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आज का पवित्र वचन 30 नवंबर 2020, सोमवार संत अन्द्रेयस प्रेरित - पर्व

 
30 नवंबर 2020, सोमवार
संत अन्द्रेयस प्रेरित - पर्व
🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥🚥📒 पहला पाठ : रोमियो 10:9-18
9) क्योंकि यदि आप लोग मुख से स्वीकार करते हैं कि ईसा प्रभु हैं और हृदय से विश्वास करते हैं कि ईश्वर ने उन्हें मृतकों में से जिलाया, तो आप को मुक्ति प्राप्त होगी।
10) हृदय से विश्वास करने पर मनुष्य धर्मी बनता है और मुख से स्वीकार करने पर उसे मुक्ति प्राप्त होती है।
11) धर्मग्रन्थ कहता है, "जो उस पर विश्वास करता है, उसे लज्जित नहीं होना पड़ेगा"।
12) इसलिए यहूदी और यूनानी और यूनानी में कोई भेद नहीं है- सबों का प्रभु एक ही है। वह उन सबों के प्रति उदार है, जो उसकी दुहाई देते है;
13) क्योंकि जो प्रभु के नाम की दुहाई देगा, उसे मुक्ति प्राप्त होगी।
14) परन्तु यदि लोगों को उस में विश्वास नहीं, तो वे उसकी दुहाई कैसे दे सकते हैं? यदि उन्होंने उसके विषय में कभी सुना नहीं, तो उस में विश्वास कैसे कर सकते हैं? यदि कोई प्रचारक न हो, तो वे उसके विषय में कैसे सुन सकते है?
15) और यदि वह भेजा नहीं जाये, तो कोई प्रचारक कैसे बन सकता है? धर्मग्रन्थ में लिखा है - शुभ सन्देश सुनाने वालों के चरण कितने सुन्दर लगते हैं !
16) किन्तु सबों ने सुसमाचार का स्वागत नहीं किया। इसायस कहते हैं- प्रभु! किसने हमारे सन्देश पर विश्वास किया है?
17) इस प्रकार हम देखते हैं कि सुनने से विश्वास उत्पन्न होता है और जो सुना जाता है, वह मसीह का वचन है।
18) अब मैं यह पूछता हूँ - "क्या उन्होंने सुना नहीं?" उन्होंने सुना है, क्योंकि उनकी वाणी समस्त संसार में फैल गयी है और उनके शब्द पृथ्वी के सीमान्तों तक।
📙 सुसमाचार : मत्ती 4:18-22
(18) गलीलिया के समुद्र के किनारे टहलते हुए ईसा ने दो भाइयों को देखा-सिमोन, जो पेत्रुस कहलाता है, और उसके भाई अन्द्रेयस को। वे समुद्र में जाल डाल रहे थे, क्योंकि वे मछुए थे।
(19) ईसा ने उन से कहा, "मेरे पीछे चले आओ। मैं तुम्हें मनुष्यों के मछुए बनाऊँगा।"
(20) वे तुरंत अपने जाल छोड़ कर उनके पीछे हो लिए।
(21) वहाँ से आगे बढ़ने पर ईसा ने और दो भाइयों को देखा- जे़बेदी के पुत्र याकूब और उसके भाई योहन को। वे अपने पिता जे़बेदी के साथ नाव में अपने जाल मरम्मत कर रहे थे।
(22) ईसा ने उन्हें बुलाया। वे तुरंत नाव और अपने पिता को छोड़ कर उनके पीछे हो लिये।
📚 मनन-चिंतन
आज हम संत अंद्रेयस का पर्व मना रहें हैं, वह जो बारह प्रेरितों में से एक था, जिसे प्रभु येसु ने चुना उनके साथ रहने के लिए तथा सुसमाचार की घोषणा के लिए भेजे जाने के लिए; एक ऐसा विशेष अधिकार जिसके लिए हम में से अधिकतर लोग अभिलाषा करते हैंः उनके साथ रहने के लिए, उनका अनुभव करने के लिए तथा उनकी इच्छा पूरी करने के लिए।
येसु इस संसार में हमें बचाने आये और उनकी इच्छा है कि हम सब मुक्ति प्राप्त करें। उन्होने बारह शिष्यों को चुना जिससे वे आत्माओं को बचाने का मिशन को आगे बढ़ा सकें। येसु के मरण, पुनरुत्थान एवं स्वर्गारोहण के बाद प्रेरितों ने उनके मिशन को आगे बढ़ाया तथा आज भी उस मिशन को प्रभु के अनुयायियों द्वारा पूरा किया जाता है।
एक व्यक्ति कैसे बच सकता है या उसे मुक्ति प्राप्त कैसे हो सकती है? संत पौलुस आज के पहले पाठ में कहते है, ‘‘जो प्रभु के नाम की दुहाई देगा, उसे मुक्ति प्राप्त होगी। परंतु केवल दुहाई देना काफी नहीं जब तक उस में विश्वास न हो, और यह विश्वास उनके विषय में सुनकर ही आ सकता हैं; बिना प्रचारक के उनके विषय में कौन कैसे सुन सकता है, तथा कोई प्रचार कैसे कर सकता है जब तक वह भेजा न गया हो? इस पूरे संसार में बहुत ही कम लोग हैं जो भेजे जाने के लिए बुलाये हुए में से चुने गये है। जिस प्रकार येसु मत्ती के सुसमाचार 9ः37-38 में कहते है, ‘‘फसल तो बहुत है, परन्तु मज़दूर थोड़े हैं। इसलिए फसल के स्वामी से विनती करो कि वह अपनी फसल काटने के लिए मज़दूरों को भेजे।’’ हमें प्रभु से निरंतर प्रार्थना करनी चाहिए कि वे संत अंद्रेयस के समान इस संसार में से लोगों को चुनें।
संत अंद्रेयस के पर्व के दिन हम अंद्रेयस के बुलाहट के बारे में पढ़ते हैं। संत अंद्रेयस जो की एक साधारण मछुआरा था प्रभु का अनुसरण करने के लिए सबकुछ छोड़ देता है। येसु का बुलाहट बहुत अनोखा ही है क्योंकि वह हमेशा साधारण एवं नम्र व्यक्तियों को अपना मिशन कार्य करने के लिए बुलाता है। जिसे संत पौलुस बुलाहट के विषय में कुरिथिंयों के नाम पहले पत्र 1ः27-29 में बताते है, ‘‘ज्ञानियों को लज्जित करने के लिए ईश्वर ने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में मूर्ख हैं। शक्तिशालियों को लज्जित करने के लिए उसने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में दुर्बल हैं। गण्य-मान्य लोगांे का घमण्ड चूर करने के लिए उसने उन लोगों को चुना है, जो दुनिया की दृष्टि में तुच्छ और नगण्य हैं, जिससे कोई भी मनुष्य ईश्वर के सामने गर्व न करें।’’
आईये हम प्रार्थना करें कि अधिक से अधिक लोग संत अंद्रेयस के समान प्रभु की बुलाहट का उत्तर दें जिससे वे आत्माओं को बचाने हेतु प्रभु के हाथों में एक सुयोग्य साधन बन सकें। आमेन!
📚 REFLECTION
Today we are celebrating the feast of St. Andrew, one among the twelve apostles who was being chosen by Lord Jesus to be with him and to be send out in to the world to proclaim the gospel; a privilege which many of us long for: to be with him, to experience him and to do his will.
Jesus came in this world to save us and he wants each one of us to be saved. He chose twelve disciples in order to carry forward his mission of saving the souls. After the death, Resurrection and Ascension of Lord Jesus the apostles carried forward his mission and even now also there are Lord’s followers who carry forward in the mission of saving souls.
How one can be saved? St. Paul says in today’s first reading, ‘Everyone who calls on the name of the Lord shall be saved.’ But simply calling is not enough one has to call with faith and one can have faith only after hearing about him and one can hear only if someone proclaims and one cannot proclaim unless he is being sent. In this large world there are very few chosen one who are being called to send. As Jesus says in Mt 9:37-38, “The harvest is plentiful, but the laborers are few, therefore ask the Lord of the harvest to send out laborers into his harvest;” We need to always pray to the Lord to choose the people from the world to be sent out like St. Andrew.
On the feast of St. Andrew we read the call of Andrew. St. Andrew a simple fisherman left everything to follow Jesus. Jesus’ call is very strange because he always calls the simple and humble person to carry forward his mission. Of which St. Paul tells about the call in his 1 Cor 1:27-29, “But God chose what is foolish in the world to shame the wise; God chose what is weak in the world to shame the strong; God chose what is low and despised in the world, things that are not, to reduce to nothing things that are, so that no one might boast in the presence of God.”
Let’s pray that many may respond to God’s call as St. Andrew responded so that they may become the worthy instrument in God’s hand to save the souls. Amen!
 -Br. Biniush Topno

 www.atpresentofficial.blogspot.com
Praise the Lord!

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