पास बुलाते हैं ताकि वे सब सच्चा आराम पा सकें। वे हमें दिलासा देते और आराम कराते हैं। वास्तविक और स्थायी आराम और सांत्वना प्रभु की ओर से आती है। और जो ईश्वर से आराम पाते हैं, वे दूसरों को दिलासा देने में सक्षम हैं। संत पौलुस कहते हैं, "धन्य है ईश्वर, हमारे प्रभु ईसा मसीह का पिता, परमदयालु पिता और हर प्रकार की सान्त्वना का ईश्वर। वह सारी दुःख तकलीफ़ में हम को सान्त्वना देता रहता है, जिसमें ईश्वर की ओर से हमें जो सान्त्वना मिलती है, उसके द्वारा हम दूसरों को भी, उनकी हर प्रकार की तकलीफ में सान्त्वना देने के लिए समर्थ हो जायें” (2कुरिन्थियों 1: 3-4)। नबी इसायाह के माध्य्म से प्रभु हम से वादा करते हैं, "जिस तरह माँ अपने पुत्र को दिलासा देती है, उसी तरह मैं तुम्हें सान्त्वना दूँगा। तुम्हें येरूसालेम से दिलासा मिलेगा।" (इसायाह 66:13)। हमारी प्रार्थना का समय प्रभु येसु से आराम पाने का समय है जो कहते हैं, "धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं! उन्हें सान्त्वना मिलेगी।" (मत्ती 5: 5)



📚 REFLECTION

The world offers many ways to relax and to find comfort in the midst of our tensions and struggles. We turn to different people and various exercises and therapies for comfort and consolation. Through the passage of the Gospel, presented for our reflection in the Liturgy today the Lord tells us that it is God who should be comforting us. Jesus asks all who are overburdened to come to him. He assures us comfort and rest with him. Real and lasting comfort and consolation come from God. And those who are comforted by God in turn become capable of comforting others. St. Paul says, “Blessed be the God and Father of our Lord Jesus Christ, the Father of mercies and the God of all consolation, who consoles us in all our affliction, so that we may be able to console those who are in any affliction with the consolation with which we ourselves are consoled by God.” (2Cor 1:3-4). Through Prophet Isaiah he promises, “As a mother comforts her child, so I will comfort you” (Is 66:13). Our time of prayer is a time to find comfort in Jesus who says, “Blessed are those who mourn, for they will be comforted” (Mt 5:4)

 -Br. Biniush Topno


www.atpresentofficial.blogspot.com
Praise the Lord!

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