17 अगस्त 2020
वर्ष का बीसवाँ सामान्य सप्ताह, सोमवार
📒 पहला पाठ : एज़ेकिएल का ग्रन्थ 24:15-24
15) प्रभु की वाणी मुझे यह कहते हुए सुनाई दी,
16) “मानवपुत्र! तुम जिसे प्यार करते हो, मैं उसे आकस्मिक मृत्यु द्वारा तुम से अलग कर दूँगा। किन्तु तुम न तो शोक मनाओ, न विलाप करो और न रोओ।
17) तुम अपना दुःख पी कर चुप रहो और मृतक के लिए मातम मत मनाओ। तुम पगड़ी बाँधो, जूते पहनो, अपना मुँह मत ढको और जो रोटी लोग देने आते हैं, उसे मत खाओ।“
18) मैंने प्रातः लोगों को सम्बोधित किया और उसी शाम मेरी पत्नी चल बसी। दूसरे दिन, जो मुझ से कहा गया था, मैंने वही किया।
19) लोगों ने मुझ से कहा, “हमें बताइए कि हमारे लिए आपके आचरण का क्या अर्थ है“।
20) मैंने उत्तर दिया, “प्रभु ने मुझ से यह कहा:
21) इस्राएलियों से कहो- यह प्रभु-ईश्वर की वाणी है। मैं अपने मन्दिर को अपवत्रि कर दूँगा, जो तुम्हारे घमण्ड का कारण है। वह तुम्हारी आँखों की ज्योति और तुम्हारी आत्माओं को प्रिय है। तुम्हारे पुत्र-पुत्रियाँ, जिन्हें तुम छोड़ गये हो, तलवार के घाट उतार दिये जायेंगे।
22) तब तुम लोगों को वही करना होगा, जो मैंने किया। तुम अपना मुँह मत ढको और लोग जो रोटी तुम्हें देने आते हैं, उसे मत खाओे।
23) अपनी पगड़ी बाँधे रखो और जूते पहने रहो। तुम शोक नहीं मनाओ और नहीं रोओ। तुम अपने पापों के कारण गल जाओगे और एक दूसरे के सामने कराहते रहोगे।
24) एजे़किएल तुम्हारे लिए एक चिन्ह है। उसने जैसा किया, तुम लोग ऐसा ही करोगे। उस समय तुम जान जाओगे कि मैं ही प्रभु-ईश्वर हूँ।
📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती का सुसमाचार 19:16-22
16) एक व्यक्ति ईसा के पास आ कर बोला, ’’गुरुवर! अनन्त जीवन प्राप्त करने के लिए मैं कौन-सा भला कार्य करूँ?’’
17) ईसा ने उत्तर दिया, ’’भले के विषय में मुझ से क्यों पूछते हो? एक ही तो भला है। यदि तुम जीवन में प्रवेश करना चाहते हो, तो आज्ञाओं का पालन करो।’’
18) उसने पूछा, ’’कौन-सी आज्ञाएं?’’ ईसा ने कहा, ’’हत्या मत करो; व्यभिचार मत करो; चोरी मत करो; झूठी गवाही मत दो;
19) अपने माता पिता का आदर करो; और अपने पड़ोसी को अपने समान प्यार करो’’।
20) नवयुवक ने उन से कहा, ’’मैने इन सब का पालन किया है। मुझ में किस बात की कमी है?’’
21) ईसा ने उसे उत्तर दिया, ’’यदि तुम पूर्ण होना चाहते हो, तो जाओ, अपनी सारी सम्पत्ति बेच कर गरीबों को दे दो और स्वर्ग में तुम्हारे लिए पूँजी रखी रहेगी, तब आकर मेरा अनुसरण करो।’’
22) यह सुन कर वह नव-युवक बहुत उदास हो कर चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।
📚 मनन-चिंतन
हम सभी स्वर्ग की ओर जाने वाली एक तीर्थ यात्रा में हैं। यह संसार हमारा स्थायी निवास नहीं है, क्योंकि हम संसार के नहीं हैं। हमें ईश्वर ने भेजा है और स्वर्ग को हमारी अंतिम मंज़िल के रूप में दिया है, और उस मंज़िल को पाने के लिए हमें अनेक पथ प्रदर्शक संकेतक दिए हैं। ये संकेतक हमें बताते हैं कि हमें किस दिशा में आगे बढ़ना है और हम अपनी मंज़िल से कितना दूर हैं। जो व्यक्ति इन संकेतकों के अनुसार चलता है वह सफलतापूर्वक अपने गन्तव्य तक पहुँच जाता है।
ये पथ-प्रदर्शक संकेतक हमारे लिए प्रभु की आज्ञाएँ और नियम हैं। जो उन पर चलता है वह सही मार्ग पर आगे बढ़ता है और फल-फूलता है (स्त्रोत १:३)। लेकिन जो उनके विरुद्ध जाता है व ईश्वर के क्रोध का भागी और स्वयं के विनाश का भागी बनता है। यही हम आज के पहले पाठ में देखते हैं, जहाँ लिखा है “…तुम अपने पापों के कारण गल जाओगे और एक दूसरे के सामने कराहते रहोगे (एजेकिएल २४:२३ब)। इन संकेतकों के अलावा हमें उचित मनोभाव की भी ज़रूरत है। कभी कभी हम सही रास्ते पर चलते हैं लेकिन आज के सुसमाचार में धनी नवयुवक की तरह पूरे मन और आत्मा से नहीं। आइए हम पूरे मन और हृदय से प्रभु के मार्ग पर चलें ताकि ईश्वर की कृपा और आशीष हमें मिलते रहें। आमेन।
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