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आज का पवित्र वचन 02 दिसंबर 2020

 

02 दिसंबर 2020
आगमन का पहला सप्ताह, बुधवार

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📒 पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 25:6-10a

6) विश्वमण्डल का प्रभु इस प्रर्वत पर सब राष्ट्रों के लिए एक भोज का प्रबन्ध करेगाः उस में रसदार मांस परोसा जायेगा और पुरानी तथा बढ़िया अंगूरी।

7) वह इस पर्वत पर से सब लोगों तथा सब राष्ट्रों के लिए कफ़न और शोक के वस्त्र हटा देगा,

8) श्वह सदा के लिए मृत्यु समाप्त करेगा। प्रभु-ईश्वर सबों के मुख से आँसू पोंछ डालेगा। वह समस्त पृथ्वी पर से अपनी प्रजा का कलंक दूर कर देगा। प्रभु ने यह कहा है।

9) उस दिन लोग कहेंगे - “देखो! यही हमारा ईश्वर है। इसका भरोसा था। यह हमारा उद्धार करता है। यही प्रभु है, इसी पर भरोसा था। हम उल्लसित हो कर आनन्द मनायें, क्योंकि यह हमें मुक्ति प्रदान करता है।“

10) इस पर्वत पर प्रभु का हाथ बना रहेगा।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 15:29-37

p class="hangingindent"> 29) ईसा वहाँ से चले गये और गलीलिया के समुद्र के तट पर पहुँच कर एक पहाड़ी पर चढे़ और वहाँ बैठ गये।

30) भीड़-की-भीड़ उनके पास आने लगी। वे लँगडे़, लूले, अन्धे, गूँगे और बहुत से दूसरे रोगियों को भी अपने पास ला कर ईसा के चरणों में रख देते और ईसा उन्हें चंगा करते थे।

31) गूँगे बोलते हैं, लूले भले-चंगे हो रहे हैं, लँगड़े चलते और अन्धे देखते हैं- लोग यह देखकर बड़े अचम्भे में पड़ गये और उन्होंने इस्राएल के ईश्वर की स्तुति की।

32) ईसा ने अपने शिष्यों को अपने पास बुला कर कहा, ’’मुझे इन लोगों पर तरस आता है। ये तीन दिनों से मेरे साथ रह रहें हैं और इनके पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है मैं इन्हें भूखा ही विदा करना नहीं चाहता। कहीं ऐसा न हो कि ये रास्ते में मूच्र्छित हो जायें।''

33) शिष्यों ने उन से कहा, ’’इस निर्जन स्थान में हमें इतनी रोटियाँ कहाँ से मिलेंगी कि इतनी बड़ी भीड़ को खिला सकें?’’

34) ईसा ने उन से पूछा, ’’तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं? उन्होंने कहा, ’’सात और थोड़ी-सी छोटी मछलियाँ’’।

35) ईसा ने लोगों को भूमि पर बैठ जाने का आदेश दिया

36) और वे सात रोटियाँ और मछलियाँ ले कर उन्होंने धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी, और वे रोटियाँ तोड़-तोड़ कर शिष्यों को देते गये और शिष्य लोगों को।

37) सबों ने खाया और खा कर तृप्त हो गये और बचे हुए टुकड़ों से सात टोकरे भर गये।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार-पाठ में, हम पढ़ते हैं कि प्रभु येसु को भीड़ पर तरस आया और उन्होंने उन्हें खिलाने के लिए सात रोटियों और कुछ छोटी मछलियों का चमत्कार किया। येसु ने इस चमत्कार को लोगों के सामने लोकप्रिय या महान बनने के इरादे से नहीं किया। वे मुख्य रूप से अनुकम्पा से प्रेरित थे। प्रतिस्पर्धा, आक्रामकता तथा लालसा की हमारी दुनिया में अनुकम्पा के लिए बहुत कम जगह बची है। प्रभु येसु ने भीड़ के लिए जो अनुकम्पा महसूस की, वह एक थोक भावना या अंधाधुंध संवेदना नहीं थी, बल्कि यह भीड़ में हर व्यक्ति के प्रति एक बहुत ही व्यक्तिगत भावना थी। अनुकम्पा से दूसरे का दर्द मेरा बन जाता है। अनुकम्पा लोगों को प्रेरित करती है और दूसरों के शारीरिक, मानसिक या भावनात्मक दर्द को कम करने हेतु तकलीफ़ उठाने के लिए हमें मजबूर करती है। अनुकम्पा से प्रेरित होकर ही प्रभु येसु ने रोटियों का चमत्कार किया, बीमारों को चंगा किया और मृतकों को जिलाया। अनुकम्पा हर ख्रीस्तीय विश्वासी के लिए बहुत ही आवश्यक गुण है।



📚 REFLECTION

In today’s Gospel passage, we read that Jesus felt compassion for the crowd and he multiplied the seven loaves of bread and a few small fish to feed them. Jesus did not work this miracle with an intention to become popular or great in front of the people. He was primarily motivated by compassion. In our world of competition, aggressiveness and ambitions there seems to be very little space left for compassion. The compassion that Jesus felt for the crowd, was not a wholesale feeling or an indiscriminate sensation, but it was a very personal feeling towards every person in the crowd. By compassion, another’s pain becomes mine. Compassion motivates and even forces people to go out of their way to alleviate the physical, mental, or emotional pains of others. It is out of compassion that Jesus multiplied bread, healed the sick, raised the dead and caste demons out. Compassion is a great quality that every Christian needs to cultivate.

 -Br. Biniush Topno


www.atpresentofficial.blogspot.com
Praise the Lord!

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