07 सितंबर 2020
वर्ष का तेईसवाँ सामान्य सप्ताह, सोमवार
📒 पहला पाठ : 1 कुरिन्थियों 5:1-8
1) आप लोगों के बीच हो रहे व्यभिचार की चरचा चारों और फैल गयी है- ऐसा व्यभिचार जो गैर-यहूदियों में भी नहीं होता। किसी ने अपने पिता की पत्नी को रख लिया है।
2) तब भी आप घमण्ड में फूले हुए हैं! आप को शोक मनाना और जिसने यह काम किया, उसका बहिष्कार करना चाहिए था।
3) मैं शरीर से अनुपस्थित होते हुए भी आत्मा से आप लोगों के बीच हूँ। जिसने यह काम किया है, मैं उसका न्याय कर चुका हूँ, मानों मैं वास्तव में वहाँ उपस्थित हूँ।
4) और मेरा निर्णय यह है: प्रभु ईसा के नाम पर हम-अर्थात् आप लोग और मैं आत्मा से - एकत्र हो जायेंगे
5) और अपने प्रभु ईसा के अधिकार से उस व्यक्ति को शैतान के हवाले कर देंगे, जिससे उसके शरीर का विनाश हो, किन्तु प्रभु के दिन उसकी आत्मा का उद्धार हो।
6) आप लोगों का आत्मसन्तोष आप को शोभा नहीं देता। क्या आप यह नहीं जानते कि थोड़ा-सा ख़मीर सारे सने हुए आटे को ख़मीर बना देता है?
7) आप पुराना ख़मीर निकाल कर शुद्ध हो जायें, जिससे आप नया सना हुआ आटा बन जायें। आप को बेख़मीर रोटी-जैसा बनना चाहिए क्योंकि हमारा पास्का का मेमना अर्थात् मसीह बलि चढ़ाये जा चुके हैं।
8) इसलिए हमें न तो पुराने खमीर से और न बुराई और दुष्टता के खमीर से बल्कि शुद्धता और सच्चाई की बेख़मीर रोटी से पर्व मनाना चाहिए।
सुसमाचार : लूकस 6:6-11
6) किसी दूसरे विश्राम के दिन ईसा सभागृह जा कर शिक्षा दे रहे थे। वहाँ एक मनुष्य था, जिसका दायाँ हाथ सूख गया था।
7) शास्त्री और फ़रीसी इस बात की ताक में थे कि यदि ईसा विश्राम के दिन किसी को चंगा करें, तो हम उन पर दोष लगायें।
8) ईसा ने उनके विचार जान कर सूखे हाथ वाले से कहा, "उठो और बीच में खड़े हो जाओ"। वह उठ खड़ा हो गया।
9) ईसा ने उन से कहा, "मैं तुम से पूछ़ता हूँ-विश्राम के दिन भलाई करना उचित है या बुराई, जान बचाना या नष्ट करना?"
10) तब उन सबों पर दृष्टि दौड़ा कर उन्होंने उस मनुष्य से कहा, "अपना हाथ बढ़ाओ"। उसने ऐसा किया और उसका हाथ अच्छा हो गया।
11) वे बहुत क्रुद्ध हो गये और आपस में परामर्श करते रहे कि हम ईसा के विरुद्ध क्या करें।
📚 मनन-चिंतन
आज के सुसमाचार में प्रभु येसु एक सूखे हाथ वाले को विश्राम दिवस के दिन चंगा करता हैं। येसु के प्रतिद्वंदी इस ताक में रहते हैं कि वे उन पर यह दोष लगाए कि उन्होंने विश्राम दिवस के नियम को तोडा है। प्रभु येसु उनके मन की बात जानते थे फिर भी वे उनके भय से भलाई का कार्य करने से पीछे नहीं हटे। वे सब प्रकार के बंधनों से मनुष्यों को छुड़ाने आये थे। यहाँ पर वे ना केवल उस सूखे हाथ वाले को बंधन मुक्त करते हैं पर शास्त्री और फरीसियों के धर्मान्धता के बंधन को तोड़ते हुए उन्हें ये सिखलाते हैं कि मनुष्य का जीवन और उनका कल्याण नियमों से ऊपर होता है। दूसरे शब्दों में नियम मनुष्यों के हित और कल्याण के लिए होने चाहिए और कोई भी नियम यदि मनुष्यों को इससे वंचित करता है तो ऐसी स्थिति में उस नियम के विरुद्ध जाकर मानव कल्याण के कार्य करना उचित है।
हमारे जीवन में कई बार हम भले कार्य करने की ख्वाहिश तो रखते हैं परन्तु लोकलज्जा और भय के कारण कर नहीं पाते। हम उस व्यक्ति के जीवन और उसकी समस्याओं की गंभीरता पर ध्यान न देकर लोगों की क्रिया-प्रतिक्रिया पर ध्यान देते हैं कि यदि मैं ऐसा करूँगा तो कोई क्या कहेगा; कोई मेरा विरोध तो नहीं करेगा; कोई मेरा मज़ाक तो नहीं उड़ाएगा आदि। प्रभु येसु को दूसरों को जीवन देने, चंगाई देने, और बंधनों से छुटकारा देने में कोई भी व्यक्ति या नियम आड़े नहीं आया। हम भी जीवन में जो उचित है, भला है, और दूसरों के कल्याण के लिए है उसे करने में कभी पीछे नहीं हटें।
No comments:
Post a Comment