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Duliajan, Assam, India
Catholic Bibile Ministry में आप सबों को जय येसु ओर प्यार भरा आप सबों का स्वागत है। Catholic Bibile Ministry offers Daily Mass Readings, Prayers, Quotes, Bible Online, Yearly plan to read bible, Saint of the day and much more. Kindly note that this site is maintained by a small group of enthusiastic Catholics and this is not from any Church or any Religious Organization. For any queries contact us through the e-mail address given below. 👉 E-mail catholicbibleministry21@gmail.com

01 अक्टूबर का पवित्र वचन

 

01 अक्टूबर 2020
वर्ष का छब्बीसवाँ सामान्य सप्ताह, गुरुवार

बालक येसु की सन्त तेरेसा

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📒 पहला पाठ : इसायाह का ग्रन्थ 66:10-14

10) “येरुसालेम के साथ आनन्द मनाओ। तुम, जो येरुसालेम को प्यार करते हो, उसके कारण उल्लास के गीत गाओ। तुम, जो उसके लिए विलाप करते थे, उसके कारण आनन्दित हो जाओ,

11) जिससे तुम उसकी संतान होने के नाते सान्त्वना का दूध पीते हुए तृप्त हो जाओ और उसकी गोद में बैठ कर उसकी महिमा पर गौरव करो“;

12) क्योंकि प्रभु यह कहता है, “मैं शान्ति को नदी की तरह और राष्ट्रों की महिमा को बाढ़ की तरह येरुसालेम की ओर बहा दूँगा। उसकी सन्तान को गोद में उठाया और घुटनों पर दुलारा जायेगा।

13) जिस तरह माँ अपने पुत्र को दिलासा देती है, उसी तरह मैं तुम्हें सान्त्वना दूँगा। तुम्हें येरुसालेम से दिलासा मिलेगा।“

14) तुम्हारा हृदय यह देख कर आनन्दित हो उठेगा, तुम्हारा हड्डियाँ हरी-भरी घास की तरह लहलहा उठेंगी। प्रभु अपने सेवकों के लिए अपना सामर्थ्य, किंतु अपने शत्रुओं पर अपना क्रोध प्रदर्शित करेगा।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 18:1-5; 10

1) उस समय शिष्य ईसा के पास आ कर बोले, ’’स्वर्ग के राज्य में सबसे बड़ा कौन है?’’

2) ईसा ने एक बालक को बुलाया और उसे उनके बीच खड़ा कर

3) कहा, ’’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- यदि तुम फिर छोटे बालकों-जैसे नहीं बन जाओगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करोगे।

4) इसलिए जो अपने को इस बालक-जैसा छोटा समझता है, वह स्वर्ग के राज्य में सबसे बड़ा है।

📚 मनन-चिंतन

ईश्वर हमसे प्यार करते हैं और चाहते हैं कि हम सभी स्वर्ग में उनके साथ रहें। और वह हमें वहां पहुंचने का एक निश्चित मार्ग देता है, यानी बच्चों जैसा बनना! शिष्यों ने येसु से पूछा, "स्वर्ग के राज्य में सबसे बड़ा कौन है?" उन्हें उत्तर देते हुए येसु ने कहा, "मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ, यदि तुम फिर छोटे बालकों-जैसे नहीं बन जाओगे, तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश नहीं करोगे। इसलिए जो अपने को इस बालक-जैसा छोटा समझता है, वह स्वर्ग के राज्य में सबसे बड़ा है।” इसलिए येसु ने कहा, जैसा कि हम संत मत्ती 19:14 में पढ़ते हैं, “बच्चों को मेरे पास आने दो; उन्हें मेरे पास आने से मत रोको ”।

आज का सुसमाचार का पाठ इसलिए चुना गया है क्योंकि आज बालक येसु की संत थेरेसा का पर्व है, जिसे लिटिल फ्लावर भी कहा जाता है। वह अपने बच्चों की जैसी सादगी और ईश्वर पर निर्भरता के लिए जानी जाती है। यद्यपि वह बहुत कम उम्र में मर गई, अधिक शिक्षा प्राप्त नहीं की और अपने कॉन्वेंट से बाहर नहीं निकली, फिर भी वह कलीसिया की धर्माचार्या के रूप में सम्मानित की जाती है, क्योंकि उसने ईश्वर के महान रहस्यों को समझा और उन्हें दुनिया को सिखाया। वह अपने "छोटे मार्ग" के लिए प्रसिद्द है, जिसका मतलब है छोटे से छोटे कार्यों कों भी बड़े प्रेम के साथ करना। जैसा कि संत पॉल कहते हैं, मानवीय ज्ञान और शक्ति की तुलना में दिव्य मूर्खता और दुर्बलता अधिक विवेकपूर्ण और शक्तिशाली है!

आज के सुसमाचार के प्रकाश में मैं अपने आप को कैसे पाता हूँ? क्या मेरे पास ईश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए बच्चों-जैसे गुण हैं? मुझे एक बालक की तरह बनने के लिए क्या करने की आवश्यकता है ताकि मैं स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर सकूँ?



📚 REFLECTION

God loves us and wants all of us to be with him in heaven. And he gives us a sure way to get there. That is, to be like children. Answering the question of the disciples, “who is the greatest in the kingdom of heaven” Jesus said, “I tell you solemnly, unless you change and become like little children you will never enter the kingdom of heaven. And so, the one who makes himself as little as this child is the greatest in the kingdom of heaven”. Therefore Jesus said, as we read in Mt 19:14, “Let children come to me; do not stop them from coming to me”.

Today’s gospel passage is chosen as it is the feast day of St. Terese of Child Jesus, also called the Little Flower. She is known for her child-like simplicity and dependence on God and her Little Way. Though she died at a young age, without much education and not stepping out of her convent, she is honoured by the church as a Doctor of the Church, as one who understood the great mysteries of God and taught them to the world. She is known for her Little Way, which means doing even the smallest things with great love! As St. Paul says, divine foolishness and weakness are greater and stronger than human wisdom and strength!

How do I find myself in the light of today’s gospel? Do I have the child-like qualities to enter into the Kingdom of God? What do I need to do to become like a child so that I may enter the kingdom of heaven?

30 सितंबर का पवित्र वचन

 

30 सितंबर 2020
वर्ष का छब्बीसवाँ सामान्य सप्ताह, बुधवार

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📒 पहला पाठ : अय्यूब (योब) का ग्रन्थ 9:1-12,14-16

1) अय्यूब ने अपने मित्रों से कहा:

2) मैं निश्चित रूप से जानता हूँ कि तुम लोगों का कहना सच है। मनुष्य अपने को ईश्वर के सामने निर्दोष प्रमाणित नहीं कर सकता।

3) यदि वह ईश्वर के साथ बहस करना चाहेगा, तो ईश्वर हजार प्रश्नों में एक का भी उत्तर नहीं देगा।

4) ईश्वर सर्वज्ञ और सर्वशक्मिान् है। कौन मनुष्य उसका सामना करने के बाद जीवित रहा?

5) ईश्वर पर्वतों को अचानक हटाता और अपने क्रोध में उलट देता है।

6) वह पृथ्वी को उसके स्थान से खिसकाता और उसके खम्भों को हिला देता है।

7) वह नक्षत्रों को ढाँकता और उसके आदेश पर सूर्य नहीं दिखाई देता।

8) वह अकेला आकाश ही आकाश फैलाता और समुद्र की लहरों पर चलता है।

9) उसने सप्तर्शि, मृग, कृत्तिका और दक्षिण नक्षत्रों की सृष्टि की है।

10) वह महान् एवं रहस्यमय कार्य सम्पन्न करता और असंख्य चमत्कार दिखाता है।

11) वह मेरे पास आता है और मैं उसे नहीं देखता। वह आगे बढ़ता है और मुझे इसका पता नहीं चलता।

12) जब वह कुछ ले जाता है, तो कौन उसे रोकेगा? कौन उस से कहेगा, ’’तू यह क्या कर रहा है?’’

14) मैं उस को कैसे जवाब दे सकता हूँ? मुझे उस से बहस करने को शब्द कहाँ से मिलेंगे?

15) यदि मेरा पक्ष न्यायसंगत है, तो भी मैं क्या कहूँ? मैं केवल दया-याचना ही कर सकता हूँ?

16) यदि वह मेरी दुहाई का उत्तर देता, तो मुझे विश्वास नहीं होता कि वह मेरी प्रार्थना पर ध्यान देता है।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस का सुसमाचार 09:57-62

57) ईसा अपने शिष्यों के साथ यात्रा कर रहे थे कि रास्ते में ही किसी ने उन से कहा, ’’आप जहाँ कहीं भी जायेंगे, मैं आपके पीछे-पीछे चलूँगा’’।

58) ईसा ने उसे उत्तर दिया, ’’लोमडि़यों की अपनी माँदें हैं और आकाश के पक्षियों के अपने घोंसले, परन्तु मानव पुत्र के लिए सिर रखने को भी अपनी जगह नहीं है’’।

59) उन्होंने किसी दूसरे से कहा, ’’मेरे पीछे चले आओ’’। परन्तु उसने उत्तर दिया, ’’प्रभु! मुझे पहले अपने पिता को दफ़नाने के लिए जाने दीजिए’’।

60) ईसा ने उस से कहा, ’’मुरदों को अपने मुरदे दफनाने दो। तुम जा कर ईश्वर के राज्य का प्रचार करो।’’

61) फिर कोई दूसरा बोला, ’’प्रभु! मैं आपका अनुसरण करूँगा, परन्तु मुझे अपने घर वालों से विदा लेने दीजिए’’।

62) ईसा ने उस से कहा, ’’हल की मूठ पकड़ने के बाद जो मुड़ कर पीछे देखता है, वह ईश्वर के राज्य के योग्य नहीं’’।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में, येसु घोषणा करते हैं कि एक बार उनका अनुसरण करने के लिए हाँ कहने के बाद जो पीछे मुड़कर देखता है वह उनके लिए, ईश्वर के राज्य के लिए उपयुक्त है। किसान का हल चलाते समय पीछे मुड़कर देखना याने यह चेक करना कि उसकी लाईन सीधी है या नहीं अथवा हल कितना गहरा जा रहा है आदि। बुलाहट के सन्दर्भ में पीछे मुड़कर देखने का आशय सबसे पहले तो अपने लक्ष्य याने येसु के अनुसरण से निगाहें हटाकर अपने पुराने सांसारिक जीवन की और लौटना होगा। इसके अलावा इसका आशय, अपने अतीत को देखना या फिर अपनी क्षमता को आंकना होगा। किसान का हल सीधी लाईन में तब चलेगा जब वह आगे देखकर हल चलाएगा पीछे देखकर नहीं। जो भी पीछे छूटजाना है। गया है उसके ख्यालों में रहने से येसु का अनुसरण नहीं होता। येसु जिसे अपना शिष्य हैं उसके अतीत को, अतीत की कड़वी यादों को, बुराई की राहों को वे ठीक करते हैं। हमें उसकी चिंता करने की ज़रूरत नहीं। हमें तो अपनी निगाहे येसु पर लगाकर उनकी राहों पर चलते जाना है। वो जैसा दिशा निर्देश अपने वचनों द्वारा हमें देते हैं उनका पालन करते हुए नित आगे बढ़ते रहना है। तभी हम सच्चे अर्थों में उनके शिष्य कहलायेंगे।



📚 REFLECTION

In today's gospel, Jesus tells us he who decides to follow Him and looks back is not fit for Him, and the kingdom of God. While ploughing the farmer, looks back and checks whether his line is straight or not, or how deep the plow is going. In the context of the call, the intention of looking back, first of all, will be to return to one’s old worldly life and not focusing his eyes on Christ. Apart from this, it means to look at your past or to evaluate your own potential. The plow of the farmer will run in a straight line only when he sees the plow by looking forward and not by looking back. Jesus does not call us by looking at our past. In the Bible we see a God who calls the weak, the sinners and the incapables and He heals their past; He transforms them and makes them capable. So in following Jesus we don’t need to look back and brood over our past. We need to look at Jesus and keep marching with Him on the way of Salvation. Only then will we be called his disciples in a true sense.

29 सितंबर का पवित्र वचन

 

29 सितंबर 2020, मंगलवार
संत मिखाएल, गाब्रिएल और रफाएल - महादूत

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📒 पहला पाठ : दानिएल 7:9-10, 13-14

9) मैं देख ही रहा था कि सिंहासन रख दिये गये और एक वयोवृद्ध व्यक्ति बैठ गया। उसके वस्त्र हिम की तरह उज्जवल थे और उसके सिर के केश निर्मल ऊन की तरह।

10) उसका सिंहासन ज्वालाओं का समूह था और सिहंासन के पहिये धधकती अग्नि। उसके सामने से आग की धारा बह रही थी। सहस्रों उसकी सेवा कर रहे थे। लाखों उसके सामने खड़े थे। न्याय की कार्यवाही प्रारंभ हो रही थी। और पुस्तकें खोल दी गयीं।

13) तब मैंने रात्रि के दृश्य में देखा कि आकाश के बादलों पर मानवपुत्र-जैसा कोई आया। वह वयोवृद्ध के यहाँ पहुँचा और उसके सामने लाया गया।

14) उसे प्रभुत्व, सम्मान तथा राजत्व दिया गया। सभी देश, राष्ट्र और भिन्न-भिन्न भाषा-भाषी उसकी सेवा करेंगे। उसका प्रभुत्व अनन्त है। वह सदा ही बना रहेगा। उसके राज्य का कभी विनाश नहीं होगा।

अथवा - पहला पाठ : प्रकाशना 12:7-12अ

7) तब स्वर्ग में युद्ध छिड़ गया। मिखाएल और उसके दूतों को पंखदार सर्प से लड़ना पड़ा। पंखदार सर्प और उसके दूतों ने उनका सामना किया,

8) किन्तु वे नहीं टिक सके। और स्वर्ग में उनके लिए कोई स्थान नहीं रहा।

9) तब वह विशालकाय पंखदार सर्प वह पुराना सांप, जो इबलीस या शैतान कहलाता और सारे संसार को भटकाता है- अपने दूतों के साथ पृथ्वी पर पटक दिया गया।

10) मैंने स्वर्ग में किसी को ऊँचे स्वर से यह कहते सुना, ’अब हमारे ईश्वर की विजय, सामर्थ्य तथा राजत्व और उसके मसीह का अधिकार प्रकट हुआ है; क्योंकि हमारे भाइयों का वह अभियोक्ता नीचे गिरा दिया गया है, जो दिन-रात ईश्वर के सामने उस पर अभियोग लगाया करता था।

11) "वे मेमने के रक्त और अपने साक्ष्य के द्वारा उस पर विजयी हुए, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन का मोह छोड़ कर मृत्यु का स्वागत किया;

12) "इसलिए स्वर्ग और उसके निवासी आनन्द मनायें। किन्तु धिक्कार तुम्हें, ऐ पृथ्वी और समुद्र! क्योंकि शैतान, यह जान कर कि मेरा थोड़ा समय ही शेष है, तीव्र क्रोध के आवेश में तुम पर उतर आया है।"


सुसमाचार :योहन 1:47-51

47) ईसा ने नथानाएल को अपने पास आते देखा और उसके विषय में कहा, "देखो, यह एक सच्चा इस्राएली है। इस में कोई कपट नहीं।"

48) नथानाएल ने उन से कहा, "आप मुझे कैसे जानते हैं?" ईसा ने उत्तर दिया, "फिलिप द्वारा तुम्हारे बुलाये जाने से पहले ही मैंने तुम को अंजीर के पेड़ के नीचे देखा"।

49) नथानाएल ने उन से कहा, "गुरुवर! आप ईश्वर के पुत्र हैं, आप इस्राएल के राजा हैं"।

50) ईसा ने उत्तर दिया, "मैंने तुम से कहा, मैंने तुम्हें अंजीर के पेड़ के नीचे देखा, इसीलिए तुम विश्वास करते हो। तुम इस से भी महान् चमत्कार देखोगे।"

51) ईसा ने उस से यह भी कहा, "मैं तुम से यह कहता हूँ- तुम स्वर्ग को खुला हुआ और ईश्वर के दूतों को मानव पुत्र के ऊपर उतरते-चढ़ते हुए देखोगे"।

📚 मनन-चिंतन

आज, माता कलीसिया, महादूत मिखाएल, गाब्रिएल और राफ़ाएल का महापर्व मानती है। प्रभु येसु अपने प्रेरितों और बाकी सभी लोगों के लिए, स्वर्गदूतों की उपस्थिति और उनके साथ उनके संबंध के बारे में बताते है।स्वर्गदूत ईश्वर की स्वर्गीय महिमा में हैं, जहां वे निरंतर मानवपुत्र, का बखान करते रहते हैं, वे उसे घेरे हुए हैं और उसकी सेवा में हैं।

स्वर्गदूतों का चढ़ना उतरना पुराने विधान के याकूब की उस घटना की याद दिलाता है, जब वो अपने पूर्वजों के देश की यात्रा कर रहा था और रस्ते में विश्राम करते वक्त उसे स्वप्न में उन्हें स्वर्गदूतों के दर्शन होते हैं जो एक रहस्यमयी में सीढ़ी से "उतरते और चढ़ते" थे , जो धरती से स्वर्ग तक पहुँची थी। हमें दिव्य संचार अथवा संवाद और स्वर्गदूतों की सक्रिय भूमिका के बीच संबंध पर ध्यान देना चाहिए कि किस प्रकार से ईश्वर स्वर्गदूतों इ माध्यम से अपने लोगों के संपर्क सधता है।

यूँ तो पवित्र बाइबल में स्वर्गदूतों के बारे में कई वर्णन है परन्तु मिखाएल, गाब्रिएल और राफ़ाएल अपनी अलग-अलग भूमिकाओं में दिखाई देते हैं; वे सबसे बड़े मिशनों में भेजे जाते हैं अतः वे महादूत अथवा स्वर्गदूतों के राजकुमार कहलाते हैं।

गेब्रियल को धन्य कुंवारी मारिया के पास मसीह की माँ बनने का संचार लेके भेजा गया था। (cf. लूकस 1: 28-30)। माइकल विद्रोही स्वर्गदूतों से लड़ता है जिन्हें स्वर्ग से बाहर निकाल दिया जाता है (cf. प्रकाशना 12)। आज संत मिखाएल सब प्रकार की शैतानी ताकतों के विरुद्ध हमारे आध्यात्मिक युद्ध में हमारे साथ रहकर हमारी ओर से लड़ता है और हमें विजय दिलाता है। राफ़ाएल युवक तोबियस के साथ जाता है, उसकी रक्षा करता है और उसे सलाह देता है, और आखिरकार, अपने पिता तोबित को चंगा करता है।

आज का यह पर्व हमें याद दिलाता है कि स्वर्गदूत ईश्वर की सेवा निरंतर करते हैं पर वे हमारे खातिर ईश्वर की सेवा में लगे हैं। वे समय- समय पर ईश्वर की तरफ से हमारी मदद करते रहते हैं। इस पापमय दुनिया में बुरी आत्माओं, शैतान और उसकी सब प्रकार की बारे का सामना करने के लिए हम अकेले नहीं है. ये स्वर्गदूत हमारे साथ रहते हैं और हमारी आध्यतमिक लड़ाई में हमें सहारा व बल देते हैं।

आइये हम इन स्वर्गदूतों के सहयोग से इस संसार व सांसारिक प्रलोभनों, रोगों व बुराई की अन्य ताकतों को हराकर विजयमान मेमने के सम्मुख असंख्य दूतों व् संतों के साथ ईश्वर की महिमा गाने के काबिल बन जाएँ।



📚 REFLECTION

Today, the mother Church celebrates the Solemnity of the Archangels Michael, Gabriel, and Raphael.The angels are in the heavenly glory of God, where they are constantly praising the Son of Man; they surround Him and serve Him. The ascending of the angels reminds us of the incident of Jacob of the Old Testament when he was traveling to the land of his ancestors and while resting on the road, he had a vision of angels who ascended and descended the ladder which reached from the earth to heaven.

We should pay attention to the connection between divine communication or dialogue and the active role of angels, how God communicates with people through angels.

Although there are many descriptions of angels in the Holy Bible, but Michael, Gabriel, and Raphael appear in important roles; they are sent in the biggest missions, so they are called the archangel or the prince of Angels. Gabriel was sent to the Blessed Virgin Mary carrying a message to become the mother of Christ. (cf. Lucas 1: 28–30). Michael fights rebellious angels who are cast out of heaven (cf. Revelation 12). Today St. Michael continues to fight on our behalf and gives us victory in our spiritual warfare against all kinds of evil forces. Raphael goes with the young man Tobias, protects and advises him, and finally, heals his father, Tobit.

Today's feast reminds us that angels continue to serve God, but they are engaged in serving God for our sake. They help us from time to time on behalf of God. In this sinful world we are not alone to face evil spirits. These angels are with us and support and provide supernatural powers to us in our spiritual battle.


 -Br. Biniush Topno


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28 सितंबर का पवित्र वचन

 

28 सितंबर 2020
वर्ष का छब्बीसवाँ सामान्य सप्ताह, सोमवार

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📒 पहला पाठ : योब का ग्रन्थ 1:6-22

6) एक दिन ऐसा हुआ कि स्वर्गदूत प्रभु के सामने उपस्थित हुए और शैतान भी उन में सम्मिलित हो गया।

7) प्रभु ने शैतान से कहा, "तुम कहाँ से आये हो?" शैतान ने प्रभु को उत्तर दिया, "मैंने पृथ्वी का पूरा चक्कर लगाया"।

8) इस पर प्रभु ने कहा, "क्या तुमने मेरे सेवक अय्यूब पर ध्यान दिया है? पृथ्वी भर में उसके समान कोई नहीं; वह निर्दोष और निष्कपट है, वह ईश्वर पर श्रद्धा रखता और बुराई से दूर रहता है।"

9) शैतान ने प्रभु से कहा, "क्या अय्यूब यों ही ईश्वर पर श्रद्धा रखता है?

10) क्या आपने उसके, उसके परिवार और उसकी पूरी जायदाद के चारों ओर मानो घेरा लगा कर उसे सुरक्षित नहीं रखा? आपने उसके सब कार्यों को आशीर्वाद दिया उसके झुण्ड देश भर मैं फैले हुए हैं।

11) आप हाथ बढ़ा कर उसकी सारी सम्पत्ति छीन लें, तो वह निश्चिय ही आपके मुँह पर आपकी निंदा करेगा।"

12) प्रभु ने शैतान से कहा, "अच्छा! उसका सब कुछ तुम्हारे हाथ में है, किंतु अय्यूब पर हाथ मत लगाना"। इसके बाद शैतान प्रभु के सामने से चला गया।

13) अय्यूब के पुत्र-पुत्रियाँ किसी दिन अपने बड़े भाई के यहाँ खा-पी रहे थे

14) कि एक सन्देशवाहक ने आ कर अय्यूब से कहा, "बैल हल में जुते हुए थे और गधियोँ उनके आस-पास चर रही थीं।

15) उस समय शबाई उन पर टूट पड़े और आपके सेवकों को तलवार के घाट उतार कर सब पशुओं को ले गये। केवल मैं बच गया और आप को यह समाचार सुनाने आया हूँ।"

16) वह बोल ही रहा था कि कोई दूसरा आ कर कहने लगा, "ईश्वर की आग आकाश से गिर गयी। उसने भेड़ों और चहवाहों को जला कर भस्म कर दिया। केवल मैं बच गया और आप को समाचार सुनाने आया हूँ"

17) वह बोल ही रहा था कि एक और अंदर से आया और कहने लगा, "खल्दैयी तीन दल बना कर ऊँटों पर टूट पड़े और आपके नौकरों को तलवार के घाट उतार कर पशुओं को ले गये। केवल मैं बच गया और आप को यह समाचार सुनाने आया हूँ"

18) वह बोल ही रहा था कि एक और आ कर कहने लगा, "आपके पुत्र-पुत्रियाँ, अपने बड़े भाई के यहाँ खा-पी रहे थे

19) कि एक भीषण आँधी मरूभूमि की ओर से आयी और घर के चारों कोनो से इतने ज़ोर से टकरायी कि घर आपके पुत्र-पुत्रियों पर गिर गया और वह मर गये। केवल मैं बचा गया हूँ और आप को यह समाचार सुनाने आया हूँ"

20) अय्यूब ने उठ कर अपने वस्त्र फाड़ डाले। उनसे सिर मुडाया और मुँह के बल भूमि पर गिर कर

21) यह कहा, "मैं नंगा ही माता के गर्भ से निकला और नंगा ही पृथ्वी के गर्भ में लौट जाऊँगा! प्रभु ने दिया था, प्रभु ने ले लिया। धन्य है प्रभु का नाम!"

22) इन सब विपत्तियों के होते हुए भी अय्यूब ने कोई पाप नहीं किया और उसने ईश्वर की निंदा नहीं की।

📙 सुसमाचार : सन्त लूकस 9:46-50

46) शिष्यों में यह विवाद छिड़ गया कि हम में सब से बड़ा कौन है।

47) ईसा ने उनके विचार जान कर एक बालक को बुलाया और उसे अपने पास खड़ा कर

48) उन से कहा, "जो मेरे नाम पर इस बालक का स्वागत करता है, वह मेरा स्वागत करता है और जो मेरा स्वागत करता है, वह उसका स्वागत करता है, जिसने मुझे भेजा है; क्योंकि तुम सब में जो छोटा है, वही बड़ा है।"

49) योहन ने कहा, “गुरूवर! हमने किसी को आपका नाम ले कर अपदूतों को निकालते देखा है और हमने उसे रोकने की चेष्टा की, क्योंकि वह हमारी तरह आपका अनुसरण नहीं करता“।

50) ईसा ने कहा, “उसे मत रोको। जो तुम्हारे विरुद्ध नहीं है, वह तुम्हारे साथ हैं।“

📚 मनन-चिंतन

दूसरों के साथ खुद की तुलना करने का प्रलोभन हम में से बहुतों में होता है। हम अपने आप से आसानी से सवाल पूछ सकते हैं, कि मैं अमुक की तुलना में कितना अच्छा हूं? कितना बेहतर हूँ? या किसकी ज़यादा अहमियत है इत्यादि।

आज के सुसमाचार में हम शिष्यों के बीच उस प्रतिस्पर्धात्मकता को देखते हैं। उनमें एक वाद विवाद खड़ा हो जाता है कि उनमें कौन सबसे बड़ा है। उन में से प्रत्येक अपने समुदाय का सर्वश्रेष्ठ बनने के लिए संघर्ष करते दिखाई देते हैं। इस बात को लेकर येसु ने कभी अपने जीवन में संघर्ष नहीं किया। उनके विवाद को नजरअंदाज करते हुए, येसु अपनी बात एक जीवंत उदाहरण के द्वारा देने हेतु उनके बीच में एक छोटे बच्चे खड़ा कर देते है और घोषणा करता है कि जो कोई भी उसके नाम पर इस तरह के बच्चे का स्वागत करता है वह उसका स्वागत करता है।

वे जिस महानता के बारे में सोचते हैं, उसके लिए प्रतिस्पर्धा करने के बजाय, शिष्यों को जो छोटे विनम्र और सबसे कमजोर हैं उनका स्वागत करना है। परमेश्वर के राज्य में, सच्ची महानता हेतु उन लोगों का स्वागत करना और उनकी सेवा करना शामिल है, जो बिना किसी पद के या सामाजिक प्रतिष्ठा की लालसा के बच्चों जैसा जीवन जीते हैं। प्रभु की राहों पर चलने के किये किसी से प्रतिस्पर्धा करने की नहीं पर विनम्र बनकर सेवा करने की ज़रूरत है।



📚 REFLECTION

The temptation to compare ourselves with others is always there in us. We can easily ask ourselves the question, how good am in comparison to others? Or how much valuable or important am I before others etc. In today's gospel we see such competitiveness among the disciples. A debate arises in them as to who is the greatest among them. Each of them appears to be struggling to become the best of their community. Jesus never struggled with this in his life.

Jesus places a small child in their midst to give them a live example and declares that whoever welcomes such a child in His name would welcome him. Instead of competing for the greatness, the disciples are to welcome the little humble and the weakest. In the kingdom of God, true greatness includes welcoming and serving those who live a childlike life without longing for a social prestige or place of honour. There is a need to serve humble ones, and not to compete with anyone.

27 सितंबर का पवित्र वचन

 

27 सितंबर 2020
वर्ष का छब्बीसवाँ सामान्य सप्ताह, रविवार

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📒 पहला पाठ : एज़ेकिएल का ग्रन्थ 18:25-28

25) “तुम लोग कहते हो कि प्रभु का व्यवहार न्यायसंगत नहीं हैं। इस्राएलियो! मेरी बात सुनो। क्या मेरा व्यवहार न्यायसंगत नहीं है? क्या यह सही नहीं है कि तुम्हारा ही व्यवहार न्यायसंगत नहीं हैं।

26) यदि कोई भला मनुय अपनी धार्मिकता त्याग कर अधर्म करने लगता और मर जाता है, तो वह अपने पाप के कारण मरता है।

27) और यदि कोई पापी अपना पापमय जीवन त्याग कर धार्मिकता और न्याय के पथ पर चलने लगता है, तो वह अपने जीवन को सुरक्षित रखेगा।

28) यदि उसने अपने पुराने पापों को छोड़ देने का निश्चय किया है, तो वह अवश्य जीवित रहेगा, मरेगा नहीं।

📕 दूसरा पाठ: फ़िलिप्पियों 2:1-11

1) यदि आप लोगों के लिए मसीह के नाम पर निवेदन तथा प्रेमपूर्ण अनुरोध कुछ महत्व रखता हो और आत्मा में सहभागिता, हार्दिक अनुराग तथा सहानुभूति का कुछ अर्थ हो,

2) तो आप लोग एकचित? एक हृदय तथा एकमत हो कर प्रेम के सूत्र में बंध जायें और इस प्रकार मेरा आनन्द परिपूर्ण कर दें।

3) आप दलबन्दी तथा मिथ्याभिमान से दूर रहें। हर व्यक्ति नम्रतापूर्वक दूसरों को अपने से श्रेष्ठ समझे।

4) कोई केवल अपने हित का नहीं, बल्कि दूसरों के हित का भी ध्यान रखे।

5) आप लोग अपने मनोभावों को ईसा मसीह के मनोभावों के अनुसार बना लें।

6) वह वास्तव में ईश्वर थे और उन को पूरा अधिकार था कि वह ईश्वर की बराबरी करें,

7) फिर भी उन्होंने दास का रूप धारण कर तथा मनुष्यों के समान बन कर अपने को दीन-हीन बना लिया और उन्होंने मनुष्य का रूप धारण करने के बाद

8) मरण तक, हाँ क्रूस पर मरण तक, आज्ञाकारी बन कर अपने को और भी दीन बना लिया।

9) इसलिए ईश्वर ने उन्हें महान् बनाया और उन को वह नाम प्रदान किया, जो सब नामों में श्रेष्ठ है,

10) जिससे ईसा का नाम सुन कर आकाश, पृथ्वी तथा अधोलोक के सब निवासी घुटने टेकें

11) और पिता की महिमा के लिए सब लोग यह स्वीकार करें कि ईसा मसीह प्रभु हैं।

📙 सुसमाचार : सन्त मत्ती 21:28-32

28) ’’तुम लोगों का क्या विचार है? किसी मनुष्ष्य के दो पुत्र थे। उसने पहले के पास जाकर कहा, ’बेटा जाओ, आज दाखबारी में काम करो’।

29) उसने उत्तर दिया, ’मैं नहीं जाऊँगा’, किन्तु बाद में उसे पश्चात्ताप हुआ और वह गया।

30) पिता ने दूसरे पुत्र के पास जा कर यही कहा। उसने उत्तर दिया, ’जी हाँ पिताजी! किन्तु वह नहीं गया।

31) दोनों में से किसने अपने पिता की इच्छा पूरी की?’’ उन्होंने ईसा को उत्तर दिया, ’’पहले ने’’। इस पर ईसा ने उन से कहा, ’’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- नाकेदार और वैश्याएँ तुम लोगों से पहले ईश्वर के राज्य में प्रवेश करेंगे।

32) योहन तुम्हें धार्मिकिता का मार्ग दिखाने आया और तुम लोगों ने उस पर विश्वास नहीं किया, परंतु नाकेदारों और वेश्यायों ने उस पर विश्वास किया। यह देख कर तुम्हें बाद में भी पश्चात्ताप नहीं हुआ और तुम लोगों ने उस पर विश्वास नहीं किया।

📚 मनन-चिंतन

हम उन लोगों को महत्व देते हैं जो हमारी बात रखते हैं। हम उन लोगों की सराहना करते हैं जो अपने वादों पर खरे उतरते हैं। प्रभु भी हमारे द्वारा किए गए वादों पर खरा उतरने के हमारे प्रयासों की सराहना करता है। आज के सुसमाचार के दृष्टांत में येसु ने बताते हैं बोला, कि दो पुत्रों मेसे एक ने अपने पिता से किया हुआ वादा नहीं निभाया। उसने दाख की बारी में काम करने का वादा किया था, लेकिन नहीं किया। वह उनके वचन का पक्का नहीं था। दूसरा बेटा विपरीत दिशा में चला गया; उन्होंने शुरू में कहा नहीं, लेकिन फिर इसके बारे में सोच-विचार किया और वही किया जो उनसे पूछा गया था। हम शायद लोगों में उस गुणवत्ता की भी सराहना करते हैं, एक प्रारंभिक निर्णय पर प्रतिबिंबित करने की क्षमता और बेहतर करने के लिए, मन का परिवर्तन, दिल का परिवर्तन। प्रभु हममें उसी गुण की सराहना करते हैं, बेहतरी के लिए मन और हृदय में बदलाव के लिए खुलापन। जब प्रभु कहते हैं और हम उनका कहना नहीं मानते तो प्रभु हमारे मन परिवर्तन तक इंतज़ार करते हैं कि हम मन बदलकर फिर से उनकी बात मानेंगे और उनके आदेशों का पलाउ करेंगे। प्रभु हमें अपनी प्रारंभिक प्रतिक्रिया के बारे में बेहतर सोचने का समय देता है। जब हम हमारे एक नहीं को एक हाँ में बदल देते हैं तो यह ईश्वर को प्रसन्नता प्रदान करता है। हिंदी में एक कहावत है देर आये दुरुस्त आये। यदि हमने आज तक हमारे प्रभु के आदेशों के लिए ना कहा है तो प्रभु हमें याद रहे वो हमारा ईश्वर हमारे ना के हाँ में बदलने का इंतज़ार कर रहा है। हम अपने मनोभाव और विचारों को बदलें व येसु की बातों को हाँ कहना सीखें। आमेन।



📚 REFLECTION

We value those who listen to us. We appreciate those who live up to their promises. The Lord also appreciates our efforts to live up to our promises. In the parable of today's gospel, Jesus states that one of the two sons did not keep the promise made to his father. He promised to work in the vineyard, but did not. He was not sure of his word. The second son went in the opposite direction; He initially said no, but then thought about it and did what he was asked. We probably also appreciate that quality in people, the ability to reflect on an initial decision and, for the better, a change of mind, a change of heart. God appreciates the same quality in us, openness to change in mind and heart for the better. When God says and we do not listen to Him, then He waits till we change our mind and turn back to Him with repentance and once again begin to listen to Him and obey his commands. Let us learn to always turn back to Jesus even if we fail keep our promises and obey his commands, for He always forgives. Amen


मनन-चिंतन : पश्चाताप - एक कदम अमरता की ओर

"मै बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूँ। मैं धर्मियों को नहीं पापियों को बुलाने आया हूँ।’’ (मत्ती 9:13) इस वचन के द्वारा प्रभु येसु उन लोगों के लिए द्वार खोलते हैं जो अपने जीवन को अर्थहीन और निराशा पूर्ण समझते हैं। यह वचन उन सभी लोगो के लिए जो पाप के कारण हताश और निराश है, एक आशा का दीप हैं। आज का सुसमाचार हमें इस ओर इंगित भी करता है। आज के सुसमाचार में हम फरीसियों और पापियों पर आधारित एक उत्तम और सुंदर दृष्टांत को पाते हैं। पिता की आज्ञा या इच्छा और उसका पालन - इसके आधार पर यहाँ पर चार प्रतिक्रिया संभव हैं। पहला - जो पिता की आज्ञा सुनता तथा उसका ईमानदारी से पालन करता है, दूसरा - जो सुनता परंतु पालन नहीं करता है, तीसरा - जो नहीं सुनता परंतु बाद में जाकर पालन करता है और चौथा - जो नही सुनता और पालन भी नहीं करता हैं। प्रभु येसु ने महायाजक और जनता के नेताओं के मन की बात जानकर, पापियों के प्रति उनकी भावना, उनकी झूठी धार्मिकता और अपश्चात्तापी हृदय को देखकर दूसरे और तीसरे प्रकार की प्रतिक्रिया को प्रकट किया है।

आइये हम इस दूसरी और तीसरी प्रतिक्रियाओं पर मनन चिंतन करें। बेटा पिता को ’हाँ’ तो कहता है परंतु उसके विपरीत कार्य करता है। आदम और हेवा के विषय में जानते हैं कि ईश्वर ने उनसे कहा था, “'तुम वाटिका के सभी वृक्षों के फल खा सकते हो, किन्तु भले-बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल नहीं खाना; क्योंकि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे, तुम अवश्य मर जाओगे'' (उत्पत्ति 2:16-17)। समूएल के पुत्र योएल और अबीया को न्यायकर्ता के पद पर नियुक्त किया गया था परन्तु वे “अपने पिता के मार्ग का अनुसरण नहीं करते थे। वे लोभ में पड़ कर घूस लेते और न्याय भ्रष्ट कर देते थे’’ (2 समूएल 8:3)। नबी योना को निनीवे जा कर वहाँ के लोगों को उपदेश देने को कहा गया परंतु पहली बार में उसने विपरीत कार्य किया। अनानीयस और सफीरा (प्रेरित-चरित 5) को विश्वासियों के समुदाय के अनुसार अपनी सम्पत्ति बेचकर पूरी कीमत प्रेरितों के चरणों में रखनी थी परंतु उन्होने एक अंश अपने पास रख लिया। इन सभी के जीवन में ईश्वर द्वारा या लोगो के माध्यम से ईश्वर द्वारा आज्ञा मिली थी परंतु लोभ या प्रलोभन या किसी कारणवश वे विपरीत कार्य करते हैं और उनके जीवन में भारी दुःख, संकट या परेशानियाँ आ जाती हैं।

एक बेटा पिता को न कहकर बाद में पश्चात्ताप करता है और उस कार्य को पूरा करता है। बाइबिल में हम निनीवे के लोगो को पाते हैं जिन्होने पश्चात्ताप किया और कुमार्ग छोड़ दिये (योना 3:5-10)। राजा दाउद ने अपने गलत कार्य पर पश्चात्ताप किया। पेत्रुस ने अपने अस्वीकार पर आँसू बहाकर पश्चाताप किया (लूकस 22:62)। येसु के साथ क्रूसित डाकू अपने पापो के प्रति पश्चाताप करता है और अपने लिए स्वर्ग का रास्ता सुनिश्चित कर लेता है (लूकस 23:40-43)। इन सभी ने अपने पापों के प्रति पश्चात्ताप किया और अपने जीवन में बदलाव लाया और इस कार्य के फलस्वरूप इन्हें जीवन में आनंद, शांति और मुक्ति मिली।

पश्चात्ताप हम सभी के लिए एक वरदान है क्योंकि हम सब पापी हैं। ‘‘कोई भी धार्मिक नहीं रहा - एक भी नहीं; कोई भी समझदार नहीं; ईश्वर की खोज में लगा रहने वाला कोई नहीं! सभी भटक गये, सब समान रूप से भ्रष्ट हो गये हैं। कोई भी भलाई नहीं करता - एक भी नहीं।’’ (रोमियो 3:10-12)। पश्चात्ताप प्रभु येसु का अपने मिशन कार्य का सबसे पहला उपदेश है। ‘‘समय पूरा हो चुका है। ईश्वर का राज्य निकठ आ गया है। पश्चात्ताप करो और सुसमाचार में विश्वास करो’’(मारकुस 1:15)। इससे पता चलता है पश्चात्ताप हमारे जीवन में इतना महत्वपूर्ण क्यों हैं। पश्चात्तापी हृदय के फलस्वरूप एक पापी संत बन सकता है तथा उसको एक नया जीवन मिल सकता है, परंतु अपश्चात्तापी ह्दय के कारण एक संत पापी बन सकता है तथा वह मृत्यु की ओर ले जा सकता है। ‘‘यदि कोई भला मनुष्य अपनी धार्मिकता त्याग कर अधर्म करने लगता और मर जाता है, तो वह अपने पाप के कारण मर जाता है। और यदि कोई पापी अपना पापमय जीवन त्याग कर धार्मिकता और न्याय के पथ पर चलने लगता है, तो वह अपने जीवन को सुरक्षित रखेगा।’’ (एज़ेकिएल 18:26-27)

आज का सुसमाचार हमें प्रेरित करता है कि हम सदैव ईश्वर की इच्छा को पूरी करें क्योंकि ‘‘जो लोग मुझे ‘प्रभु! प्रभु! कह कर पुकारते हैं, उन में सब के सब स्वर्ग राज्य में प्रवेश नहीं करेंगे। जो मेरे स्वर्गिक पिता की इच्छा पूरी करता है, वही स्वर्गराज्य में प्रवेश करेगा’’ (मत्ती 7:21)। और यदि हम भटक जाए तो ‘‘प्रभु यह कहता है - अपने वस्त्र फाड़ कर नहीं, बल्कि ह्दय से पश्चात्ताप करो और अपने प्रभु-ईश्वर के पास लौट जाओे’’ (योएल 2:13) क्योकि ‘‘एक पश्चात्तापी पापी के लिए स्वर्ग में अधिक आनन्द मनाया जायेगा’’ (लूकस 15:9)।

26 सितंबर का पवित्र वचन

 

26 सितंबर 2020
वर्ष का पच्चीसवाँ सामान्य सप्ताह, शनिवार

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📒 पहला पाठ : उपदेशक 11:9-12:8

9) युवक! अपनी जवानी में आनन्द मनाओं अपनी युवावस्था में मनोरंजन करो। अपने हृदय और अपनी आँखों की अभिलाषा पूरी करो, किन्तु याद रखो कि ईश्वर तुम्हारे आचरण का लेखा माँगेगा।

10) अपने हृदय से शोक को निकाल दो और अपने शरीर से कष्ट दूर कर दो, क्योंकि जीवन का प्रभात क्षणभंगुर है।

12:1) अपनी जवानी के दिनों में अपने सृष्टिकर्ता को याद रखों: बुरे दिनों के आने से पहले, उन वर्षों के आने से पहले, जिनके विषय में तुम कहोगे- "मुझे उन में कोई सुख नहीं मिला";

2) उस समय से पहले, जब सूर्य, प्रकाश, चन्द्रमा और नक्षत्र अन्धकारमय हो जायेंगे; और वर्षा के बाद बादल छा जायेंगे;

3) उस समय से पहले, जब घर के रक्षक काँपने लगेंगे, बलवानों का शरीर झुक जायेगा, चबाने वाले इतने कम होंगे कि अपना काम बन्द कर देंगे और जो खिड़कियों से झाँकती है वे धुँधली हो जायेगी ;

4) उस समय से पहले, जब बाहरी दरवाजे बन्द होंगे, चक्की की आवाज मन्द होगी, चिड़ियों की चहचहाहट धीमी पड़ जायेगी और सभी गीत मौन हो जायेंगे;

5) उस समय से पहले, जब ऊँचाई पर चढ़ने से डर लगेगा और सड़को पर खतरे-ही-खतरे दिखाई देंगे, जब बादाम का स्वाद फीका पड़ जायेगा, टिड्डियाँ नहीं पचेंगी और चटनी में रूचि नहीं रहेगी, क्योंकि मनुष्य परलोक सिधारने पर है और शोक मनाने वाले सड़क पर आ रहे हैं;

6) उस समय से पहले, जब चाँदी का तार टूट जायेगा और सोने का पात्र गिर पड़ेगा, जब घड़ा झरने के पास फूटेगा और कुएँ का पहिया टुकड़े-टुकड़े हो जायेगा;

7) उस समय से पहले, जब मिट्टी उस पृथ्वी में मिल जायेगी, जहाँ से वह आयी है और आत्मा ईश्वर के पास लौट जायेगी, जिसने उसे भेजा है।

8) उपदेशक कहता है: व्यर्थ ही व्यर्थ; सब कुछ व्यर्थ है।


सुसमाचार :लूकस 9:43b-45

सब लोग ईसा के कार्यों को देख कर अचम्भे में पड़ जाते थे; किन्तु उन्होंने अपने शिष्यों से कहा,

44) "तुम लोग मेरे इस कथन को भली भाँति स्मरण रखो-मानव पुत्र मनुष्यों के हवाले कर दिया जायेगा"।

45) परन्तु यह बात उनकी समझ में नहीं आ सकी। इसका अर्थ उन से छिपा रह गया और वे इसे नहीं समझ पाते थे। इसके विषय में ईसा से प्रश्न करने में उन्हें संकोच होता था।

📚 मनन-चिंतन

जीवन में बहुत कुछ है जो हम पूरी तरह से नहीं समझत पाते । दुख का अनुभव जीवन के उन रहस्यों में से एक है जिनसे हम थाह लेने के लिए कोशिश करते रहते हैं। घातक बीमारी, किसी को भी उनकी उम्र की परवाह किए बिना किसी भी समय अपना शिकार बना सकती है। आये दिन हम त्रासदियों और अनहोनी घटनाओं के बारे में सुनते हैं और यह देख कर हम आवाक रह जाते हैं कि ये सब निर्दोष क्यों बेमौत मारे जाते हैं। मानव दुःख हमारे लिए एक रहस्य बना हुआ है। हमारा कैथोलिक विश्वास हमें अपने दुख या किसी प्रियजन की पीड़ा से निपटने में मदद कर सकता है।

आज के सुसमाचार पाठ में, जब लोग येसु के महान कार्यों को देखकर विस्मित थे उन्हें एक बहुत शक्तिशाली व्यक्ति मानने लगे थे, उसी समय येसु अपने शिष्यों के सामने यह घोषणा करते हैं कि वे मनुष्यों के हवाले कर दिए जायेंगे और वे उन्हें मार डालेंगे। सुसमाचार हमें बतलाता है कि शिष्यों ने येसु की इस बात को समझा नहीं था, और वे उससे पूछने से डरते थे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि ईश्वर का यह जन, जो इतने सारे लोगों द्वारा प्रशंसित था, दूसरों के हाथों कैसेअत्याचार सह सकता है। उन्होंने उसके अंतिम मुकाम या लक्ष्य के रहस्य को नहीं समझा, जो दुख और मृत्यु से घनिष्ठता से जुड़ा हुआ था। कोई इतना भला और निर्दोष जो की बहुत ही शक्तिशाली और चमत्कार करने वाला था कैसे वह उन लोगों के अधीन हो सकता है, जो उसे मरना चाहते थे? केवल येसु के पुनरुत्थान के बाद ही शिष्यों ने येसु के दुखभोग की प्रासंगिकता को समझा। उनकी मृत्यु उनके मिशन के प्रति उनकी प्रेममय निष्ठा का परिणाम थी। शायद, हम भी हमारे पुनरुत्थान के बाद के जीवन याने, अनंत काल के जीवन को निगाह में रखकर ही अपने जीवन में और दूसरों के जीवन में आने वाले दुखों के रहस्य को समझेंगे। इस बीच, पहला पाठ हमें विश्वास दिलाता है कि प्रभु हमारे बीच में निवास करने के लिए आए हैं और आग की दीवार की तरह हमारे चारों ओर हैं। हमारे अपने कलवारी अनुभव में, ईश्वर हमारे साथ हैं, जैसे कि ईश्वर येसु के साथ क्रूस पर थे। जब हम खुद को सबसे कमजोर अवस्था में पाते हैं, हमारा ईश्वर हमारे चारों ओर आग की दीवार की तरह उपस्थित रहता और हमारी रक्षा करता है।



📚 REFLECTION

There are many things in life that we do not fully understand. The experience of grief is one of the mysteries of life which we keep trying to fathom. A deadly disease can prey on anyone at any time, regardless of their age. Every day we hear about tragedies and unpleasant incidents and we are left stunned to see why the innocents are killed. Human grief remains a mystery to us. Our Catholic faith can help us deal with our suffering or the suffering of a loved one. In today's Gospel, when people were astonished to see the great works of Jesus, they considered Him to be a very powerful person, at the same time, Jesus announced to his disciples that he would be handed over to humans and that they would kill him. The gospel tells us that the disciples did not understand this, and they were afraid to ask him. They could not understand how this man of God, who was admired by so many people, could bear atrocities at the hands of others. They did not understand the secret of his final goal, which was intimately connected with suffering and death. How can someone so good and innocent who was very powerful and performed miracles be subject to those who wanted him dead? Only after the resurrection of Jesus did the disciples understand the relevance of the suffering of Jesus. His death was the result of his loving loyalty to his mission. Perhaps, we too will understand the mystery of the miseries that come in our lives and in the lives of others, when we understand the meaning of the life after death that is our resurrection. Meanwhile, the first reading assures us that the Lord has come to dwell among us and surround us like a wall of fire. In our own Calvary experience, God is with us, just as God was with Jesus on the cross. When we find ourselves in the weakest state of life, our God is present around us like a wall of fire and protects us.

25 सितंबर का पवित्र वचन

 

25 सितंबर 2020
वर्ष का पच्चीसवाँ सामान्य सप्ताह, शुक्रवार

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📒 पहला पाठ : उपदेशक 3:1-11

1) पृथ्वी पर हर बात का अपना वक्त और हर काम का अपना समय होता है:

2) प्रसव करने का समय और मरने का समय; रोपने का समय और पौधा उखाड़ने का समय;

3) मारने का समय और स्वस्थ करने का समय; गिराने का समय और उठाने का समय;

4) रोने का समय और हँसने का समय; विलाप करने का समय और नाचने का समय;

5) पत्थर बिखेरने का समय और पत्थर एकत्र करने का समय; आलिंगन करने का समय और आलिंगन नहीं करने का समय;

6) खोजने का समय और खोने का समय; अपने पास रखने का समय और फेंक देने का समय;

7 फाड़ने का समय और सीने का समय; चुप रहने का समय और बोलने का समय;

8) प्यार करने का समय और बैर करने का समय; युद्ध का समय और शान्ति का समय।

9) मनुष्य को अपने सारे परिश्रम से क्या लाभ ?

10) ईश्वर ने मनुष्यों को जो कार्य सौंपा है, मैंने उस पर विचार किया।

11) उसने सब कुछ उपयुक्त समय के अनुसार सुन्दर बनाया है। उसने मनुष्य को भूत और भविष्य का विवेक दिया है; किन्तु ईश्वर ने प्रारम्भ से अन्त तक जो कुछ किया, उसे मनुष्य कभी नहीं समझ सका।


सुसमाचार :लूकस 9:18-22

18) ईसा किसी दिन एकान्त में प्रार्थना कर रहे थे और उनके शिष्य उनके साथ थे। ईसा ने उन से पूछा, "मैं कौन हूँ, इस विषय में लोग क्या कहते हैं?"

19) उन्होंने उत्तर दिया, "योहन बपतिस्ता; कुछ लोग कहतें-एलियस; और कुछ लोग कहते हैं-प्राचीन नबियों में से कोई पुनर्जीवित हो गया है"।

20) ईसा ने उन से कहा, "और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?" पेत्रुस ने उत्तर दिया, "ईश्वर के मसीह"।

21) उन्होंने अपने शिष्यों को कड़ी चेतावनी दी कि वे यह बात किसी को भी नहीं बतायें।

22) उन्होंने अपने शिष्यों से कहा, "मानव पुत्र को बहुत दुःख उठाना होगा; नेताओं, महायाजकों और शास्त्रियों द्वारा ठुकराया जाना, मार डाला जाना और तीसरे दिन जी उठना होगा"।

📚 मनन-चिंतन

किसी भी अन्य सुसमाचार लेखक की तुलना में, संत लूकस येसु को एक प्रार्थनामय व्यक्ति के रूप में अधिक चित्रित करता है, जिसने नियमित रूप से प्रार्थना की, विशेष रूप से अपने जीवन के महत्वपूर्ण क्षणों में। आज के सुसमाचार की शुरुआत में हम येसु को प्रार्थना में पाते हैं। प्रभु येसु ने हमें प्रार्थना करने की न केवल हमें शिक्षा दी पर उन्होंने हमें अपने प्रार्थनामय जीवन द्वारा यह बतलाया कि प्रार्थना के बिना हमें हमारे जीवन में कुछ भी कार्य नहीं करना चाहिए। वे ईश पुत्र थे परन्तु फिर भी उन्होंने बिना प्रार्थना के कुछ भी काम नहीं किया: चाहे वह उनकी सेवकाई हो, प्रेरितों को चुनना हो, कोई चिन्ह अथवा चमत्कार करना हो, दुःख भोगना हो या फिर क्रूस पर मरना हर बार उन्होंने प्रार्थना की। प्रार्थना के बाद किये हर काम में प्रभु येसु को विजय मिली। चाहे वह कोई निर्णय हो, कोई कार्य हो, कोई चमत्कार हो या फिर उनकी मौर ही हो वे हर बार विजय ही रहे।

प्रभु येसु, प्रार्थना की इसी ताकत से हमें रूबरू कराते हैं और हमारा आह्वान करते हैं कि हम हमारे जीवन में उनकी ही तरह प्रार्थना को अपना हथियार और जीवन की ताकत बना लें और प्रार्थना के बिना कुछ की भी शुरुआत न करें। तब हम चीज़ों को बदलते हुए देखेंगे, हमारे जीवन में ईश्वर के सामर्थ्य को देखेंगे और प्रार्थना में ईश्वर हमारे जीवन की अगुवाई अपनी राहों पर करेंगे। आमेन



📚 REFLECTION

Compared to any other gospel writer, St. Luke portrays Jesus as more of a prayerful person who prayed regularly, especially at key moments of his life. At the beginning of today's Gospel we find Jesus in prayer. Lord Jesus not only prayed, but he taught us through his prayerful life that without prayer we should not do anything in our life. He was the son of God, but yet he did nothing without prayer: whether it was his ministry, choosing the Apostles, performing signs or miracles, suffering or dying on the cross each time He prayed. Jesus got victory in everything he did after praying; whether it is a decision, a task, or a miracle.

Jesus, makes us aware of the power of prayer, and invites us to make pray our spiritual weapon and strength of life and do not start anything without prayer. Then we will see things changing, we will see the power of God in our life and in prayer God will lead our life in our own way. Amen.

24 सितंबर का पवित्र वचन

 

24 सितंबर 2020
वर्ष का पच्चीसवाँ सामान्य सप्ताह, गुरुवार

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📒 पहला पाठ : उपदेशक 1:2-11

2) उपदेशक कहता है, "व्यर्थ ही व्यर्थ; व्यर्थ ही व्यर्थ; सब कुछ व्यर्थ है।"

3) मनुष्य को इस पृथ्वी पर के अपने सारे परिश्रम से क्या लाभ?

4) एक पीढ़ी चली जाती है, दूसरी पीढ़ी आती है और पृथ्वी सदा के लिए बनी रहती है।

5) सूर्य उगता है और सूर्य अस्त हो जाता है। वह शीघ्र ही अपने उस स्थान पर जाता है, जहाँ से वह फिर उगता है।

6) हवा दक्षिण की ओर बहती है, वह उत्तर की ओर मुड़ती है; वह घूम-घूम कर पूरा चक्कर लगाती है।

7) सब नदियाँ समुद्र में गिरती हैं; किन्तु समुद्र नहीं भरता। और नदियाँ जिधर बहती है, उधर ही बहती रहती हैं।

8) यह सब इतना नीरस है, कि कोई भी इसका पूरा-पूरा वर्णन नहीं कर पाता। आँखें देखने से कभी तृप्त नहीं होतीं और कान सुनने से कभी नहीं भरते।

9) जो हो चुका है, वह फिर होगा। जो किया जा चुका है, वह फिर किया जायेगा। पृथ्वी भर में कोई भी बात नयी नहीं होती।

10) जिसके विषय में लोग कहते हैं, "देखों, यह तो नयी बात है" वह भी हमारे समय से बहुत पहले हो चुकी है।

11) पहली पीढ़ियों के लोगों की स्मृति मिट गयी है और आने वाली पीढ़ियों की भी स्मृति परवर्ती लोगों मे नहीं बनी रहेगी।


सुसमाचार :लूकस 9:7-9

7) राजा हेरोद उन सब बातों की चर्चा सुन कर असमंजस में पड़ गया, क्योंकि कुछ लोग कहते थे कि योहन मृतकों में से जी उठा है।

8) कुछ कहते थे कि एलियस प्रकट हुआ है और कुछ लोग कहते थे कि पुराने नबियों में से कोई जी उठा है।

9) हरोद ने कहा, "योहन का तो मैंने सिर कटवा दिया। फिर यह कौन है, जिसके विषय में ऐसी बातें सुनता हूँ?" और वह ईसा को देखने के लिए उत्सुक था।

📚 मनन-चिंतन

आज के सुसमाचार में वर्णित हेरोद, हेरोद एंटिपस है, हेरोद महान का पुत्र है; वह येसु की सेवकाई दौरान गलीलिया में शासन करते थे । लूकस ने उन्हें येसु को लेकर जिज्ञासु व्यक्ति के रूप में उन्हें चित्रित किया है। उसने उन सभी बातों और कार्यों के बारे में सुना है जो येसु द्वारा किए जा रहे हैं और वह हैरान है। वह खुद से पूछता है, यह मैं किसके बारे में ऐसी खबरें सुन रहा हूं? ’वह येसु को देखने के लिए बेचैन है। येसु के बारे में इस तरह की जिज्ञासा और जानने की इच्छा, कुछ लोगों के लिए विश्वास की शुरुआत हो सकती है। फिर भी, यहां तक कि जो लोग जीवन भर विश्वासी रहे हैं, और यीशु के बारे में बहुत कुछ जानते हैं, वे भी हैरान रहेंगे, और यह मौलिक सवाल पूछना जारी रखेंगे , 'यह कौन है?' येसु के रहस्य की गहराई, ऊंचाई चौड़ाई है वह अनंत है इस रहस्य को हम कभी पूरी तरह से समझ नहीं पाएंगे। पर एक विश्वासियों होने के नाते हम उन्हें आधी से अधिक जानने के की साथ करते रहें, प्रयत्न करते रहें, न केवल दिमाग से पर दिल व आत्मा से भी।

संत रिचर्ड की एक छोटी सी प्रार्थना मुझे याद आ रही है - Day by day, day by day, O, dear Lord, three things I pray: to see thee more clearly, love thee more dearly, follow thee more nearly, day by day. हे प्रभु ! दिन-ब-दिन मैं बस तीन चीज़ों के लिए हूँ: कि मैं तुझे और स्पष्टता से देख सकूँ; तुझे और गहराई से प्यार कर सकूँ , और करीबी से तेरा अनुसरण कर सकूँ।



📚 REFLECTION

The Herod, mentioned in today's gospel, is Herod Antipas, the son of Herod the Great; He ruled in Galilee during Jesus’ ministry. Luke portrays him as a curious person about Jesus. He has heard about all the works which were being done by Jesus and he was surprised. He asked himself, ‘who am I hearing such news about? 'He was restless to see Jesus. Such curiosity and desire to know about Jesus may be the beginning of faith for some people. Yet, even those who have been believers for whole life also will not be able to comprehend Jesus fully. They will continue to ask the fundamental question, 'Who is this?’

The depth, height and breadth of the mystery of Jesus is infinite, we will never fully grasp this mystery. But as believers, we keep the process of knowing Jesus on. We keep exploring the height, depth and width of Jesus. We search Him with all our mind, heart and soul.

I am remember a small prayer from Saint Richard - Day by day, day by day, O, dear Lord, three things I pray: to see You more clearly, love You more dearly, follow You more nearly,