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आज का पवित्र वचन 01 दिसंबर 2020

 

01 दिसंबर 2020
आगमन का पहला सप्ताह, मंगलवार

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📒 पहला पाठ: इसायाह का ग्रन्थ 11:1-10

1) यिशय के धड़ से एक टहनी निकलेगी, उसकी जड़ से एक अंकुर फूटेगा।

2) प्रभु का आत्मा उस पर छाया रहेगा, प्रज्ञा तथा बुद्धि का आत्मा, सुमति तथा धैर्य का आत्मा, ज्ञान तथा ईश्वर पर श्रद्धा का आत्मा।

3) वह प्रभु पर श्रद्धा रखेगा। वह न तो जैसे-तैसे न्याय करेगा, और न सुनी-सुनायी के अनुसार निर्णय देगा।

4) वह न्यायपूर्वक दीन-दुःखियों के मामलों पर विचार करेगा और निष्पक्ष हो कर देश के दरिद्रों को न्याय दिलायेगा। वह अपने शब्दों के डण्डे से अत्याचारियों को मारेगा और अपने निर्णयों से कुकर्मियों का विनाश करेगा।

5) वह न्याय को वस्त्र की तरह पहनेगा और सच्चाई को कमरबन्द की तरह धारण करेगा।

6) तब भेड़िया मेमने के साथ रहेगा, चीता बकरी की बगल में लेट जायेगा, बछड़ा तथा सिंह-शावक साथ-साथ चरेंगे और बालक उन्हें हाँक कर ले चलेगा।

7) गाय और रीछ में मेल-मिलाप होगा और उनके बच्चे साथ-साथ रहेंगे। सिंह बैल की तरह भूसा खायेगा।

8) दुधमुँहा बच्चा नाग के बिल के पास खेलता रहेगा और बालक करैत की बाँबी में हाथ डालेगा।

9) समस्त पवत्रि पर्वत पर न तो कोई बुराई करेगा और न किसी की हानि; क्योंकि जिस तरह समुद्र जल से भरा है, उसी तरह देश प्रभु के ज्ञान से भरा होगा।

10) उस दिन यिशय की सन्तति राष्ट्रों के लिए एक चिन्ह बन जायेगी। सभी लोग उनके पास आयेंगे और उसका निवास महिमामय होगा।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 10:21-24

21) उसी घड़ी ईसा ने पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हो कर आनन्द के आवेश में कहा, ’’पिता! स्वर्ग और पृथ्वी के प्रभु! मैं तेरी स्तुति करता हूँ, क्योंकि तूने इन सब बातों को ज्ञानियों और समझदारों से छिपा कर निरे बच्चों पर प्रकट किया है। हाँ, पिता, यही तुझे अच्छा लगा

22) मेरे पिता ने मुझे सब कुछ सौंपा है। पिता को छोड़ कर यह कोई भी नहीं जानता कि पुत्र कौन है और पुत्र को छोड़ कर यह कोई नहीं जानता कि पिता कौन है। केवल वही जानता है, जिस पर पुत्र उसे प्रकट करने की कृपा करता है।’’

23) तब उन्होंने अपने शिष्यों की ओर मुड़ कर एकान्त में उन से कहा, ’’धन्य हैं वे आँखें, जो वह देखती हैं जिसे तुम देख रहे हो!

24) क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ-तुम जो बातें देख रहे हो, उन्हें कितने ही नबी और राजा देखना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं देखा और जो बातें तुम सुन रहे हो, वे उन्हें सुनना चाहते थे, परन्तु उन्होंने उन्हें नहीं सुना।’’


📚 मनन-चिंतन

प्रभु येसु द्वारा प्रचारित ईश्वर के राज्य में बच्चों का एक महान स्थान है। मासूमियत, सीखने की उत्सुकता, तुरंत विश्वास करने में तत्परता और क्षमा करने और भूलने की क्षमता रखने वाले बच्चे ईश्वर के राज्य में आसानी से प्रवेश करते हैं। उनके लिए ईश्वरीय रहस्योद्घाटन और दिव्य तरीकों को स्वीकार करना आसान है। हम इन सराहनीय गुणों के साथ इस दुनिया में आते हैं, फिर भी समय बीतने के साथ, जिस दुनिया में हम रहते हैं, वह हमारे तरीकों को प्रभावित करती है और अंतत: हम सांसारिक तरीकों को अपनाने लगते हैं। इस प्रकार ईश्वर के दिव्य तरीकों को समझना तथा अपनाना हमारे लिए मुशकिल हो जाता है। इस आध्यात्मिक बालकपन की पुन:प्राप्ति के लिए हमें मेहनत करना चाहिए। अधिकांश संतों ने ऐसा ही किया था। अमेरिकी लेखक और कवि जॉन लैंकेस्टर स्पेलडिंग का कहना है, "प्रतिभाशाली व्यक्ति बच्चों के समान है। वह इस दुनिया को बच्चों की तरह एक नई रचना के रूप में देखता है और वहाँ आश्चर्य और खुशी का एक नित्य स्रोत पाता है। ”




📚 REFLECTION

In the Kingdom of God preached by Jesus children have a great place. Children with qualities of innocence, eagerness to learn, promptness in believing instantly and ability to forgive and forget easily enter the Kingdom of God. It is easy for them to accept the divine revelation and divine ways. We are created with these admirable qualities, yet with the passage of time, the world in which we live influences us and maneuvers our ways, finally making us go into worldly ways. It then leaves very little space and chance for us to understand divine ways. It is important for us to recover this childlikeness. This is what most of the Saints did. The American Author and poet John Lancaster Spalding says, “The genius is childlike. Like children he looks into the world as into a new creation and finds there a perennial source of wonder and delight.”

 -Br. Biniush Topno


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Praise the Lord!

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