22 अगस्त 2020
मरियम स्वर्ग की रानी
📒 पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 9:1-6
1) अन्धकार में भटकने वाले लोगों ने एक महती ज्योति देखी है, अन्धकारमय प्रदेश में रहने वालों पर ज्योति का उदय हुआ है।
2) तूने उन लोगों का आनन्द और उल्लास प्रदान किया है। जैसे फ़सल लुनते समय या लूट बाँटते समय उल्लास होता है, वे वैसे ही तेरे सामने आनन्द मना रहे हैं।
3) उन पर रखा हुआ भारी जूआ, उनके कन्धों पर लटकने वाली बहँगी, उन पर अत्याचार करने वाले का डण्डा- यह सब तूने तोड़ डाला है, जैसा कि मिदयान के दिन हुआ था।
4) सैनिकों के सभी भारी जूते और समस्त रक्त-रंजित वस्त्र जला दिये गये हैं।
5) यह इस लिए हुआ कि हमारे लिए एक बालक उत्पन्न हुआ है, हम को एक पुत्र मिला है। उसके कन्धों पर राज्याधिकार रखा गया है और उसका नाम होगा- अपूर्व परामर्शदाता, शक्तिशाली ईश्वर, शाश्वत पिता, शान्ति का राजा।
6) वह दऊद के सिंहासन पर विराजमान हो कर सदा के लिए शन्ति, न्याय और धार्मिकता का साम्राज्य स्थापित करेगा। विश्वमण्डल के प्रभु का अनन्य प्रेम यह कार्य सम्पन्न करेगा।
📙 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 1:26-38
26) छठे महीने स्वर्गदूत गब्रिएल, ईश्वर की ओर से, गलीलिया के नाजरेत नामक नगर में एक कुँवारी के पास भेजा गया,
27) जिसकी मँगनी दाऊद के घराने के यूसुफ नामक पुरुष से हुई थी, और उस कुँवारी का नाम था मरियम।
29) वह इन शब्दों से घबरा गयी और मन में सोचती रही कि इस प्रणाम का अभिप्राय क्या है।
30) तब स्वर्गदूत ने उस से कहा, ’’मरियम! डरिए नहीं। आप को ईश्वर की कृपा प्राप्त है।
31) देखिए, आप गर्भवती होंगी, पुत्र प्रसव करेंगी और उनका नाम ईसा रखेंगी।
32) वे महान् होंगे और सर्वोच्च प्रभु के पुत्र कहलायेंगे। प्रभु-ईश्वर उन्हें उनके पिता दाऊद का सिंहासन प्रदान करेगा,
33) वे याकूब के घराने पर सदा-सर्वदा राज्य करेंगे और उनके राज्य का अन्त नहीं होगा।’’
34) पर मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, ’’यह कैसे हो सकता है? मेरा तो पुरुष से संसर्ग नहीं है।’’
35) स्वर्गदूत ने उत्तर दिया, ’’पवित्र आत्मा आप पर उतरेगा और सर्वोच्च प्रभु की शक्ति की छाया आप पर पड़ेगी। इसलिए जो आप से उत्पन्न होंगे, वे पवित्र होंगे और ईश्वर के पुत्र कहलायेंगे।
36) देखिए, बुढ़ापे में आपकी कुटुम्बिनी एलीज़बेथ के भी पुत्र होने वाला है। अब उसका, जो बाँझ कहलाती थी, छठा महीना हो रहा है;
37) क्योंकि ईश्वर के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है।’’
38) मरियम ने कहा, ’’देखिए, मैं प्रभु की दासी हूँ। आपका कथन मुझ में पूरा हो जाये।’’ और स्वर्गदूत उसके पास से चला गया।
📚 मनन-चिंतन
आज के सुसमाचार में हम आदर-सम्मान की दो तस्वीरें देखते हैं, पहली तस्वीर ईश्वर के चुने हुए ज़िम्मेदार धर्मगुरुओं की है, जिन्हें लोगों को सही राह दिखाने की और खुद ईमानदारी से ईश्वर के रास्ते पर चलने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी। वे धर्मग्रंथ की व्याख्या करके और लोगों को संहिता के नियमों को समझाते हुए अपना कार्य करते थे। लेकिन वे इसे सिर्फ़ एक पेशे के समान करते थे, उसे अपने जीवन में नहीं उतारते थे। उन्ही शिक्षाएँ उनके जीवन में परिणत नहीं हुईं, बल्कि उनके कार्य, उनकी शिक्षाओं के विपरीत थे। वे झूठा सम्मान चाहते थे।
दूसरी तस्वीर पहली के विपरीत है। प्रभु येसु अपने शिष्यों को उन धर्मगुरुओं का सम्मान करने के लिए कहते हैं, क्योंकि वे मूसा की गद्दी पर बैठे हैं, लेकिन उनके कर्मों का अनुसरण ना करो। वे सांसारिक आदर-सम्मान के भूखे हैं, लेकिन हमें ईश्वर की नज़रों में आदर-सम्मान पाने के लिए कार्य करना है। ऐसा हम तभी कर सकते हैं, जब हम अपने जीवन में सबसे अधिक ईश्वर को आदर-सम्मान और महिमा देंगे, और स्वयं को ईश्वर की नज़रों में विनम्र बना लेंगे।
आज की दुनिया में हम अपने चारों तरफ़ ऐसे लोगों को देखते हैं जो नाम और शोहरत कमा कर सम्मान पाना चाहते हैं। वे दौलत और शोहरत के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं और ईश्वर को भूल जाते हैं, जो हमें सब कुछ प्रदान करता है। आइए हम ईश्वर से विनम्रता का वरदान माँगें ताकि हम सबसे पीछे रहें और सबसे बढ़कर ईश्वर की महिमा करें।आमेन।
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