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25 फरवरी, 2024 चालीसे का दूसरा रविवार

25 फरवरी, 2024
चालीसे का दूसरा रविवार


पहला पाठ : उत्पत्ति ग्रन्थ 22:1-2,9a,10-13,15-18
1) ईश्वर ने इब्राहीम की परीक्षा ली। उसने उस से कहा, ''इब्राहीम! इब्राहीम!'' इब्राहीम ने उत्तर दिया, ''प्रस्तुत हूँ।''

2) ईश्वर ने कहा, ''अपने पुत्र को, अपने एकलौते को परमप्रिय इसहाक को साथ ले जा कर मोरिया देश जाओ। वहाँ, जिस पहाड़ पर मैं तुम्हें बताऊँगा, उसे बलि चढ़ा देना।''

9) जब वे उस जगह पहुँच गये, जिसे ईश्वर ने बताया था, तो इब्राहीम ने वहाँ एक वेदी बना ली और उस पर लकड़ी सजायी।

10) तब इब्राहीम ने अपने पुत्र को बलि चढ़ाने के लिए हाथ बढ़ा कर छुरा उठा लिया।

11) किन्तु प्रभु का दूत स्वर्ग से उसे पुकार कर बोला, ''इब्राहीम! ''इब्राहीम! उसने उत्तर दिया, ''प्रस्तुत हूँ।''

12) दूत ने कहा, ''बालक पर हाथ नहीं उठाना; उसे कोई हानि नहीं पहुँचाना। अब मैं जान गया कि तुम ईश्वर पर श्रद्धा रखते हो - तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया।

13) इब्राहीम ने आँखें ऊपर उठायीं और सींगों से झाड़ी में फँसे हुए एक मेढ़े को देखा। इब्राहीम ने जाकर मेढ़े को पकड़ लिया और उसे अपने पुत्र के बदले बलि चढ़ा दिया।

15) ईश्वर का दूत इब्राहीम को दूसरी बार पुकार कर

16) बोला, ''यह प्रभु की वाणी है। मैं शपथ खा कर कहता हूँ - तुमने यह काम किया : तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया;

17) इसलिए मैं तुम पर आशिष बरसाता रहूँगा। मैं आकाश के तारों और समुद्र के बालू की तरह तुम्हारे वंशजों को असंख्य बना दूँगा और वे अपने शत्रुओं के नगरों पर अधिकार कर लेंगे।

18) तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है; इसलिए तुम्हारे वंश के द्वारा पृथ्वी के सभी राष्ट्रों का कल्याण होगा।''

दूसरा पाठ : रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 8:31b-34
31) यदि ईश्वर हमारे साथ है, तो कौन हमारे विरुद्ध होगा?

32) उसने अपने निजी पुत्र को भी नहीं बचाया, उसने हम सबों के लिए उसे समर्पित कर दिया। तो, इतना देने के बाद क्या वह हमें सब कुछ नहीं देगा?

33) जिन्हें ईश्वर ने चुना है, उन पर कौन अभियोग लगा सकेगा? जिन्हें ईश्वर ने दोषमुक्त कर दिया है,

34) उन्हें कौन दोषी ठहरायेगा? क्या ईसा मसीह ऐसा करेंगे? वह तो मर गये, बल्कि जी उठे और ईश्वर के दाहिने विराजमान हो कर हमारे लिए प्रार्थना करते रहते हैं।

सुसमाचार : सन्त मारकुस 9:2-10
2) छः दिन बाद ईसा ने पेत्रुस, याकूब और योहन को अपने साथ ले लिया और वह उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर एकान्त में ले चले। उनके सामने ही ईसा का रूपान्तरण हो गया।

3) उनके वस्त्र ऐसे चमकीले और उजले हो गये कि दुनिया का कोई भी धोबी उन्हें उतना उजला नहीं कर सकता।

4) शिष्यों को एलियस और मूसा दिखाई दिये-वे ईसा के साथ बातचीत कर रहे थे।

5) उस समय पेत्रुस ने ईसा से कहा, ’’गुरुवर! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है! हम तीन तम्बू खड़े कर दें- एक आपके लिए, एक मूसा और एक एलियस के लिए।’’

6) उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे, क्योंकि वे सब बहुत डर गये थे।

7) तब एक बादल आ कर उन पर छा गया और उस बादल में से यह वाणी सुनाई दी, ’’यह मेरा प्रिय पुत्र है। इसकी सुनो।’’

8) इसके तुरन्त बाद जब शिष्यों ने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी, तो उन्हें ईसा के सिवा और कोई नहीं दिखाई पड़ा।

9) ईसा ने पहाड़ से उतरते समय उन्हें आदेश दिया कि जब तक मानव पुत्र मृतकों में से न जी उठे, तब तक तुम लोगों ने जो देखा है, उसकी चर्चा किसी से नहीं करोगे।

10) उन्होंने ईसा की यह बात मान ली, परन्तु वे आपस में विचार-विमर्श करते थे कि ’मृतकों में से जी उठने’ का अर्थ क्या हो सकता है।


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इतवार, 04 फरवरी, 2024 सामान्य काल का पाँचवाँ सप्ताह

 इतवार, 04 फरवरी, 2024

सामान्य काल का पाँचवाँ सप्ताह



पहला पाठ : अय्यूब (योब) का ग्रन्थ 7:1-4, 6-7

1) क्या इस पृथ्वी पर मनुष्य का जीवन सेना की नौकरी की तरह नहीं? क्या उसके दिन मज़दूर के दिनों की तरह नहीं बीतते?

2) क्या वह दास की तरह नहीं, जो छाया के लिए तरसता हैं? मज़दूर की तरह, जिसे समय पर वेतन नहीं मिलता?

3) मुझे महीनों निराशा में काटना पड़ता है। दुःखभरी रातें मेरे भाग्य में लिखी है।

4) शय्या पर लेटते ही कहता हूँ- भोर कब होगा? उठते ही सोचता हूँ-सन्ध्या कब आयेगी? और मैं सायंकाल तक निरर्थक कल्पनाओं में पड़ा रहता हूँ।

6) मेरे दिन जुलाहें की भरती से भी अधिक तेजी से गुजर गये और तागा समाप्त हो जाने पर लुप्त हो गये हैं।

7) प्रभु! याद रख कि मेरा जीवन एक श्वास मात्र है और मेरी आँखें फिर अच्छे दिन नहीं देखेंगी।


दूसरा पाठ : कुरिन्थियों के नाम सन्त पौलुस का पहला पत्र 9:16-19,22-23

16) मैं इस पर गौरव नहीं करता कि मैं सुसमाचार का प्रचार करता हूँ। मुझे तो ऐसा करने का आदेश दिया गया है। धिक्कार मुझे, यदि मैं सुसमाचार का प्रचार न करूँ!

17) यदि मैं अपनी इच्छा से यह करता, तो मुझे पुरस्कार का अधिकार होता। किन्तु मैं अपनी इच्छा से यह नहीं करता। मुझे जो कार्य सौंपा गया है, मैं उसे पूरा करता हूँ।

18) तो, पुरस्कार पर मेरा कौन-सा दावा है? वह यह है कि मैं कुछ लिये बिना सुसमाचार का प्रचार करता हूँ और सुसमाचार-सम्बन्धी अपने अधिकारों का पूरा उपयोग नहीं करता।

19) सब लोगों से स्वतन्त्र होने पर भी मैंने अपने को सबों का दास बना लिया है, जिससे मैं अधिक -से-अधिक लोगों का उद्धार कर सकूँ।

22) मैं दुर्बलों के लिए दुर्बल-जैसा बना, जिससे मैं उनका उद्धार कर सकूँ। मैं सब के लिए सब कुछ बन गया हूँ, जिससे किसी-न-किसी तरह कुछ लोगों का उद्धार कर सकूँ।

23) मैं यह सब सुसमाचार के कारण कर रहा हूँ, जिससे मैं भी उसके कृपादानों का भागी बन जाऊँ।


सुसमाचार : सन्त मारकुस 1:29-39

29) वे सभागृह से निकल कर याकूब और योहन के साथ सीधे सिमोन और अन्द्रेयस के घर गये।

30) सिमोन की सास बुख़ार में पड़ी हुई थी। लोगों ने तुरन्त उसके विषय में उन्हें बताया।

31) ईसा उसके पास आये और उन्होंने हाथ पकड़ कर उसे उठाया। उसका बुख़ार जाता रहा और वह उन लोगों के सेवा-सत्कार में लग गयी।

32) सन्ध्या समय, सूरज डूबने के बाद, लोग सभी रोगियों और अपदूतग्रस्तों को उनके पास ले आये।

33) सारा नगर द्वार पर एकत्र हो गया।

34) ईसा ने नाना प्रकार की बीमारियों से पीडि़त बहुत-से रोगियों को चंगा किया और बहुत-से अपदूतों को निकाला। वे अपदूतों को बोलने से रोकते थे, क्योंकि वे जानते थे कि वह कौन हैं।

35) दूसरे दिन ईसा बहुत सबेरे उठ कर घर से निकले और किसी एकान्त स्थान जा कर प्रार्थना करते रहे।

36) सिमोन और उसके साथी उनकी खोज में निकले

37) और उन्हें पाते ही यह बोले, ’’सब लोग आप को खोज रहे हैं’’।

38) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया, ’’हम आसपास के कस्बों में चलें। मुझे वहाँ भी उपदेश देना है- इसीलिए तो आया हूँ।’’

39) और वे उनके सभागृहों में उपदेश देते और अपदूतों को निकलाते हुए सारी गलीलिया में घूमते रहते थे।



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