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अक्टूबर 06, 2024, इतवार वर्ष का सत्ताईसवाँ सामान्य इतवार

 

अक्टूबर 06, 2024, इतवार

वर्ष का सत्ताईसवाँ सामान्य इतवार

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📒 पहला पाठ : उत्पत्ति ग्रन्थ 2:18-24

18) प्रभु ने कहा, ''अकेला रहना मनुष्य के लिए अच्छा नहीं। इसलिए मैं उसके लिए एक उपयुक्त सहयोगी बनाऊँगा।''

19) तब प्रभु ने मिट्ठी से पृथ्वी पर के सभी पशुओं और आकाश के सभी पक्षियों को गढ़ा और यह देखने के लिए कि मनुष्य उन्हें क्या नाम देगा, वह उन्हें मनुष्य के पास ले चला; क्योंकि मनुष्य ने प्रत्येक को जो नाम दिया होगा, वही उसका नाम रहेगा।

20) मनुष्य ने सभी घरेलू पशुओं, आकाश के पक्षियों और सभी जंगली जीव-जन्तुओं का नाम रखा। किन्तु उसे अपने लिए उपयुक्त सहयोगी नहीं मिला।

21) तब प्रभु-ईश्वर ने मनुष्य को गहरी नींद में सुला दिया और जब वह सो गया, तो प्रभु ने उसकी एक पसली निकाल ली और उसकी जगह को मांस से भर दिया।

22) इसके बाद प्रभु ने मनुष्य से निकाली हुई पसली से एक स्त्री को गढ़ा और उसे मनुष्य के पास ले गया।

23) इस पर मनुष्य बोल उठा, ''यह तो मेरी हड्डियों की हड्डी है और मेरे मांस का मांस। इसका नाम 'नारी' होगा, क्योंकि यह तो नर से निकाली गयी है।

24) इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ेगा और अपनी पत्नी के साथ रहेगा और वे दोनों एक शरीर हो जायेंगे।

दूसरा पाठ: इब्रानियों के नाम पत्र 2:9-11

9) परन्तु हम यह देखते हैं कि मृत्यु की यन्त्रणा सहने के कारण ईसा को महिमा और सम्मान का मुकुट पहनाया गया है। वह स्वर्गदूतों से कुछ ही छोटे बनाये गये थे, जिससे वह ईश्वर की कृपा से प्रत्येक मनुष्य के लिए मर जायें।

10) ईश्वर, जिसके कारण और जिसके द्वारा सब कुछ होता है, बहुत-से पुत्रों को महिमा तक ले जाना चाहता था। इसलिए यह उचित था कि वह उन सबों की मुक्ति के प्रवर्तक हो, अर्थात् ईसा को दुःखभोग द्वारा पूर्णता तक पहुँचा दे।

11) जो पवित्र करता है और जो पवित्र किये जाते हैं, उन सबों का पिता एक ही है; इसलिए ईसा को उन्हें अपने भाई मानने में लज्जा नहीं होती और वह कहते हैं -

📒 सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 10:2-16

2 फ़रीसी ईसा के पास आये और उनकी परीक्षा लेते हुए उन्होंने प्रश्न किया, “क्या अपनी पत्नी का परित्याग करना पुरुष के लिए उचित है?“

3) ईसा ने उन्हें उत्तर दिया? ’’मूसा ने तुम्हें क्या आदेश दिया?’’

4) उन्होंने कहा, “मूसा ने तो त्यागपत्र लिख कर पत्नी का परित्याग करने की अनुमति दी’’।

5) ईसा ने उन से कहा, ’’उन्होंने तुम्हारे हृदय की कठोरता के कारण ही यह आदेश लिखा।

6) किन्तु सृष्टि के प्रारम्भ ही से ईश्वर ने उन्हें नर-नारी बनाया;

7) इस कारण पुरुष अपने माता-पिता को छोड़ेगा और दोनों एक शरीर हो जायेंगे।

8) इस तरह अब वे दो नहीं, बल्कि एक शरीर हैं।

9) इसलिए जिसे ईश्वर ने जोड़ा है, उसे मनुष्य अलग नहीं करे।’’

10) शिष्यों ने, घर पहुँच कर, इस सम्बन्ध में ईसा से फिर प्रश्न किया

11) और उन्होंने यह उत्तर दिया, ’’जो अपनी पत्नी का परित्याग करता और किसी दूसरी स्त्री से विवाह करता है, वह पहली के विरुद्ध व्यभिचार करता है

12) और यदि पत्नी अपने पति का त्याग करती और किसी दूसरे पुरुष से विवाह करती है, तो वह व्यभिचार करती है’’।

13) लोग ईसा के पास बच्चों को लाते थे, जिससे वे उन पर हाथ रख दें; परन्तु शिष्य लोगों को डाँटते थे।

14) ईसा यह देख कर बहुत अप्रसन्न हुए और उन्होंने कहा, ’’बच्चों को मेरे पास आने दो। उन्हें मत रोको, क्योंकि ईश्वर का राज्य उन-जैसे लोगों का है।

15) मैं तुम से यह कहता हूँ- जो छोटे बालक की तरह ईश्वर का राज्य ग्रहण नहीं करता, वह उस में प्रवेश नहीं करेगा।’’

16) तब ईसा ने बच्चों को छाती से लगा लिया और उन पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया।



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सितंबर 01, 2024, इतवार वर्ष का बाईसवाँ सामान्य इतवार

 

सितंबर 01, 2024, इतवार

वर्ष का बाईसवाँ सामान्य इतवार

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📒 पहला पाठ : विधि-विवरण 4:1-2, 6ब-8

1) इस्राएलियों मैं जिन नियमों तथा आदेशों की शिक्षा तुम लोगों को आज दे रहा हूँ, उन पर ध्यान दो और उनका पालन करो, जिससे तुम जीवित रह सको और उस देश में प्रवेश कर उसे अपने अधिकार में कर सको, जिसे प्रभु, तुम्हारे पूर्वजों का ईश्वर तुम लोगों को देने वाला है।

2) मैं जो आदेश तुम लोगों को दे रहा हूँ, तुम उन में न तो कुछ बढ़ाओ और न कुछ घटाओ। तुम अपने प्रभु-ईश्वर के आदेशों का पालन वैसे ही करो, जैसे मैं तुम लोगों को देता हूँ।

6ब) जब वे उन सब आदेशों की चर्चा सुनेंगे, तो बोल उठेंगे ’उस महान् राष्ट्र के समान समझदार तथा बुद्धिमान और कोई राष्ट्र नहीं है’।

7) क्योंकि ऐसा महान राष्ट्र कहाँ है, जिसके देवता उसके इतने निकट हैं, जितना हमारा प्रभु-ईश्वर हमारे निकट तब होता है जब-जब हम उसकी दुहाई देते हैं?

8) और ऐसा महान् राष्ट्र कहाँ है, जिसके नियम और रीतियाँ इतनी न्यायपूर्ण है, जितनी यह सम्पूर्ण संहिता, जिसे मैं आज तुम लोगों को दे रहा हूँ?


📒 दूसरा पाठ : याकूब 1;17-18, 21ब-22, 27

17) सभी उत्तम दान और सभी पूर्ण वरदान ऊपर के हैं और नक्षत्रों के उस सृष्टिकर्ता के यहाँ से उतरते हैं, जिसमें न तो केाई परिवर्तन है और न परिक्रमा के कारण कोई अन्धकार।

18) उसने अपनी ही इच्छा से सत्य की शिक्षा द्वारा हम को जीवन प्रदान किया, जिससे हम एक प्रकार से उसकी सृष्टि के प्रथम फल बनें।

21ब) इसलिए आप लोग हर प्रकार की मलिनता और बुराई को दूर कर नम्रतापूर्वक ईश्वर का वह वचन ग्रहण करें, जो आप में रोपा गया है और आपकी आत्माओं का उद्धार करने में समर्थ है।

22) आप लोग अपने को धोखा नहीं दें। वचन के श्रोता ही नहीं, बल्कि उसके पालनकर्ता भी बनें।

27) हमारे ईश्वर और पिता की दृष्टि में शुद्ध और निर्मल धर्माचरण यह है- विपत्ति में पड़े हुए अनाथों और विधवाओं की सहायता करना और अपने को संसार के दूषण से बचाये रखना।


📒 सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 7:1-8,14-15, 21-23

1 फ़रीसी और येरुसालेम से आये हुए कई शास्त्री ईसा के पास इकट्ठे हो गये।

2) वे यह देख रहे थे कि उनके शिष्य अशुद्ध यानी बिना धोये हाथों से रोटी खा रहे हैं।

3) पुरखों की परम्परा के अनुसार फ़रीसी और सभी यहूदी बिना हाथ धोये भोजन नहीं करते।

4) बाज़ार से लौट कर वे अपने ऊपर पानी छिड़के बिना भोजन नहीं करते और अन्य बहुत-से परम्परागत रिवाज़ों का पालन करते हैं- जैसे प्यालों, सुराहियों और काँसे के बरतनों का शुद्धीकरण।

5) इसलिए फ़रीसियों और शास्त्रियों ने ईसा से पूछा, "आपके शिष्य पुरखों की परम्परा के अनुसार क्यों नहीं चलते? वे क्यों अशुद्ध हाथों से रोटी खाते हैं?

6) ईसा ने उत्तर दिया, "इसायस ने तुम ढोंगियों के विषय में ठीक ही भविष्यवाणी की है। जैसा कि लिखा है- ये लोग मुख से मेरा आदर करते हैं, परन्तु इनका हृदय मुझ से दूर है।

7) ये व्यर्थ ही मेरी पूजा करते हैं; और ये जो शिक्षा देते हैं, वे हैं मनुष्यों के बनाये हुए नियम मात्र।

8) तुम लोग मनुष्यों की चलायी हुई परम्परा बनाये रखने के लिए ईश्वर की आज्ञा टालते हो।"

14) ईसा ने बाद में लोगों को फिर अपने पास बुलाया और कहा, "तुम लोग, सब-के-सब, मेरी बात सुनो और समझो।

15) ऐसा कुछ भी नहीं है, जो बाहर से मनुष्य में प्रवेश कर उसे अशुद्ध कर सके; बल्कि जो मनुष्य में से निकलता है, वही उसे अशुद्ध करता है।

21) क्योंकि बुरे विचार भीतर से, अर्थात् मनुष्य के मन से निकलते हैं। व्यभिचार, चोरी, हत्या,

22) परगमन, लोभ, विद्वेष, छल-कपट, लम्पटता, ईर्ष्या, झूठी निन्दा, अहंकार और मूर्खता-

23) ये सब बुराइयाँ भीतर से निकलती है और मनुष्य को अशुद्ध करती हैं।



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जुलाई 21, 2024, इतवार वर्ष का सोलहवाँ सामान्य इतवार

 

जुलाई 21, 2024, इतवार


वर्ष का सोलहवाँ सामान्य इतवार

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📒 पहला पाठ : यिरमियाह का ग्रन्थ 23:1-6

1) “धिक्कार उन चरवाहों को जो मेरे चरागाह की भेड़ों को नष्ट और तितर-बितर हो जाने देते हैं!“ यह प्रभु की वाणी है।

2) इसलिए प्रभु, इस्राएल का ईश्वर अपनी प्रजा को चराने वालों से यह कहता है, “तुम लोगों ने मेरी भेड़ों को भटकने और तितर-बितर हो जाने दिया; तुमने उनकी देखरेख नहीं की। देखो! मैं तुम लोगों को तुम्हारे अपराधों का दण्ड दूँगा।“ यह प्रभु की वाणी है।

3) “इसके बाद मैं स्वयं अपने झुण्ड की बची हुई भेड़ों को उन सभी देशों से एकत्र कर लूँगा, जहाँ मैंने उन्हें बिखेर दिया है; मैं उन्हें उनके अपने मैदान वापस ले चलूँगा और वे फलेंगी-फूलेंगी।

4) मैं उनके लिए ऐसे चरवाहों को नियुक्त करूँगा, जो उन्हें सचमुच चरायेंगे। तब उन्हें न तो भय रहेगा, न आतंक और न उन में से एक का भी सर्वनाश होगा।“ यह प्रभु की वाणी है।

5) प्रभु यह कहता है: “वे दिन आ रहे हैं, जब मैं दाऊद के लिए एक न्यायी वंशज उत्पन्न करूँगा। वह राजा बन कर बुद्धिमानी से शासन करेगा और अपने देश में न्याय और धार्मिकता स्थापित करेगा।

6) उसके राज्यकाल में यूदा का उद्धार होगा और इस्राएल सुरक्षित रहेगा और उसका यह नाम रखा जायेगा- प्रभु ही हमारी धार्मिकता है।“

दूसरा पाठ: एफ़ेसियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 2:13-18

13) आप लोग पहले दूर थे, किन्तु ईसा मसीह से संयुक्त हो कर आप अब मसीह के रक्त द्वारा निकट आ गये है;

14) क्योंकि वही हमारी शान्ति हैं। उन्होंने यहूदियों और गैर-यहूदियों को एक कर दिया है। दोनों में शत्रुता की जो दीवार थी, उसे उन्होंने गिरा दिया है।

15) और अपनी मृत्यु द्वारा विधि-निषेधों की संहिता को रद्द कर दिया। इस प्रकार उन्होंने यहूदियों तथा गैर-यहूदियों को अपने से मिला कर एक नयी मानवता की सृष्टि की और शान्ति की स्थापित की है।

16) उन्होंने क्रूस द्वारा दोनों का एक ही शरीर में ईश्वर के साथ मेल कराया और इस प्रकार शत्रुता को नष्ट कर दिया।

17) तब उन्होंने आ कर दोनों को शान्ति का सन्देश सुनाया - आप लोगों को, जो दूर थे और उन लोगों को, जो निकट थे;

18) क्योंकि उनके द्वारा हम दोनों एक ही आत्मा से प्रेरित हो कर पिता के पास पहुँच सकते हैं।

📒 सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 6:30-34

30) प्रेरितो ने ईसा के पास लौट कर उन्हें बताया कि हम लोगों ने क्या-क्या किया और क्या-क्या सिखलाया है।

31) तब ईसा ने उन से कहा, ’’तुम लोग अकेले ही मेरे साथ निर्जन स्थान चले आओ और थोड़ा विश्राम कर लो’’; क्योंकि इतने लोग आया-जाया करते थे कि उन्हें भोजन करने की भी फुरसत नही रहती थी।

32) इस लिए वे नाव पर चढ़ कर अकेले ही निर्जन स्थान की ओर चल दिये।

33) उन्हें जाते देख कर बहुत-से लोग समझ गये कि वह कहाँ जा रहे हैं। वे नगर-नगर से निकल कर पैदल ही उधर दौड़ पड़े और उन से पहले ही वहाँ पहुँच गये।

34) ईसा ने नाव से उतर कर एक विशाल जनसमूह देखा। उन्हें उन लोगों पर तरस आया, क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों की तरह थे और वह उन्हें बहुत-सी बातों की शिक्षा देने लगे।




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जून 09, 2024, इतवार वर्ष का दसवाँ सामान्य इतवार

 

जून 09, 2024, इतवार

वर्ष का दसवाँ सामान्य इतवार

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📒 पहला पाठ : उत्पत्ति 3:9-15

9) प्रभु-ईश्वर ने आदम से पुकार कर कहा, ''तुम कहाँ हो?''

10) उसने उत्तर दिया, ''मैं बगीचे में तेरी आवाज सुन कर डर गया, क्योंकि में नंगा हूँ और मैं छिप गया''।

11) प्रभु ने कहा, ''किसने तुम्हें बताया कि तुम नंगे हो? क्या तुमने उस वृक्ष का फल खाया, जिस को खाने से मैंने तुम्हें मना किया था?''

12) मनुष्य ने उत्तर दिया, ''मेरे साथ रहने कि लिए जिस स्त्री को तूने दिया, उसी ने मुझे फल दिया और मैंने खा लिया''।

13) प्रभु-ईश्वर ने स्त्री से कहा, ''तुमने क्या किया है?'' और उसने उत्तर दिया, ''साँप ने मुझे बहका दिया और मैंने खा लिया''।

14) तब ईश्वर ने साँप से कहा, ''चूँकि तूने यह किया है, तू सब घरेलू तथा जंगली जानवरों में शापित होगा। तू पेट के बल चलेगा और जीवन भर मिट्टी खायेगा।

15) मैं तेरे और स्त्री के बीच, तेरे वंश और उसके वंश में शत्रुता उत्पन्न करूँगा। वह तेरा सिर कुचल देगा और तू उसकी एड़ी काटेगा''।

📒 दूसरा पाठ : 2 कुरिन्थियों 4:13-5:1

13) धर्मग्रन्थ कहता है- मैंने विश्वास किया और इसलिए मैं बोला। हम विश्वास के उसी मनोभाव से प्रेरित हैं। हम विश्वास करते हैं और इसलिए हम बोलते हैं।

14) हम जानते हैं कि जिसने प्रभु ईसा को पुनर्जीवित किया, वही ईसा के साथ हम को भी पुनर्जीवित कर देगा और आप लागों के साथ हम को भी अपने पास रख लेगा।

15) सब कुछ आप लोगों के लिए हो रहा है, ताकि जिस प्रकार बहुतों में कृपा बढ़ती जाती है, उसी प्रकार ईश्वर की महिमा के लिए धन्यवाद की प्रार्थना करने वालों की संख्या बढ़ती जाये।

16) यही कारण है कि हम हिम्मत नहीं हारते। हमारे शरीर की शक्ति भले ही क्षीण होती जा रही हो, किन्तु हमारे आभ्यान्तर में दिन-प्रतिदिन नये जीवन का संचार होता रहता है;

17) क्योंकि हमारी क्षण भर की हलकी-सी मुसीबत हमें हमेशा के लिए अपार महिमा दिलाती है।

18) इसलिए हमारी आँखें दृश्य पर नहीं, बल्कि अदृश्य चीजों पर टिकी हुई हैं, क्योंकि हम जो चीजें देखते हैं, वे अल्पकालिक हैं। अनदेखी चीजें अनन्त काल तक बनी रहती है।

5:1) हम जानते हैं कि जब यह तम्बू, पृथ्वी पर हमारा यह घर, गिरा दिया जायेगा, तो हमें ईश्वर द्वारा निर्मित एक निवास मिलेगा। वह एक ऐसा घर है, जो हाथ का बना नहीं है और अनन्त काल तक स्वर्ग में बना रहेगा।

📒 सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 3:20-35

20) वे घर लौटे और फिर इतनी भीड़ एकत्र हो गयी कि उन लोगों को भोजन करने की भी फुरसत नहीं रही।

21) जब ईसा के सम्बन्धियों ने यह सुना, तो वे उन को बलपूर्वक ले जाने निकले; क्योंकि कहा जाता था कि उन्हें अपनी सुध-बुध नहीं रह गयी है।

22) येरुसालेम से आये हुए शास्त्री कहते थे, ’’उसे बेलजे़बुल सिद्ध है’’ और ’’वह नरकदूतों के नायक की सहायता से नरकदूतों को निकालता है’’।

23) ईसा ने उन्हें अपने पास बुला कर यह दृष्टान्त सुनाया, ’’शैतान शैतान को कैसे निकाल सकता है?

24) यदि किसी राज्य में फूट पड़ गयी हो, तो वह राज्य टिक नहीं सकता।

25) यदि किसी घर में फूट पड़ गयी हो, तो वह घर टिक नहीं सकता।

26) और यदि शैतान अपने ही विरुद्ध विद्रोह करे और उसके यहाँ फूट पड़ गयी हो, तो वह टिक नहीं सकता, और उसका सर्वनाश हो गया है।

27) ’’कोई किसी बलवान् के घर में घुस कर उसका सामान तब तक नहीं लूट सकता, जब तक कि वह उस बलवान् को न बाँध ले। इसके बाद ही वह उसका घर लूट सकता है।

28) ’’मैं तुम लोगों से यह कहता हूँ- मनुष्य चाहे जो भी पाप या ईश-निन्दा करें, उन्हें सब की क्षमा मिल जायेगी;

29) परन्तु पवित्र आत्मा की निन्दा करने वाले को कभी भी क्षमा नहीं मिलेगी। वह अनन्त पाप का भागी है।’’

30) उन्होंने यह इसीलिए कहा कि कुछ लोग कहते थे, ’’उसे अपदूत सिद्ध है’’।

31) उस समय ईसा की माता और भाई आये। उन्होंने घर के बाहर से उन्हें बुला भेजा।

32) लोग ईसा के चारों ओर बैठे हुए थे। उन्होंने उन से कहा, ’’देखिए, आपकी माता और आपके भाई-बहनें, बाहर हैं। वे आप को खोज रहे हैं।’’

33) ईसा ने उत्तर दिया, ’कौन है मेरी माता, कौन हैं मेरे भाई?’’

34) उन्होंने अपने चारों ओर बैठे हुए लोगों पर दृष्टि दौड़ायी और कहा, ’’ये हैं मेरी माता और मेरे भाई।

35) जो ईश्वर की इच्छा पूरी करता है, वही है मेरा भाई, मेरी बहन और मेरी माता।’’

जून 02, 2024, इतवार ख्रीस्त के पवित्रतम शरीर और रक्त का समारोह (Corpur Chrsisti)

 

ख्रीस्त के पवित्रतम शरीर और रक्त का समारोह (Corpur Chrsisti)

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📒 पहला पाठ : निर्गमन 24:3-8

3) मूसा ने सीनई पर्वत से उतर कर प्रभु के सब वचन और आदेश लोगों को सुनाये। लोगों ने एक स्वर से इस प्रकार उत्तर दिया, ''प्रभु ने जो कुछ कहा है, हम उसका पालन करेंगे।''

4) मूसा ने प्रभु के सब आदेश लिख दिये और दूसरे दिन, भोर को, उसने पर्वत के नीचे एक वेदी बनायी और इस्राएल के बारह वंषों के लिए बारह पत्थर खड़े कर दिये।

5) उसने इस्राएली नवयुवकों को आदेश दिया कि वे होम-बलि चढ़ायें और शांतियज्ञ के लिए बछड़ों का वध करें।

6) तब मूसा ने पशुओं का आधा रक्त पात्रों में इकट्ठा किया और आधा वेदी पर छिड़का।

7) उसने विधान की पुस्तक ली और उसे लोगों को पढ़ सुनाया। लोगों ने उत्तर दिया, प्रभु ने जो कुछ कहा है, हम उसके अनुसार चलेंगे और उसका पालन करेंगे।

8) इस पर मूसा ने रक्त ले लिया और उसे लोगों पर छिड़कते हुए कहा, ''यह उस विधान का रक्त है, जिसे प्रभु ने उन सब आदेशों के माध्यम से तुम लोगों के लिए निर्धारित किया है।

📒 दूसरा पाठ : इब्रानियों 9:11-15

11) किन्तु अब मसीह हमारे भावी कल्याण के प्रधानयाजक के रूप में आये हैं और उन्होंने एक ऐसे तम्बू को पार किया, जो यहूदियों के तम्बू से महान् तथा श्रेष्ठ है, जो मनुष्य के हाथ से नहीं बना और इस पृथ्वी का नहीं है।

12) उन्होंने बकरों तथा बछड़ों का नहीं, बल्कि अपना रक्त ले कर सदा के लिए एक ही बार परमपावन स्थान में प्रवेश किया और इस तरह हमारे लिए सदा-सर्वदा रहने वाला उद्धार प्राप्त किया है।

13) याजक बकरों तथा सांड़ों का रक्त और कलोर की राख अशुद्ध लोगों पर छिड़कता है और उनका शरीर फिर शुद्ध हो जाता है। यदि उस में पवित्र करने की शक्ति है,

14) तो फिर मसीह का रक्त, जिसे उन्होंने शाश्वत आत्मा के द्वारा निर्दोष बलि के रूप में ईश्वर को अर्पित किया, हमारे अन्तःकरण को पापों से क्यों नहीं शुद्ध करेगा और हमें जीवन्त ईश्वर की सेवा के योग्य बनायेगा?

15) मसीह पहले विधान के समय किये हुए अपराधों की क्षमा के लिए मर गये हैं और इस प्रकार वह एक नये विधान के मध्यस्थ हैं। ईश्वर जिन्हें बुलाते हैं, वे अब उसकी प्रतिज्ञा के अनुसार अनन्त काल तक बनी रहने वाली विरासत प्राप्त करते हैं।

📒 सुसमाचार : सन्त मारकुस का सुसमाचार 14:12-16,22-26

12) बेख़मीर रोटी के पहले दिन, जब पास्का के मेमने की बलि चढ़ायी जाती है, शिष्यों ने ईसा से कहा, ’’आप क्या चाहते हैं? हम कहाँ जा कर आपके लिए पास्का भोज की तैयारी करें?’’

13) ईसा ने दो शिष्यों को यह कहते हुए भेजा, ’’शहर जाओ। तुम्हें पानी का घड़ा लिये एक पुरुष मिलेगा। उसके पीछे-पीछे चलो।

14) और जिस घर में वह प्रवेश करे, उस घर के स्वामी से यह कहो, ’गुरुवर कहते हैं- मेरे लिए अतिथिशाला कहाँ हैं, जहाँ मैं अपने शिष्यों के साथ पास्का का भोजन करूँ?’

15) और वह तुम्हें ऊपर सजा-सजाया बड़ा कमरा दिखा देगा वहीं हम लोगों के लिए तैयार करो।’’

16) शिष्य चल पड़े। ईसा ने जैसा कहा था, उन्होंने शहर पहुँच कर सब कुछ वैसा ही पाया और पास्का-भोज की तैयारी कर ली।

22) उनके भोजन करते समय ईसा ने रोटी ले ली, और आशिष की प्रार्थना पढ़ने के बाद उसे तोड़ा और यह कहते हुए शिष्यों को दिया, ’’ले लो, यह मेरा शरीर है’’।

23) तब उन्होंने प्याला ले कर धन्यवाद की प्रार्थना पढ़ी और उसे शिष्यों को दिया और सब ने उस में से पीया।

24) ईसा ने उन से कहा, ’’यह मेरा रक्त है, विधान का रक्त, जो बहुतों के लिए बहाया जा रहा है।

25) मैं तुम से यह कहता हूँ- जब तक मैं ईश्वर के राज्य में नवीन रस न पी लूँ, तब तक मैं दाख का रस फिर नहीं पिऊँगा।’’

26) भजन गाने के बाद वे जैतून पहाड़ चल दिये।

📚 मनन-चिंतन

येसु सारी मानवजाति को मुक्ति देने के लिए आए थे। पिता ने, मानवता के प्रति अपने प्रेम से, अपने इकलौते पुत्र येसु को दुनिया में भेजा, ताकि वह स्वयं का बलिदान दे, मानवता को मुक्ति दे सकें। येसु ने यूखरिस्तीय संस्कार की स्थापना करते हुए मृत्यु को प्राप्त किया। यूखरिस्त में वह हमें अपना शरीर और रक्त देते हैं। उन्होंने इस संस्कार की स्थापना करने के लिए मृत्यु को गले लगाया। वह हमारे प्रति प्रेम से मरने को तैयार थे। यूखरिस्त ईश्वर के प्रेम का संस्कार है। यूखरिस्त ईश्वर के प्रेम का आत्म-उपहार है। येसु हमें बताते हैं कि हमें एक दूसरे से प्रेम करना चाहिए जैसे उन्होंने हमसे किया और वह यूखरिस्त में हमसे प्रेम करते रहते हैं। परमप्रसाद मंत हम इस प्रेम के संस्कार को प्राप्त करते हैं। हमें उसी तीव्रता से एक दूसरे से प्रेम करने का आह्वान किया जाता है। संत पापा बेनेडिक्ट सोलहवें ने अपने उद्बोधन ’साक्रमेन्तुम कारितातिस (नंबर 1) में कहते हैं, “प्रेम का संस्कार, पवित्र यूखरिस्त वह उपहार है जिसमें येसु मसीह स्वयं को हमें देते हैं। इस प्रकार वह हमारे लिए, हर एक पुरुष और महिला के लिए, ईश्वर के अनंत प्रेम को प्रकट करते हैं।” आइए हम यूखरिस्त से एक दूसरे से प्रेम करना सीखें।





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रविवार, 17 मार्च, 2024 चालीसे का पांचवां रविवार

 *✞ GOD'S WORD ✞*



*रविवार, 17 मार्च, 2024*

*चालीसे का पांचवां रविवार*


*पहला पाठ*
यिरमियाह 31:31-34

31) प्रभु यह कहता हैः “वे दिन आ रहे हैं, जब मैं इस्राएल के घराने और यूदा के घराने के साथ एक नया विधान स्थापित करूँगा।

32) यह उस विधान की तरह नहीं होगा, जिसे मैंने उस दिन उनके पूर्वजों के साथ स्थापित किया था, जब मैंने उन्हें मिस्र से निकालने के लिए हाथ से पकड़ लिया था। उस विधान को उन्होंने भंग कर दिया, यद्यपि मैं उनका स्वामी था।“ यह प्रभु की वाणी है।

33) “वह समय बीत जाने के बाद मैं इस्राएल के लिए एक नया विधान निर्धारित करूँगा।’ यह प्रभु की वाणी है। “मैं अपना नियम उनके अभ्यन्तर में रख दूँगा, मैं उसे उनके हृदय पर अंकित करूँगा। मैं उनका ईश्वर होऊँगा और वे मेरी प्रजा होंगे।

34) इसकी जरूरत नहीं रहेगी कि वे एक दूसरे को शिक्षा दें और अपने भाइयों से कहें- ’प्रभु का ज्ञान प्राप्त कीजिए’ ; क्योंकि छोटे और बड़े, सब-के-सब मुझे जानेंगे।“ यह प्रभु की वाणी है। “मैं उनके अपराध क्षमा कर दूँगा, मैं उनके पापों की याद नहीं रखूँगा।“
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*दूसरा पाठ*
इब्रानियों 5:7-9

7) मसीह ने इस पृथ्वी पर रहते समय पुकार-पुकार कर और आँसू बहा कर ईश्वर से, जो उन्हें मृत्यु से बचा सकता था, प्रार्थना और अनुनय-विनय की। श्रद्धालुता के कारण उनकी प्रार्थना सुनी गयी।

8) ईश्वर का पुत्र होने पर भी उन्होंने दुःख सह कर आज्ञापालन सीखा।

9 (9-10) वह पूर्ण रूप से सिद्ध बन कर और ईश्वर से मेलखि़सेदेक की तरह प्रधानयाजक की उपाधि प्राप्त कर उन सबों के लिए मुक्ति के स्रोत बन गये, जो उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं।
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*सुसमाचार*
सन्त योहन 12:20-33

20) जो लोग पर्व के अवसर पर आराधना करने आये थे, उन में कुछ यूनानी थे।

21) उन्होने फि़लिप के पास आ कर यह निवेदन किया महाशय! हम ईसा से मिलना चाहते हैं। फि़लिप गलीलिया के बेथसाइदा का निवासी था।

22) उसने जाकर अन्द्रेयस को यह बताया और अन्द्रेयस ने फि़लिप को साथ ले जा कर ईसा को इसकी सूचना दी।

23) ईसा ने उन से कहा, “वह समय आ गया है, जब मानव पुत्र महिमान्वित किया जायेगा।“

24) मैं तुम लोगो से यह कहता हूँ- जब तक गेंहूँ का दाना मिटटी में गिर कर नहीं मर जाता, तब तक वह अकेला ही रहता है; परंतु यदि वह मर जाता है, तो बहुत फल देता है।

25) जो अपने जीवन को प्यार करता है, वह उसका सर्वनाश करता है और जो इस संसार में अपने जीवन से बैर करता है, वह उसे अनंत जीवन के लिये सुरक्षित रखता है।

26) यदि कोई मेरी सेवा करना चाहता है तो वह मेरा अनुसरण करे। जहाँ मैं हूँ वहीं मेरा सेवक भी होगा। जो मेरी सेवा करेगा, मेरा पिता उस को सम्मान प्रदान करेगा।

27) “अब मेरी आत्मा व्याकुल है। क्या मैं यह कहूँ - ’पिता ! इस घडी के संकट से मुझे बचा’? किन्तु इसलिये तो मैं इस घडी तक आया हूँ।

28) पिता! अपनी महिमा प्रकट कर। उसी समय यह स्वर्गवाणी सुनाई पडी, ’’मैने उसे प्रकट किया है और उसे फिर प्रकट करूँगा।“ आसपास खडे लोग यह सुनकर बोले, ’’बादल गरजा’’।

29) कुछ लोगो ने कहा, ’’एक स्वर्गदूत ने उन से कुछ कहा’’।

30) ईसा ने उत्तर दिया, ’’यह वाणी मेरे लिये नहीं बल्कि तुम लोगेा के लिये आयी।

31) अब इस संसार का न्याय हो रहा है। अब इस संसार का नायक निकाल दिया जायेगा।

32) और मैं, जब पृथ्वी के ऊँपर उठाया जाऊँगा तो सब मनुष्यों को अपनी ओर आकर्षित करूँगा।

33) इन शब्दों के द्वारा उन्होने संकेत किया कि उनकी मृत्यु किस प्रकार की होगी।


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25 फरवरी, 2024 चालीसे का दूसरा रविवार

25 फरवरी, 2024
चालीसे का दूसरा रविवार


पहला पाठ : उत्पत्ति ग्रन्थ 22:1-2,9a,10-13,15-18
1) ईश्वर ने इब्राहीम की परीक्षा ली। उसने उस से कहा, ''इब्राहीम! इब्राहीम!'' इब्राहीम ने उत्तर दिया, ''प्रस्तुत हूँ।''

2) ईश्वर ने कहा, ''अपने पुत्र को, अपने एकलौते को परमप्रिय इसहाक को साथ ले जा कर मोरिया देश जाओ। वहाँ, जिस पहाड़ पर मैं तुम्हें बताऊँगा, उसे बलि चढ़ा देना।''

9) जब वे उस जगह पहुँच गये, जिसे ईश्वर ने बताया था, तो इब्राहीम ने वहाँ एक वेदी बना ली और उस पर लकड़ी सजायी।

10) तब इब्राहीम ने अपने पुत्र को बलि चढ़ाने के लिए हाथ बढ़ा कर छुरा उठा लिया।

11) किन्तु प्रभु का दूत स्वर्ग से उसे पुकार कर बोला, ''इब्राहीम! ''इब्राहीम! उसने उत्तर दिया, ''प्रस्तुत हूँ।''

12) दूत ने कहा, ''बालक पर हाथ नहीं उठाना; उसे कोई हानि नहीं पहुँचाना। अब मैं जान गया कि तुम ईश्वर पर श्रद्धा रखते हो - तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया।

13) इब्राहीम ने आँखें ऊपर उठायीं और सींगों से झाड़ी में फँसे हुए एक मेढ़े को देखा। इब्राहीम ने जाकर मेढ़े को पकड़ लिया और उसे अपने पुत्र के बदले बलि चढ़ा दिया।

15) ईश्वर का दूत इब्राहीम को दूसरी बार पुकार कर

16) बोला, ''यह प्रभु की वाणी है। मैं शपथ खा कर कहता हूँ - तुमने यह काम किया : तुमने मुझे अपने पुत्र, अपने एकलौते पुत्र को भी देने से इनकार नहीं किया;

17) इसलिए मैं तुम पर आशिष बरसाता रहूँगा। मैं आकाश के तारों और समुद्र के बालू की तरह तुम्हारे वंशजों को असंख्य बना दूँगा और वे अपने शत्रुओं के नगरों पर अधिकार कर लेंगे।

18) तुमने मेरी आज्ञा का पालन किया है; इसलिए तुम्हारे वंश के द्वारा पृथ्वी के सभी राष्ट्रों का कल्याण होगा।''

दूसरा पाठ : रोमियों के नाम सन्त पौलुस का पत्र 8:31b-34
31) यदि ईश्वर हमारे साथ है, तो कौन हमारे विरुद्ध होगा?

32) उसने अपने निजी पुत्र को भी नहीं बचाया, उसने हम सबों के लिए उसे समर्पित कर दिया। तो, इतना देने के बाद क्या वह हमें सब कुछ नहीं देगा?

33) जिन्हें ईश्वर ने चुना है, उन पर कौन अभियोग लगा सकेगा? जिन्हें ईश्वर ने दोषमुक्त कर दिया है,

34) उन्हें कौन दोषी ठहरायेगा? क्या ईसा मसीह ऐसा करेंगे? वह तो मर गये, बल्कि जी उठे और ईश्वर के दाहिने विराजमान हो कर हमारे लिए प्रार्थना करते रहते हैं।

सुसमाचार : सन्त मारकुस 9:2-10
2) छः दिन बाद ईसा ने पेत्रुस, याकूब और योहन को अपने साथ ले लिया और वह उन्हें एक ऊँचे पहाड़ पर एकान्त में ले चले। उनके सामने ही ईसा का रूपान्तरण हो गया।

3) उनके वस्त्र ऐसे चमकीले और उजले हो गये कि दुनिया का कोई भी धोबी उन्हें उतना उजला नहीं कर सकता।

4) शिष्यों को एलियस और मूसा दिखाई दिये-वे ईसा के साथ बातचीत कर रहे थे।

5) उस समय पेत्रुस ने ईसा से कहा, ’’गुरुवर! यहाँ होना हमारे लिए कितना अच्छा है! हम तीन तम्बू खड़े कर दें- एक आपके लिए, एक मूसा और एक एलियस के लिए।’’

6) उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे, क्योंकि वे सब बहुत डर गये थे।

7) तब एक बादल आ कर उन पर छा गया और उस बादल में से यह वाणी सुनाई दी, ’’यह मेरा प्रिय पुत्र है। इसकी सुनो।’’

8) इसके तुरन्त बाद जब शिष्यों ने अपने चारों ओर दृष्टि दौड़ायी, तो उन्हें ईसा के सिवा और कोई नहीं दिखाई पड़ा।

9) ईसा ने पहाड़ से उतरते समय उन्हें आदेश दिया कि जब तक मानव पुत्र मृतकों में से न जी उठे, तब तक तुम लोगों ने जो देखा है, उसकी चर्चा किसी से नहीं करोगे।

10) उन्होंने ईसा की यह बात मान ली, परन्तु वे आपस में विचार-विमर्श करते थे कि ’मृतकों में से जी उठने’ का अर्थ क्या हो सकता है।


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