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19 जुलाई 2020
वर्ष का सोलहवाँ सामान्य सप्ताह, रविवार पाठ : प्रज्ञा-ग्रन्थ 12:13,16-19
13) तुझे छोड़ कर और कोई ईश्वर नहीं। तू ही समस्त सृष्टि की रक्षा करता है। यह आवश्यक नहीं कि तू किसी को इसका प्रमाण दे कि तेरे निर्णय सही है।
16) तेरा न्याय तेरे सामर्थ्य पर आधारित है। तू सब का स्वामी है और इसलिए सब पर दया करता है।
17) तू तभी अपना सामर्थ्य प्रकट करता है, जब तेरी सर्वशक्तिमत्ता पर सन्देह किया जाता है। तू उसी को दण्ड देता है, जो तेरी प्रभुता जान कर तुझे चुनौती देता है।
18) तू शक्तिशाली होते हुए भी उदारतापूर्वक न्याय करता और बड़ी कृपालुता से हम पर शासन करता है, क्योंकि तू इच्छानुसार अपना सामर्थ्य दिखा सकता है।
19) इस प्रकार तूने अपनी प्रजा को यह शिक्षा दी कि धर्मी को अपने भाइयों के प्रति सहृदय होना चाहिए और तूने अपने पुत्रों को यह भरोसा दिलाया कि पाप के बाद तू उन्हें पश्चात्ताप का अवसर देगा।
दूसरा पाठ : रोमियों 8:26-27
26) आत्मा भी हमारी दुर्बलता में हमारी सहायता करता है। हम यह नहीं जानते कि हमें कैसे प्रार्थना करनी चाहिए, किन्तु हमारी अस्पष्ट आहों द्वारा आत्मा स्वयं हमारे लिए विनती करता है।
27) ईश्वर हमारे हृदय का रहस्य जानता है। वह समझाता है कि आत्मा क्या कहता है, क्योंकि आत्मा ईश्वर के इच्छानुसार सन्तों के लिए विनती करता है।
सुसमाचार : मत्ती 13:24-43
24) ईसा ने उनके सामने एक और दृष्टान्त प्रस्तुत किया, स्वर्ग का राज्य उस मनुष्य के सदृश है, जिसने अपने खेत में अच्छा बीज बोया था।
25) परन्तु जब लोग सो रहे थे, तो उसका बैरी आया और गेहूँ में जंगली बीज बो कर चला गया।
26) जब अंकुर फूटा और बालें लगीं, तब जंगली बीज भी दिखाई पड़ा।
27) इस पर नौकरों ने आकर स्वामी से कहा, ’मालिक, क्या आपने अपने खेत में अच्छा बीज नहीं बोया था? उस में जंगली बीज कहाँ से आ पड़ा?
28) स्वामी ने उस से कहा, ’यह किसी बैरी का काम है’। तब नौकरों ने उससे पूछा, ’क्या आप चाहते हैं कि हम जाकर जंगली बीज बटोर लें’?
29) स्वामी ने उत्तर दिया, ’नहीं, कहीं ऐसा न हो कि जंगली बीज बटोरते समय तुम गेहूँ भी उखाड़ डालो। कटनी तक दोनों को साथ-साथ बढ़ने दो।
30) कटनी के समय मैं लुनने वालों से कहूँगा- पहले जंगली बीज बटोर लो और जलाने के लिए उनके गटठे बाँधो। तब गेहूँ मेरे बखार में जमा करो।’’
31) ईसा ने उनके सामने एक और दृष्टान्त प्रस्तुत किया, ’’स्वर्ग का राज्य राई के दाने के सदृश है, जिसे ले कर किसी मनुष्य ने अपने खेत में बोया।
32) वह तो सब बीजों से छोटा है, परन्तु बढ़ कर सब पोधों से बड़ा हो जाता है और ऐसा पेड़ बनता है कि आकाश के पंछी आ कर उसकी डालियों में बसेरा करते हैं।’’
33) ईसा ने उन्हें एक दृष्टान्त सुनाया,’’स्वर्ग का राज्य उस ख़मीर के सदृश है, जिसे लेकर किसी स्त्री ने तीन पंसेरी आटे में मिलाया और सारा आटा खमीर हो गया’’।
34) ईसा दृष्टान्तों में ही ये सब बातें लोगों को समझाते थे। वह बिना दृष्टान्त के उन से कुछ नहीं कहते थे,
35) जिससे नबी का यह कथन पूरा हो जाये- मैं दृष्टान्तों में बोलूँगा। पृथ्वी के आरम्भ से जो गुप्त रहा, उसे मैं प्रकट करूँगा।
36) ईसा लोगों को विदा कर घर लौटे। उनके शिष्यों ने उनके पास आ कर कहा, ’’खेत में जंगली बीज का दृष्टान्त हमें समझा दीजिए’’।
37) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, ’’अच्छा बीज बोने बाला मानव पुत्र हैं;
38) खेत संसार है; अच्छा बीज राज्य की प्रजा है; जंगली बीज दृष्ट आत्मा की प्रजा है;
39) बोने बाला बैरी शैतान है; कटनी संसार का अंत है; लुनने वाले स्वर्गदूत हैं।
40) जिस तरह लोग जंगली बीज बटोर कर आग में जला देते हैं, वैसा ही संसार के अंत में होगा।
41) मानव पुत्र अपने स्वर्गदूतों को भेजेगा और वे उसके राज्य क़़ी सब बाधाओं और कुकर्मियों को बटोर कर आग के कुण्ड में झोंक देंगें।
42) वहाँ वे लोग रोयेंगे और दाँत पीसते रहेंगे।
43) तब धर्मी अपने पिता के राज्य में सूर्य की तरह चमकेंगे। जिसके कान हों, वह सुन ले।
📚 मनन-चिंतन - 1
आज का सुसमाचार एक भले मनुष्य और उसके दुश्मन के बारे में एक दृष्टान्त प्रस्तुत करता है। भला मनुष्य अपने खेत में अच्छा बीज बोता है। लेकिन दुश्मन उस भले व्यक्ति के खेत में गेहूं के बीच जंगली बीज बो कर चला जाता है। दुश्मन यह गुप्त रूप से करता है जब हर कोई सोता है। खेत भले आदमी का है और इसलिए दुश्मन एक अतिचार है। यह साफ है कि उसकी नीयत बुरी है क्योंकि वह जंगली बीज बोता है। उसका मकसद उस भले आदमी को नुकसान पहुँचाना है। लेकिन वह भला आदमी तुरन्त मुँहतोड़ जवाब नही देता है और जल्दीबाजी में कुछ नहीं करता है, लेकिन फसल के तैयार होने के समय तक धैर्य रखता है। फसल के काटने के दौरान, वह स्पष्ट रूप से बुराई को नष्ट करने का दृढ़संकल्प करता है।
जब प्रभु येसु अपने चेलों को अकेले में समझाते हैं तो वे स्पष्ट करते हैं कि वे ही वह भला आदमी हैं और दुश्मन शैतान है। यह संसार ईश्वर का खेत है। जब हम सो रहे होते, यानि निष्क्रिय होते हैं तब शैतान दुनिया में बुराई बो देता है। यदि हम जागते, सतर्क रहेंगे तो शैतान ऐसा नहीं कर सकेगा।
स्वतंत्रता ईश्वर का एक महान उपहार है। यह गरिमा की निशानी है। हम किसी का गुलाम बनना पसंद नहीं करते। पाप की संभावना स्वतंत्रता का हिस्सा है। फिर भी पाप नहीं करना वास्तविक स्वतंत्रता का प्रमाण है। स्वतंत्रता की कीमत है जिम्मेदारी। अपने कार्यों के लिए जिम्मेदार होने के बिना स्वतंत्रता का आनंद लेना एक खतरनाक प्रवृत्ति है। ऐसे मामले का अंत एक त्रासदी होगी। सच्ची स्वतंत्रता जागरूकता और सतर्कता लाने और बुराई के खिलाफ लड़ाई में तत्पर रहने की जिम्मेदारी लाती है।
संत पेत्रुस कहते हैं, "आप संयम रखें और जागते रहें! आपका शत्रु, शैतान, दहाड़ते हुए सिंह की तरह विचरता है और ढूँढ़ता रहता है कि किसे फाड़ खाये। आप विश्वास में दृढ़ हो कर उसका सामना करें। आप जानते हैं कि संसार भर में आपके भाई भी इस प्रकार के दुःख भोग रहे हैं।” (1पेत्रुस 5: 8-9)
✍ब्रो बिनियास टोपनो
मनन-चिंतन -2
स्तोत्र 130 में स्तोत्रकार प्रश्न करते हैं, “प्रभु! यदि तू हमारे अपराधों को याद रखेगा, तो कौन टिका रहेगा?” कोई भी ईश्वर के सामने धर्मी होने का दावा नहीं कर सकता है। सूक्ति 30:12 कहता है, “कुछ लोग अपने को शुद्ध समझते, किन्तु उनका दूषण नहीं धुला है”। संत योहन कहते हैं, “यदि हम कहते हैं कि हम निष्पाप हैं, तो हम अपने आप को धोखा देते हैं और हम में सत्य नहीं है। यदि हम अपने पाप स्वीकार करते हैं, तो वह हमारे पाप क्षमा करेगा और हमें हर अधर्म से शुद्ध करेगा; क्योंकि वह विश्वसनीय तथा सत्यप्रतिज्ञ है। यदि हम कहते हैं कि हमने पाप नहीं किया है, तो हम उसे झूठा सिद्ध करते हैं और उसका सत्य हम में नहीं है। (1 योहन 1:8-10) इसलिए संत पौलुस कहते हैं, “सबों ने पाप किया और सब ईश्वर की महिमा से वंचित किये गये” (रोमियों 3:23)। अगर प्रभु हमारे साथ न्याय करेंगे तो हम में से कोई नहीं बच सकता। ईश्वर की करुणा ही हमको बचाती है।
जंगली बीज के दृष्टान्त द्वारा प्रभु हम को यह सिखाना चाहते हैं कि ईश्वर अत्यधिक सहनशील है। वे तुरन्त ही कुकर्मियों का विनाश नहीं करते हैं, बल्कि उनको सहनशीलता दिखाते हैं। वे उनके मनपरिवर्तन के लिए समय देते हैं। मालिक गेहूँ और जंगली बीज – दोनों को कटनी के समय तक एक साथ बढ़ने देता है।
स्तोत्र 94:3-7 में स्तोत्रकार प्रभु से प्रश्न करते हैं, “प्रभु! दुर्जन कब तक, दुर्जन कब तक आनन्द मनायेंगे? वे धृष्टतापूर्ण बातें करते हैं। वे सब कुकर्मी डींग मारते हैं। प्रभु! वे तेरी प्रजा को पीसते और तेरी विरासत पर अत्याचार करते हैं। वे विधवाओं तथा परदेशियों की हत्या और अनाथों का वध करते हैं। वे कहते हैं: ‘‘प्रभु नहीं देखता, याकूब का ईश्वर उस पर ध्यान नहीं देता’’।” स्तोत्रकार प्रभु ईश्वर की सहनशीलता पर आश्चर्यचकित है। स्तोत्रकार को मालूम है कि प्रभु ईश्वर कुकर्मि को मनफिराव के लिए समय दे रहे हैं और एक दिन वह समय खत्म हो जायेगा और अगर उस समय से पहले वह पश्चात्ताप नहीं करेगा तो ईश्वर उसका विनाश करेगा। इसलिए वे कहते हैं, “मेरा ईश्वर मेरे आश्रय की चट्टान है। वह उन से उनके अधर्म का बदला चुकायेगा। वह उनकी दुष्टता द्वारा उनका विनाश करेगा। हमारा प्रभु-ईश्वर उनका विनाश करेगा।“ (स्त्तोत्र 94:22-24)
प्रभु येसु यह जानते थे कि उनका शिष्य यूदस उन्हें पकडवा देगा, फिर भी उन्होंने उसके पैर धोये और उसे मित्र कह कर संबोधित किया। यूदस के सुनने में यह कह कर कि आप में से एक मुझे पकडवा देगा येसु उसे फिर से अपने इरादे पर पुन: सोचने तथा निर्णय बदलने का अवसर दे रहे थे।
ईश्वर करुणामय है, इसलिए वे कुकर्मि को समय देते हैं। परन्तु जो कुकर्मी पश्चात्ताप नहीं करता उसे ईश्वर के न्याय का सामना करना पडेगा।
लूकस 13:6-9 में प्रभु दाखबारी में लगे हुए अंजीर के पेड का दृष्टान्त सुनाते हैं। मालिक तीन वर्षों से उस पेड में फल खोजने आया, परन्तु उसे एक भी नहीं मिला। इसलिए मालिक ने उसे काट डालना चाहा। परन्तु माली ने कहा, “मालिक! इस वर्ष भी इसे रहने दीजिए। मैं इसके चारों ओर खोद कर खाद दूँगा। यदि यह अगले वर्ष फल दे, तो अच्छा, नहीं तो इसे काट डालिएगा’।’’ प्रभु इश्वर हमें समय दे कर यह उम्मीद रखते हैं कि हम अपने जीवन में सुधार लायें।
✍️ ब्रो बिनियासा टोपनो
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